गुरुवार, 27 नवंबर 2008

९ ज्ञान विज्ञान



पंख लगा कर इंसान आसमान में उड़ा



स्विट्जरलैंड के पूर्व सैन्य पायलट इव्य रॉसी ने खुद के बनाए पंखो के सहारे आसमान को नापा और इंग्लिश चैनल को उड़ते हुए पार करने का कारनामा करने वाले दुनिया के वे पहले व्यक्ति बन गए । फ्यूजनमैन के नाम से प्रसिद्ध ४९ वर्षीय रॉसी फ्रांस के स्थल कैलैस के ऊपर ८२०० फुट की ऊँचाई पर विमान से कूदे और इंग्लिश चैनल के आसमान की ३५ किलोमीटर की दूरी १२ से १५ मिनट में पूरी कर इंग्लैंड स्थित साउथ फोरलैंड के डोवर में उतर गए । जैसी ही रॉजी डोवर में उतरे, उनकी पहली प्रतिक्रिया थी, अद्भुत वाकई अद्भुत । सबसे पहले रॉसी एक विमान से आसमान में पहँुचे । उनकी कमर में ८ फुट कार्बन मिश्रित कॉम्प्रेस्ड पंख बँधे थे । उनके जेट्स को आग लगाने से पहले अंतिम जाँच हुई और उन्होंने विमान से छलाँग लगा दी । रॉसी के पंख खुल गए और ऐतिहासिक उड़ान की और चल पड़े और रॉसी इंग्लिश चैनल की ३५ किमी दूरी तय कर ब्रिटेन की धरती डोवर में थे। चैनल पार करते ही रॉसी पैराशूट के सहारे नीचे आ गए। रॉसी के कमर में कार्बन मिश्रित पंखो के साथ केरोसिन से चलने वाले जेट टर्बाइन जोड़े गए, जिससे रॉजी हवा में रहे पंखों में स्टीयरिंग नहीं थे अर्थात रॉसी ने उड़ान पर नियंत्रण अपने शरीर से ही किया । अपने शरीर से कुछ ही इंच ऊपर लगे टर्बाइन की गर्मी से बचने के लिए रॉसी ने अग्निरोधक पोशाक पहनी । रॉसी इससे पहले कभी भी १० मिनट से ज्यादा नहीं उड़े थे । कार्बन मिश्रित १२१ पौंड वजनी पंख उनके लिए चुनौती थे । एक छोटे कैमरे का वजन भी उन्होंने ढोना था ।
मौसम के लिए भी होगा टीवी चैनल अब शायद आपसे यह गलती न हो कि आप घर से खुशनुमा मौसम का अंदाज लगा कर निकलें और रास्ते में आंधी और बारिश के घेरे में फंस जाएं । केंन्द्रीय मौसम विभाग जल्द ही मौसम चैनल लांच करने वाला है, जिसमेें आप चौबीस घंटों न केवल मौसम की जानकारी हासिल करेंगे, बल्कि मौसम और प्रकृति से जुड़े तमाम रहस्यों से रूबरू भी होंगे । विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मन्त्रालय की यह महत्वाकांक्षी योजना के अन्तिम चरण में हैं । यह योजना पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशीप पर आधारित है। मन्त्रालय को उम्मीद है कि यह चैनल दिसम्बर माह तक शुरू हो जाएगा। मन्त्रालय की इस योजना को सूचना और प्रसारण मन्त्रालय ने भी स्वीकृति प्रदान कर दी है । ग्याहरवीं योजना के अन्तर्गत केन्द्र सरकार ने मौसम केन्द्रों को तकनीकी विकास के लिए ९ बिलियन रूपये आबंटित किए है । इसी राशि का एक अंश इस कार्य मेंभी इस्तेमाल किया जा रहा है । अमेरीका व यूके मेंपहले से ही इस तरह का चौबीसों घंटों का चैनल है । वहां के मौसम चैनल की सफलता को देखते हुए भारत में भी इस तरह के चैनल की शुरूआत की योजना बनाई गई । इस चैनल के लिए विभिन्न स्तर पर कार्य चल रहा हैं, एक में चैनल में दिखाए जा रहे कार्यक्रमों के लिए प्रायोजकों से बातचीत चल रही है, क्योंकि यह चैनल पूरी तरह पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप पर आधारित होगा ।यह योजना बनाई जा रही है कि चैनल में उनके द्वारा दिखाए जा रहे कार्यक्रमों की रूपरेखा क्या होगी, उनके लक्षित दर्शक कौन होंगे और भाषा किस तरह होगी । इस सन्दर्भ में अभी तक ये फैसले रहे है कि क्योंकि भारत कृषि प्रधान देश हैं और देश की अब भी बड़ी आबादी खेती के लिए मौसम पर निर्भर करती हैं, इसलिए उनके टारगेटेड दर्शक गांव के लोग होंगे । लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि दूरदर्शन के कृषि दर्शन जैसे कार्यक्रम इसमें दिखाए जाएंगे, जो पूरीतरह कृषि पर आधारित होंगे । भाषा हिन्दी और अंगे्रजी दोनों होगी , लेकिन ज्यादा कार्यक्रम हिन्दी में होंगे । यह योजना कुछ हद तक ज्योगाफिकल चैनल से प्रभावित है, लेकिन इसका क्षेत्र इतना विस्तृत नहीं होगा । मौसम के विभिन्न आयाम पृथ्वी अंतरिक्ष और भूमण्डल,प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, सभी विषयों पर इस चैनल में कार्यक्रम दिखाए जएगें । शुरू में यह चैनल सात घंटे प्रयोगिक तौर पर चलाए जाएगें, बाद में इसे चौबीस घंटे कर दिया जाएगा ।
कार है ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग पूरी दुनिया के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है । ग्लोबल वार्मिंग के विभिन्न कारकों में परिवहन भी एक प्रमुख कारक है । वैज्ञानिकों के एक शोध के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा कारण परिवहन साधन हैं । इनमें कार सबसे ज्यादा हैं । कार के बाद ग्लोबल वार्मिंग बड़ाने का दूसरा कारण विमानन क्षेत्र है । परंतु पानी के जहाज का मामला बेहद जटिल है । एनवायरमेंट न्यूज नेटवर्क की एक रिपोर्ट के मुताबिक सीआईसीईआरओ (सेंटर फॉर इंटरनेशनल क्लाइमेट एंड एनवायरमेंट रिसर्च) के पांच शोधकर्ताआें ने परिवहन क्षेत्र को चार उपक्षेत्रों में बांटा है । इनमें सड़क परिवहन, उड्डयन, रेल और जहाजरानी हैं । शोध में प्रत्येक उपक्षेत्र का ग्लोबल वार्मिंग में योगदान को आंका गया । इसके लिए रेडिएटिव फोर्स (आरएफ) को देखा गया, जो गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से होता है। अध्ययन के अनुसार औद्योगिकीकरण के पहले से १५ प्रतिशत आरएफ मानव निर्मित कार्बन डायऑक्साइड के उत्सर्जन से होता है । परिवहन क्षेत्र इसकी जड़ है । ओजोन के लिए परिवहन को ३० प्रतिशत तक जिम्मेदार माना जा सकता है । अध्ययन के अनुसार ज्यादा से ज्यादा ध्यान तेजी से बन रही सड़कों की और भी दिया जाना चाहिए । अकेले कार्बन डायऑक्साइडके उत्सर्जन में सड़क यातायात ने दो-तिहाई योगदान दिया है । अगले सौ साल में यह स्थिति और बिगड़ेगी यानी सड़क यातायात का योगदान ग्लोबल वार्मिंग में तेजी से बढ़ेगा । जहां तक पानी के जहाजों की बात है तो स्थिति और जटिल है । अभी तक यह माना जाता रहा है कि जहाजों से ज्यादा नुकसान नहीं होता । नाइट्रोजन उत्सर्जित होती है । इनका असर ठंडा होता है । चूंकि ये गैसें ज्यादा समय तक वातारण में नहीं रहती हैं और आने वाले समय मेंे कार्बन डायऑक्साइड इसका असर खत्म कर देगी । ऐसे में सड़क परिवहन को ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे ज्यादा दोषी करार दिया गया, जिसमें कारों का योगदान सबसे ज्यादा होता है ।
लौहमानव करेेंगे धमाकों से मुकाबला देश में बढ़ते आतंकी हमलों से बीच डीआरडीओ ने गृह मंत्रालय को विशेष किस्म के रोबोट या लौहमानव की पेशकश की है जो बमों को निष्क्रिय करने की जिम्मेदारी निभाएंगे । डीआरडीओ ने एक शीर्ष वैज्ञानिक ने बताया कि हम अपने तीन उपकरण-दूर से नियंत्रित किए जाने वाले बम निवारण यानी आरओवी सुजाव इलेक्ट्रोनिक सपोर्ट मेजर और सफारी इलेक्ट्रानिक काउंटरमेजर- को विस्पोटक संबंधी मामलों से निबटने वाली एजेंसियों को बेचने के लिए गृहमंत्रालय से चर्चा कर रहे हैं । डीआरडीओ के पुणे स्थित रिसर्च एंड डेवलपमेंट डस्टैब्लिशमेंट (इंजीनियर्स) में विकसित आरओवी का उपयोग बमों को निष्क्रिय करने में किया जा सकता है । इसमें कोई कर्मी विस्पोटक के संपर्क में नहीं आता है । सेना तीन साल पहले से उग्रवादी प्रभावित जम्मू-कश्मीर राजस्थान और पूर्वोत्तर राज्यों में इन उपकरणों का प्रयोग कर रही है । तभी से यह कर्मियों और बम निष्क्रिय होते देखने वाले आमजन के लिए आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं । डीआरडीओ वैज्ञानिकों का कहना है कि सुरक्षा और अर्धसैनिक बल आरओवी रोबोट का उपयोग बांदी सुरंगों का पता लगाने और परमाणु-जैविक-रासायनिक (एनबीसी) खतरों का सर्वेक्षण करने में कर सकते हैं । यह सुरक्षित है क्योंकि इस ऋम में कर्मी बांदी सुरंग या एनबीसी हथियारों के संपर्क में नहीं आते । यह रोबोट पूरी तरह देशज उत्पाद हैं । इसका विकास १० इंजीनियरों ने करीब पांच साल पहले किया था और इससे शहरी युद्ध स्थितियों में कार्मिकों की मौत के मामलों को जबरदस्त ढंग से कम किया जा सकता है। आराओवी रोबोट के एक और संस्करण में उसकी कंट्रोलरइकाई ५०० मीटर की दूरी से काम करती है । यह चार कैमरों और एक भुजा से लैस है जिसका उपयोग संदिग्ध वस्तुआें को उठाने और विस्फोटकों की जांच करने के अलावा बम को निष्क्रिय करने में किया जा सकता है । ***

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