दीपावली और प्रदूषण
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
रोशनी का पर्व दिवाली दीपों का त्योहार है । हमारे पुराणों में अग्नि की उजाले का प्रतीक माना गया है । यदि किसी कारण उजाले का अभाव हो तो आवाज को भी खुशियां मनाने का तरीका माना गया है दीपावली पर दीपक एवं पटाखे जीवन में उसी रोशनी और आवाज को प्रदर्शित करते है एवं ये दोनो ही खुशी मनाने के स्वरूप में स्वीकार करते है । लेकिन बदलते परिदृष्य में न सिर्फ खुशियां जाहिर करने के तरीके में बदलाव आया है, बल्कि त्योहार मनाने के तरीकों में काफी बदलाव आया है । दीपावली पर इस बार भी पिछले वर्ष की तरह रिकॉर्ड पटाखे छुटाए जाने की आशंका है । इस सबके बीच सुखद ये कि वर्षो बाद भी एंटी क्वेकर अभियान प्रभाव नहीं छोड़ रहा । केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, दीपालवली के दौरान राजधानी के वातावरण में सल्फर डाईआक्साइड की मात्रा काफी बढ़ जाती है कि पटाखे छौड़ने का वातावरण पर प्रभाव दीपावली क समय मौसम की स्थिति व वायु के प्रवाह पर भी निर्भर करता है । मौसम अधिक आद्र रहा तो वातावरण की मिक्सिंग हाइट कम रह जाती है और हवा में घुल चुके प्रदूषक तत्व ऊपर नहीं उठ पाते । पिछले साल और २००४ में ऐसी ही स्थिति थी इसलिए प्रदूषक तत्व हवा में कई दिनों तक बने रहे थे । दोनों साल दीपावली नवंबर के पहले हफते के बाद आई थी । इस साल २८ अक्टूबर को दीपावली है, लिहाजा मौसम ज्यादा आद्र रहने की संभावना नहीं है । प्रदूषक तत्व व परीक्षण की व्यवस्था : दीपावली से पहले और उस दिन केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से राजधानी की वायु गुणवत्ता की जांच प्रतिवर्ष की जाती है । दिल्ली के विभिन्न हिस्सो में बोर्ड की तरफ से दस जगहों पर अंशकालिक व चार जगह २४ घंटे परीक्षण की व्यवस्था की जाती है । बोर्ड के कर्मी कनॉट प्लेस, इंडिया गेट, पीतमपुरा, मॉडल टाउन, मयूर विहार फेज दो, लाजपत नगर, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, न्यू फ्रेंड कॉलानी और पूर्वी अर्जुन नगर में पटाखे से होने वाले वायु प्रदूषण व शोर स्तर की जांच अंशकालिक तौर पर प्रात: ६ बजे से रात के ग्यारह बजे तक करते है । शोर स्तर की जांच के लिए ६ घंटे के औसत पर कमला नगर, आईटीओ व दिलशाह गार्डन में भी मॉनिटरिंग की जाती है । इसके अलावा, पूर्वी अर्जुन नगर, आईटीओ, सीरीफोर्ट व दिल्ली कॉलेज आफ इंजीनियरिंग पर २४ घंटे वायु प्रदूषण की मानिटरिंग होती है । बोर्ड इन्हीं जगहों पर दीपावली से पहले भी आंकड़े जुटाने के बाद उनका तुलानात्मक अध्ययन का पटाखे से होने वाले दुष्प्रभावों का पता लगाता है । प्रदुषक तत्व है सेहत के दुश्मन : पटाखे से हवा में सल्फर डाइआक्साइड, नाइट्रोजन डाइआक्सााइड, निलंबित विविक्त कण व निलंबित विविक्त कणों मे इज़ाफा हो जाता है । ध्वनि प्रदूषण का स्तर तकरीबन हर जगह सामान्य दिनों से ज्यादा हो जाता है । शोर का मानक स्तर दिन में ५५ डेसिबल व रात में ४५ डेसिबल है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि २००७ में दीपावली पर ध्वनि प्रदूषण का स्तर ६३ से ८७ डेसिबल के बीच रहा जबकि २००६ में दीपावली पर यह स्तर ५६ से ७४ डेसिबल के बीच थाा दीपावली वाले दिन सल्फर उाइआक्साइड की मात्रा हवा में लगभग दो गुनी हो जाती है । इसी तरह निलंबित विविक्त कण ( आरएसपीएम) की मात्रा में भी हर जगह बढ़ोतरी होती है । प्रदूषक तत्वों का मानव जीवन पर प्रभाव पर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एस.के. त्यागी बताते है कि वायु में सल्फर व नाइट्रोजन के ऑक्साइड जैसे प्रदूषक तत्वों के बढ़ने से सांस की बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों पर ज्यादा असर पड़ता है । वायु में इनका असर एक से दो दिन में कम हो जाता है, लेकिन मानव शरीर में कई दिनों तक इनका दुष्प्रभाव बना रहता है । इसी तरह एसपीएम व आरएसपीएम भी सांस की बीमारी को बढ़ा देती हैं । इन पर मौजूद कार्सिनोजैनिक तत्व गले में श्लेष्मा झिल्ली पर प्रभाव छोड़ता है और फेंफड़े तक पहुंच कर रक्त से मिल जाती है । ऐसे में किडनी, लीवर व ब्रेन पर भी इनका असर पड़ता है । लंबे समय तक ऐसे प्रदूषक तत्वों का मानव शरीर पर प्रभाव पडे तो कैंसर भी हो सकता है । दीपों के मंगल त्यौहार में सजना- संवरना, दीप जलाना और पटाखे चलाना हर किसी को भाता है, पर दिवाली की असली खुश्यिां सुरक्षित दीवाली से ही संभव है । पटाखों का शोर और उनसे निकलने वाले धुएं से न सिर्फ पर्यावरण संबंधी समस्याएं पैदा होती है, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याआें की आशंका भी बढ़ जाती है ।इस बार दिवाली पर प्रदूषण कम हो व वातावरण स्वच्छ रहे इसके लिए कुछ सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं अभी से जनजागरूकता अभियान चला रही है । अनेक गैर - सरकारी संगठन और पर्यावरणविद् लोगों में यह जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रहे हैं कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले पटाखों का इस्तेमाल न करें या कम से कम करें । ये लोग पटाखों के शोर से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए काफी संघर्ष कर रहे हैं । आखिरकार वे लोगों को यह समझाने में सफल होगए है कि अधिक पटााखे फोड़ने से ध्वनि प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ जाता है, जो लोगों की बर्दाश्त की हद पार कर उनकी सुनने की क्षमता प्रभावित करता है । परिणामस्वरूप इस वर्ष न केवल त्यौहान पर कुल व्यय में पटाखों का प्रतिशत गिरा है, बल्कि ऐसे पटाखों की खरीदारी भी बढ़ी है जिनसे आवाज नहीं होती या फिर कम आवाज होती है । ऐसे पटाखों की मांग ३५ फीसदी तक पहुंच गई है । पोटेशियम नाइट्रेट, कार्बन और सल्फर वाले पटाखें बाजार में बहुत कम देखने को मिल रहे हैं । ये पटाखे अधिक शक्तिशाली होेते हैं और फोड़ने पर अधिक शोर करते हैं । पिछले कुछ वर्षोंा में उत्तर भारत के शहरों जैसे दिल्ली व चंडीगढ़ में शोर करने वाले पटाखे फोड़ने का रूझान कम हुआ है । दक्षिणी राज्यों में भी लोग पटाखों पर कम खर्च कर रहे हैं ।पिछले कुछ सालों में दीपावली के समय में होने वाले प्रदूषण के स्तर में कुछ कमी भी आई है खासतौर से महानगरों में । वर्ष २००६ में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति डीपीसीसी द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया है कि दिवाली पर दिल्ली में अन्य वर्षोंा की तुलना में कम प्रदूषण फैला है । यह एक अच्छी शुरूआत है आशा है हम इस दिशा में और आगे बढ़ेंगें । ***
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