अब भुट्टे खाने से कद बढ़ेगा
सड़क किनारे कोयले की आँच पर सिक रहे भुट्टों से मुँह में पानी भर आता है, लेकिन अब वही भुट्टे शाकाहारी भारतीयों का कद बढ़ाने में मददगार साबित होने जा रहे हैं । देश में तीसरा सबसे अधिक खपत वाला अनाज मक्का है । मक्के की रोटी और सरसों की साग हमारे देश में काफी प्रसिद्ध है । लेकिन हमारे देश की मक्का में एमिनो एसिड और प्रोटीन की कमी महसूस की जा रही थी ।
केन्द्र सरकार के बायो टेक्नोलॉजी विभाग से प्रायोजित एक परियोजना के तहत अल्मोड़ा स्थित विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने प्रोटीन और एमिनो एसिड की यह कमी पूरी कर दी है और मार्कर टेक्नोलॉजी से साधारण मक्का में ४० प्रतिशत अधिक एमिनो एसिड वाली मक्का तैयार कर दी है । विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने उच्च् प्रोटीनयुक्त मक्का के विकास की पिछले दिनों घोषणा करते हुए बताया कि ५०० करोड़ रू. की लागत से मक्का के अलावा आठ और डिजाइनर फसलों का विकास किया जा रहा है । श्री सिब्बल ने कहा कि भारत और दक्षिण एशिया के अन्य देशों में मक्का में बढ़ा हुआ प्रोटीन क्रांति ला सकता है, क्योंकि इस क्षेत्र के लोग अमूमन शाकाहारी हैं और प्रोटीन की कमी की वजह से उनका कद छोटा रह जाता हैं । मक्का इस कमी को पूरा कर सकती है । मक्का की बहुतायत में खेती हिमाचल प्रदेश, उत्तारांचल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में होती है । परंपरागत मक्का देरी से पकती थी, लेकिन विवेक हाइब्रिड ९ किस्म की नई मक्का की फसल जल्दी पक जाती है । नई किस्म के प्रयोग काफी सफल साबित हुए हैं और कृषि वैज्ञानिक अब १०० प्रतिशत अधिक एमिनो एसिड वाली मक्का तैयार करने में जुट गए हैं ।
दीवार के पार देख सकेंगे पुलिस अधिकारी
तकनीकी विशेषज्ञों ने एक ऐसा नया एक्स-रे स्कैनर तैयार कर लिया है जो कस्टम ऑफिसर और पुलिस का काम बेहद आसान बना देगा । इस तकनीक के जरिए पुलिस अधिकारी किसी सुपर हीरो की तरह दीवार के पार भी देख सकेंगे । `लेक्सिड' एक्स-रे की खोज करने वाले वैज्ञानिक का कहना है कि इसके जरिए हथियार, बम और छुपे हुए आतंकवादियों के बारे में जानकारी पता की जा सकेगी। इसकी निगाह से कोई भी चीज छुप नहीं सकेगी । फिजिकल ऑप्टिक्स कारपोरेशन के अमेरिकन वैज्ञानिक रिकी शेई इस तकनीक के बारे में बताते हैं कि इस एक्स-रे में लो लेवल की एक्स किरणें भेजी जाती हैं जो एक लेंसर आधारित लोबोस्टर आई में एकत्रित हो जाती हैं । यही से तकनीक काम करना शुरू करती है । लोबोस्टर आई से परिवर्तित होने वाली किरणें एक स्क्रीन पर उस वस्तु का चित्र उकेर देती हैं । उल्लेखनीय है कि लोबोस्टर आई का उपयोग गहराई, गंदे पानी और अंधेरे में देखने के लिए किया जाता है । इसमें लगे छोटे-छोटे चौकोर लैंस किसी भी चीज से प्रकाश को परावर्तित करके छुपी चीजों को देखना संभव बनाते हैं । रिकी शेई कहते हैं कि उनकी टीम इस तकनीक का सफलतापूर्वक परीक्षण कर चुकी है, अब अमेरिकी सरकार इसका परीक्षण करेगी और फिर कुछ ही दिनों में इसे सुरक्षा के लिहाज से एरपोर्ट, रक्षा विभाग जैसे महत्वपूर्ण ठिकानों पर लगा दिया जाएगा ।
प्लास्टिक ऑप्टिकल फाइबर ताँबे का स्थान लेंगे
ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्शन के लिए ताँबे के तार की इन दिनों भारी माँग है । परंतु एक नया शोध सामने आया है, जिसके तहत कहा गया है कि प्लास्टिक के ऑप्टिकल फाइबर न केवल सस्ते होंगे, वरन आसान भी होंगे । इसके अलावा इससे ब्रॉडबैंड की स्पीड भी तुलनात्मक रूप से ज्यादा तेज होगी । इस तकनीक के शोधकर्ताआें का कहना है कि अगले १५ साल में योरप के ८० प्रतिशत घरों में प्लास्टिक आधारित ब्रॉडबैंड होंगे और यह वर्तमान की तुलना में ५० गुना ज्यादा तीव्र गति से चलेंगे । ये प्लास्टिक ऑप्टिकल फाइबर जल्द ही ग्लास आधारित ऑप्टिकल फाइबर का स्थान लेंगे । अभी जिस ऑप्टिकल फाइबर का प्रयोग किया जा रहा है, वह काफी महँगा है और उसे घरों और कार्यालयों में लगे ताँबे के कनेक्शन से स्थान पर प्रयुक्त नहीं किया जा सका है । कारण पूरी वायरिंग को बदलना काफी महँगा होगा । विशेषज्ञों ने काफी समय पहले ही इसकी भविष्यवाणी कर दी थी कि ऑप्टिकल फाइबर की कीमतें घटेगी और वायरलैस सेवा केबल का स्थान लेगी । योरपीय संघ ने इस बात को समझते हुए इससे संबंधित शोधकर्ताआे को आर्थिक सहायता दी, ताकि वे प्लास्टिक ऑप्टिकल फाइबर तैयार कर सकें । इस प्रोजेक्ट को नाम दिया गया पीओएफ ऑल (पेविंग द ऑप्टिकल फ्यूचर विद एफोर्डेबल लाइटनिंग फास्ट लिंक्स) इसमें इटली के तोरिनो के इंस्टीट्यूट सुप्रीयो के मारियो बोएला को प्रमुख बनाया गया । ल्यूसेट जैसी नेटवर्क कंपनी के संस्थापक एलसेंड्रोल नोसिवेली का कहना है कि प्लास्टिक ऑप्टिकल फाइबर आसानी से ताँबे का स्थान ले लेंगे । न्यू सांइटिस्ट का कहना है कि यदि अधिक मात्रा में ऑप्टिकल फाइबर लगाना हो तो प्लास्टिक ऑप्टिकल फाइबर का इस्तेमाल करना सस्ता पड़ेगा । इससे स्पीड भी बढ़ सकती है । इसकी स्पीड प्रति सेकंड १०० मेगाबाइट्स से ३०० मेगाबाइट्स की है । ऑप्टिकल फाइबर सुपर कूलिंग लिक्विड (ग्लास) का होता है । इसके कारण इसमें टोटल इंटरनल रिफ्लैक्शन होता है । इसमें पारेषण प्रकाश किरण के रूप में होता है । पॉवर लाइन कम्युनिकेशन्स के लिए कार्य कर रहे मयंक पाल के मुताबिक क्रिटिकल एंगल से ज्यादा प्रकाश किरण को इस ऑप्टिकल फाइबर की भीतरी सतह पर टकराते हैं तो उसमें से प्रकाश किरण दूसरे माध्यम से जाने की बजाय उसी माध्यम में प्रयुक्त हो जाती है। इसी कारण से उसी प्रक्रिया को अपनाते हुए आगे तक ले जाती है । ऑप्टिकल फाइबर में चूँकि प्रकाश किरण का प्रयोग होता है तो स्पीड काफी तेज होती है और इसका उपयोग ज्यादा दूरी के लिए किया जा सकता है । सूचना भेजने के लिए माध्यम प्रकाश किरण होती है । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसमें दो कानून हैं । इनमें से एक है स्नेल और दूसरा है ब्रूस्टर । १ मिलीमीटर मोटी प्लास्टिक फाइबर लचीली होती है और इलेक्ट्रिकल हस्तक्षेप से प्रभावित नहीं होती है । यह इलेक्ट्रिक वायरिंग में आसानी से डाली जा सकती है । साथ ही इसे लगाने में ग्लास ऑप्टिकल फाइबर की तरह तकनीशियनों की जरूरत भी नहीं होती है। इससे कई अरब रूपयों की बचत की जा सकती है ।
सबसे ज़्यादा कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ने वाले देश
ताईवान में ताइचुंग शहर में एक बिजली घर है जो प्रति वर्ष ३.७ करोड़ टन कार्बन डाईआक्साइड उत्सर्जित करता है । यह दुनिया भर के किसी भी बिजली घर से ज्यादा है । इसी प्रकार से बिजली उत्पादन की प्रक्रिया में सर्वाधिक प्रति व्यक्ति कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ने वाला देश ऑस्ट्रेलिया है । मगर आज भी यदि कुल कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा देखें तो यू.एस. के बिजलीघर सबसे ऊपर है। यह सारी जानकारी एक नए डैटाबेस में प्रस्तुत की गई । इस डैटाबेस में दुनिया भर की ४००० बिजली कंपनियों और करीब ५०,००० बिजली संयंत्रों के ऊर्जा उत्पादन और कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के आंकड़े संकलित है । इस डैटाबेस का निर्माण वॉशिंगटन स्थित सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट ने हाल ही में किया है । यू.एस. में लगभग ८००० बिजलीघर हैं जो प्रति वर्ष २.५ अरब टन कार्बन डाईऑक्साइड पैदा करते हैं । इसको मिलाकर यू.एस. दुनिया में उत्सर्जित कार्बन डाईऑक्साइड में से २५ प्रतिशत के लिए जवाबदेह है । चीन बहुत पीछे नहीं है और यहां का कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन २.४ अरब टन है । मगर प्रति व्यक्ति के लिहाज से देखें तो चीन यू.एस. से बहुत पीछे है । चीन के बाद रूस का नंबर आता है मगर वह बहुत पीछे है और उसका उत्सर्जन मात्र ६० करोड़ टन है ।
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