शनिवार, 20 सितंबर 2008

संपादकीय

संपादकीय

खाने की थाली भी खतरें में है

अगर जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (जीईएसी) कामयाब रही तो कुछ ही महीनों में पहली जैव संवर्धित सब्जी बीटी बैगन आपकी थाली में होगी । बीटी कपास या बीटी मक्का में समाहित बीटी जीन मिट्टी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया, जिसे विज्ञान की भाषा में बीटी कहा जाता है, से अलग नहीं है । यही अब बैंगन में समाहित किया जा रहा है । यह जीन पौधे के अंदर ऐसा विषौला तत्व छोड़ता है, जो फल में लगने वाले कीड़ों को मार डालता है । परंपरागत तरीके से उपजा बैंगन बाजार से गायब होने के बाद निश्चित रूप से टाइप-२ डायबिटीज से लड़ने का एक कारगर घरेलू उपाय खत्म हो जाएगा । इसमें सुरक्षा के जो भी दावे किए जा रहे हो, सच्चई यह है कि अब तक ऐसे चिकित्सकीय परीक्षण नहीं किए गए जिनसे यह पता चल पाए कि जैव संवर्धन के बाद सामान्य बैंगन के गुणधर्मोंा में कोई परिवर्तन नहीं होगा । अब तक लोग यह विश्वास करते थे कि बैंगन को अच्छी तरह से धोने से नुकसानदायक कीटनाशकों के दुष्प्रभाव से मुक्त हो जाएंगे । अब यह विधि कारगर नहीं रह जाएगी । बीटी बैंगन के रसोई में प्रवेश करने के बाद इसके विषैल तत्वों को धोने में सफल नहीं रहेंगे, क्योंकि ये तत्व तो बैंगन के अंदर समाए होंगे । सालक इंस्टीट्यूट आफ बायोलोजिकल स्टडीज, केलिफोर्निया के प्रो. डेव शुबर्ट के अनुसार बीटी छिड़काव ही इस्तेमाल के लिए सुरक्षित नहीं है । फिर बीटी फसलों में निकलने वाला विषैला तत्व (टाक्सिन) बीटी छिड़काव के मुकाबले तो एक हजार गुना अधिक सघन है । बीटी बैंगन के पौधे और इस पर लगने वाले बैंगनों में ऐसा विषैला तत्व होता है जो कीड़े-मकोड़े मारने वाले कीटनाशकों से भी हजार गुना घातक होता है । समस्या यह है कि एक बार बीटी बैंगन के बाजार में पहुंच जाने पर इसमें और साधारण बैंगन में अंतर करना संभव नहीं रह जाएगा । इसके बाद उपयोग करने वाले कितनी भी सावधानी बरतें वे खाने की थाली में बढ़ते खतरे से बच नहीं सकेंगें ।

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