कविता
वृक्षदेव
प्रेमवल्लभ पुरोहित राही
बरसों पुराना बुजुर्गोंा का पाला पोसाघनी छांव से लद्-गद बटरोहीघसियारी दीदीऔर परिंदों काअपनेपन का रिस्तावह, विशालकाय वृक्ष देव उन लोगों नेनिर्ममता से काट डालाजो केवल आदमी जैसे हं ।हां तभी सेपेडों की घनेरी छायादुपहरी धूप लगतीफल कषैलेघर में सांसरूकी - रूकी सी लगती है । ***
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