तटबंध से बाढ़ नियंत्रण की सीमाएं
बिहार में कोसी नदी की प्रलयंकारी बाढ़ ने एक बार फिर इस ओर ध्यान खींचा है कि तटबंध आधाारित बाढ़ नियंत्रण की कितनी सीमाएं हैं व कई बार इससे कितनी कठिनाइयां पैदा हो जाती है । भारत जैसे कई देशों मे तटबंध बाड़ नियंत्रण का मुख्य आधार रहे हैं । आज़ादी के बाद भारत में लगभग ४०,००० कि.मी. तटबंधा का निर्माण किया गया है । तटबंधों से जुड़ी समस्याएं कई देशों में उपस्थित हुई हैं । सबसे अधिक समस्याएं अधिक गाद-मिट्टी और मलबा लेने वाली नदियों व उन नदियों में उत्पन्न होती है । जब यह प्रयास किया जाता है तो कई बार बहुत प्रतिकूल आसार सामने आते हैं, जैसा कि हाल ही में कोसी की प्रलयंकारी बाढ़ में नज़र आया है । जब नदी को तटबंधों से बांधा जाता है तो नदी द्वारा लाई गई मिट्टी - गाद खेतों व अन्य बड़े मैदानी क्षेत्रों में फैलने के बजाय तटबंधों के भीतर ही सिमटकर रह जाती है । इस कारण प्रतिवर्ष तटबंध के भीतर नदी का पेंदा ऊपर उठता है और जल-स्तर बढ़ जाता है । कुछ वर्षोंा के बाद जल स्तर तटबंध की ऊँचाई तक पहुंच जाता है जिससे तटबंध द्वारा दी गई सुरक्षा बेकार हो जाती है । यह सही है कि थोड़ा - बहुत धन खर्च करके इस तटबंध को ऊंचा किया जा सकता है । मगर कुछ वर्षोंा बाद नदी का जल-स्तर यहां तक भी पहुंच सकता है । तटबंध कुछ क्षेत्र की बाढ़ समस्या कम करते हैं तो कुछ क्षेत्रों की बाढ़ या दलदलीकरण की समस्या बढ़ा भी सकते हैं । विशेशकर दो तटबंधों के बीच रहने वाले लोगों की जिंदगी को बुरी तरह तबाह हो सकती है । प्राय: उनके संतोषजनक पुनर्वास की व्यवस्था भी नहंी होती है । तटबंध एक ओर बाढ़ रोकते हैं तो दूसरी ओर , बाहरी पानी को नदी में मिलने से रोकते भी हैं । इस तरह रूके हुए पानी से कई जगह दलदलीकरण व बाढ़ की समस्या उत्पन्न होती है व कुछ खतरनाक बीमारियंा फैलने का खतरा भी पैदा होता हे । जहां दो या अधिक नदियां मिलती है , वहां भी तटबंध नई दिक्कतें उत्पन्न करते हैं । ***
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