ज्ञान विज्ञान
भेड़े स्वार्थवश झुंड बनाती हैं
भेड़े स्वार्थवश झुंड बनाती हैं
भेड़ों का झुंड में चलना जग प्रसिद्ध है । कोई शिकारी पीछा करे तो हरेक भेड़ का व्यवहार क्या होता है ? कई शोधकर्ताआें का ख्याल है कि ऐसे मौकों पर भेड़ों के व्यवहार की व्याख्या स्वार्थ के आधार पर की जा सकती है ।
दशकों पुराने इस विचार को स्वार्थी झुंड सिद्धांत कहते है। मगर इसे सिद्ध करने के लिए प्रमाण बहुत कम थे । पहले सील मछलियों, केंकड़ों और कबूतरों पर कुछ अध्ययन किए गए थे और संकेत मिले थे कि इन जंतुआें में झंुड बनाने की प्रवृत्ति के पीछे स्वार्थ होता है । मगर इन अध्ययनों से प्राप्त् आंकडे अस्पष्ट थे । अब एक अध्ययन भेड़ों पर किया गया है और इससे प्राप्त् आंकड़े स्वार्थी झुंड सिद्धांत की पुष्टि करते है ।
लंदन विश्वविघालय के जीव वैज्ञानिक एंड्रयू किंग और उनके साथियों ने ४६ भेड़ों की पीठ पर जीपीएस उपकरण बांध दिए । जीपीएस उपकरण की मदद से उन्हें हर क्षण पता रहता था कि कौन सी भेड़ कहां है और कहां जा रही है । इसी तरह से उन्होंने एक शिकारी कुत्ते की पीठ पर भी एक जीपीएस उपकरण लाद दिया ।
दशकों पुराने इस विचार को स्वार्थी झुंड सिद्धांत कहते है। मगर इसे सिद्ध करने के लिए प्रमाण बहुत कम थे । पहले सील मछलियों, केंकड़ों और कबूतरों पर कुछ अध्ययन किए गए थे और संकेत मिले थे कि इन जंतुआें में झंुड बनाने की प्रवृत्ति के पीछे स्वार्थ होता है । मगर इन अध्ययनों से प्राप्त् आंकडे अस्पष्ट थे । अब एक अध्ययन भेड़ों पर किया गया है और इससे प्राप्त् आंकड़े स्वार्थी झुंड सिद्धांत की पुष्टि करते है ।
लंदन विश्वविघालय के जीव वैज्ञानिक एंड्रयू किंग और उनके साथियों ने ४६ भेड़ों की पीठ पर जीपीएस उपकरण बांध दिए । जीपीएस उपकरण की मदद से उन्हें हर क्षण पता रहता था कि कौन सी भेड़ कहां है और कहां जा रही है । इसी तरह से उन्होंने एक शिकारी कुत्ते की पीठ पर भी एक जीपीएस उपकरण लाद दिया ।
अब इस शिकारी कुत्ते को भेड़ों के समूह का पीछा करने को छोड़ दिया और ४६ में से एक-एक भेड़ की स्थिति हर सेकंड रिकॉर्ड की । जब इन आंकड़ों का विश्लेषण किया गया तो पता चला कि शिकारी कुत्ते से बचने की फिराक में अलग-अलग भेड़े कुत्ते से दूर भागने की कोशिश नहीं कर रही थीं । न ही वे अपने आगे वाली भेड़ के पीछे-पीछे चल रही थीं । दरअसल, सारी की सारी भेड़े भागकर झंुड के बीच में पहुंचने की कोशिश कर रही थीं ।
यानी भेड़ों की गति की व्याख्या सिर्फ यह देखकर की जा सकती है कि झुंड का केन्द्र कहां है । इसका मतलब हुआ कि शिकारी कुत्ते से सामना होने पर वे स्वयं को बचाने के लिए अन्य भेड़ों को खतरे में डाल देती है । आखिर जो भेड झुंड के बीच में रहेगी वही सबसे सुरक्षित है और सारी भेड़े तो केन्द्र में हो ही नहीं सकती । यदि कुछ भेड़े झुंड के केन्द्र मेंपहुंच जाती हैं, तो इसका मतलब है कि उन्होनें कुछ भेड़ों को झुंड के किनारे पर धकेला होगा और किनारे की भेड़ों के पकड़े जाने की संभावना ज्यादा है ।
यह तो एक स्वार्थी व्यवहार ही कहा जाएगा कि खुद को बचाने के लिए अपनी साथी भेड़ों को झुंड के किनारों पर छोड़ दो । इस अध्ययन से उक्त सिद्धांत की पुष्टि होती है और अंदाज लगता है कि जैव विकास के लंबे दौर मं वे कौन से दबाव थे जिन्होनें जन्तुआें को झंुड बनाकर रहने की ओर धकेला होगा । शोधकर्ताआें का विचार है कि अभी इस अध्ययन के परिणामों को सामान्य नियम कहना ठीक नहीं होगा । जैसे अभी यह नहीं कहा जा सकता कि भेड़ों का व्यवहार बाकी जन्तुआें के मामले में भी लागू किया जा सकता है । इसी प्रकार से एक प्रशिक्षित शिकारी कुत्ता कुदरती खतरों का सही प्रतिनिधित्व नहीं करता है । शोधकर्ता यह भी देखना चाहते हैं कि जब झंुड में कुछ भेड़ों को कोई ऐसी बीमारी हो जाती है तो तेजी से पूरे झंुड में फैल सकती हैं, तब भेड़ों का व्यवहार कैसाहोता है । इससे जन्तुआें के झंुड में बीमारियों की निगरानी करने में मदद मिल सकती है।
घाव ठीक करने में शहद ज्यादा असरदार
घावों को ठीक करने के लिए मशूहर दवा बेटाडीन पर भारतीय चिकित्सा शास्त्र में अचूक माना जाने वाला शहर चार गुना भारी पड़ रहा है । देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान एम्स ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टरों ने प्रयोग के आधार पर यह बात साबित कर दी है । ४२ मरीजों पर छ: सप्तह तक किया गया इसका प्रयोग सफल रहा है । जल्द ही इसके प्रयोग की अनुमति पूरे अस्पताल में मिलने की उम्मीद है ।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सेना ने जवानों के घाव भरने में शहद का प्रयोग किया था । इसी को आधार बनाते हुए एम्स में प्रो. अनुराग श्रीवास्तव की अगुआई में किए गए इस अध्ययन को इंडियन जर्नल ऑफ सर्जरी ने भी प्रकाशित किया है । डॉक्टर अनुराग का कहना है अब तक हजारों मरीजों पर इसका प्रयोग किया जा चुका है । लेकिन सुचारू रूप से ४२ मरीजों पर किया गया यह अध्ययन काफी सरल रहा । एम्स की सर्जरी ओपीडी में आए ४५ में से २३ मरीजों को शहद से इलाज के लिए चुना गया और २२ को बेटाडीन मरहम से इलाज के लिए । बाद में शहद से इलाज करा रहा एक मरीज और बेटाडीन से इलाज करा रहे दो मरीज इस अध्ययन से हट गए ।
यह तो एक स्वार्थी व्यवहार ही कहा जाएगा कि खुद को बचाने के लिए अपनी साथी भेड़ों को झुंड के किनारों पर छोड़ दो । इस अध्ययन से उक्त सिद्धांत की पुष्टि होती है और अंदाज लगता है कि जैव विकास के लंबे दौर मं वे कौन से दबाव थे जिन्होनें जन्तुआें को झंुड बनाकर रहने की ओर धकेला होगा । शोधकर्ताआें का विचार है कि अभी इस अध्ययन के परिणामों को सामान्य नियम कहना ठीक नहीं होगा । जैसे अभी यह नहीं कहा जा सकता कि भेड़ों का व्यवहार बाकी जन्तुआें के मामले में भी लागू किया जा सकता है । इसी प्रकार से एक प्रशिक्षित शिकारी कुत्ता कुदरती खतरों का सही प्रतिनिधित्व नहीं करता है । शोधकर्ता यह भी देखना चाहते हैं कि जब झंुड में कुछ भेड़ों को कोई ऐसी बीमारी हो जाती है तो तेजी से पूरे झंुड में फैल सकती हैं, तब भेड़ों का व्यवहार कैसाहोता है । इससे जन्तुआें के झंुड में बीमारियों की निगरानी करने में मदद मिल सकती है।
घाव ठीक करने में शहद ज्यादा असरदार
घावों को ठीक करने के लिए मशूहर दवा बेटाडीन पर भारतीय चिकित्सा शास्त्र में अचूक माना जाने वाला शहर चार गुना भारी पड़ रहा है । देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान एम्स ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टरों ने प्रयोग के आधार पर यह बात साबित कर दी है । ४२ मरीजों पर छ: सप्तह तक किया गया इसका प्रयोग सफल रहा है । जल्द ही इसके प्रयोग की अनुमति पूरे अस्पताल में मिलने की उम्मीद है ।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सेना ने जवानों के घाव भरने में शहद का प्रयोग किया था । इसी को आधार बनाते हुए एम्स में प्रो. अनुराग श्रीवास्तव की अगुआई में किए गए इस अध्ययन को इंडियन जर्नल ऑफ सर्जरी ने भी प्रकाशित किया है । डॉक्टर अनुराग का कहना है अब तक हजारों मरीजों पर इसका प्रयोग किया जा चुका है । लेकिन सुचारू रूप से ४२ मरीजों पर किया गया यह अध्ययन काफी सरल रहा । एम्स की सर्जरी ओपीडी में आए ४५ में से २३ मरीजों को शहद से इलाज के लिए चुना गया और २२ को बेटाडीन मरहम से इलाज के लिए । बाद में शहद से इलाज करा रहा एक मरीज और बेटाडीन से इलाज करा रहे दो मरीज इस अध्ययन से हट गए ।
इसके बाद ४२ मरीजों पर छ: सप्तह तक अध्ययन किया गया । हर दूसरे दिन सभी मरीजों की पट्टी बदली गई । दो सप्तह में पता चला कि शहद से इलाज करा रहे लोगों के घाव तेजी से भर रहे हैं । छ: सप्तह के बाद पता चला कि घाव भरने में बेटाडीन की तुलना में शहद चार गुना ज्यादा असरदार साबित हुआ है । यहीं, नहीं मरीजों को पट्टी बदलने के दौरान दर्द भी कम हुआ ।
शहद मेें हाइड्रोजन पराक्साइड पाया जाता है, जो जीवाणु को धीरे-धीरे मारता है । शहद खुद एंटीबायोटिक्स का बहुत बड़ा स्त्रोत है । इसमें विटामिन सी. एमीनो एसिड व फ्रक्टोज शुगर के तत्व भी होते है । इससे संक्रमण का भी खतरा नहीं होता । अध्ययन में शामिल मरीजों में गामा किरणों की मदद से कीटाणु मुक्त किए गए शहद का प्रयोग किया गया था ।
चूहा भी गा सकता है प्रेम गीत
चूहे इंसानों की तरह गाने की काबिलियत रखते हैं और इस दम पर मादाआें का आकर्षित कर सकते हैं ।
वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोग में बताया है कि नर चूहे इंसानों की तरह तेज आवाज में प्रेम गीत गाकर मादाआें से प्रणय निवेदन कर सकते हैं । अपनी धुनों को चटपटा कर वे होड़ भी जीत सकते हैं । शोधकर्ताआें ने पाया कि चूहों के मस्तिष्क में मानवीय विशेषताएं होती हैं और गीत सीखने वाले पक्षी की तरह वे अपनी आवाज भी बदल सकते हैं ।
शहद मेें हाइड्रोजन पराक्साइड पाया जाता है, जो जीवाणु को धीरे-धीरे मारता है । शहद खुद एंटीबायोटिक्स का बहुत बड़ा स्त्रोत है । इसमें विटामिन सी. एमीनो एसिड व फ्रक्टोज शुगर के तत्व भी होते है । इससे संक्रमण का भी खतरा नहीं होता । अध्ययन में शामिल मरीजों में गामा किरणों की मदद से कीटाणु मुक्त किए गए शहद का प्रयोग किया गया था ।
चूहा भी गा सकता है प्रेम गीत
चूहे इंसानों की तरह गाने की काबिलियत रखते हैं और इस दम पर मादाआें का आकर्षित कर सकते हैं ।
वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोग में बताया है कि नर चूहे इंसानों की तरह तेज आवाज में प्रेम गीत गाकर मादाआें से प्रणय निवेदन कर सकते हैं । अपनी धुनों को चटपटा कर वे होड़ भी जीत सकते हैं । शोधकर्ताआें ने पाया कि चूहों के मस्तिष्क में मानवीय विशेषताएं होती हैं और गीत सीखने वाले पक्षी की तरह वे अपनी आवाज भी बदल सकते हैं ।
इस अध्ययन के नेतृत्वकर्ता न्यूरोबायो-लॉजिस्ट एरिक जार्विस ने कहा कि हम दावा करते हैं कि चूहों में सीमित वाणी क्षमता होती है जो मस्तिष्क व व्यावहारिक विशेषताआें से युक्त होती हैं । इस अध्ययन ने ६० वर्ष पूर्व उस धारण को खंडित किया है कि चूहों में वाणी सीखने की क्षमता नहीं होती है । मेडिकल इंस्टीट्यूट के अन्वेषक हार्वर्ड युग्स ने कहा कि यदि हम गलत नहीं हैं तो यह अध्ययन ऑजिज्म व मानसिक विकारों को समझने में बड़ी छलांग होगा
मल्टीविटामिन से बढ़ती है मेमोरी
एक नई रिसर्च के मुताबिक मल्टीविटामिन गोलियों के रोजाना सेवन से याददाश्त बढ़ती है और यह मानसिक कमजोरी को धीमा करती है। शोधकर्ताआें का मानना है कि इसके सेवन से याददाश्त पर लाभप्रद प्रभाव पड़ता है और मस्तिष्क कोशिकाआें की कार्यक्षमता में इजाफा होता है ।
मल्टीविटामिन से बढ़ती है मेमोरी
एक नई रिसर्च के मुताबिक मल्टीविटामिन गोलियों के रोजाना सेवन से याददाश्त बढ़ती है और यह मानसिक कमजोरी को धीमा करती है। शोधकर्ताआें का मानना है कि इसके सेवन से याददाश्त पर लाभप्रद प्रभाव पड़ता है और मस्तिष्क कोशिकाआें की कार्यक्षमता में इजाफा होता है ।
शरीर की सुचारू कार्यप्रणाली और स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए शरीर को १३ विटामिन्स की जरूरत होती है । विटामिन ए,सी,डी,ई के और बी का शरीर मेंविशिष्ट कार्य है । विटामिन सी कोशिकाआें को स्वस्थ रखता है जबकि विटामिन डी कैल्शियम का नियंत्रण करता है । विटामिन ई कोशिकाआें के आकार को कायम रखता है तो वहीं विटामिन बी व फोलिक एसिड विविध कार्य करते हैं । ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी के अध्ययन में ३२०० महिला व पुरूषों को शामिल किया गया । इसमें पाया गया कि जिन्होनें मल्टीविटामिन का प्रयोग किया उनकी जानकारियॉ व घटनाआें के स्मरण की शक्ति बढ़ी
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