पचौरी पेनल को नोबेल शांति पुरस्कार
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
भारतीय लोगों के लिए यह गर्व का विषय है कि विख्यात पर्यावरणविद आरके पचौरी के नेतृत्व वाले अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन पेनल (इंटर-गवर्मेन्टल पेनल ऑन क्लाइमेट चेंज) को अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर के साथ २००७ के प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है। नोबेल समिति की तरफ से जारी बयान के अनुसार जलवायु परिवर्तन के खतरों के प्रति दुनिया भर में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने लिए उक्त दोनों को इस पुरस्कार के लिए चुना गया है । जलवायु परिवर्तन के खतरों को देखते हुए अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए । इन खतरों की अब ज्यादा समय तक अनदेखी नहीं की जा सकती है । आईपीसीसी संयुक्त राष्ट्र की वह समिति है जिसमें ३००० वायुमंडलीय, समुद्री और बर्फ पर शोध करने वाले वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री एवं अन्य विशेषज्ञ शामिल है । यह पेनल विश्व की सर्वोच्च् वैज्ञानिक प्राधिकार वाली समिति है जो दुनिया को `ग्लोबल वार्मिंग' के खतरों से आगाह करती रहती है । समिति के ६७ वर्षीय अध्यक्ष आरके पचौरी नई दिल्ली स्थित पर्यावरण संस्थान टाटा एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूूट (टैरी) के महानिदेशक भी हैं । इस अवसर पर श्री पचौरी ने नार्वे के टीवी-२ से बातचीत में कहा `इस पुरस्कार के लिए श्री अल गोर के साथ चुने जाने पर मैं बहुत खुश हँू । हमने अपने कार्यो के लिए किसी पुरस्कार की अपेक्षा नहीं रखी थी । उन्होंने पुरस्कार को संस्था का बताते हुए कहा कि मैं सिर्फ सांकेतिक रूप से ही इसे ग्रहण करूँगा । उल्लेखनीय है कि श्री पचौरी वर्ष २००२ में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय पेनल के अध्यक्ष बने थे । इस साल उनकी अध्यक्षता में पेनल ने जलवायु परिवर्तन के खतरों को इंगित करने वाली बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट जारी की थी। पूर्व अमेरिकी उप राष्ट्रपति और आईपीसीसी को पुरस्कारस्वरूप १५ लाख डालर की धनराशि प्रदान की जाएगी । शांति समिति का यह मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग मानवता के लिए इतनी खतरनाक समस्या बन चुकी है कि ग्रीन हाउस गैसेस की वजह से धरती इतनी गरम होती जाएगी जिसकी भविष्यवाणी करना गठित है । इसके अलावा ग्लेशियर्स तीव्र गति से पिघल रहे हैं । यहाँ तक कि गंगा का स्त्रोत गोमुख और उसके आसपास का इलाका इतने तीव्र रूप से पिघल रहा है कि गोमुख जैसी आकृति अब समाप्त् हो चुकी है । गोमुख अपने मूल स्थान से सौ मीटर से ज्यादा पीछे खिसक चुका है । इससे समिति का अधिकृत रूप से यह मानना है कि विश्व स्तर पर समुद्र में जो ३-४ फुट ऊपर टापू हैं, उनका नामोनिशान मिटने की पूरी संभावना है । जलवायु में घट-बढ़ होगी, अकाल की स्थितियाँ निर्मित हो गई हैं । पहले बाढ़ और बाद में सूखे की जो स्थितियाँ निर्मित होंगी, मानव साधन उसके सामने बौने सिद्ध होंगे संयुक्त राष्ट्र के १९९५ के बर्लिन शिखर में गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए सहमति बनी थी । १२० राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने बर्लिन शिखर में भाग लिया था । परंतु उसका नतीजा आशावर्धक नहीं रहा । शंाति नोबेल घोषित कर पुन: संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है । इसके बाद जापान में भी १९९७ में जलवायु सुधार हेतु और ५ प्रतिशत गैस रिसाव कम करने पर सहमति बनी थी । ग्लोबल वार्मिंग ने अब सुरसा का रूप धारण कर लिया है और यह हमारी सभ्यता के लिए भीषण खतरा बन गया है। हिमायल तो प्रदूषित हो चुका है और संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि अंतरिक्ष भी प्रदूषित हो जाए अल गोर भी पर्यावरण के लिए संवेदनशील हैं और समिति में उनकी उपस्थिति से निश्चित ही पर्यावरण चेतना को वैश्विक रूप देने से सहायता मिलेगी ।
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