रविवार, 14 अक्तूबर 2012

संपादकीय 
हम स्वयं बुलाते हैं सेहत के लिए खतरे
               करीब दो लाख साल से इंसान चंद जरूरतों के साथ खुशहाल जीवन जीता आया है । मगर, पिछले २५० सालों में आदमी की जीवनशैली में काफी बदलाव आया है । बदलावों की वही अति अब हमें काल के गाल में ले जा रही है । हमारा शरीर हवा, पानी एवं खानपान में मिश्रित प्रदूषण का पिटारा बन गया है । नतीनजन हम ढेरों जानलेवा बीमारियों का प्रकोप झेल रहे हैं । हां, कुछ हद तक सतर्क रहे तो बचे रहने की संभावना अभी बाकी है ।
    अपने शरीर से हम किसी भी तरह की लाइफ स्टाइल को सहज स्वीकारने की उम्मीद करते हैं । तब यह नहीं सोचते कि बिना विरोध के यह कैसे संभव है । आज तमाम जानलेवा बीमारियां लगातार बढ़ रही है । यहां तक कि जो रोग पूरी तरह खत्म हो चुके थे, वे भी लौट रहे हैं । वास्तव में हमारी बनावटी और आधुनिक जीवनशैली के प्रति शरीर के विरोध का ही नतीजा है दिल, दमा और कैंसर जैसे गंभीर रोग ।
    जल प्रदूषण भारत के पर्यावरण संबंधी खतरों में से एक बड़ा खतरा बनकर उभरा है । इसके सबसे बड़े स्त्रोत, शहरी सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट हैं, जो सीधे नदियों में पहुंचते है । कृषि और औद्योगिक उत्पादन जैसी गतिविधियां जैविक अपशिष्ट के साथ पानी को भी प्रदूषित करती है ।
    प्रदूषित जल हैजा, पेचिस, टीबी और पेट की बीमारियों जैसी अन्य कई बीमारियों का कारण बनता है । वर्तमान में इसमें सिर्फ १६ प्रतिशत जल ही शोधित हो पाता है, अत: नदियों से मिलने वाला पेयजल दूषित तथा रोगजनित जीवाणुआें से भरा होता है ।
    आधुनिक वातवरण और पदार्थो में मौजूद प्रदूषण का शरीर में प्रवेश करना स्वाभाविक है । इनमें से कई शरीर में जमा हो जाते हैं । मिलावटी खानपान के चयापचय  की दृष्टि से हमारे शरीर की संरचना नहीं हुई है, फिर भी शरीर प्रणाली प्रदूषण के असर को कम और खत्म करने में जुटी रहती है । ये जब उसके वश के बाहर हो जाता है, तो वह रोगों के रूप में प्रकट होता है । पर्यावरणीय चिकित्सकों के अनुसार दुनिया का २५ से ३० प्रतिशत हिस्सा पर्यावरण प्रदूषण संबंधी किसी न किसी रोग से पीड़ित है ।

कोई टिप्पणी नहीं: