सौर ऊर्जा के व्यावहारिक कदम
हिमांशु ठक्कर
ऊर्जा के असीमित एवं स्वच्छ स्त्रोत के तौर पर उपलब्ध सौर ऊर्जा का दोहन विश्व भर में अभी सीमित स्तर पर ही किया जा सका है । कच्च्े तेल की दिनों-दिन बढ़ती कीमतों एवं ग्लोबल वार्मिंग की आशंका के तहत ऊर्जा के मौजूदा पारंपरिक स्त्रोतों की प्रासंगिकता कम होती जा रही है । ऐसे में बेहतर विकल्प के तौर पर सौर ऊर्जा के प्रति लोगों का रूझान बढ़ा है लेकिन सौर ऊर्जा के उपकरणों की ज्यादा लागत के कारण यह साधन अभी तक लोकप्रिय नहीं हो पाया था । यदि तकनीकी विकास के बल पर सौर ऊर्जा की लागत कम हो जाय तो यह काफी लोकप्रिय हो सकती है और हम स्वच्छ व टिकाऊ ऊर्जा के रूप में सौर ऊर्जा को अपना सकते हैं। जहां तक सौर ऊर्जा की लागत की बात है तो जापान, कैलीफोर्निया एवं इटली में, जहां पर बिजली की खुदरा दर सर्वाधिक है, सौर ऊर्जा पारंपरिक बिजली के लागत के लगभग करीब है एवं कुछ मामलों में प्राकृतिक गैस एवं आणविक ऊर्जा के मुकाबले सस्ती है । यह कुछ नये तकनीकी विकास के कारण संभव हो सका है । सन १९५४ में जब से बेल लैब्स द्वारा पहले फोटोवोलेटिक (पीवी) सेल का निर्माण किया गया तब से वह इस तकनीक का आधार बना हुआ है । इस आधार पर सूर्य के प्रकाश के कुछ हिस्सों को ही बिजली में परिवर्तित किया जा सकता था । उसी बेल लैब्स ने ऐसे सिलीकॉन की खोज भी की जो कि सस्ता एवं सुलभ है । पिछले दशक में सस्ते सेल के माध्यम से सूर्य की ऊर्जा को २० प्रतिशत तक बिजली में परिवर्तित करने में सफलता मिली । वहीं पिछले वर्ष न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में शोधकर्ताआें ने एक ऐसे सेल का निर्माण किया जिससे ४२.८ प्रतिशत ऊर्जा परिवर्तन क्षमता हासिल हुई। आस्ट्रेलिया में न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय के मार्टिन ग्रीन का मानना है कि अन्य विकसित पदार्थोसे निर्मित सेल में ७४ प्रतिशत तक क्षमता विकसित किया जाना संभव है । जबकि सांइंटिफिक अमेरिकन जर्नल में दावा किया गया है कि मौजूदा समय में न्यूनतम लागत वाली प्रक्रिया है कैडमियम टेलूराइड से निर्मित पतली फिल्म । सन् २०२० तक ६ सेंट प्रति किलोवाट की दर पर बिजली प्रदान करने के लिए कैडमियम टेलूराइड प्रक्रिया को १३४ प्रतिशत बिजली कार्यक्षमता के लिए सक्षम बनाना होगा । तकनीकी विकास के साथ प्रयोगशाला में कैडमियम टेलूराइड सेल की क्षमता १६.५ प्रतिशत तक पहुंच चुकी है । लेकिन व्यावसायिक उपयोग में अभी यह क्षमता १० प्रतिशत तक पहुंच पाई है । सन् १९८८ से अमेरिका के कैलिफोर्निया के नेवादा रेगिस्तान के सौर ऊर्जा पार्क में १ वर्ग किमी क्षेत्र में परावलीय आकार की ९ तश्तरियों द्वारा ३५४ मेगावाट बिजली पैदा की जाती है। कैलिफोर्निया पब्लिक यूटिलिटिज कमीशन ने सन २००५ में लॉस एंजेल्स के उत्तर पूर्व में मोजावे रेगिस्तान में विश्व के सबसे बड़े सौर डिश संकेन्द्रण फार्म स्थापित करने की मंजूरी दी है । सन २०१० में बनकर तैयार हो जाने के बाद २०००० डिश से युक्त इस फार्म की उत्पादन क्षमता ५०० मेगावाट होगी । लेकिन इस प्रकार के संयंत्रों को तेज हवा एवं तूफान की स्थिति में नुकसान पहुंचने की आशंका रहती है। सिडनी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डेविड मिल्स ने अपने एक शोधपत्र में सूर्य की रोशनी को आइने के ऊपर स्थित ट्यूब पर किरण को केन्द्रित करने वाले लगभग पूर्णतया समतल आइने का जिक्र किया है । ऐसे आइने परावलीय आकार की डिश में मुकाबले सुलभ एवं सस्ते होते हैं एवं फ्लोरिडा में आने वाले तूफानों में मजबूती से टिके रह सकते है । इस तकनीक में सूर्य की उष्मा द्वारा पानी को सीधे वाष्प में बदला जा सकता है । यह दावा किया जाता है कि इस तकनीक से पैदा होने वाली बिजली की तुलना कोयला आधारित बिजली संयंत्र की लागत से की जा सकती है । इस तकनीक के आधार पर औसरा नामक एक कम्पनी कैलिफोर्निया में एक वर्ग मील क्षेत्र में १७७ मेगावाट की स्थापित क्षमता का सौर तापीय संयंत्र लगाएगी । नवम्बर २००७ में हुए समझौते के अनुसार संयंत्र २०१० में बिजली आपूर्ति प्रारंभ कर देगा । शुरूआती दावा यह है कि यह है कि यह संयंत्र १०.४ सेंट प्रति यूनिट की दर पर बिजली आपूर्ति करेगा । औसरा का कहना है कि वह तीन साल में लागत में ७.९ सेंट प्रति यूनिट (किलोग्राम प्रति घंटा) तक कटौती कर सकती है । (एक अमेरिकी डालर करीब रूपये ४० के बराबर है एवं एक सेंट रूपये ४ के बराबर) विश्व भर में कई प्रमुख देश अपने यहां सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न रियायते दे रहे हैं, जिनमें जर्मनी सबसे आगे है । जर्मनी के बाद इटली एवं स्पेन भी अपने देश में सौर ऊर्जा के लिए सब्सिडी दे रहे हैं । कैलिफोर्निया में २.८ अरब डालर आर्थिक सहायता के माध्यम से २०१६ तक ३०० मेगवाट सौर ऊर्जा स्थापित करने का लक्ष्य है । इजराइल की सोलेल सोलर सिस्टम ने भविष्य में ५५३ मेगावाट बिजली प्रदान करने के लिए समझौता किया है । इसी तरह अल्जीरिया, चीन एवं जापान आदि देशों ने अपने यहां सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सहायता कार्यक्रम शुरू किये हैं । इस तरह सौर ऊर्जा का बाजार विश्व के सबसे बढ़ने वाले बाजार के रूप में उभर रहा है । सौर ऊर्जा के माध्यम से जब आकाश में बादल छाये हों तब बिजली का उत्पादन कम एवं रात को बिजली का उत्पादन नहीं होता है । अर्थात जब सूर्य की रोशनी ज्यादा हो तो ज्यादा बिजली पैदा किया जाना चाहिए एवं उसे बाद के समय के लिए संजोकर रखा जाना चाहिए । बिजली संजोकर रखे जाने वाले उपकरण जैसे बैटरी आदि काफी महंगे होते हैं, हालांकि इस समस्या का भी निराकरण हो रहा है । नवीनेय ऊर्जा की वैश्विक स्थिति पर २००७ की रिपोर्ट देखें तो सौर फोटोवोलेटिक (पीवी) के बिजली ग्रिड में जुड़ने की गति ५०-६० प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रही है जो कि ८००० मेगावाट के करीब हो गई है । सौर ऊर्जा के माध्यम से विश्व भर में करीब ५ करोड़ घरों में गरम पानी की उपलब्धता हो रही है । वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा तकनीक पर खर्च सन् २००३ में २ अरब डालर के मुकाबले सन् २००६ में १५ अरब डालर हो चुका है जबकि सन् २०१५ में इसके १०० अबर डालर तक पहुंचने की संभावना है । जहां तक भारत में सौर ऊर्जा के प्रसार का सवाल है तो वह काफी धीमा है । नव एवं नवीनेय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार ३० सितम्बर २००७ तक भारत में मात्र २.१२ मेगावाट की सौर ऊर्जा ही ग्रिड से जोड़ी जा सकी है । जबकि विकेन्द्रित तौर पर सौर पीवी कार्यक्रम की स्थापित क्षमता ११० मेगावाट है । इसके अलावा सौर स्ट्रीट लाइट प्रणाली, सौर घरेलू ऊर्जा प्रणाली एवं सौर लालटेन की कुल संख्या ९८९६५१ है । सौर ऊर्जा द्वारा जल गर्म करने की प्रणाली एवं सौर ऊर्जा वाले कुकर एवं पंपों की संख्या भी काफी कम है । जहां एक तरफ विश्व की कई प्रमुख सौर ऊर्जा उपकरण निर्माता कंपनियां भारत को एक बेहतर बाजार के तौर पर देख रही हैं वहीं भारत में सौर ऊर्जा क्षेत्र में प्रसार की गति बहुत धीमी है । भारत में सौर ऊर्जा फोटोवेलैटिक के माध्यम से प्रति यूनिट बिजली की लागत १५ रू. प्रति किलोवाट आती है । लेकिन यदि सौर तापीय आधारित बिजली संयंत्र का विकास किया जाय तो प्रति यूनिट बिजली की लागत भी कम हो सकती है । इसलिए आवश्यकता है कि भारत सरकार सौर ऊर्जा के विकास को प्रोत्साहित करने वाली नीति बनाये । इसके अंतर्गत ऋण की आसान शर्ते, सब्सिडी आदि के साथ-साथ बेहतर बिजली दर की शर्ते भी निर्धारित करे । हाल में सरकार ने एक नई योजना की घोषण की है जिसके अंतर्गत सौर ऊर्जा से ग्रिड में बिजली पहुंचाने के लिए सरकार १०-१२ रू. प्रति यूनिट की सहायता देगी । इस योजना के अंतर्गत ऐसी सहायता १० साल तक दी जाएगी । अगले पांच साल में सरकार का लक्ष्य है कि इस योजना के अंतर्गत ५० मेगावाट क्षमता के संयंत्र लगेंगे । सहायता की यह मात्रा काफी ज्यादा है और लक्ष्य क्षमता काफी कम लेकिन सौर ऊर्जा संयंत्रों की शुरूआत के लिए शायद ये जरूरी हैं । वास्तव में जितना खर्च व ध्यान सरकार नाभकीय तथा बड़ी जलविद्युत परियोजनाआे के लिए दे रही है, वह संसाधन और ऊर्जा के विकास में लगाए तो यह जनता एवं पर्यावरण के भविष्य के लिए काफी फायदेमंद होगा । ***
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