शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

बंदूक साथ में रखकर छात्रों को पढ़ाएेंगें

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ज्ञान विज्ञान
बंदूक साथ में रखकर छात्रों को पढ़ाएेंगें
शायद ही किसी ने सोचा हो कि गुरू को ईवर का दर्जा देनेे वाले सामाजिक मूल्यों में इस कदर गिरावट आएगी कि शिक्षकों को बंदूक साथ रखकर शिष्यों को पढ़ाना पड़ेगा । इस कड़वी सच्चई की शुरूआत उस अमेरिकी समाज में देखने को मिलेगी जो सारी दुनिया को पश्चिम की आधुनिक और व्यवस्थित जीवनशैली सिखाने का दावा ताल ठोंककर करता है । अमेरिका में टेक्सास के डिस्ट्रिक्ट स्कूल के शिक्षकों को छात्रों से सुरक्षित रहने के लिए बंदूक रखने की अनुमति दी गई है । यहां के हेराल्ड इंडिपेंडेट स्कूल डिस्ट्रिक्ट के अधीक्षक डेविड थ्वेट ने बताया कि स्कूल के शिक्षक कक्षा में बंदूक रख कर छात्रों को पढ़ा सकेंगें । स्कूल के पहले बोर्ड ने आम राय से इस योजना को अमलीजामा पहनाने की मंजूरी दे दी है । साथ ही अभिभावकों ने भी इस पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई है । श्री थ्वेट ने कहा कि आखिकार यह सुरक्षा का मामला है इस पर कोई कोताही नहीं बरती जा सकती । बकौल श्री थ्वेट शायद यह दुनिया का पहला स्कूल होगा जिसमें शिक्षक बंदूक के साए में शिष्यों को ज्ञान का पाठ पढ़ाएेंगें । गौरतलब है कि अमेरिका में हाल ही में छात्रों द्वारा शिक्षण संस्थानों में गोलीबारी किए जाने की वारदातों के बाद पिछले कुछ समय से शिक्षकों और छात्रों को लायसेंसशुदा हथियार साथ रखने की अनुमति देने की मांग उठ रही थी ।
२९ हजार टन कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन कम होगा
यदि कोई १ साल में २९००० टन कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन कम करे, जो ५००० कारों के धुएं के बराबर है तो यह पर्यावरण को कितना लाभ पहुंचाएगा । यहां कीएक सॉफ्टवेयर कम्पनी ने पिछले एक साल में यह अनूठा काम किया है । इसे देखते हुए एवीएसी लि. ने कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को रोकने के लिए १० लाख डॉलर का निवेश किया है । यह निवेश यूजरफुल कॉर्पोरेशन में किया जा रहा है, जिसने यह कार्य किया है । यह कार्य एक सॉफ्टवेयर के जरिए किया जा रहा है । यूजरफूल कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष टिम ग्रिफिन के मुताबिक यह सॉफ्टवेयर करीब ३०००० सरकारी और निजी कम्प्यूटरों में लगाया गया है । यूजरफुल एक वेब सर्विस है और यह यूजर को कम्प्यूटर प्रबंधन में मदद करती है । साथ ही इससे वे हार्डवेयर का भी लाभ ले सकते हैं । केवल इस एक कम्प्यूटर की मदद से वे १० स्वतंत्र वर्कस्टेशन भी बना सकते हैं। इससे बिजली के बिल में भी कटौती जी का सकेगी और हार्डवेयर वेस्ट (कचरा) को भी ८० फीसदी तक कम किया जा सकेगा। एवीएसी के वरिष्ठ निवेश प्रबंधक जैक्स ला पोंटी ने बताया कि यूजरफुल के कार्य की पहुँच पूरी दुनिया में करने के लिए एवीएसी लि. ने इसमें १० लाख डॉलर का निवेश किया है। यूजरफुल के सॉफ्टवेयर कार्यक्रम ग्रीन कम्प्यूटिंग ( पर्यावरण हितैषी) के रूप में दुनियारभर में मानक कायम कर रहा है । जहां तक निवेश पर राजस्व मिलने की बात है तो कंपनी को दुनिया में उपलब्ध अवसरों की वजह से आसानी से मिलेगा । ग्रिफिन के अनुसार एवीएसी के निवेश की मदद से यूजरफुल नए लोगों को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकेगी और अपनी बिक्री को भी बढ़ा लेगी । वे कहते हैं कि हमारे पास एक बेहतरीन उत्पाद है । एवीएसी ने अलबर्टा की कंपनियों की भी मदद की है, जाकि वे अपनी क्षमताएँ बढ़ा सकें दरअसल , थर्ड पाटी्र निवेशको की ओर से नई कंपनिायें को ज्यादा ाध्न नहीं मिल पाता है ।एवीएसी के अध्यक्ष व सीईओ रॉस ब्रिकर का कहना है कि हमारी कंपनी संरक्षण, मार्केटिंग और कामकाजी मदद भी यहां की कंपनियों को देती रही है ।इसके कुछ फायदे इस प्रकार हैं :* यूजरफुल की मदद से यूजर सेंट्रल वेबसाइट से डेस्कटॉप को नियत्रित और प्रबंधित कर सकेगा ।* इसके अलावा यूजरफुल से एडमिनिस्ट्रेटिव टूल्स, लायसेंस की भी परेशानी खत्म होगी । आम व्यक्ति भी वेब ब्राउसर से डेस्कटॉप को नियंत्रित कर सकेगा , विशेषज्ञ की जरूरत नहीं होगी ।* यूजरफुल को अपनाने से संगठन या कंपनियों की डेस्कटॉप लागत में करीब ५० फीसदी तक की कटौती की जा सकती है ।* दुनिया के एक प्रतिशत सॉफ्टवेयर भी इस तकनीक को अपनाते हैं तो यह २ करोड़ ६० लाख कारों के प्रदूषण को खत्म करने के बराबर होगा ।
फसलों पर ग्रीन हाउस का असर
करोड़ों लोग भोजन के लिए पौधों पर ही आश्रित रहते हैं । जलवायु परिवर्तन का एक असर यह भी देखा जा रहा है कि फसलें अब कम पौष्टिक होती जा रही है । यह निष्कर्ष उन ४० अध्ययनों के विश्लेषण से निकला है जो वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड बढ़ने से फसलों पर होने वाले असर को देखने के लिए किए गए थे । ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बाढ़ों में तो बढ़ोतरी हुई ही, साथ ही अनावृष्टि व सूखे की परेशानियां भी बढ़ी हैं । इसके कारण गरीब देशों का सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है । ऊपर से यदि फसलों की पौष्टिकता कम जोती है तो गरीब देशों के लोगों पर दोहरी मार पड़ेगी । पूर्व में किए प्रयोगों के आंकड़ों में बहुत विविधता थी और इस आधार पर कुछ भी कहना मुश्किल था । अब इस तरह के प्रयोग करने की नई तकनीकें विकसित हुई हैं और ज़्यादा विश्वसनीय परिणाम मिलने लगे हैं । इन प्रयोगों में यह देखा जा रहा है कि वायुमंडल में गैसों की मात्राएं घटने - बढ़ने से फसल की उपज और गुणवत्ता पर क्या असर होते हैं । डेनियल टॉब और उनके साथियों ने मिलकर करीब दो दशकों के शोध कार्य के आधार पर कुछ डरावने परिणाम प्रस्तुत किए हैं । इनसे पता चलता है कि जब कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा अधिक रहती है तब गेहूँ , बाजरा, चावल और आलू में प्रोटीन का स्तर लगभग १५ प्रतिशत कम हो जाता है । इस बदलाव का कारण यह है जिब पौधों को कार्बन की ज्यादा मात्रा मिलती है तब वे प्रोटीन की जगह ज़्यादा कार्बोहाइड्रेट बनाने लगते हैं। फसलों में प्रोटीन घटने का असर विकासशील देशों के लोगों के पोषण पर होगा । संपन्न राष्ट्रों के लोग तो प्रोटीन की पूर्ति मांस-मछली के उपभोग से करते हैं, लेकिन लगभग ३० गरीब राष्ट्रों के लोग प्रोटीन के लिए फसलों पर ही निर्भर करते हैं । जैसे बांग्लादेश के करीब ८० प्रतिशत लोग प्रोटीन के लिए फसलों पर निर्भर हैं । ***

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