`प्रकृति एवं पर्यावरण पर हाइकु'
राजीव नामदेव `राना लिधौरी'
पर्यावरण,की उथल-पुथल ।
महा विनाश ।।
जल के स्त्रोत,
जंगल औ बादल ।
जीवन ज्योति ।।
साफ जंगल,
नदिया प्रदूषित ।
कैसे मंगल ।।
जीवन दवा,
जल,जमीन, हवा ।
बिकने लगी ।।
टेढ़ी नज़र,
जब प्रकृति की होती ।
सब रोते हैं ।।
जाड़े के दिन,
ये कुनकुनी धूप ।
हमें सुहाती ।।
फागुन आया,
फूली है कचनार ।
आम बौराया ।।
आकाश पाना,
चाहता हँू मैं तो हँू,
धरा की धूल ।।
उड़ान भरी,
कि आसमां छू ले देखा ।
जमीं अंदर ।।
जीवन यात्रा,
अहसास की राहें ।
पथरीली है ।।
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