रविवार, 17 अप्रैल 2016

सम्पादकीय
सिंहस्थ, शिप्रा नदी और मालवा का विकास
आस्था और विश्वास के प्रतीक सिंहस्थ पर्व का आगमन मालवा के लिये हमेशा सुखद रहा है । पिछले अनेक शताब्दियोंसे उज्जैन में सिंहस्थ के दौरान साधु-सन्त, महात्मा, श्रद्धालुजन, देश-विदेशी पर्यटक और मालवीजनों ने मिलकर एक नए भारत के निर्माण का विचार किया है । 
सिंहस्थ के कार्योंा को लेकर प्रदेश सरकार करोड़ों रूपये खर्च करती है । इस बार भी लगभग ५००० करोड़ रूपये का बजट है जिसमें दीर्घकालीन और अल्पकालीन अवधि के विकास कार्य कराए गए हैं । इस अवसर पर महत्वपूर्ण यह है कि सिंहस्थ कार्योंा के लिये जो स्थायी प्रकृति के हैं उनकी दीर्घकालीन योजनाएँ बनाकर इस प्रकार के निर्माण कार्य हो जिन्हें सिंहस्थ के दौरान बार-बार करने की आवश्यकता ही नहीं रह जाए । इस प्रकार एक मास्टर प्लान न केवलसिंहस्थ की दृष्टि से अपितु उज्जैन और पूरे मालवा के विकास को लेकर बनाया जाना जरूरी है । क्योंकि सिंहस्थ मालवा क्षैत्र का सबसे बड़ा पर्व है और अगर इस प्रकार पूरे मास्टर प्लान के साथ लगातार काम करने वाले सरकारी प्राधिकरण को इस प्रकार की जिम्मेदारी दी जायेगी तो हर सिंहस्थ में होने वाली विकास कार्योंा में देरी और अन्य शिकायतों से मुक्ति मिल सकेगी । 
आजकल देश मेंनदियों को जोड़ने को लेकर चर्चा चल रही है । ऐसे समय में सिंहस्थ के दौरान ही शिप्रा में जल उपलब्ध हो, यह कोई प्रशंसनीय कार्य नहीं हैं । इसमें जरूरी तो यह है कि समाज नदियों से जुड़े और नदी के जलागम क्षेत्र मेंजलग्रहण विकास कार्य और पौधारोपण जैसे स्थायी प्रकृति के कार्य करके शिप्रा को सदानीरा बनाये जाने के बारे मेंसाधु समाज, शासन और श्रद्धालुजन सभी को मिलजुल कर कोई स्थायी कार्ययोजना बनाकर कार्य प्रारंभ करना चाहिए जिससे शिप्रा में जल का सतत् प्रवाह बना रहेगा तो फिर सिंहस्थ में ही नहीं शिप्रा बारहोंमास प्रवाहमान  रहेगी । 

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