दस साल में ५८ फीसदी घटे घड़ियाल
दुनिया भर में घड़ियाल लुप्त् होने की कगार पर है । पिछले दस सालों में वयस्क घड़ियालों की संख्या ५८ फीसदी घट गई है । इस खतरे के मद्देनजर वर्ल्ड कंजर्वेशन यूनियन (आईयूसीएन) ने घड़ियालों को अत्यंत संकटग्रस्त प्राणियों की रेडलिस्ट में शामिल कर लिया है । यूनियन के मुताबिक पाकिस्तान में सिंध, भूटान में ब्रह्मपुत्र और बांग्लादेश में गंगा नदी से घड़ियाल लगभग गायब हो चुके हैं । पर्यावरण और वन्यप्राणियों के चाहने वालों के लिए यह बुरी खबर है और यही हाल रहा तो भविष्य में घड़ियाल सिर्फ तस्वीरों में जिंदा रहेंगे । आईयूसीएन ने घड़ियालों को `संकटग्रस्त' से `अति संकटग्रस्त' प्राणियों की सूची में शामिल किया है । यूनियन के मुताबिक १९९७ में भारत और नेपाल में बचे-खुचे परंपरागत आशियानों में वयस्क घड़ियालों की संख्या ४३६ थी, जो पिछले साल हुई गणना में घटकर १८२ रह गई है । चालीस के दशक में वयस्क घड़ियाल पांच से १० हजार के बीच थे, जो ७० के दशक में दो सौ से कम बचे । तीस साल के दौरान करीब ९६ फीसदी घड़ियालों का सफाया हो चुका था । इसके बाद ही विश्व स्तर पर घड़ियालों को बचाने की पहल शुरू हुई और १९९७ में इनकी संख्या चार सौ के पार जा पहुंची । लेकिन एक बार फिर घड़ियालों का वजूद खतरे में है । यूनियन से जुड़े घड़ियाल विशेषज्ञों के मुताबिक भारत से फिलहाल घड़ियाल ही सर्वाधिक खतरे में पड़ी प्राणियों की प्रजाति है ।
प्रदूषण से बढ़ सकता है मधुमेह का खतरा
अमेरिका के वैज्ञानिकोंका कहना है कि प्रदूषण के कारण मधुमेह की बीमारी बढ़ सकती है । कैब्रिज के वैज्ञानिक ओलिवर जोन्स और जूलियन ग्रिफिन ने प्रदूषण और मधुमेह के बीच संभावित संबंधों के बारे में शोध की आवश्यकता पर बल दिया है । इस संबंध में लासेंट के ताजा अंक में एक लेख प्रकाशित हुआ है । वहीं दूसरी ओर कैब्रिज विश्वविद्यालय की वेबसाइड में भी इस संबंध में रिपोर्ट प्रकाशित हुई है । मधुमेह को लेकर इससे पहले शोध कार्यो में कहा गया था कि उन लोगों में मधुमेह होने की संभावना ज्यादा होती है जो पतले होते हैं और साथ ही उनके खून में परसिसटेंट ओरगेनिक पॉल्यूटेंट्स (पीओपी) की मात्रा अधिक होती है । वहीं मोटे लोग जिनमें पीओपी की मात्रा कम होती है, उन्हें मधुमेह का खतरा कम होता है । पीओपी एक तरह का रसायन है जो पर्यावरण में मौजूद रहता है तथा यह खतरनाक माना जाता है ।
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