वनों की कटाई में दूसरे स्थान पर है
फारेस्ट सर्वे आफ इंडिया की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि म.प्र. में पिछले दो वर्षों में १३२ कि.मी. वन क्षेत्र से वृक्षों की कटाई कर दी गई और उसके स्थान पर नयें पौधे नहीं लगाये गये । इस कटाई से पर्यावरण संतुलन को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है । प्राप्त् जानकारी के अनुसार वर्ष २००५ से २००७ के बीच मध्यप्रदेश में वनों का जमकर विनाश हुआ । इन दो वर्षों में ही मध्यप्रदेश में १३२ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के वनों को काट दिया गया । अधिकारियों के अनुसार यह कटाई प्रदेश की सिंचाई व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए की गई है । इनकी बड़ी संख्या में वनों की कटाई तो हुई लेकिन उनके स्थान पर नए बन लगाए ही नहीं गए । मध्यप्रदेश के कुल ९४६८९.३८ वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र में से बीते दो वर्षों में १३२ किलोमीटर क्षेत्र के वनों की कटाई हो गई है जिसमें निमाड चंबल बुंदेलखण्ड व महाकौशल इलाके की वनराशि को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है फारेस्ट सर्वे आफ इंडिया द्वारा जारी किए गए सर्वे रिपोर्ट यह तथ्य सामने आया है । रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में काटे गए वन क्षैत्र से न सिर्फ जंगली जानवरों को बल्कि प्रदेश के पर्यावरणीय संतुलन को भी सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है । इतनी बड़ी संख्या में हुई वनों की कटाई को पया्रवरणविद् प्रदेश के लिए बहुत बड़ा खतरा बता रहे हैं । मध्यप्रदेश का नाम इस रिपोर्ट में दूसरे नंबर पर है जहां सबसे ज्यादा वनों का संहार हुआ है । मध्यप्रदेश से ज्यादा वनों की कटाई मणिपुर में हुई है । यहां १७३ वर्गकिलोमीटर क्षेत्र के वनों को काटा गया है । प्रदेश के वनों की अवैध कटाई से भी कई वन क्षेत्र केवल नाम के लिए वन क्षैत्र बनकर रह गए हैं क्योंकि यहां वनों की कटाई इतने बड़े स्तर पर हुई है कि वृक्षों का नाम तक नहीं बचा हैं इनमें वन परिक्षेत्र भोपाल और वन परिक्षैत्र इंदौर जैसे वन क्षेत्रों का नाम सबसे आगे है । वन विभाग के अधिकारी मानते हैं कि वनों की कटाई प्रदेश हित को ध्यान में रखकर की गई है । प्रदेश में नर्मदासागर व शिपुरी में सिंचाई परियोजना के लिए वनों को काटा गया है जिसके लिए केन्द्र सरकार व सर्वोच्च् न्यायालय से पूर्व में अनुमति भी ले ली गई है । ***
मंगलवार, 15 अप्रैल 2008
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