मंगलवार, 19 जनवरी 2016

प्रसंगवश   
पश्चिमी घाट मेंबचेंगे ३ लाख पेड़
 भरत डोगरा
    पर्यावरणविद बहुत समय से कहते रहे है कि किसी भी विकास के नाम पर बनाई जा रही परियोजना में इस ओर समुचित ध्यान दिया जाए कि इसमें वनों और वृक्षों की कितनी क्षति हो रही है । यदि यह क्षति बहुत अधिक है तो ऐसी परियोजना पर पुनर्विचार करना चाहिए ।
    हाल ही में एक ऐसा उदाहरण सामने आया है कि पर्यावरणविदों के परामर्श को माना गया व इस कारण लगभग ३ लाख पेड़ों की रक्षा हो सकी है ।
    यह मामला है हुबली-अंकोला ब्रॉड गेज रेलवे लाइन परियोजना का जिसे आरंभ में लौह अयस्क के आयात को बढ़ाने के लिए व बड़े पैमाने पर लौह अयस्क ढोने के लिए जरूरी बताया गया । इस परियोजना के लिए पर्यावरण की दृष्टि से अति संवेदनशील माने गए पश्चिमी घाट के ९६५ हेक्टर वन क्षेत्र को काटने की अनुमति मांगी गई । बाद में दबाव पड़ने पर इसे ७२० हेक्टर तक और फिर ६६७ हेक्टर तक कम किया गया ।
    पश्चिमी घाट का क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से सबसे समृद्ध क्षेत्रों में माना जाता है । इसके बावजूद यहां प्राकृतिक वनों का बहुत विनाश हुआ है । अत: जो प्राकृतिक वन बचे हैं उनकी रक्षा बहुत जरूरी है । बहुत से वन्य जीवों का अस्तित्व इनसे जुड़ा हुआ है तो बहुत से गांववासियों की आजीविका भी इनसे जुड़ी है ।
    परिसर संरक्षण केन्द्र व वाइल्डरमेन क्लब जैसे कई पर्यावरण संगठनों ने इन वनों की रक्षा का अभियान चलाया । इसके लिए अनेक जन सभाआें का आयोजन किया गया । दूसरी और कुछ लोगों ने परियोजना के पक्ष में भी आवाज उठाई जिसमें अनेक असरदार स्थानीय नेता भी थे ।
    वर्ष २००४ में केन्द्र सरकार के वन व पर्यावरण मंत्रालय ने इस परियोजना की समीक्षा कर कहा कि इतने बड़े क्षेत्र में पर्यावरण की दृष्टि इतने अमूल्य वनों का विनाश उचित नहीं ठहराया जा सकता है और इस परियोजना को स्वीकृत नहीं किया जा सकता है ।
    परिसर संरक्षण केन्द्र व वाइल्डरनेस क्लब ने वनों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया । सुप्रीम कोर्ट द्वारा सेन्ट्रल एम्पावर्ड समिति की टीम क्षेत्र में भेजी गई । इस समिति ने ३ अगस्त २०१५ को प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि इतने बड़े पैमाने पर अति महत्वपूर्ण वनों का विनाश करने वाली परियोजना को स्वीकृति न दी  जाए । पर्यावरण संगठनों का अनुमान है कि इस तरह लगभग ३ लाख वृक्षों की रक्षा हो सकेगी ।       

1 टिप्पणी:

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