प्रदेश चर्चा
उ.प्र.: गरीबी रेखा से बाहर होता गरीब
भारत डोगरा
पिछले दिनों बुंदेलखंड के बांदा (उत्तरप्रदेश) में हुई जनसुनवाई में गरीबी रेखा (बीपीएल) के नीचे रहने वाले समुदाय की समस्याएं सामने आई है । बड़ी संख्या में वास्तविक गरीब बीपीएल सूची से बाहर हैं और सरकारी योजनाआें का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं । इसी के साथ बाहुबलियों और सरकारी कर्मचारियों के मध्य बना हुआ गठजोड़ भी सामने आया ।
हाल के वर्षो में जन-सुनवाई की एक बेहद लोकतांत्रिक पद्धति विकसित हुई है, जिसमें विशेषकर उपेक्षित - वंचित समुदायों को अपनी समस्याआें को इस तरह से ऐसे परिवेश में बताने का अवसर मिलता है, जिसमें कि उनकी समाधान की संभावनाएं अपेक्षाकृत बढ़ जाती है । ऐसी जन-सुनवाईयों में प्रयास यह किया जाता है कि एक स्थान पर संबंधित अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, क्षेत्र के अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों व मीडिया की उपस्थिति में आम लोगों, विशेषकर निर्धन व उपेक्षित समुदायों के सदस्यों को अपनी समस्याआें व कठिनाईयों के बारे में बताने का उचित अवसर मिले । साथ ही इस बारे में संबंधित अधिकारियों को या जन-प्रतिनिधियों को क्या कहना है या क्या आश्वासन देना है, यह इस जन-सुनवाई के दौरान स्पष्ट हो जाता है ।
जन-सुनवाइयों की इन लोकतांत्रिक संभावनाआें को ध्यान में रखते हुए बांदा जिले के नरैनी ब्लाक (उत्तरप्रदेश) में कार्यरत संस्था विघाधाम समिति ने ३० सितम्बर २०१२ को जिला परिषद सभागार में अपने कार्यक्षेत्र के ग्रामीणों की विविध गंभीर समस्याआें पर एक जन-सुनवाई का आयोजन किया । दूर-दूर के गांवों से बड़े समूह में पहुंचने की अनेक कठिनाईयों के बावजूद इस जन-सुनवाई के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्र हुए ।
इस जन-सुनवाई का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह रहा कि इसमें भूमि-वितरण के उन तथाकथित लाभार्थियों की अंतहीन समस्याआें की ओर ध्यान दिलाया गया, जिसके नाम पर भूमि का आवंटन कागजी कार्यवाही के तौर पर तो हो चुका है पर जो अनेक वर्षोके प्रयास से भी इस भूमि पर कब्जा प्राप्त् कर इसे जोत नहीं सके हैं । ऐसे ही दलित परिवारों एक समूह सियारपाखा गांव से इस जन-सुनवाई में पहुंचा ।
इन निर्धन गांववासियों ने बताया कि सियारपाखा के एक दर्जन से अधिक दलित परिवारों की भूमि पर दबंगों के कब्जेहै । जन-सुनवाई में उपस्थित व्यक्ति उस समय स्तब्ध रह गए जब दलित समूह के इन वंचितों ने बताया कि लगभग ३० वर्ष पहले यह पट्टे दिए गए थे व तब से अब तक के अथक प्रयासों के बावजूद वे भूमि पर कब्जा कर खेती नहीं कर सके हैं । तहसीलदार कहते हैं कि लेखापाल से भूमि नपवालो व लेखापाल दूर से भूमि की ओर इशारा कर देते हैं पर जब दलित परिवार अपने खेत पर पहुंचते हैं तो उन्हें दबंग खदेड़ देते हैं । सियारपाखा (मजरा गुढा कला) के श्यामलदास जब अपने खेत पर गए तो दबंगों ने उन्हें लाठियों से मारा और कहा कि फिर यहां आए तो हाथ - पैर तोड़ देंगे ।
जन-सुनवाई में सरकारी धन के दुरूपयोग और जरूरतमंद किसानों को सिंचाई से वंचित रखने का उदाहरण नौगांव गांव में प्रस्तुत हुआ । इस गांव के खेतों की सिंचाई के लिए नहर की लंबाई बढ़ाना बहुत जरूरी था और मनरेगा के तहत यह २ कि.मी. लंबी नहर का कार्य स्वीकृत भी हो गया, पर भ्रष्टाचार के कारण नहर के स्थान पर एक नालीनुमा निर्माण ही जल्दबाजी में किया गया व उसमें भी ढलान के स्थान पर ऊंचाई है । इस जल्दबाजी के अधूरे व अनुचित निर्माण के कारण किसानों को पानी तो एक बंूद नहीं मिला पर उनके ढेर सारी जमीन जरूर छिन गई । उनकी मांग है कि या तो नहर को शीघ्र ठीक किया जाय या उनकी जमीन क्षतिपूर्ति के मुआवजे सहित वापस की जाए ।
जन-सुनवाई से एक बड़ा मुद्दा यह उभरा कि जो बीपीएल कार्ड, वृद्धावस्था पेंशन व विकलांग पेयजल आदि के वास्तविक हकदार जरूरतमंद हैं, उन तक इसका लाभ नहीं पहुंच रहा है । पप्पू यादव गुढ़ाकला गांव का ऐसा युवा है, जो बचपन से घोर गरीबी में ही पला है । प्रवासी मजदूर के रूप में कार्य करते हुए उसे टी.बी. हो गई । इलाज के लिए २६ हजार रूपए ५ प्रतिशत महीने की दर से कर्ज लेना पड़ा । अब उसका दो वर्षीय बेटा व पत्नी भी बीमार रहने लगे हैं । इतनी विकट परिस्थितियों में फंसेपरिवार के पास भी बीपीएल राशनकार्ड नहीं है ।
मुन्नी बरकोला गांव में रहती है व पेट की गंभीर बीमारी से पीड़ित है । उसके पति परदेशी एक भूस्वामी के स्थाई मजदूर या हलवाहा है व उन्हीं से ४० हजार रूपए के कर्ज में फंसे हैं, जिसके कारण अपने परिवार के लिए कोई समय नहींनिकाल पाते है । निर्धनता के कारण बेटी की पढ़ाई हाल ही में छूट गई । इतनी गंभीर गरीबी, स्वास्थ्य समस्याएं व कर्ज झेल रहे परिवार को भी बीपीएल कार्ड नहीं मिला ।
सावित्री एक विधवा महिला है, जिसके तीनों बेटे निर्धनता के कारण प्रवासी मजदूरों के रूप में पलायन कर चुके हैं । अब सावित्री की यह स्थिति है कि कहीं से बचा-खुचा भोजन मिल जाए तो उसी पर जी रही है । इतनी निर्धन महिला को भी बीपीएल कार्ड नहीं मिला है ।
बसराही गांव की ७० वर्षीय हिरिया के पति गंभीर रूप से बीमार हैं व उसकी अपनी परंपरागत आजीविका छिन चुकी है । पहले गांव में प्रसव करवाती थी पर आशा-बहुआें की नियुक्ति के बाद उसका यह कार्य समािप्त् के कगार पर है । हिरिया को कई भार भूखे सोना पड़ता है पर उसे बीपीएल कार्ड नहीं मिला है ।
मुकेरा गांव के निवासी श्रीपाल का हाथ आठ वर्ष पहले थ्रेशर से कट गया था । तब से इस कर्मठ किसान के लिए जीविकोपार्जन बहुत कठिन हो गया । इतना ही नहीं, उनके बेटे का हाथ भी दुर्घटना में टूट गया व पत्नी बीमार रहती है । इसके बावजूद उन्हें अभी तक विकलांग पेंशन का लाभ नहीं मिला है ।
भांवरपुर निवासी पीरखान १० वर्षो से गंभीर बीमारी को झेल रहे हैं जबकि उनकी पत्नी विकलांग है । परिवार में पहले भी टीबी से मौंतें हो चुकी हैं । इस परिवार का जीविकोपार्जन व इलाज बहुत कठिन है फिर भी किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है ।
इस तरह के अनेक उदाहरण इस जन-सुनवाई में सामने आए, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि बीपीएल कार्ड, विकलांग पेंशन व अन्य सरकारी योजनाआें का लाभ प्राय: सबसे जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहा है । इस संदर्भ में संसद सदस्य आर.के. पटेल ने जोर देकर कहा कि बीपीएल के अन्तर्गत उचित पात्रों का चयन होना बहुत जरूरी है क्योंकि एक बार उचित पात्रों का चुनाव नहीं होता है तो फिर उन तक विभिन्न योजनाआें का लाभ नहीं पहुंच पाता है । अत: आर्थिक सामाजिक गणना में उचित पात्रों का चयन हो सके इस ओर विशेष ध्यान देना जरूरी है । विद्याधाम समिति के समन्वयक राजा भैया ने इसका समर्थन करते हुए आगे यह भी बताया कि जब उन्होनें बीपीएल कार्डो का अध्ययन किया था तो पता चला कि सबसे जरूरतमंद अनेक परिवारों को बीपीएल की सूची में नहीं रखा गया है । जबकि कई खाते-पीते समृद्ध परिवारों को इस सूची में जगह मिल गई है ।
उ.प्र.: गरीबी रेखा से बाहर होता गरीब
भारत डोगरा
पिछले दिनों बुंदेलखंड के बांदा (उत्तरप्रदेश) में हुई जनसुनवाई में गरीबी रेखा (बीपीएल) के नीचे रहने वाले समुदाय की समस्याएं सामने आई है । बड़ी संख्या में वास्तविक गरीब बीपीएल सूची से बाहर हैं और सरकारी योजनाआें का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं । इसी के साथ बाहुबलियों और सरकारी कर्मचारियों के मध्य बना हुआ गठजोड़ भी सामने आया ।
हाल के वर्षो में जन-सुनवाई की एक बेहद लोकतांत्रिक पद्धति विकसित हुई है, जिसमें विशेषकर उपेक्षित - वंचित समुदायों को अपनी समस्याआें को इस तरह से ऐसे परिवेश में बताने का अवसर मिलता है, जिसमें कि उनकी समाधान की संभावनाएं अपेक्षाकृत बढ़ जाती है । ऐसी जन-सुनवाईयों में प्रयास यह किया जाता है कि एक स्थान पर संबंधित अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, क्षेत्र के अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों व मीडिया की उपस्थिति में आम लोगों, विशेषकर निर्धन व उपेक्षित समुदायों के सदस्यों को अपनी समस्याआें व कठिनाईयों के बारे में बताने का उचित अवसर मिले । साथ ही इस बारे में संबंधित अधिकारियों को या जन-प्रतिनिधियों को क्या कहना है या क्या आश्वासन देना है, यह इस जन-सुनवाई के दौरान स्पष्ट हो जाता है ।
जन-सुनवाइयों की इन लोकतांत्रिक संभावनाआें को ध्यान में रखते हुए बांदा जिले के नरैनी ब्लाक (उत्तरप्रदेश) में कार्यरत संस्था विघाधाम समिति ने ३० सितम्बर २०१२ को जिला परिषद सभागार में अपने कार्यक्षेत्र के ग्रामीणों की विविध गंभीर समस्याआें पर एक जन-सुनवाई का आयोजन किया । दूर-दूर के गांवों से बड़े समूह में पहुंचने की अनेक कठिनाईयों के बावजूद इस जन-सुनवाई के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्र हुए ।
इस जन-सुनवाई का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह रहा कि इसमें भूमि-वितरण के उन तथाकथित लाभार्थियों की अंतहीन समस्याआें की ओर ध्यान दिलाया गया, जिसके नाम पर भूमि का आवंटन कागजी कार्यवाही के तौर पर तो हो चुका है पर जो अनेक वर्षोके प्रयास से भी इस भूमि पर कब्जा प्राप्त् कर इसे जोत नहीं सके हैं । ऐसे ही दलित परिवारों एक समूह सियारपाखा गांव से इस जन-सुनवाई में पहुंचा ।
इन निर्धन गांववासियों ने बताया कि सियारपाखा के एक दर्जन से अधिक दलित परिवारों की भूमि पर दबंगों के कब्जेहै । जन-सुनवाई में उपस्थित व्यक्ति उस समय स्तब्ध रह गए जब दलित समूह के इन वंचितों ने बताया कि लगभग ३० वर्ष पहले यह पट्टे दिए गए थे व तब से अब तक के अथक प्रयासों के बावजूद वे भूमि पर कब्जा कर खेती नहीं कर सके हैं । तहसीलदार कहते हैं कि लेखापाल से भूमि नपवालो व लेखापाल दूर से भूमि की ओर इशारा कर देते हैं पर जब दलित परिवार अपने खेत पर पहुंचते हैं तो उन्हें दबंग खदेड़ देते हैं । सियारपाखा (मजरा गुढा कला) के श्यामलदास जब अपने खेत पर गए तो दबंगों ने उन्हें लाठियों से मारा और कहा कि फिर यहां आए तो हाथ - पैर तोड़ देंगे ।
जन-सुनवाई में सरकारी धन के दुरूपयोग और जरूरतमंद किसानों को सिंचाई से वंचित रखने का उदाहरण नौगांव गांव में प्रस्तुत हुआ । इस गांव के खेतों की सिंचाई के लिए नहर की लंबाई बढ़ाना बहुत जरूरी था और मनरेगा के तहत यह २ कि.मी. लंबी नहर का कार्य स्वीकृत भी हो गया, पर भ्रष्टाचार के कारण नहर के स्थान पर एक नालीनुमा निर्माण ही जल्दबाजी में किया गया व उसमें भी ढलान के स्थान पर ऊंचाई है । इस जल्दबाजी के अधूरे व अनुचित निर्माण के कारण किसानों को पानी तो एक बंूद नहीं मिला पर उनके ढेर सारी जमीन जरूर छिन गई । उनकी मांग है कि या तो नहर को शीघ्र ठीक किया जाय या उनकी जमीन क्षतिपूर्ति के मुआवजे सहित वापस की जाए ।
जन-सुनवाई से एक बड़ा मुद्दा यह उभरा कि जो बीपीएल कार्ड, वृद्धावस्था पेंशन व विकलांग पेयजल आदि के वास्तविक हकदार जरूरतमंद हैं, उन तक इसका लाभ नहीं पहुंच रहा है । पप्पू यादव गुढ़ाकला गांव का ऐसा युवा है, जो बचपन से घोर गरीबी में ही पला है । प्रवासी मजदूर के रूप में कार्य करते हुए उसे टी.बी. हो गई । इलाज के लिए २६ हजार रूपए ५ प्रतिशत महीने की दर से कर्ज लेना पड़ा । अब उसका दो वर्षीय बेटा व पत्नी भी बीमार रहने लगे हैं । इतनी विकट परिस्थितियों में फंसेपरिवार के पास भी बीपीएल राशनकार्ड नहीं है ।
मुन्नी बरकोला गांव में रहती है व पेट की गंभीर बीमारी से पीड़ित है । उसके पति परदेशी एक भूस्वामी के स्थाई मजदूर या हलवाहा है व उन्हीं से ४० हजार रूपए के कर्ज में फंसे हैं, जिसके कारण अपने परिवार के लिए कोई समय नहींनिकाल पाते है । निर्धनता के कारण बेटी की पढ़ाई हाल ही में छूट गई । इतनी गंभीर गरीबी, स्वास्थ्य समस्याएं व कर्ज झेल रहे परिवार को भी बीपीएल कार्ड नहीं मिला ।
सावित्री एक विधवा महिला है, जिसके तीनों बेटे निर्धनता के कारण प्रवासी मजदूरों के रूप में पलायन कर चुके हैं । अब सावित्री की यह स्थिति है कि कहीं से बचा-खुचा भोजन मिल जाए तो उसी पर जी रही है । इतनी निर्धन महिला को भी बीपीएल कार्ड नहीं मिला है ।
बसराही गांव की ७० वर्षीय हिरिया के पति गंभीर रूप से बीमार हैं व उसकी अपनी परंपरागत आजीविका छिन चुकी है । पहले गांव में प्रसव करवाती थी पर आशा-बहुआें की नियुक्ति के बाद उसका यह कार्य समािप्त् के कगार पर है । हिरिया को कई भार भूखे सोना पड़ता है पर उसे बीपीएल कार्ड नहीं मिला है ।
मुकेरा गांव के निवासी श्रीपाल का हाथ आठ वर्ष पहले थ्रेशर से कट गया था । तब से इस कर्मठ किसान के लिए जीविकोपार्जन बहुत कठिन हो गया । इतना ही नहीं, उनके बेटे का हाथ भी दुर्घटना में टूट गया व पत्नी बीमार रहती है । इसके बावजूद उन्हें अभी तक विकलांग पेंशन का लाभ नहीं मिला है ।
भांवरपुर निवासी पीरखान १० वर्षो से गंभीर बीमारी को झेल रहे हैं जबकि उनकी पत्नी विकलांग है । परिवार में पहले भी टीबी से मौंतें हो चुकी हैं । इस परिवार का जीविकोपार्जन व इलाज बहुत कठिन है फिर भी किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है ।
इस तरह के अनेक उदाहरण इस जन-सुनवाई में सामने आए, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि बीपीएल कार्ड, विकलांग पेंशन व अन्य सरकारी योजनाआें का लाभ प्राय: सबसे जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच रहा है । इस संदर्भ में संसद सदस्य आर.के. पटेल ने जोर देकर कहा कि बीपीएल के अन्तर्गत उचित पात्रों का चयन होना बहुत जरूरी है क्योंकि एक बार उचित पात्रों का चुनाव नहीं होता है तो फिर उन तक विभिन्न योजनाआें का लाभ नहीं पहुंच पाता है । अत: आर्थिक सामाजिक गणना में उचित पात्रों का चयन हो सके इस ओर विशेष ध्यान देना जरूरी है । विद्याधाम समिति के समन्वयक राजा भैया ने इसका समर्थन करते हुए आगे यह भी बताया कि जब उन्होनें बीपीएल कार्डो का अध्ययन किया था तो पता चला कि सबसे जरूरतमंद अनेक परिवारों को बीपीएल की सूची में नहीं रखा गया है । जबकि कई खाते-पीते समृद्ध परिवारों को इस सूची में जगह मिल गई है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें