हमारा भूमण्डल
शताब्दी का सबसे कमजोर सौर चक्र
डॉ. इरफान ह्यूमन
हमारी पृथ्वी से लेकर अंतरिक्ष की अनंत गहराईयों तक हर समय कुछ न कुछ घटित होता रहता है । कुछ खगोलीय घटनाएं ऐसी होती हैं जिन्हें हम आंखों से देख सकते हैं, लेकिन कुछ ऐसी होती हैं जिनके लिए हमें विशाल दूरबीनों का सहारा लेना पड़ता है । सूर्य की हलचल भी उनमें से एक है ।
सूर्य जिसे हम प्रतिदिन देखते हैं और जो हमें हर पल शांत-सा नजर आता है, वास्तव में वैसा नहीं है । इस वर्ष १० और ११ जून को सूर्य पर भीषण तूफानी गतिविधियां दर्ज की गई और सूर्य पर शक्तिशाली एक्स-श्रेणी की सौर लपटें निकलती देखी गई, जिन्होंने सौर आंधियों को जन्म दिया है । ये घटनाएं सूर्य के धब्बों (सन स्पॉट) वाले क्षेत्रों से सूर्य के आभा मण्डल में उत्पन्न होने वाली अस्थायी घटनाएं है और तब घटित होती हैं जब सूर्य के किसी भाग का ताप अन्य भागों की तुलना में कम हो जाता है और धब्बे के रूप में दिखाई देता है । इन धब्बों का जीवन काल मात्र कुछ घंटे से लेकर कुछ सप्तह तक का भी हो सकता है ।
शताब्दी का सबसे कमजोर सौर चक्र
डॉ. इरफान ह्यूमन
हमारी पृथ्वी से लेकर अंतरिक्ष की अनंत गहराईयों तक हर समय कुछ न कुछ घटित होता रहता है । कुछ खगोलीय घटनाएं ऐसी होती हैं जिन्हें हम आंखों से देख सकते हैं, लेकिन कुछ ऐसी होती हैं जिनके लिए हमें विशाल दूरबीनों का सहारा लेना पड़ता है । सूर्य की हलचल भी उनमें से एक है ।
सूर्य जिसे हम प्रतिदिन देखते हैं और जो हमें हर पल शांत-सा नजर आता है, वास्तव में वैसा नहीं है । इस वर्ष १० और ११ जून को सूर्य पर भीषण तूफानी गतिविधियां दर्ज की गई और सूर्य पर शक्तिशाली एक्स-श्रेणी की सौर लपटें निकलती देखी गई, जिन्होंने सौर आंधियों को जन्म दिया है । ये घटनाएं सूर्य के धब्बों (सन स्पॉट) वाले क्षेत्रों से सूर्य के आभा मण्डल में उत्पन्न होने वाली अस्थायी घटनाएं है और तब घटित होती हैं जब सूर्य के किसी भाग का ताप अन्य भागों की तुलना में कम हो जाता है और धब्बे के रूप में दिखाई देता है । इन धब्बों का जीवन काल मात्र कुछ घंटे से लेकर कुछ सप्तह तक का भी हो सकता है ।
हमारे सौर मण्डल का सबसे विशाल पिंड है, सूर्य जिसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हजार किलोमीटर है । ऊर्जा का यह शक्तिशाली स्त्रोत मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है, जो परमाणु संलयन की प्रक्रिया द्वारा अपने केन्द्र में हर समय ऊर्जा पैदा करता है । सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुंचता है । इसमें से भी १५ प्रतिशत अंतरिक्ष परावर्तित हो जाता है । लेकिन कभी-कभी सूर्य पर आए सौर तूफान इस ऊर्जा तंत्र को बिगाड़ सकते हैं और हमारे संचार तंत्र के साथ कृत्रिम ऊर्जा तंत्र को तहस-नहस कर सकते हैं । ६ व ९ मार्च १९८९ को सूर्य पर एक्स-श्रेणी के सौर तूफान का प्रभाव जब १३ मार्च को धरती तक पहुंचा था, तो कनाड़ा का बिजली गिड फेल हो गया था ।
वैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया है कि तेज गति के सौर कणों का झोंका जब वायुमण्डल में प्रवेश करता है तब वज्रपात की संख्या बढ़ जाती है । रीडिंग विश्वविघालय के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. क्रिस स्कॉट के अनुसार इस प्रकार उत्पन्न बिजली बहुत खतरनाक होती है और हर साल २४ हजार लोग बिजली के आघात से मारे जाते है । इस संबंध में युरोप से प्राप्त् आकड़ों से ज्ञात होता है कि ४०० दिनों में ३२१ बिजली गिरने की घटन की तुलना में तेज गति वाली सौर आंधी के बाद ४०० दिनों में बिजली गिरने की औसतन ४२२ घटनाएं हुई थी । वैज्ञानिकों ने पाया कि जब सौर करणों की आंधी की गति और प्रबलता बढ़ती है तो बिजली गिरने की दर भी बढ़ जाती है । यही नहीं, सौर कणों के धरती के वातावरण से टकराने के बाद एक महीने तक मौसम अशांत रह सकता है । अर्थात सौर तूफान मौसम को भी प्रभावित कर सकता है । अत: सौर आंधी की कोई भी पूर्व चेतावनी काफी उपयोगी साबित हो सकती है ।
सूर्य की सतह पर कहीं-कहीं गैस के विशाल फव्वारे फूटते रहते हैं, तब सोलर प्रामिनेन्स कहलाने वाले फंदे या लूप जैसी संरचना बनती है । इन फंदों के मिलने से विस्फोट के साथ सौर लपटें उत्पन्न होती हैं । वर्ष १९५८ में अमेरिका के वैज्ञानिक यूजीन नारमन पार्कर ने बताया था कि हाइड्रोजन और हीलियम की आयनीय गैस से बनी एक धारा का अनवरत प्रवाह सूर्य से होता रहता है, जिसमें प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन होते हैं, जिसे सौर पवन (सोलर विन्ड) कहते हैं । कभी-कभी यह उत्सर्जन इतनी अधिक मात्रा में होता है कि सूर्य के आयनमंडल से बाहर निकल कर अंतरिक्ष में फैल जाता है ।
सौर तूफानों के दौरान सौर आंधियों के प्रमाण पृथ्वी पर ध्रुवीय ज्योति कहलाने वाली एरोरा जैसी घटनाआें में मिलते हैं । तब रात का आकाश एकदम सजीव हो उठता है और आकाश में रंगीन छटाएं बिखर जाती है, जैसे किसी चित्रकार ने आकाश में रंग उछाल दिए हो । उत्तर धु्रवीय क्षेत्र में इन्हे एरोरा बोरियोलिस और दक्षिण धु्रवीय क्षेत्र में इन्हें एरोरा आस्ट्रियोलिस कहते हैं ।
इसका कारण है सौर धब्बों से उठने वाले चुम्बकीय तूफानों के विघुतीकृत कणों का पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा खींच लिया जाना । जब ये कण पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करते हैं तो पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी धु्रवों का चुम्बकीय क्षेत्र इनके वेग और दिशा को बदल देता है, जिस कारण ये कण वायुमण्डल मेंउपस्थित हवा के अणुआेंसे टकराते है और उनका आयनन हो जाता है । तब जन्म होता है एरोरा नामक एक रंगीन छटा का । एरोरा की उत्पत्ति तीन चरणों में होती है । पहले चरण में सौर आंधियां इलेक्ट्रॉन और आयनों को पृथ्वी की ओर भेजती है । दूसरे चरण में इलेक्ट्रॉन और आयन पृथ्वी की चुम्बकीय रेखाआें के साथ टकराते हैं और अन्तिम चरण में वे अपनी ऊर्जा उन कणों को दे देते हैं जिनसे वे टकराते हैं । पृथ्वी पर एरोरा १०० से १००० किलोमीटर की ऊंचाई तक बनते हैं ।
बिग बैंग के लगभग १४ अरब वर्ष बाद आज चुम्बकीय क्षेत्र सभी आकाशगंगाआें और आकाशगंगाआें के समूहों में मौजूद है । लेकिन सभी ग्रह या उपग्रह चुम्बकीय क्षेत्र की अद्भुत क्षमताआें से युक्त नहीं होते । अंतरिक्ष यंत्रों की मदद से ली गई प्रत्यक्ष मापों ने सिद्ध कर दिया है कि पृथ्वी के समीपतम चन्द्रमा के अतिरिक्त शुक्र और मंगल ग्रह का पृथ्वी की तरह अपना चुम्बकीय क्षेत्र नहीं है । हमारी पृथ्वी एक चुम्बकीय कवच से सुरक्षित है, जिसका आकार आइस्क्रीम कोन जैसा है । कवच का यह आकार सौर वायु के कारण होता है, जो सूर्य की तरफ वाले हिस्से के चुम्बकीय कवच को दबा देता है और दूसरे हिस्से को फैला देता है । सूर्य की ओर वाले हिस्से पर कवच की सतह से ऊंचाई ६०,००० किलोमीटर और पृथ्वी के रात वाले हिस्से पर कवच की ऊंचाई ६०,००,००० किलोमीटर होती है । इस कवच के अंदर दो विकिरण पटि्टयां होती है । आंतरिक पट्टी ब्राजील से ४०० किलोमीटर और इंडोनेशिया से ९६० किलोमीटर की ऊंचाई पर है, जबकि बाहरी पट्टी करीब ६४,००० किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है ।
यदि सूर्य पर चुम्बकीय क्षेत्र की बात की जाए तो सौर तूफानों को जन्म देने वाले सौर धब्बे सूर्य की सतह पर चुम्बकीय क्षेत्र की अत्यधिक सघनता के कारण बनते है, जिनका आकार पृथ्वी से भी बड़ा हो सकता है । इस तीव्र चुम्बकीय क्षेत्र का तापमान शेष क्षेत्र की तुलना में कम होता है । यही कारण है कि इन क्षेत्रों की चमक अन्य भागों की अपेक्षा स्वाभाविक रूप से कम होती है और ये सूर्य पर धब्बे के रूप में दिखाई पड़ते हैं । जब इन सौर धब्बों की संख्या बढ़ जाती है तो सौर तूफानों का जन्म होता है और ऊंची-ऊंची सौर लपटें उठने लगती है । इससे बड़ी मात्रा में प्लाज्मा का उत्सर्जन होता है, इसे वृहद उत्क्षेपण कहते हैं । सौर चक्र के दौरान सूर्य पर किसी विशेष क्षेत्र पर भयंकर विस्फोट होते है जो १००० किलोमीटर प्रति सेकण्ड की रफ्तार की सौर आंधियां पैदा करते हैं ।
औसतन ११ वर्ष का एक सौर चक्र ९ से १४ वर्ष तक का हो सकता है । ११ वर्षीय सौर चक्र के दौरान अन्तिम चरण में सौर गतिविधियां अपने चरम पर होती है और सूर्य से तूफानों के साथ अधिक सौर लपटें उत्सर्जित होती हैं । कभी-कभी इसके चुम्बकीय तूफानोंके साथ अधिक सौर लपटें उत्सर्जित होती है । कभी-कभी इसके चुम्बकीय तूफानों का प्रभाव इतना भयंकर होता है कि पृथ्वी के पॉवर ग्रिड के साथ अतंरिक्ष में कृत्रिम उपग्रह तक ठप पड़ सकते हैं और अंतरिक्ष यात्रियों के लिए जोखिम बढ़ सकता है । यही नहीं, इस दौरान सूरज से निकलने वाले हानिकारक और विकिरण से भी हम अछूते नहीं रह सकते । इन दिनों हम २५० वर्षो में सूर्य के २४वें सौर चक्र से गुजर रहे हैं । इस नए सौर चक्र का प्रभाव शुरूआत में तो कम रहा, मगर वर्ष २०११, २०१२, २०१३ के साथ २०१४ मेंअपना खूब प्रभाव दिखा रहा है ।
४ जनवरी २००८ को सौर धब्बे ९८१ की उत्पत्ति से सौर चक्र २४ की शुरूआत समझी जाती है । इसी वर्ष नवम्बर में १००७ नामक धब्बे से बी-श्रेणी की पहली सौर लपट उत्पन्न हुई । २००९ में पूरे वर्ष सौर गतिविधि सबसे कम आंकी गई, लेकिन १९ जनवरी २०१० को सौर धब्बा १०४६ से एम-श्रेणी से भी शक्तिशाली सौर लपट दर्ज की गई । इसी वर्ष १२ फरवरी और ५ अप्रैल के बाद १ व २ अगस्त को चार सीएमई दर्ज की गई, जिन्हें पृथ्वी पर एरोरा जैसी घटना को जन्म दिया ।
१५ फरवरी २०११ को सौर धब्बा ११५८ से सौर चक्र २४ की पहली एक्स-श्रेणी की सौर लपट निकली और फिर १८ फरवरी को इसी क्षेत्र से एम-श्रेणी का एक्स-रे विस्फोट हुआ ।
वर्ष २०११ में ७ व ९ मार्च, ३० जुलाई, २, ३, व ९ अगस्त, ६ सितम्बर, २ अक्टूबर को सूर्य पर आने वाले तूफान अपने चरम पर थे । इस वर्ष का नवम्बर माह सौर चक्र २४ का सबसे सक्रिय माह रहा जिसमें लगभग १०० सौर धब्बे उत्पन्न हुए । ३ नवम्बर को सूर्य के ४० किलोमीटर चौड़े और दुगने लम्बे सौर धब्बे १३३९ से एक्स-श्रेणी की सौर लपटें निकली । लेकिन इस बार भी विस्फोट के समय पृथ्वी सूर्य के उस हिस्से के सामने नहींथी । वर्ष के अन्त में आते-आते २५ दिसम्बर को भी सूर्य पर एक एम-श्रेणी की सौर लपट दर्ज की गई ।
वर्ष २०१२ सौर चक्र २४ का सबसे सक्रिय वर्ष रहा जिसमें सूर्य पर १९ व २३ जनवरी, ७,९ व १३ मार्च को एम-श्रेणी और एक्स-श्रेणी की सौर लपटें दर्ज की गई । इसके अतिरिक्त १६ अप्रैल, १० मई, २, ४, ५, ८, १९ व २८ जुलाई, ३१ अगस्त, २७ सितम्बर, ५ व २० अक्टूबर ओर १३ नवम्बर को सूर्य पर आए तूफानों से कई हजार किलोमीटर प्रति सेकण्ड की रफ्तार से लपटें निकलती देखी गई थी । इस वर्ष जहां दिसम्बर माह में दो वर्षो में सबसे कम सौर गतिविधियां दर्ज की गई वहीं जून माह में एम-श्रेणी की ११ सौर लपटें देखी गई । वर्ष २०१३ के मध्य मई में एक बार सूर्य फिर से सक्रिय हो उठा । इस वर्ष १३ मई को दो बार और इसी क्षेत्र से १४ मई को पुन: विस्फोट दर्ज किया गया । २५ अक्टूबर को दो और १९ नवम्बर को एक एक्स-श्रेणी की सौर लपटें देखी गई । २०१४ फरवरी-मार्च में सौर गतिविधियों को देखकर लगता है कि सौर तूफान अभी सक्रिय है ।
अगर पिछले सौर चक्र की बात करें तो पाएंगे कि वर्ष २००१ में सूर्य भयंकर तूफानों की चपेट में रहा था । तब सूर्य पर हुए ऊर्जा के जबरदस्त विस्फोट ९३९३ धब्बे के पास से उपजे थे । यह धब्बा धरती से १३ गुना बड़ा था । पृथ्वी इन विस्फोटों के कुप्रभावों से इसलिए बच गई क्योंकि इसका स्त्रोत सूर्य के पश्चिमी सिरे पर था, इसलिए सारा उत्सर्जन पृथ्वी से बचकर निकल गया । फिर भी इससे उत्सर्जित विकिरण ने सौर विस्फोटों की ताकत मापने के लिए उपयोग में लाए जा रहे दो अंतरिक्ष यानों के एक्स-रे डिटेक्टरों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला था ।
नियमित एक्स-रे आंकड़े वर्ष १९७६ से ही उपलब्ध होने शुरू हो गए थे, लेकिन इससे पहले इतना ताकतवर विस्फोट पहले कभी नहीं मापा गया ।
सौर तूफानों के दौरान उत्सर्जित मुख्यत: आवेशित प्रोटॉन कणों से उपग्रहों को नुकसान पहुंचता है । ये उपग्रह के पैनलों की सतह को क्षति पहुंचाते है और उनका जीवनकाल कम या समाप्त् कर देते हैं । अत्यधिक ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन भी उपग्रह को नुकसान पहुंचाते हैं । ये डिजिटल बीट्स को अस्पष्ट आंकड़ों में बदल देते हैं, जिससे उनका ऑपरेटिंग सिस्टम बंद हो जाता है । अब वैज्ञानिक ऐसे सौर पैनलों के निर्माण में लगे हैं, जिनसे उपग्रह अपने जीवन काल के अंतिम समय तक क्रियाशील रह सके । उधर अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉसफेरिक रिसर्च ने सौर तूफानों की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए एक नया मॉडल विकसित किया है ।
श्रृंखलाबद्ध परीक्षणों के बाद विकसित किए गए मॉडल की सहायता से भविष्य में सौर तूफानों की स्थिति का सटीक विश्लेषण किया जा सकेगा । इन मॉडल के आधार पर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि आने वाले वर्षो में सौर तूफानों की तीव्रता ३० से ५० प्रतिशत तक बढ़ सकती है । फिलहाल तो सौर चक्र २४ विगत सौ वर्षो का सबसे कमजोर सौर चक्र रहा है, कहीं यह भविष्य में आने वाले किसी भीषण सौर तूफान की खामोशी तो नहीं है ? इसका जवाब तो भविष्य के वैज्ञानिक अनुसंधानों से ही मिल पाएगा ।
वैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया है कि तेज गति के सौर कणों का झोंका जब वायुमण्डल में प्रवेश करता है तब वज्रपात की संख्या बढ़ जाती है । रीडिंग विश्वविघालय के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. क्रिस स्कॉट के अनुसार इस प्रकार उत्पन्न बिजली बहुत खतरनाक होती है और हर साल २४ हजार लोग बिजली के आघात से मारे जाते है । इस संबंध में युरोप से प्राप्त् आकड़ों से ज्ञात होता है कि ४०० दिनों में ३२१ बिजली गिरने की घटन की तुलना में तेज गति वाली सौर आंधी के बाद ४०० दिनों में बिजली गिरने की औसतन ४२२ घटनाएं हुई थी । वैज्ञानिकों ने पाया कि जब सौर करणों की आंधी की गति और प्रबलता बढ़ती है तो बिजली गिरने की दर भी बढ़ जाती है । यही नहीं, सौर कणों के धरती के वातावरण से टकराने के बाद एक महीने तक मौसम अशांत रह सकता है । अर्थात सौर तूफान मौसम को भी प्रभावित कर सकता है । अत: सौर आंधी की कोई भी पूर्व चेतावनी काफी उपयोगी साबित हो सकती है ।
सूर्य की सतह पर कहीं-कहीं गैस के विशाल फव्वारे फूटते रहते हैं, तब सोलर प्रामिनेन्स कहलाने वाले फंदे या लूप जैसी संरचना बनती है । इन फंदों के मिलने से विस्फोट के साथ सौर लपटें उत्पन्न होती हैं । वर्ष १९५८ में अमेरिका के वैज्ञानिक यूजीन नारमन पार्कर ने बताया था कि हाइड्रोजन और हीलियम की आयनीय गैस से बनी एक धारा का अनवरत प्रवाह सूर्य से होता रहता है, जिसमें प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन होते हैं, जिसे सौर पवन (सोलर विन्ड) कहते हैं । कभी-कभी यह उत्सर्जन इतनी अधिक मात्रा में होता है कि सूर्य के आयनमंडल से बाहर निकल कर अंतरिक्ष में फैल जाता है ।
सौर तूफानों के दौरान सौर आंधियों के प्रमाण पृथ्वी पर ध्रुवीय ज्योति कहलाने वाली एरोरा जैसी घटनाआें में मिलते हैं । तब रात का आकाश एकदम सजीव हो उठता है और आकाश में रंगीन छटाएं बिखर जाती है, जैसे किसी चित्रकार ने आकाश में रंग उछाल दिए हो । उत्तर धु्रवीय क्षेत्र में इन्हे एरोरा बोरियोलिस और दक्षिण धु्रवीय क्षेत्र में इन्हें एरोरा आस्ट्रियोलिस कहते हैं ।
इसका कारण है सौर धब्बों से उठने वाले चुम्बकीय तूफानों के विघुतीकृत कणों का पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा खींच लिया जाना । जब ये कण पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करते हैं तो पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी धु्रवों का चुम्बकीय क्षेत्र इनके वेग और दिशा को बदल देता है, जिस कारण ये कण वायुमण्डल मेंउपस्थित हवा के अणुआेंसे टकराते है और उनका आयनन हो जाता है । तब जन्म होता है एरोरा नामक एक रंगीन छटा का । एरोरा की उत्पत्ति तीन चरणों में होती है । पहले चरण में सौर आंधियां इलेक्ट्रॉन और आयनों को पृथ्वी की ओर भेजती है । दूसरे चरण में इलेक्ट्रॉन और आयन पृथ्वी की चुम्बकीय रेखाआें के साथ टकराते हैं और अन्तिम चरण में वे अपनी ऊर्जा उन कणों को दे देते हैं जिनसे वे टकराते हैं । पृथ्वी पर एरोरा १०० से १००० किलोमीटर की ऊंचाई तक बनते हैं ।
बिग बैंग के लगभग १४ अरब वर्ष बाद आज चुम्बकीय क्षेत्र सभी आकाशगंगाआें और आकाशगंगाआें के समूहों में मौजूद है । लेकिन सभी ग्रह या उपग्रह चुम्बकीय क्षेत्र की अद्भुत क्षमताआें से युक्त नहीं होते । अंतरिक्ष यंत्रों की मदद से ली गई प्रत्यक्ष मापों ने सिद्ध कर दिया है कि पृथ्वी के समीपतम चन्द्रमा के अतिरिक्त शुक्र और मंगल ग्रह का पृथ्वी की तरह अपना चुम्बकीय क्षेत्र नहीं है । हमारी पृथ्वी एक चुम्बकीय कवच से सुरक्षित है, जिसका आकार आइस्क्रीम कोन जैसा है । कवच का यह आकार सौर वायु के कारण होता है, जो सूर्य की तरफ वाले हिस्से के चुम्बकीय कवच को दबा देता है और दूसरे हिस्से को फैला देता है । सूर्य की ओर वाले हिस्से पर कवच की सतह से ऊंचाई ६०,००० किलोमीटर और पृथ्वी के रात वाले हिस्से पर कवच की ऊंचाई ६०,००,००० किलोमीटर होती है । इस कवच के अंदर दो विकिरण पटि्टयां होती है । आंतरिक पट्टी ब्राजील से ४०० किलोमीटर और इंडोनेशिया से ९६० किलोमीटर की ऊंचाई पर है, जबकि बाहरी पट्टी करीब ६४,००० किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है ।
यदि सूर्य पर चुम्बकीय क्षेत्र की बात की जाए तो सौर तूफानों को जन्म देने वाले सौर धब्बे सूर्य की सतह पर चुम्बकीय क्षेत्र की अत्यधिक सघनता के कारण बनते है, जिनका आकार पृथ्वी से भी बड़ा हो सकता है । इस तीव्र चुम्बकीय क्षेत्र का तापमान शेष क्षेत्र की तुलना में कम होता है । यही कारण है कि इन क्षेत्रों की चमक अन्य भागों की अपेक्षा स्वाभाविक रूप से कम होती है और ये सूर्य पर धब्बे के रूप में दिखाई पड़ते हैं । जब इन सौर धब्बों की संख्या बढ़ जाती है तो सौर तूफानों का जन्म होता है और ऊंची-ऊंची सौर लपटें उठने लगती है । इससे बड़ी मात्रा में प्लाज्मा का उत्सर्जन होता है, इसे वृहद उत्क्षेपण कहते हैं । सौर चक्र के दौरान सूर्य पर किसी विशेष क्षेत्र पर भयंकर विस्फोट होते है जो १००० किलोमीटर प्रति सेकण्ड की रफ्तार की सौर आंधियां पैदा करते हैं ।
औसतन ११ वर्ष का एक सौर चक्र ९ से १४ वर्ष तक का हो सकता है । ११ वर्षीय सौर चक्र के दौरान अन्तिम चरण में सौर गतिविधियां अपने चरम पर होती है और सूर्य से तूफानों के साथ अधिक सौर लपटें उत्सर्जित होती हैं । कभी-कभी इसके चुम्बकीय तूफानोंके साथ अधिक सौर लपटें उत्सर्जित होती है । कभी-कभी इसके चुम्बकीय तूफानों का प्रभाव इतना भयंकर होता है कि पृथ्वी के पॉवर ग्रिड के साथ अतंरिक्ष में कृत्रिम उपग्रह तक ठप पड़ सकते हैं और अंतरिक्ष यात्रियों के लिए जोखिम बढ़ सकता है । यही नहीं, इस दौरान सूरज से निकलने वाले हानिकारक और विकिरण से भी हम अछूते नहीं रह सकते । इन दिनों हम २५० वर्षो में सूर्य के २४वें सौर चक्र से गुजर रहे हैं । इस नए सौर चक्र का प्रभाव शुरूआत में तो कम रहा, मगर वर्ष २०११, २०१२, २०१३ के साथ २०१४ मेंअपना खूब प्रभाव दिखा रहा है ।
४ जनवरी २००८ को सौर धब्बे ९८१ की उत्पत्ति से सौर चक्र २४ की शुरूआत समझी जाती है । इसी वर्ष नवम्बर में १००७ नामक धब्बे से बी-श्रेणी की पहली सौर लपट उत्पन्न हुई । २००९ में पूरे वर्ष सौर गतिविधि सबसे कम आंकी गई, लेकिन १९ जनवरी २०१० को सौर धब्बा १०४६ से एम-श्रेणी से भी शक्तिशाली सौर लपट दर्ज की गई । इसी वर्ष १२ फरवरी और ५ अप्रैल के बाद १ व २ अगस्त को चार सीएमई दर्ज की गई, जिन्हें पृथ्वी पर एरोरा जैसी घटना को जन्म दिया ।
१५ फरवरी २०११ को सौर धब्बा ११५८ से सौर चक्र २४ की पहली एक्स-श्रेणी की सौर लपट निकली और फिर १८ फरवरी को इसी क्षेत्र से एम-श्रेणी का एक्स-रे विस्फोट हुआ ।
वर्ष २०११ में ७ व ९ मार्च, ३० जुलाई, २, ३, व ९ अगस्त, ६ सितम्बर, २ अक्टूबर को सूर्य पर आने वाले तूफान अपने चरम पर थे । इस वर्ष का नवम्बर माह सौर चक्र २४ का सबसे सक्रिय माह रहा जिसमें लगभग १०० सौर धब्बे उत्पन्न हुए । ३ नवम्बर को सूर्य के ४० किलोमीटर चौड़े और दुगने लम्बे सौर धब्बे १३३९ से एक्स-श्रेणी की सौर लपटें निकली । लेकिन इस बार भी विस्फोट के समय पृथ्वी सूर्य के उस हिस्से के सामने नहींथी । वर्ष के अन्त में आते-आते २५ दिसम्बर को भी सूर्य पर एक एम-श्रेणी की सौर लपट दर्ज की गई ।
वर्ष २०१२ सौर चक्र २४ का सबसे सक्रिय वर्ष रहा जिसमें सूर्य पर १९ व २३ जनवरी, ७,९ व १३ मार्च को एम-श्रेणी और एक्स-श्रेणी की सौर लपटें दर्ज की गई । इसके अतिरिक्त १६ अप्रैल, १० मई, २, ४, ५, ८, १९ व २८ जुलाई, ३१ अगस्त, २७ सितम्बर, ५ व २० अक्टूबर ओर १३ नवम्बर को सूर्य पर आए तूफानों से कई हजार किलोमीटर प्रति सेकण्ड की रफ्तार से लपटें निकलती देखी गई थी । इस वर्ष जहां दिसम्बर माह में दो वर्षो में सबसे कम सौर गतिविधियां दर्ज की गई वहीं जून माह में एम-श्रेणी की ११ सौर लपटें देखी गई । वर्ष २०१३ के मध्य मई में एक बार सूर्य फिर से सक्रिय हो उठा । इस वर्ष १३ मई को दो बार और इसी क्षेत्र से १४ मई को पुन: विस्फोट दर्ज किया गया । २५ अक्टूबर को दो और १९ नवम्बर को एक एक्स-श्रेणी की सौर लपटें देखी गई । २०१४ फरवरी-मार्च में सौर गतिविधियों को देखकर लगता है कि सौर तूफान अभी सक्रिय है ।
अगर पिछले सौर चक्र की बात करें तो पाएंगे कि वर्ष २००१ में सूर्य भयंकर तूफानों की चपेट में रहा था । तब सूर्य पर हुए ऊर्जा के जबरदस्त विस्फोट ९३९३ धब्बे के पास से उपजे थे । यह धब्बा धरती से १३ गुना बड़ा था । पृथ्वी इन विस्फोटों के कुप्रभावों से इसलिए बच गई क्योंकि इसका स्त्रोत सूर्य के पश्चिमी सिरे पर था, इसलिए सारा उत्सर्जन पृथ्वी से बचकर निकल गया । फिर भी इससे उत्सर्जित विकिरण ने सौर विस्फोटों की ताकत मापने के लिए उपयोग में लाए जा रहे दो अंतरिक्ष यानों के एक्स-रे डिटेक्टरों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला था ।
नियमित एक्स-रे आंकड़े वर्ष १९७६ से ही उपलब्ध होने शुरू हो गए थे, लेकिन इससे पहले इतना ताकतवर विस्फोट पहले कभी नहीं मापा गया ।
सौर तूफानों के दौरान उत्सर्जित मुख्यत: आवेशित प्रोटॉन कणों से उपग्रहों को नुकसान पहुंचता है । ये उपग्रह के पैनलों की सतह को क्षति पहुंचाते है और उनका जीवनकाल कम या समाप्त् कर देते हैं । अत्यधिक ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन भी उपग्रह को नुकसान पहुंचाते हैं । ये डिजिटल बीट्स को अस्पष्ट आंकड़ों में बदल देते हैं, जिससे उनका ऑपरेटिंग सिस्टम बंद हो जाता है । अब वैज्ञानिक ऐसे सौर पैनलों के निर्माण में लगे हैं, जिनसे उपग्रह अपने जीवन काल के अंतिम समय तक क्रियाशील रह सके । उधर अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉसफेरिक रिसर्च ने सौर तूफानों की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए एक नया मॉडल विकसित किया है ।
श्रृंखलाबद्ध परीक्षणों के बाद विकसित किए गए मॉडल की सहायता से भविष्य में सौर तूफानों की स्थिति का सटीक विश्लेषण किया जा सकेगा । इन मॉडल के आधार पर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि आने वाले वर्षो में सौर तूफानों की तीव्रता ३० से ५० प्रतिशत तक बढ़ सकती है । फिलहाल तो सौर चक्र २४ विगत सौ वर्षो का सबसे कमजोर सौर चक्र रहा है, कहीं यह भविष्य में आने वाले किसी भीषण सौर तूफान की खामोशी तो नहीं है ? इसका जवाब तो भविष्य के वैज्ञानिक अनुसंधानों से ही मिल पाएगा ।
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