सोमवार, 5 नवंबर 2012

कविता
जल ही जीवन
ए.बी. सिंह
पानी सदा बचाइये, अगर बचाना जीव ।
यह पानी संसार में, हर जीवों की नींव ।।
पानी बिना सभी तरह, धरती घटे बहार ।
जान बचाने के लिये, चढ़ता चले उधार ।।
ताल कुण्ड औ बावड़ी, गहरी कर हर साल ।
ज्यादा पानी तब रूके, मिट्टी अगर निकाल ।।
जल को अमृत मानिये, देता जीवन दान ।
जहां नहीं यह मिल सके, सब रहते हैरान ।।
बरसे पानी जब कभी, धरती लेती सोख ।
धरती की इस तरह से, हरी हो चले कोख ।।
छत का पानी रोक कर, भण्डारण कर डाल ।
वह पानी हर एक के, चलता पूरे साल ।।
बादल जाते उस जगह, हरियाली जिस ओर ।
करते हैं बरसात तब, सभी तरह घन घोर ।।
जल ही जीवन मानिये, इससे पैदावार ।
इसके बिना सभी तरह, मेहनत हो बेकार ।।
जल सोखे धरती अधिक, अगर लगाओ पेड ।
तब पानी रूक कर बहे, पेड़ अगर हर मेड़ ।।
मीठा पानी भूमि का, है बादल की देन ।
ऊपर नीचे जो मिले, सब को दे सुख चैन ।।
पेड़ जहां छाता बने, खड़े रहें तैयार ।
बूंदो की उस जगह पर, पड़े न सीधी मार ।।

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