पर्यावरण परिक्रमा
भोपाल गैस पीड़ितों के पुनर्वास हेतु अधिकार संपन्न आयोग गठित
केन्द्र सरकार ने भोपाल गैस पीड़ितों के पुनर्वास और इस दर्दनाक हादसे से जुड़े अन्य मामलों के निस्तारण के लिए अधिकार सम्पन्न आयोग के गठन का फैसला किया है । केन्द्रीय रसायन, उर्वरक एवं इस्पात मंत्री राम विलास पासवान ने बताया कि केन्द्र सरकार ने इस मामले में गत ११ जुन को केन्द्रीय मंत्री अर्जुन सिंह की अध्यक्षता में मंत्री समूह जीओएम का गठन किया था । जीओएम की सिफारिशों को मानते हुऐ सरकार ने आंदोलनरत् संगठनों के समूहों की मांग के आधार पर गैस पीड़ितों के पुनर्वास के लिये अधिकार सम्पन्न आयोग गठित करने का फैसला किया है ।ु श्री पासवान ने बताया कि सरकार ने १९८४ में भोपाल गैस त्रासदी के बाद स्थानीय लोगों में जहरीली गैस के कारण फैली विचित्र किस्म की बीमारियों के संक्रमण को रोकने और इनके इलाज के लिये भोपाल में गठित भारतीय चिकित्सा शोध परिषद आईसीएमआर का काम फिर से शुरू करने का फैसला किया है । आईसीएमआर ने १९९४ में शोध कार्य बंद कर दिया था । उल्लेखनीय है कि पांच लाख ७४ हजार लोग इस त्रासदी के कारण विभिन्न बीमारियों से पीडित हुये थे और ५२९४ लोग मारे गये थे । उन्होंने बताया कि सरकार ने आंदालोनरत संगठनों की मांग के आधार पर यूनियन कार्बाइड कंपनी के जहरीले कचरे के निस्तारण का काम अदालती कार्रवाई लंबित होने के कारण न रोकने का फैसला किया है । गौरतलब है कि यूनियन कार्बाइड कंपनी की डाओ केमिकल द्वारा खरीदे जाने के बाद नयी कंपनी ने कचरे को हटाने की जिम्मेदारी पुरानी कंपनी पर डालते हुए इससे पल्ला छाड लिया था । कचरे की सफाई की जिम्मेदारी तय करने को लेकर अदालत में मामला चल रहा है । श्री पासवान ने बताया कि इस बीच देश के प्रमुख उद्योगपति रतन टाटा ने इस कचरे को हटाने का प्रस्ताव पेश किया था बशर्ते सरकार डाओ कंपनी के खिलाफ मुकदमा वापस ले ले । लेकिन सरकार ने इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए राज्य सरकार के सहयोग से जहरीला कचरा हटाने की जिम्मेदारी ली है । श्री पासवान ने बताया कि सरकार डाओ कंपनी द्वारा कृषि मंत्रालय के कुछ अधिकारीयों से सांठगांठ कर चार कीष्टनाशकों के उत्पदान का लाईसेंस हासिल करने की शिकायतें मिलने पर इसकी जांच ब्यूरो से कराने का फैसला किया है ।
ताजमहल की खूबसूरती केा प्रस्तावित कूड़ाघर से खतरा
अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में विख्यात ताजमहल को वर्षोंा तक मथुरा रिफाइनरी से निकलने वाली गैसों की चुनौती झेलने के बाद अब पास ही बनने वाले एक कूड़ाघर से खतरा हो गया है । इस कूड़ाघर से निकलने वाली मीथेन ओर अन्य गैसों से भी इसके पीला पड़ जाने की आशंका हो जाएगी । आगरा के कुबेरपुर में बनने वाले इस कूड़ा घर को लेकर पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता भी सचेत हो गए है । प्रस्तावित कूड़ा घर की ताजमहल और यमुना से नजदीकी बेहद खतरनाक है और ताजमहल के नजरिए से संवेदनशील भी है । मीथेन गैस और कचरे से ताजमहल के आसपास का पर्यावरण दूषित हो जाएगा । १६ लाख आबादी वाले आगरा में किस मात्रा में कूड़ा पैदा होता है, इसके बारे में अलग-अलग अनुमानित आंकड़े हैं । वर्ष २००० के सरकारी आकड़े के अनुसार शहर में प्रतिदिन ३५० टन कूड़ा पैदा होता है, जबकि जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन के मुताबिक आगरा में ६५० टन कचरा रोजाना पैदा होता है, जबकि राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान के अनुसार यह आंकड़ा २,००० टन का है । आगरा के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों की वजह से पहले भी कई परियोजनाएं स्थानांतरित या बंद की जा चुकी है और इस परियोजना के भी हर पहलू का भली-भांति अध्ययन होना चाहिए । ताज महल से निकट के साथ ही कुबेरपुर में प्रस्तावित कूड़ा घर की ढलान यमुना की ओर है । इसका मतलब है कि यहां जमा तरल कचरा दो सौ मीटर दूर यमुना नदी में गिरेगा । उधर, उत्तरप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी ने कहा कि प्रदूषण समस्या के हर पहलू पर विचार किया जा रहा है और सभी की संतुष्टी के बाद ही इस पर आगे बढ़ा जाएगा ।ताजमहल की खूबसूरती केा प्रस्तावित कूड़ाघर से खतरा
पेट्रोल में मिलाया जा सकता है २० फीसदी तक इथेनाल
राष्ट्रीय जैव इंर्धन नीति में कच्च्े तेल की ऊंची कीमतों और खपत को देखते हुए पेट्रोल में वर्ष २०१७ तक २० प्रतिशत इथेनाल के मिश्रण की सिफारिश निहित होने की संभावना है । इससे लगभग २० हजार करोड़ रूपये प्रति वर्ष की बचत की जा सकेगी । अधिकारिक सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय जैव इंर्धन नीति का प्रारूप केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार की अध्यक्षता में गठित मंत्री समूह ने विचार विमर्श के बाद अपनी सिफारिशों के साथ केन्द्रीय मंत्रिमण्डल को भेज दिया है जिसे शीघ्र मंजूर कर लिया जायेगा । वर्ष २०१७ तक पेट्रोल और डीजल में २० प्रतिशत इथनोल मिश्रित करने का लक्ष्य योजना आयोग ने सुझाया है और इसे मंत्री समूह ने स्वीकार कर लिया है । फिलहाल भारत अपनी जरूरत का ७० प्रतिशत इंर्धन आयात करता है । वर्ष २००७-०८ के दौरान दो लाख ७२ हजार ६९९ करोड रूपये का कच्च तेल आयात किया गया । इसी अवधि के दौरान देश में ६१ हजार ५०४ करोड़ रूपये नैप्था. पेट्रोल. डीजल और डीजल के आयात पर खर्च किये । देश में इंर्धन की बढ़ती खपत के मद्देनजर जैव इंर्धन को बढ़ावा देने की प्रक्रिया में अक्टूबर २००८ तक पेट्रोल और डीजल में पांच प्रतिशत इथेनाल मिलाने का लक्ष्य निर्धारित कर दिया गया था । जम्मू कश्मीर पूर्वोतर, अंडमान निकोबार द्वीप समूह और लक्ष्यद्वीप को इससे अलग रखा गया । प्रस्तावित जैव इंर्धन नीति में जटरीफा और अन्य अखाद्य तिलहनों का न्यूनतम मूल्य तय करने का प्रावधान भी होगा । विशेषज्ञों का कहना है कि जैव इंर्धन की फसलों का चयन सावधानीपूर्वक करना होगा और किसानों को उनकी उपज का पर्याप्त् मूल्य दिलाने के उपया करने होंगे । उनका कहना है कि बिना सुरक्षा उपाय किये इस नीति को लागू करने के गंभीर परिणाम आ सकते है और यह देश को एक नये खाद्यान्न एवं पर्यावरणीय संकट की ओर धकेल सकती है । एक अनुमान के अनुसार अगले बीस वर्ष में विश्व की कुल ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिये २० प्रतिशत हिस्सा जैव इंर्धन का होगा । पिछले वर्ष अमरीका में मक्का के कुल उत्पादन का एक तिहाई हिस्सा जैव इंर्धन बनाने में इस्तेमाल किया गया । इसी तरह से ब्राजील में गन्ने के कुल उत्पादन का ५५ प्रतिशत हिस्सा इथेनाल बनाने में इस्तेमाल होता है । इसके अलावा चीन और ब्राजील में लगभग पांच करोड़ एकड़ भूमि पर मक्का की फसल उगाई जा रहीं है जिसका इस्तेमाल जैव इंर्धन के लिए होना है । यूरोपीय संघ ने तय किया है कि वर्ष २०२० तक इस्तेमाल होने वाले कुल इंर्धन का १० प्रतिशत हिस्सा जैव इंर्धन होगा । विशेषज्ञों का कहना है कि स्थानीय स्तर पर वनों को काटने पर कार्बन सोखने की क्षमता घटेगी जो जैव इंर्धन का इस्तेमाल करने से होने वाले लाभ को कम या बेअसर कर सकती है । उनका मानना है कि केवल बंजर जमीन पर जैव इंर्धन की फसलों को मंजुरी दी जानी चाहिए । एक अनुमान के अनुसार भारत प्रति वर्ष दो करोड़ टन तेल के बराबर जैव इंर्धन का उत्पादन कर सकता हैं । इसे हासिल करने के लिये भारत को दो करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन का इस्तेमाल जैव इंर्धन की फसलों के लिये करना होगा। मध्यप्रदेेश में जट्रोफा की व्यावसायिक खेती की जा रही है । सरकार का दावा है कि ऊर्जा फसलों के लिये बंजर भूमि का इस्तेमाल किया जा रहा है । आंधप्रदेश उत्तरप्रदेश, दिल्ली, गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में जैव इंर्धन मिश्रित पेट्रोल और डीजल की बिक्री शुरू कर दी गयी है। फिलहाल पेट्रोल और डीजल में पांच प्रतिशत इथेनाल मिलाया जा रहा है । देश में इथेनाल मुख्य रूप से गन्ने से बनाया जा रहा है । सरकार का दावा है कि इससे एक ओर जहां किसानों की आय बढ़ेगी वहीं दूसरी ओर बढ़ते तापमान को काबू में लाया जा सकेगा । बायोडीजल के लिए जट्रोफा की खेती पर जोर दिया जा रहा है । इथेनाल उत्पादन में भारत का विश्व में चौथा स्थान है । हालांकि देश में इथेनाल के उत्पादन की पूरी क्षमताआें का दोहन नहीं किया जा रहा है । जानकारों का कहना है कि ऊर्जा फसलों को उगाने में सावधानी बरतने और समन्वय बनाये रखने की जरूरत है । इन फसलों को वन क्षेत्रों और खाद्यान्न पर वरीयता नहीं दी जानी चाहिए । हालांकि जैव इंर्धन से तापमान नियंत्रित करने में मदद मिलेगी लेकिन पूरा विकल्प नहीं है । यदि इसे ठीक तरीके से लागू नहीं किया गया तो यह ऐसी गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता जो वैश्चिक तापमान से कहीं ज्यादा खतरनाक होंगी ।
बंजर धरती करे पुकारवृक्ष लगाओ करो श्रृंगार
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