सेतु समुद्रम परियोजना और पर्यावरण
डॉ. सी.पी. राजेंद्रन
सेतु समुद्रम नौ परिवहन परियोजना भारत और श्रीलंका के मध्य निर्मित की जा रही वह परियोजना है जो लगभग १५२ किमी लंबी है और इसमें ७५ किमी सागर के उथले हिस्से को गहरा बनाकर नौ परिवहन के उपयुक्त बनाया जाएगा । उपरी तौर पर योजना बहुत अच्छी है, इसमें जहाजों को आवागमन के लिए अब श्रीलंका की परिक्रमा नहीं करनी पड़ेगी और भारत के पूर्वीतट से पश्चिमी तट की ओर जाने में महाजों को ३३५ नाटिकल मील की दूरी कम तय करनी पड़ेगी । प्रस्तावित २४२८ करोड़ रूपये लागत मूल्य की इस परियोजना की लागत भी अब बढ़ गई है । इस परियोजना के प्रति भारत सरकार के जहाज रानी परिवहन मंत्रालय का उत्साह देखते ही बनता है । मंत्रालय इतना उत्साहित है कि उसे इस परियोजना के कारण होने वाले पर्यावरणीय नुकसानों की कोई चिंता नहीं है और न हीं इस संदर्भ में वह इस परियोजना पर वैज्ञानिकों के साथ परामर्श के लिए ही बहुत इच्छुक है । नेशनल एन्वायरमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) ने २००४ में इस परियोजना के पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन अर्थात इआईए को स्वीकृति प्रदान की लेकिन इसके गंभीर दुष्प्रभावों की ओर वस्तुत: ध्यान नहीं दिया गया । परियोजना में सिर्फ ७५ किमी खुदाई की जाएगी शेष मार्ग नौपरिवहन के लिए उपयुक्त हैं । अनेक गैर सरकारी संगठनों को अनेक बातों पर आपत्ति है । इनका मानना है कि ईआईए में ठीक प्रकार से आपत्तियों का निराकरण नहीं गया है । इस पूरे समुद्री क्षेत्र में विभिन्न नदियों से जो बालू आदि तलछट का प्रवाह आता है उसकी विशाल मात्रा के बारे में पर्यावरण अध्ययन मूल्यांकन में नीरी ने पूरा ध्यान नहीं दिया है । इस संदर्भ आंकड़ों के न होने का मतलब ही है कि पाल्क स्ट्रेट में जमा होने वाले बालू आदि तलछट के संदर्भ में संपूर्ण अध्ययन विरोधाभासी रहेगा । वैसे भी तमिलनाडु का समुद्री तट तथा विशेष रूप से परियोजना मार्ग का क्षेत्र चक्रवाती तूफानों की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है । यहां इन मौसमी तूफानों के कारण सदा खतरा मंडराता रहता है । दिसंबर १९६४ में आए ऐसे ही एक समुद्री तुफान में पंबन का पुल जो रामेश्वरम् और धनुष्कोटि द्वीप को जोड़ता है, धराशायी हो गया था । इस प्रकार से चक्रवाती समुद्री तुफान संपूर्ण तलछट और चैनल निर्माण के समय खोदी गई सामग्री को इधर से उधर कर सकने में सक्षम है । ईआईए की रपट में इन चक्रवाती तुफानों की ओर ध्यान नहीं दिया गया है। इस कारण से जितनी मात्रा में खुदाई का संभावित आकलन किया गया है वह और भी ज्यादा हो सकता है इससे खुदाई के कार्य का लागत मूल्य तो सहज ही बढ़ने वाला है और खोदी गई सामग्री को विशाल मात्रा के व्यवस्थापन में भी तमाम दिक्कतें खड़ी हो जाएगी । ईआईए रिपोर्ट में सूनामी की भयावहता पर भी कोई मूल्यांकन नहीं किया गया । यह रिपोर्ट सन् २००४ में आई सुनामी के पूर्व ही तैयार हो गई थी और सरकार के सम्मुख प्रस्तुत कर दी गई थी । सुनामी के दुष्प्रभावों के संदर्भ में कुछ अध्ययनों में यह स्पष्ट हुआ है कि सुनामी लहरें पाल्क स्ट्रेट में दक्षिण दिशा के साथ-साथ उत्तर दिशा से भी प्रवेश करती है । संयोग से सुनामी के मार्ग में ही यह परियोजना निर्माणाधीन है । प्रो. टाइ एस. मूर्ति जो कनाड़ा स्थित ओटावा िशिववद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग से जुड़े हैं और जिनका सुनामी पर विशेष अध्ययन है, वे इस परियोजना को लेकर चिंतित है । उनका मानना है कि भविष्य में आने वाली सुनामी लहरों के लिए यह परियोजना डीप वाटर चेनल का काम करेगी और इसके कारण सुनामी लहरों की भयावहता और भी खतरनाक हो जाएगी । समुद्र की तलहटी के बारे में भी ईआईए रिपोर्ट में बहुत जानकारी नहीं दी गई है । इसके कारण यह स्पष्टत: समझ पाना कठिन है कि नहर निर्माण के लिए खुदाई या विस्फोटकों का प्रयोग, इनमें से कौन सा तरीका ज्यादा की होगा ताकि खुदाई में निकलने वाली सामग्री का उचित व्यवस्थापन हो सके । ईआईए रिपोर्ट इस बारे में भी विरोधाभासी है कि खुदाई के मलबे और अन्य सामग्री को कहां डम्प किया जाएगा ताकि उसका समुद्री पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े । अभियंताआे के पास इस संदर्भ मेंभी बहुत कम जानकारी है कि कैनाल का कौन सा हिस्सा भूस्खलन की दृष्टि से कमजोर साबित होगा और जहां भूस्खलन की संभावनाएं भी ज्यादा बनी रहेंगी । परियोजना के क्षेत्र में सागर उथला है और यहां प्राकृतिक रूप से तलछट जमता रहता है । यह तलछट समुद्री पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत महत्व का है, इसमें कोरल आदि अनेक सागरीय दृष्टि से उपयोगी पदार्थ जमा है, यह क्षेत्र सागरीय वनस्पतियों और जीवों की दृष्टि से अत्यंत महत्व का क्षेत्र माना जाता है । पहल ही यहां मनुष्यों द्वारा काफी मात्रा में दोहन हो चुका है अब यह परियोजना इस पूरे सागर क्षेत्र के लिए किसी आपदा से कम सिद्ध नहीं होगी । परियोजना के कारण की जाने वाली खुदाई और सागर में विस्फोटकों के प्रयोग से सागर का संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र उलट-पुलट जाएगा । स्थानीय स्तर पर मछलियों सहित अन्य सागरीय जीवों की बड़ी मात्रा में हानि होगी । इसके अतिरिक्त जब इस मार्ग से जहाजों का आवागमन प्रारंभ होगा तो सागर के शांत जैविक और प्राकृतिक वातावरण में हलचल मच जाएगी, ये जहाज इस क्षेत्र में प्रदूषण फैलाएंगे, इनसे निकलने वाले प्रदूषण तत्व जो समुद्र में इधर उधर फैलेंगे, उनसे यहां का प्राकृतिक जीवन पूरी तरह का तबाह हो जाएगा । पेट्रोलियम पदार्थ जो समुद्री जीवों के लिए सदा खतरा माने जाते हैं वे जहाजों के आवागमन के कारण इस सागर में फैल सकते है । दूसरे, यदि इस मार्ग में जहाजों को खींचकर ले जाया जाएगा जैसा कि प्रस्तावित है तो इसका वित्तीय खर्च पर सीधा असर होगा । इससे तो जहाजों को श्रीलंका की परिक्रमा कर जाना ही बेहतर, कम खर्चीला और समय की बचत के लिहाज से भी ज्यादा सुगम होगा । दूसरे शब्दों में, सरकार ने परियोजना का लाभकारी और वास्तविक मूल्यांकन नहीं किया है । जरूरी है कि सरकार इस परियोजना पर की गई आपत्तियों को गंभीरता से लें,इस पर पुनर्विचार कर देशहित हित में कोई निर्णय करे । ***
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