रविवार, 17 अप्रैल 2016

पर्यावरण समाचार
सवा नौ सौ करोड़ खर्च के बाद भी मारे गए सौ बाघ
टाइगर स्टेट का दर्जा गंवा चुके मध्यप्रदेश मेंबाघों की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है । यहां सात साल में १०० बाघों की मौत हुई है । इसी दौरान प्रदेश सरकार ने बाघों की सुरक्षा और प्रबंधन पर ९२३ करोड़ रूपये से ज्यादा रकम खर्च की है । इन बदतर हालातों के बाद भी वन विभाग ने बाघों की मौत की वजह जानने की कोशिश नहीं की । मामला पन्ना का हो, वन विहार (भोपाल) का या फिर पेंच टाइगर रिजर्व का, सरकार ने छोटे कर्मचारियों को ही जिम्मेदार ठहराया, किसी बड़े अधिकारी पर आंच नहीं आई । 
इस साल तीन माह में ही सात बाघों की मौत हो चुकी है । पांच मौतें पेंच टाइगर रिजर्व में, एक बाघ करंट से मरा है, तो एक की कुंए में गिरने से मौत हुई है । बाघिन और दो शावकों की मौत का कारण जहरखुरानी बताया जा रहा है । इसके लिए सिर्फ वनरक्षकों को जिम्मेदार मान कर निलबिंत किया गया । वन विभाग नहीं चाहता था कि इन घटनाआें की विस्तार से जांच कराई जाए । जब दबाव बना, तब व्यापक जांच का निर्णय लिया गया । २०१४ में हुई गणना के मुताबिक प्रदेश में ३०८ बाघ होने का अनुमान है । जिनमें से शिकार, आपसी संघर्ष और प्राकृतिक कारणों से वर्ष २०१५ में ११ बाघों की मौत हुई है । बाघों के अंगों की तस्करी के भी ३ मामले सामने आए थे । 
पिछले वर्ष ८ अगस्त १५ प्राकृतिक मोती, २७ सितम्बर १५ शिकर ७ दांत बरामद, १३ अक्टूबर १५ शिकार, २ जनवरी १६ कुएं में गिरने से, ८ जनवरी १६ करंट से, २८ मार्च २०१६ जहर से एक बाघिन और दो शावकों की मौत 
बाघों की मौत मे लापरवाही सालों से जारी है । मामला तूल पकड़ता है तो सरकार अफसरों को हटाकर खामोश हो जाती है । २००७ में पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ प्रजाति पूरी तरह से खत्म हो गई थी । तब तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर एलके चौधरी को हटाकर मामला शांत किया था । २००९-१० में वन विहार नेशनल पार्क मेंसिलसिलेवार बाघों की मौत पर भी कारण वृद्धावस्था बताया गया । तूल पकड़ते ही संचालक जेएस चौहान को हटाकर मामला शांत कर दिया । 

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