सोमवार, 5 नवंबर 2012

प्रसंगवश   
मान्यताआें का मारा उल्लू बेचारा
    प्रकृति और पर्यावरण के साझा अस्तित्व में धरती पर मौजूद हर परिंदा खूबसूरत कविता के समान है । इस सच्चई के बावजूद मनुष्य की रूढ़िवादी सोच ने हजारों पक्षी प्रजातियों के अस्तित्व पर तलवार लटका दी है ।
    उल्लू के अस्तित्व पर मंडराते खतरे पर इटली और स्वीडन के पक्षी वैज्ञानिकों द्वारा हाल में की गई खोजों में साफ तौर से चेतावनी दी गई है कि यदि धरती से उल्लू जैसे बहुपयोगी परिंदे का अस्तित्व समाप्त् हो गया तो पूरी दुनिया में अंधाधुंध गति से बढ़ती चूहों की फौज खाघान्न संकट की नई समस्या पैदा कर देगी । चूहों की बढ़ती फौज न केवलअन्न संकट पैदा करेगी बल्कि प्लेग जैसी घातक बीमारी भी दोबारा अस्तित्व में आ सकती है । उल्लू की शक्ल देखने में कुछ भयानक तो अवश्य लगती है, मगर इस बेहद चतुर और अक्लमंद पक्षी को मूर्ख मानना तथ्यों से परे है । इसके शरीर की बनावट सुंदर नहीं होती मगर देखने और सुनने की क्षमता में यह इंसानों से कहीं आगे है । उल्लू फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले जीवों जैसे चूहो, चमगादड़ों, टिडि्डयों, सांप, छछूंदर व खरगोश आदि का सफाया करके फसलों को बचाता है । शुद्ध मांसाहारी जीव होनेके इससे फसलों के नुकसान की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है । वास्तव में उल्ले के घर में बैठने, उसे देखने, छूने या बोलने से जुड़ी अपशकुन की बातें बेबुनियाद है । उल्लू व अन्य परिंदों के खात्मे के दर्जनों कारण हैं ।
    हरियाणा के वन्य प्राणी विभाग के मुख्य संरक्षक डॉ. परवेज अहमद बताते है कि भारत सहित कुछ एशियाई देशों में उल्लू को लेकर प्रचलित अंधविश्वास, ओझाआें और तांत्रिकों के  अनगिनत मनगढ़त किस्से कहानियों में उल्लू का अशुभ और मनहूस कराए दिए जाने की वजह से उल्लुआें की संख्या तेजी से घट रही है । यही वजह है कि देश के उत्तरी राज्यों में उल्लू की घटती संख्या की वजह से चूहे हर साल इतना अनाज नष्ट कर डालते है जो पूरे उत्तरप्रदेश की सवा अठारह करोड़ की आबादी के लिए पर्याप्त् होगा ।
नरेन्द्र देवांगन

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