मालवा : बिगड़ता पर्यावरण और जलवायु
डॉ. ओ.पी. जोशी
कुछ वर्षो पूर्व यह बताया गया था कि हमारे देश में अन्य देशों की तुलना मेंसर्वाधिक जैव विविधता है जिसमें मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ प्रथम स्थान पर हैं । विश्व स्तरीय आकलन के मुताबिक भारत, मलेशिया, इंडोनेशिया, चीन और केन्या आदि निर्धन और विकासशील देश हैं लेकिन ये जैव विविधता से संपन्न है जबकि अमेरिका, इंग्लैड, कनाड़ा और फिनलैंड आदि धनी और विकसित देश हैं लेकिन जैव विविधता में निर्धन हैं । यह आकलन देश पर भी लागू होता है क्योंकि म.प्र. और छत्तीसगढ़ आर्थिक संदर्भ में भले ही पिछड़े हो परंतु जैव विविधता में सम्पन्न हैं। मध्यप्रदेश में भी जैव विविधता का अध्ययन किया जाए तो मालवा और निमाड़ निश्चित रूप से सिरमौर ही होंगे । इन क्षेत्रों में जैव विविधता की अधिकता का कारण अच्छी जलवायु और आदिवासियों की बहुलता है जिनका पूरा जीवन पेड़-पौधों और जीव-जंतुआें से जुड़ा रहता है । मालवा निमाड़ क्षेत्र में तेजी से हो रहे वन विनाश, मरूस्थलीकरण, भूमि जलस्तर में गिरावट, कृषि की नई विधियां और विभिन्न प्रकार के प्रदूषण आदि से जैव विविधता पर संकट गहरा रहा है । उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद के वनस्पतिज्ञ डॉ. जाफरी ने कुछ वर्षो पूर्व मालवा की जलवायु पर अध्ययन कर बताया था कि यहां २५ वर्ष पूर्व लगभग ४५ प्रतिशत वनों की कटाई हुई और सर्वाधिक नीम-बबूल के पेड़ काटे गए जो यहां की जलवायु को समशीतोष्ण बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं । उत्तरप्रदेश के वन विशेषज्ञ डॉ. आर.ए. किदवई ने देश के २० प्रांतों में वन विनाश की दर का अध्ययन कर बताया था कि सर्वाधिक वन बस्तर और मालवा से गए । इनमें भी इन्दौर, देवास और झाबुआ जिले अव्वल रहे । लगभग एक करोड मालवी आबादी को समेटे ४७७६० वर्ग किमी क्षेत्र में फैले मालवा में कई स्थान भू-जलस्तर ६०० फीट नीचे पहुंच गया है । राजस्थान के झालवाड़ जिले से लगे मप्र के राजगढ़ में भूमि में रेतीलापन बढ़ा है । राजस्थानी रेगिस्तान एवं वहां से आने वाले पशु जाने-अनजाने मे मालवा का पर्यावरण बिगाड़ रहे हैं । मालवा निमाड़ का बिगड़ता पर्यावरण और जलवायु में धीरे-धीरे आ रहा परिवर्तन जैव विविधता के लिए खतरनाक है अत: जैव विविधता को बचाने के लिए हमें पर्यावरण को बचाना होगा । यहां स्थानीय प्रजातियों से वनीकरण, पड़त भूमि सुधार, भूजल, दोहन पर नियंत्रण, जैविक खेती का प्रसार, राजस्थान सीमा से लगे गांवों और शहरों में सघन पौधारोपण व पेड़ंा की कटाई पर रोक, वर्षा जल संचयन और वायु व जल प्रदूषण पर नियंत्रण आदि कुछ ऐसे प्रयास है जो ईमानदारी से किए जाएं तो पर्यावरण को बचाया जा सकता है । मालवा-निमाड़ सहित पूरे प्रदेश में जैव विविधता संरक्षण के प्रयास जारी है । राज्य जैव विविधता बोर्ड का भी गठन किया गया है । प्रदेश में सात इको रीजन बनाएं गऐ हैं । इन क्षेत्रों का अध्ययन कर विलुिप्त् की ओर अग्रसर प्रजातियों के संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन जिस गति से पर्यावरण और जलवायु में परिवर्तन आ रहा है तथा विलुिप्त् का खतरा बढ़ रहा है उसके मद्देनजर से प्रयास नाकाफी है । मालवा और निमाड़ में जैव विविधता संरक्षण हेतु विस्तृत कार्ययोजना बनाना होगी जिनमें जैव विविधता की अवधारणा और उसके महत्व को स्वीकार करते हुए उसमें आ रही कमी के संभावित कारणों की पड़ताल करना होगा । प्रदेश में लगभग हर संभाग में एक विश्वविद्यालय और कृषि महाविद्यालय है। इन संस्थाआें को अतिरिक्त आर्थिक मदद देकर इनके माध्यम से जैव विविधता की जानकारी एकत्र करवाई जा सकती है । राज्य का उच्च् शिक्षा विभाग, म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (मेपकास्ट) आदि को इसके लिए नोडल एजेंसी का कार्य करे जो एकत्रित जानकारी का अध्ययन, विश्लेषण और प्रकाशन करे । इस जानकारी से स्पष्ट होगा कि प्रदेश का कौन संभाग जैव विविधता के मामले संपन्न है और कौन निर्धन है । जिला स्तर पर भी अध्ययन संभव है क्योंकि हर जिले में शासकीय महाविद्यालयों में प्राणी शास्त्र और वनस्पति शास्त्र विभाग हैं । इनके प्राध्यापकों को अतिरिक्त अनुदान देकर उनकी मदद ली जा सकती है । इससे जैव विविधता की जिलेवार स्थिति स्पष्ट होगी जिससे संरक्षण की कार्ययोजना बनाने में सुविधा होगी । जिले की वनस्पतियों के हर्बेरियम भी तैयार कर विज्ञान महाविद्यालयों में रखे जा सकते हैं । महाविद्यालय के बगीचे में आसपास की वनस्पतियां विशेषकर जिन पर विलुिप्त् का खतरा मंडरा रहा है, लगाई जा सकती है । इससे न केवल उन वनस्पितयों के अध्ययन में सुविधा होगी बल्कि उनका संरक्षण भी होगा । कुछ वर्ष पूर्व भारत सरकार के वन और पर्यावरण मंत्रालय ने मालवा क्षेत्र की औषधीय वनस्पतियों का संरक्षण कर उनका व्यावसायिक उपयोग करने की मंशा जाहिर की थी ताकि आर्थिक लाभ हो लेकिन लगता है कि यह निर्णय भी व्यवस्था के मकड़जाल में फंसकर विलुप्त् हो गया है । आंध्रप्रदेश में १४० नागरिक संगठनों का समूह २३ जिलों में संरक्षण कार्य में सक्रिय है । महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में जैव विविधता के संरक्षण के लिए पीपुल बायोडायर्वसिटी रजिस्टर बनाए गए हैं जिनमें तमाम जानकारी वैज्ञानिकों और स्थानीय लोगों की मदद से दर्ज की गई है। इस संरक्षण कार्य में सभी लोगों को जोड़ना होगा । बिना जनसहयोग पर्यावरण संरक्षण संभव नहीं है ।***
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