गुरुवार, 8 नवंबर 2007

९ स्वास्थ्य

गरीबों के स्वास्थ्य पर अमीरों का लाभ
निखिल एम.
विजय भारत में कठिनतम शल्य क्रिया में माहिर व अनुभवी चिकित्सक, प्रशिक्षित नर्से और तकनीकी स्टाफ उन्नत प्रौद्योगिकी, आरामदेह अस्पताल सबकुछ मौजूद है, परंतु यह सब इस देश के गरीब लोगों के लिए नहीं है बल्कि यह है भारत के कुलीन वर्ग और विदेशी मरीजों के लिए । विदेशियों के लिए तो इस हेतु वीजा के नियम भी शिथिल कर दिए गए हैं । आर्थिक उन्नति के नाम पर भारत का पर्यटन उद्योग चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है । देश में पांच सितारा अस्पतालों की बाढ़-सी आ गई है एवं बड़े औद्योगिक घराने अब और बड़े निवेश की आशा लगाकर बैठे हैं । स्वास्थ्य सेवाआे के निजीकरण और निगमीकरण ने इस नई अवधारणा चिकित्सा पर्यटन की स्थापना की है । इसके अंतर्गत धनी देशों से लोग तीसरी दुनिया के देशों में इलाज पर्यटन और अन्य संसाधनों के उपयोग के उद्देश्य से आते हैं । विदेशी मुद्रा कमाने के लिए समुद्रपारीय मरीजों के रूप में तीसरी दुनिया के देशों के हाथ यह जादुई चिराग लग गया है । भारतीय औद्योगिक महासंघ (सी.आय.आय.) और मेककिन्सले द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार चिकित्सा पर्यटन से सन् २०१२ तक भारत के अस्पतालों को लगभग २.२ खरब अमेरिकी डॉलर की आय होगी। भारत राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना २००२ के अंतर्गत भी चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कटिबद्ध है । ये नीति कहती है, `भारत में सस्ती चिकित्सा सेवा की उपलब्धता का लाभ उठाकर यह नीति विदेशी मूल के व्यक्तियों द्वारा भुगतान पर इन सेवाआें की प्रािप्त् की योजनाआें को प्रोत्साहित करेगी । विदेशी मुद्रा में भुगतान होने पर इस तरह के सेवाएं निर्यात समकक्ष मानी जाकर निर्यात को दिए जाने वाले समस्त वित्तीय प्रोत्साहनों की अधिकारी भी होंगी । इन नियमों पर कारपोरेट क्षेत्र का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । क्योंकि `स्वास्थ्य क्षेत्र मेे सुधारों हेतु यह नीतिगत ढांचा' प्रधानमंत्री की व्यापार व उद्योग संबंधी उस समिति द्वारा बनाया गया है जिसकी अध्यक्षता मुकेश अंबानी और कुमारमंगलम बिड़ला जैसे बड़े उद्योगपति कर रहे हैं । तीसरी दुनिया के मूल्य पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की ये स्वास्थ्य सुविधाएं भारत के इन कारपोरेट अस्पतालों में अमेरिका और इंग्लैंड की बनिस्बत एक बटा आठ से लेकर एक बटा पांच कीमत पर उपलब्ध हैं यही वजह है कि इलाज किफायती और श्रेष्ठ होने के कारण कई विदेशी यहां खिचे चले आते हैं । जैसी की रीत है कि पुण्यों को बढ़ा चढ़ा कर बताया जाता है और पापों के बारे में मुंह तक नहीं खुलता । इन पांच सितारा अस्पतालों को कई तरह की रियासतें मिलती हैं, उदाहरण के लिए करों में छूट, मुफ्त अथवा नाममात्र के शुल्क पर जमीन, आयात शुल्क में छूट, सरकारी क्षेत्र की बैंकों से कम ब्याज दर पर ऋण आदि-आदि । ज्यादातर निजी अस्पतालों का पंजीयन सार्वजनिक न्यास कानून के अंतर्गत करवाया जाता है । उन्हें अपनी कुल क्षमता के बीस प्रतिशत तक मुफ्त सेवाएं देने वाले नियम के परिणाम स्वरूप आयकर की छूट भी प्राप्त् होती है । इसका दुरूपयोग किस तरह होता है यह भी देखिए (१) नई दिल्ली का इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल जो चिकित्सा पर्यटन के क्षेत्र में प्रमुख केन्द्र है, के यहां समझौते की शर्तोकी खुलेआम अवहेलना हुई है। अस्पताल को १९९६ में १०० करोड़ रूपये की बेशकीमती १५ एकड़ जमीन दिल्ली सरकार द्वारा महज एक रूपया प्रतिवर्ष की लीज दर पर दी गई थी । इसी पर अस्पताल का निर्माण हुआ । निर्माण के लिए भी दिल्ली सरकार ने करीब १५ करोड़ का निवेश किया । यही नहीं अंश पूंजी के लिए भी २४ करोड़ रूपये योगदान किया गया । इसके बदले समझौते की शर्त थी कि कुल क्षमता का एक तिहाई गरीब लोगों को मुफ्त इलाज के लिए उपलब्ध कराया जाएगा । परंतु वास्तविकता में भर्ती मरीजों में से १९९९-२००० में मात्र दो प्रतिशत का इलाज मुफ्त किया गया और ये भी वे लोग थे जो या तो कर्मचारियों के नौकरशाहों अथवा राजनीतिज्ञो के सगे संंबंधी थे । जानकारी होने के बावजूद सरकार ने इस मामले की अनदेखी की । अगर इस तरह के अस्पतालों की आय पुन: लौटकर जनता के बीच ही न पहुंचे तो इनके माध्यम से आम जनता की आय में बढ़ोत्तरी की अपेक्षा करना भी व्यर्थ होगा । स्थानीय जनता की अच्छे इलाज तक पहुंच - चिकित्सा पर्यटन में बढ़ोत्तरी के परिणाम स्वरूप निजी अस्पताल अपना विस्तार करते हैं एवं उनकी मानव संसाधन की आवश्यकता में वृद्धि होती है । इसका सीधा असर सरकारी क्षेत्र, छोटे शहरों एवं छोटे अस्पतालों के अनुभवी चिकित्साकर्मियों के इन बड़े अस्पतालों की ओर आकृष्ट होने की वजह से होता है । अभी भी यहीं हो रहा है । निजी क्षेत्र के अधिकांश प्रमुख चिकित्साकर्मी सरकारी क्षेत्र की अपनी नौकरियों को छोड़कर इनमें आए हैं, अत: वे सिर्फ विदेशी मरीजों अथवा भारत के उच्च्वर्ग के मरीजों की ही सेवा करेंगे । (२) भारत की ग्रामीण आबादी के ७० प्रतिशत को उचित चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि उनके पास निजी क्षेत्र में जाकर इलाज करवा सकने लायक धन ही नहीं है और दूसरी तर इसी सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्तरीय सेवा की गांरटी देने के लिए अस्पतालों को प्रमाणित कर रहा है व कीमत निर्धारण के लिए भी सिफारिशें कर रहा है । चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा देने का प्रमुख उद्देश्य है औ़द्योगिक घरानों के स्वामित्व वाले इन बड़े विशिष्टतम् अस्पतालों के लिए सीमित घरेलू बाजार से भी आगे के अवसरों को मुहैया कराना। चिकित्सा पर्यटन के बढ़ने का एक और बुरा असर यह होगा कि हमारे निजी क्षैत्र के अस्पतालों में इलाज और महंगा हो जाएगा । चिकित्सा पर्यटन में बढ़ोतरी से पहले से ही भारत में इलाज दिनोंदिन महंगा होता जा रहा था ।सन् १९८७ में केरल में औसतन प्रति व्यक्ति इलाज का खर्च या १६ रूपए ६० पैसे था जो कि २००४ में बढ़कर ८३० रू.७० पैसे तक जा पहुंचा है । (३) चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा दिये जाने की मानसिकता के चलते भारत की आम जनता के लिए तो स्तरीय स्वास्थ्य सेवाआे की उपलब्धता बूते से बाहर हो जाएगी । भारतीय चिकित्साकर्मियों का विदेशों में पलायन आम बात है । चिकित्सा पर्यटन के चलते अब यह हो सकता है कि बड़े भारतीय संस्थान भी आकर्षक वेतन का लालच देकर इन लोगों का रूख पुन: भारत की ओर मोड़ दें , यानि कि घर वापसी की स्थितियां निर्मित हों, लेकिन चिकित्सा पर्यटन के रूप में यह नया झुकाव वस्तुत: ब्रेन ड्रेन का एक नया व परिष्कृत देशी स्वरूप ही साबित होगा । इस प्रक्रिया के माध्यम से एक कुशल व्यक्ति रहेगा तो इसी देश में, इतना ही नहीं वह अत्यधिक धन भी यहीं की अधोसंरचना और संसाधनों का प्रयोग कर अर्जित करेगा , परंतु सेवा विदेशियों की करेगा । उस पर तुर्रा यह कि इन्हें प्रशिक्षित करने के लिए पैसा भी भारत के गरीब करदाता ही वहन करेंगें क्योंकि इनमें से अधिकांश का प्रशिक्षण सरकारी संस्थानों में होगा यानि इससे विकसित विदेशी अर्थव्यवस्था को ही अतिरिक्त लाभ प्राप्त् होगा ।भारत एक कचराघर - इन औद्योगिक अस्पतालों से निकलने वाला कचरा एक अन्य गंभीर समस्या है । यह चिकित्सकीय अपशिष्ट उन इलाकों में फेंक दिया जाता है जहां के लोग इसके खतरे से वाकिफ नहींहैं । भारत के अस्पतालों में औसतन प्रति बिस्तर प्रतिदिन एक किलोग्राम कचरा निकलता है, जिसमें से १० से १५ प्रतिशत संक्रामक, ५ प्रतिशत खतरनाक और शेष सामान्य किस्म का होता है । एक बड़े शहरी कार्पोरेट अस्पताल से प्रतिवर्ष लाखों किलो कचरा निकलता है । (४) आमतौर पर विकासशील राष्ट्रों में इस कचरे की छंटाई नहीं की जाती है । कचरा चाहे अस्पताल के सत्कार कक्ष का हो अथवा शल्यक्रिया विभाग का , सब एक साथ या तो इंसीनिरेटर (भस्मक) में जला दिया जाता है या किसी नदी अथवा समुद्र में बहा दिया जाता है । इस अपशिष्ट निपटान का अतिरिक्त खर्च कुल खर्चोंा में शामिल नहीं किए जाते । फलत: यहां चिकित्सा व्यवसाय बहुत ही किफायत से चल रहा है। किराए पर कोख भी भारत में बहुत ही कम मूल्य में उपलब्ध हो जाती है । विकसित देशांे में बांझपन का इलाज भी यहां की बनिस्बत काफी महंगा है । इस मुद्दे पर अभी ज्यादा ध्यान नहीं गया है, परंतु ब्रिटेन के समाचार पत्र `ट्रिब्यून' ने इस पर ध्यान आकृष्ट किया है । वहां कुछ लोगों ने इस बारे में नैतिक सवाल भी उठपाए हैं । (५) मानव अंगों का व्यापार भी एक बड़ी समस्या है । एक अध्ययन के अनुसार अंग (ज्यादातर मामलों में गुर्दे) बेचने वालों में से ९६ प्रतिशत ने इन्हें औसतन महज १०७० अमेरिकी डॉलर (५०००० रू.) की दर से बेचा है और वह भी अपने कर्जोंा को चुकाने के लिए । (६) यद्यपि भारत में भी अंगों का प्रत्यारोपण चाहने वालों की सूची बहुत लंबी है, परंतु इसके बावजूद इनमें से ज्यादातर अंगों की खपत बाहरी देशों में हुई है । (७) यह सब कुछ तब हुआ है जबकि हमारे देश में मानव अंगों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा हुआ है । (८) कानून पालन में कोताही, भ्रष्टाचार और विदेशी बाजार में प्रचलित दर अधिक होने के चलते भारत में मानव अंग तस्करी आम बात है । चिकित्सा पर्यटन के विकास से स्थितियों के और भी बिगड़ने की आशंका है । पश्चिमी देश, विकासशील देशों में अपने नागरिकों को प्राप्त् होने वाली स्वास्थ्य सेवाआे की गुणवत्ता और निपुणता को लेकर काफी चिंतित रहे हैं। वहां की सरकारें विकासशील देशों के अस्पतालों के लिए गुणवतता के नए अंतर्राष्ट्रीय प्रतिमान निर्धारित करने की प्रक्रिया में हैं। ऐसा होने पर भारत में इलाज और महंगा हो जाएगा । चिकित्सा पर्यटन प्राप्त् होने वाली ऊंची आय और विदेशी मुद्रा प्रािप्त् के तर्क के आधार पर और ज्यादा छूट एवं प्रोत्साहन की अपेक्षा रख रहा है । किंतु इन बड़े खिलाड़ियों को इस तरह की कटौतियां देने का मतलब होगा गरीबों के लिए न्यूनतम उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाआे में और कटौती होना । भारत जैसे देश में जहां नागरिकों को आधारभूत स्वास्थ्य सुविधाएँ ही ठीक से नहीं मिल पा रही हैं, इस तरह के स्वास्थ्य पर्यटन को बढ़ावा देना कहां तक उचित है ? भारत का गरीब करदाता विदेशियों के इलाज का खर्च क्यों वहन करे ? समय की मांग है कि भारत अपने नागरिकों को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के अधिकार पर ध्यान केंद्रित करे ।

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