म.प्र. : बायोस्फियर रिजर्व एवम् प्रकृति संरक्षण
डॉ.आर.पी.सिंह/डॉ. यशपाल सिंह
सभी पृथ्वीवासी इस तथ्य से भली भांति परिचित हैं कि संवेदनशील पर्यावरण संतुलन ही पृथ्वी पर जीवन के संचालन को बनाए हुए हैं । यद्यपि आधुनिकता व औद्योगिक विकास के नाम पर मनुष्य में प्राकृतिक संसाधनों का अत्याधिक दोहन कर, पृथ्वी के पर्यावरण संतुलन को बिगाड़ दिया है। जिसके फलस्वरूप वर्तमान में अनेको पर्यावरणीय विपदाआे (पृथ्वी का बढ़ता तापमान, अम्लीय वर्षा, ओजोन छिद्र जैव विविधता ह्रास: इत्यादि) की समस्या उत्पन्न हो गयी हैं । यदि भविष्य में भी हम इसी गति से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करते रहे और इन संसाधनों के संरक्षण व सतत् प्रबंधन हेतु विभिन्न स्तरों पर ठोस प्रयास नही किए तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपने अस्तित्व पर ही एक प्रश्नवाचक चिन्ह लगा देंगे । अत: वर्तमान में यह आवश्यक हो गया है कि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण रीति से उपयोग एवं वैज्ञानिक विधि से संरक्षण व प्रबंधन करे, ताकि पारिस्थितीय तंत्र के विभिन्न घटको (पादपों, जंतुआे व पर्यावरण) के मध्य एक परस्पर सामन्जस्य स्थापित किया जा सके । इसी परिपेक्ष्य में विभिन्न स्तरों (अर्न्तराज्यीय, राज्यीय व स्थानीय) पर निरन्तर प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे इन संवेदनशील पारिस्थतिक तंत्रों में समाहित जैवविविधता का संरक्षण एवं उनमें रहने वाले लोगों के सामाजिक व आर्थिक जीवन स्तर को भी ऊपर किया जा सकें । जैवविविधता : देश व मध्य प्रदेश परिपेक्ष्य :- भारत, अपने विस्तृत अंक्षाशीय फैलाव, तापमान, ऊंचाई व जलवायु की भिन्नता के कारण विश्व के १२ महाजैव विविधता वाले देशों (ब्राजील, कोलंबिया, इक्वाडोर, मेक्सिको, पेरू, भारत, मेडागास्कर, जायरे, चीन, इण्डोनेशिया, मलेशिया, आस्ट्रेलिया) की श्रेणी में आता है इन्हीं देशों के विश्व जन संख्या की जैवविधिता का लगभग ६०-७० प्रतिशत अंश विद्यमान है । इन देशों में आस्ट्रेलिया के अलावा अन्य सभी देश विकासशील है । जहाँ पर बढ़ती जनसंख्या, आर्थिक व औद्योगिक विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव है जिसके फलस्वरूप पर्यावरणीय व पारिस्थतिकीय प्राथमिकताएं तुलनात्मक रूप से पिछड़ जाती है । भारत विश्व का केवल २.४ प्रतिशत क्षेत्रफल का वरण करते हुए भी विश्व जैव विविधता का ८-११ प्रतिशत अंश को समाहित करता है । भारत विश्व की जनसंख्या का १७ प्रतिशत व पालतु पशुआे की १६ प्रतिशत जनसंख्या का वरण करता है । मेयर (२०००) ने स्थानीय स्तर पर प्रजातियों के अपवादात्मक संकेन्द्रण की प्रमुखता के आधार पर विश्वभर में २५ जैवविविधता हाटस्पाट को चिन्हित किया है, तथा इनमें से २ हाटस्पाट पूर्वी हिमालय व पश्चिमी घाट भारत में स्थित है । देश के विभिन्न भागें में समाहित जैवविविधता के इस उच्च् स्तर को संरक्षित करने के लिए २ आधारभूत इन सीटू एवं एक्स सीटू योजनाआे के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों पर प्रयास किए गये है जिसमें राष्ट्रीय उद्यान (९६) अभ्यारण (५०८) अनेको चिड़ियाघ्ज्ञर, बाटेनिकल गार्डन व कृत्रिम संरक्षण हेतु जीन बैंक, व पादप एवं जन्तुआे के जीवदृव्य संरक्षण व संबंध हेतु राष्ट्रीय ब्यूरो शामिल है । इन्हीं संरक्षण इकाईयों की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए पारिस्थितिक तंत्रों के संरक्षण के पहलु के साथ जैवविधिता संरक्षण हेतु बायोस्फियर रिजर्व कार्यक्रम के अन्तर्गत अनकों पारम्परिक व गैरपारम्परिक (वैज्ञानिक) प्रबंधन योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं । जिसके फलस्वरूप इन क्षेत्रों में न केवल स्थानीय व दुर्लभ जीव जन्तुआे की प्रजातियां बढ़ी हैं बल्कि इन क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों का सामाजिक व आर्थिक विकास भी हुआ हैं । बायोस्फियर रिजर्व नामांकन मापदण्ड, सामान्यत: ऐसे क्षेत्रों को बायोस्फियर रिजर्व किए जाते हैं, जहाँ प्रभावशाली ढंग से संरक्षित और अत्यंत कम बाधित, प्राकृतिक, संरक्षण के मूल्य वाला क्षेत्र हो । जिसमें शोध एवं प्रबंधन के स्वपोषी तरीके के प्रदर्शन और अनुसंधान किये जा सकें । इसके अतिरिक्त यहां पर स्थानीय, दुलर्भ एवं संकटापन्न प्रजातियों की उपस्थिति थीं । बायोस्फियर रिजर्व क्षेत्रीकरण :- जैव विविधता धनी इन क्षेत्रों के सतत प्रबंधन एव विकास हेतु बायोस्फियर रिजर्व को ३ से ५ निम्नलिखित क्षेत्रों में बाँटा गया है - केन्द्रीय (प्राकृतिक क्षेत्र; परिचालन या मध्यवर्ती क्षेत्र परिवर्तन या पुन: स्थापन क्षेत्र और सांस्कृतिक क्षेत्र । सामान्यत: केन्द्रीय क्षेत्र बायोस्फियर रिजर्व का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र होता हैं । जिसे न्यूनतम वाधा क्षेत्र के रूप में संरक्षित किया जाता है । मध्यवर्ती क्षेत्र अधिकांश: केन्द्रीय क्षेत्र से जुड़ा होता हैं या चारो तरफ होता हैं, जिसमें उपयोग व अन्य गतिविधियाँ इस प्रकार संचालित की जाती हैं, जिससे केन्द्रीय क्षेत्र की सुरक्षा के साथ-साथ, इस पर पड़ने वाले जैविक दबावो को भी न्यूनतम किया जा सकें । परिवर्तनीय क्षेत्र बायोस्फियर रिजर्व का सबसे बाहरी हिस्सा होता है । जिसे सहयोगी क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया जाता हैं जिसमें संरक्षण ज्ञान, प्रबंधन कौशल एक साथ उपयोग में लाए जाते हैं । सरंक्षण उद्देश्य :- देशभर में यद्यपि जैव विविधता एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के सरंक्षण हेतु विभिन्न संरक्षित इकाईयों जैसे राष्ट्रीय उद्यान, अभ्यारण्य आदि की स्थापना काफी अरसे की जाती रही हैं । फिर भी बायोस्फियर रिजर्वो के संरक्षण प्रयासों में महत्वपूर्ण स्थान हैं क्योंकि बायोस्फियर रिजर्व के कार्यक्षेत्र की परिधि, राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभ्यारण्यों की तरह कुछ विशिष्ट जातियों तक ही सीमित न होकर, समस्त जैवविविधता के वृहत्तर रूप में संरक्षण एवं प्रबंधन को अपने में समाहित करती हैं । इस तरह इस कार्यक्रम में मनुष्य द्वारा प्रयोग की जाने वाली वस्तुआे, जन्तुआे एवं पादपों में पाई जाने वाली आनुवांशिक विभिन्नताआे का भविष्य के लिए संरक्षण भी कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य हैं । राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभ्यारण्यों की अपेक्षाकृत बायोस्फियर रिजर्व की परिकल्पना में प्रकृति संरक्षण हेतु स्थानीय निवासियों की भागीदारी को भी अधिक महत्व दिया गया हैं । इस परिकल्पना के अन्तर्गत मुख्य रूप से इस बात पर बल दिया जाता हैं, कि पारिस्थितिक एवं पर्यावरणीय शोध कार्यो के साथ-साथ शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से प्रकृति संरक्षण हेतु जनजागृति उत्पन्न की जा सकें । मध्यप्रदेश में अभी तक घोषित २ बायोस्फियर रिजर्वो का संक्षिप्त् विवरण निम्न प्रकार हैं :-१) पंचमढ़ी बायोस्फियर रिजर्व १.१ स्थिति :- पंचमढ़ी व आसपास के ४९८१.७२ वर्ग कि.मी. क्षेत्र को पंचमढ़ी बायोस्फियर रिजर्व के पर्यावरण व वन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा सन् १९९९ के रूप में घोषित किया गया । देश का बारहवाँ एवं प्रदेश का पहला बायोस्फियर रिजर्व राज्य के तीन जिलो होशंगाबाद, बैतूल व छिंदवाड़ा में फैला हुआ है । इसमें तीन वन्यजीव संरक्षण इकाईयाँ - बोरी अभ्यारण्य सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान और पंचमढ़ी अभ्यारण्य समाहित है । तीनों इकाईयों के कुल क्षेत्र को वर्ष २००० में बाघ परियोजना (प्रोजेक्ट टाइगर) के अन्तर्गत सतपुड़ा टाईगर रिजर्व के रूप में घोषित किया गया है ।१.२ क्षेत्र वर्गीकरण :- बायोस्फियर रिजर्व के मूलत: सतपुड़ा टाईगर रिजर्व के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्र १५५५.२३ वर्ग कि.मी. क्षेत्र को कन्द्रीय क्षेत्र के रूप में घोषित किया गया हैं केन्द्रीय क्षेत्र के चारों तरफ के १७८५.८२ वर्ग कि.मी. क्षेत्र को मध्यवर्ती क्षेत्र घोषित किया गया हैं ताकि केन्द्रीय क्षेत्र पर पड़ने वाले जैविक दबावों को न्यूनतम किया जा सके । मध्यवर्ती क्षेत्र के चारों तरफ के सबसे बाहरी १६४९.९१ वर्ग कि.मी. क्षेत्र को परिवर्तनीय क्षेत्र घोषित किया हैं ।१.३ संरक्षण इतिहास :- पंचमढ़ी जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र का पुराना संरक्षण इतिहास है । भारतीय वनों का वैज्ञानिक प्रबंधन वर्ष १८६२ में प्रारम्भ के साथ-साथ गर्मियों में आग लगने से रोकथाम के लिए फायर लाइन बनाने का इतिहास भी यही से शुरू हुआ । यहीं से भारत वर्ष में वन विभाग की स्थापना की शुरूआत हुई ।१.४ पादप विशेषताएं :- यह क्षेत्र वस्तुत: राज्य में प्रतिनिधि वनों के प्रकारों का संगम है । सम्पूर्ण वन को मुख्यत: तीन भागों में विभाजित किया गया हैं । आर्द्र पर्णपाती, शुष्क पर्णपाती और मध्य भारतीय उपोष्ण कटिबंधीय पर्वतीय वन । जैवमण्डल आरक्षित क्षेत्र जीन पूल और पादप विविधता की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं । इस क्षेत्र की जैवविवधिता सम्पन्नता यहां पर पाये जाने वाली ऐपीफिटिक मास के ३७ आकिर्ड की ३५ ब्रायोफाइट्स की ५७ टेरिडोफाइटस की १५८ जिम्नोस्पर्म की ७ व एनजियोस्पर्म (पुष्पीय) पौधो की ११९० प्रजातियों में साफ इंगित होती है । पंचमढ़ी बायोस्फियर रिजर्व के सागौन आच्छादित वन में रेलिम्ट रूप में साल का पाया जाना एक अदभुत पारिस्थितिकीय विशिष्टता हैं । सतपुड़ा की रानी पंचमढ़ी का पठार वनस्पति शास्त्रियों के लिए स्वर्ग समान है । यहां पर गहरी घाटियों, झरनों व भिन्न उॅचाई वाली पहाड़ियों के कारण अनेको स्थानिक दुलर्भ व संकटापन्न पादप प्रजातियां जाती हैं ।१.५ जंतु विशेषताएं :- क्षेत्र की विविधत भौतिक संरचना, पादप भिन्नता एवं विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक रहवास की प्रचुरता के कारण यहाँ ५० से ज्यादा स्तनधारी, २५४ पक्षियों, की ३० सरीसृप की, ५६ तितलियों की प्रजातियां पायी जाती है । इस क्षेत्र में खड़ी चट्टानों के कगार बहुत से मधुमक्खियों के छत्तों एवं काले गरूड़ के निवास स्थान है । इन जंगलों में भूरे एवं लाल जंगली मुर्गे दोनों ही एक साथ पाये जाते हैं । जबकि ये क्रमश: उत्तरी भारत व दक्षिणी भारत में अलग अलग पाये जाते है । लघुपूंछ बंदर, विशालकाय गिलहरी व उड़न गिलहरी इस क्षेत्र की स्थानिक प्रजातियां है । यहाँ पाये जाने वाला कलगीदार सर्प गरूड़ भी एक दुर्लभ प्रजाति हैं ।१.६ सांस्कृतिक विशेषताएं :- पंचमढ़ी पठार के आसपास पुरातात्विक महत्व की आश्रय गुफाएँ बड़ी मात्रा में हैं, जिनमें अत्यंत प्राचीन काल की जनजातियों द्वारा बनाएँ गए अनेक शैलचित्र मिले हैं । इनमें से कुछ लगभग १०० वर्ष प्राचीन है। जबकि ज्यादातर गुफाएँ १२०० से १५००० वर्ष पुरानी हैं । इनमें से महादेव, कटाकम्ब, जटाशंकर, पाँडव गुफा एवं मंडियादेव पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है । इन शैलचित्रों में तलवार और ढाल के साथ साथ योद्धा, धनुष बाण और हाथी, शेर, तेंदुआ, चीतल, मोर, घोड़ा आदि चित्रित है । यह क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत संपन्न है ।१.७ पर्यटन विशेषताएं :- सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला की चोटियाँ और ढलान हरियाली से भरपूर हैं जबकि पठार की समतल भूमि पर घांस क्षेत्र (मीडो) के खुल एवं विशाल मैदान हैं, इस क्षेत्र में मध्य भारत की सबसे ऊंची चोटी धूपगढ़ (समुद्रतल से १३५२ मीटर) स्थित हैं, और चौरागढड़ व महादेव चोटिया भी यहीं है । चौरागढ़ एक दर्शनीय चोटी हैं, जिसकी उपरी सतह समतल हैं । छिंदवाड़ा जिले में तामिया सुंदर दृश्यों से भरपूर स्थल है, जिसके निकट ही पातालकोट नामक आदिवासीयों का छोटा सा गांव समूह हैं। यह क्षेत्र स्थनीय सभ्यता की रोशनी से अछूता होने के कारण यह क्षेत्र मानव शास्त्रियों के शोध हेतु स्वर्ग है ।१.८ सामाजिक-आर्थिक विशेषताएं :- पंचमढ़ी बायोस्फियर रिजर्व के अंतर्गत लगभग ५८१ ग्राम आते हैं । २००१ की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या ४.७५ लाख हैं । जिसका मुख्य आय स्त्रोत कृषि है । कुल जनसंख्या का १३.९७ प्रतिशत अनुसूचित जातियाँ एवं ३३.२८ प्रतिशत अनुसूचित जन जातियां हैं । क्षेत्र की साक्षरता दर ५३.३१ प्रतिशत हैं ।२) अचानकमार -अमरकंटक बायोस्फियर रिजर्व २.१ स्थिति :- अमरकंटक पठार एवं अचानकमार अभ्यारण के आसपास के ३८३५.५१ वर्ग कि.मी. क्षेत्र को मार्च, २००५ में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा अन्तराज्यीय बायोस्फियर रिजर्व के रूप में घोषित किया हैं । राज्यस्तर पर इस बायोस्फियर रिजर्व का १२२४.९८ वर्ग कि.मी. क्षेत्र मध्यप्रदेश राज्य के दो जिलो अनुपपूर(१६.२) एवं डिंडोरी (१५.७) एवं शेष (६८.१) छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले में आच्छादित हैं ।२.२ क्षेत्र वर्गीकरण :- केन्द्रीय क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल ५५१.१५ वर्ग किमी है इसका सम्पूर्ण भाग छत्तीसगढ़ राज्य के अचानकमार अभ्यारण्य मे समाहित हैं तथा ३२८३.९६ वर्ग किमी मध्यवर्ती क्षेत्र के अन्तर्गत आता है ।२.३ पादप विशेषताएं :- अचानकमार अमरकंटक बायोस्फियर रिजर्व में सामान्यत: उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन हैं यह क्षेत्र वानस्पतिक विविधताआे से परिपूर्ण है बायोस्फियर क्षेत्र में ब्रायोफाइटस एवं टेरिडोफाइट्स की ९५, जिन्मोस्पर्म की १५, ऐनजियोस्पर्म की ६५६ प्रजातियंा पायी जाती हैं, इसमें से बहुत सी स्थानीय व दुलर्भ पादप प्रजातियंा शामिल हैं । अमरकंटक पठार पर ड्रासेरा नामक कीटपक्षी पौधा पाया जाता हैं । जंगलों में पाए जाने वाली औषधीय पौधें व लघुवनोपज यहां के आदिवासियों की जीवनदायी आय का प्रमुख स्त्रोत हैं ।२.४ जंतु विशेषताएँ :- इस क्षेत्र की भौतिक संरचना एवं वनस्पतियों की विविधता के कारण विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक रहवासों में बाघ, हिरन, जंगली सूअर, जंगली भैसा आदि जंतु पाये जाते हैं । विशाल व उड़न गिलहरियां एवं लाल जंगली मुर्गे भी इस क्षेत्र में बहुतायत रूप में पाये जाते हैं । यहां पक्षियों की १७० प्रजातियां भी पायी जाती हैं सरीसृप वर्ग में अजगर, नाग, करैत, धामिन, मगर, कछुआ इत्यादि मुख्य रूप से पाये जाते हैं । मेंंढक की भी विभिन्न प्रजातियां इस क्षेत्र में पायी जाती हैं ।२.५ सांस्कृतिक विशेषताएं :- अचानकमार बायोस्फियर रिजर्व में आदिवासी जनजातियों की प्रचुरता है जिनमें गोण्ड, मारिया, मुण्डिया, गुरवा, भगरिया एवं राजगोण्ड मुख्य रूप से शामिल हैं ।२.६ सामाजिक-आर्थिक विशेषताएं :- बायोस्फियर रिजर्व के अंतर्गत लगभग ४१६ ग्राम एवं २ शहरी क्षेत्र आते हैं । २००१ की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या ३.५७ लाख हैं। जिसकी आय का मुख्य आधार कृषि हैं। इसमें से ७.७ प्रतिशत अनुसूचित जातियां एवं ५९.२ प्रतिशत अनुसूचित जन जातियां हैं । क्षेत्र की साक्षरता दर ५४.३ प्रतिशत हैं । राज्य के बायोस्फियर रिजर्व क्षेत्रों में होने वाले पर्यावरणीय नुकसान के लिए जंगलों में मवेशियों की अवैध चराई, जलाऊ लकड़ी की अवैध कटाई, अनियंत्रित पर्यटन एवं ठोस अपशिष्ट का अकुशल प्रबंधन जैसे कई अन्य कारक जिम्मेदार हैं । राज्य स्तर पर म.प्र. शासन के आवास एवं पर्यावरण विभाग के पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन (एप्को) को पंचमढ़ी बायोस्फियर रिजर्व की प्रबंधन कार्य योजना के क्रियान्यवयन के लिए नोडल संस्था घोषित किया गया है ।
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