वृक्ष बोलते हैं
प्रेम वल्लभ पुरोहित
`राही' वृक्ष बोेलते हैं
इतिहास रचा है इन्हांने ।
माँ कहती-कहती थक गयी
कि जन्म से मरण तक का
साथ रहा है
रहता है
मनुष्य से इनका ।
नाता ऐसा जुड़ा है
फिर भी नातेदार
थमाली कुल्हाड़ी से काटता है इन्हें
जन्म से आजीवन तक की सेवा
क्या-क्या कहें
अपने मुख से अपनी बड़ाई
अच्छी लगती नहीं
मृत्यु के दिन भी
घाट तक की यात्रा मेंे साथ रहते हैं
वृक्ष (लकड़िया)
यही नहीं -
पंचतात्विक शरीर को
भस्मकर मुक्ति देते हैं
स्वर्ग देते हैं ये वृक्ष
ऐसा नाता
जीवन मरण तक
साथ निभाता है जो विस्मयकारी है ।
मानव,
धरती माता को नग्न न रहने दो
लहलहाते हरित वृक्षों से करते श्रृंगार
धरती माता का ।***
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