रविवार, 17 अप्रैल 2016

प्रसंगवश
सिंहस्थ में दिव्यत्व से मिलन
प्रत्येक बारह वर्ष के अंतराल मेंउज्जैन में एक माह के सिंहस्थ महापर्व का आयोजन किया जाता है । पौराणिक कथा के अनुसार इसका प्रारंभ देवताआेंऔर दानवों द्वारा समुद्र मंथन से संबंधित है । माना जाता है कि मंथन में सबसे पहले चौदह रत्न और इसके पश्चात धन की देवी लक्ष्मी प्रकट हुई और अंत में अमृत-कलश प्राप्त् हुआ । 
इस अमृत को छीनने के लिये दानव, देवताआेंके पीछे भागे । इस दौरान अमृत की कुछ बूँदें छलक कर हरिद्वार, नासिक, प्रयाग और उज्जयिनी में गिरीं । इसी कारण इन चार स्थानों पर बारह वर्ष के अंतराल मेंकुंभ मेला का आयोजन होता है । 
इस पर्व के दौरान सारे लौकिक भेदभाव समाप्त् हो जाते हैं । गरीब-अमीर, जाति-सम्प्रदाय आदि सारे भेदों की सीमा तोड़ कर वहाँ होते हैं सिर्फ आस्था के रंग मेंरंगे भक्त । भक्ति में डूबे इन भक्तों का अनुशासन भी अद्भुत होता है । वे आते हैं, दर्शन करते हैं, नदी में डुबकी लगाते हैं और विभिन्न मंदिरों में दर्शन कर पूरे अनुशासन के साथ घर लौट जाते हैं । 
सिंहस्थ के दौरान साधु-संतों और विद्वानों द्वारा समाज, राष्ट्र और विश्व के समकालीन विषयों पर विचार-मंथन की भी सदियों पुरानी परम्परा है । मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर इस सिंहस्थ में मूल्य-आधारित जीवन और अन्य उपयोगी विषयों पर वैचारिक मंथन होगा । इस महागोष्ठी में हुए मंथन के सारतत्व पर आधारित एक सिंहस्थ घोषणा-पत्र जारी होगा जो विश्व-शांति और कल्याण का संदेश देगा इसको प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सिंहस्थ के दौरान उज्जैन में जारी करेंगे । 
इस सिहंस्थ में अनेक देशों तथा भारत भर से लगभग ५ करोड़ श्रद्धालुआें तथा पर्यटकों के आने की संभावना है । इनके सुविधापूर्वक रहने तथा सुरक्षा के लिये सभी प्रबंध किये जा रहे हैं । इसमें आने वाले श्रद्धालुआें के लिये यह सचमुच जीवन का अद्भूत, अनूठा और आहलादकारी अनुभव होगा । एक माह के विश्व के सबसे बड़े धार्मिक-आध्यात्मिक समागम में करोड़ों लोग धर्म लाभ लेंगे । 

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