ऊर्जा स्त्रोतों का पूरा दोहन करना होगा
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने एक ऐसी एकीकृत ऊर्जा नीति पर जोर दिया है, जिसमेंे ऊर्जा के दाम बाजार से तय हों तथा विदेश में ऊर्जा क्षेत्र हासिल करने के साथ ही देश में सभी उपलब्ध ऊर्जा स्त्रोतों का व्यापक दोहन किया जाएगा । पिछले दिनों देश की ऊर्जा जरूरतों पर केंद्रित योजना आयोग पूर्ण बैठक को संबोधित करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि कच्च्े तेल और गैस के आयात पर निर्भरता से लगातार अंतरराष्ट्रीय बाजार की उठापटक की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है । उसका लगातार असर पेट्रोलियम और दूसरे ऊर्जा उत्पादों के आयात पर भी पड़ रहा है । एकीकृत ऊर्जा नीति के जरिए विभिन्न मंत्रालयों में बेहतर तालमेल होगा तथा ऊर्जा मूल्यों के बारे एकरूपता आएगी । योजना आयोग की पूर्ण बैठक एकीकृत ऊर्जा नीति के प्रारूप पर विचार-विमर्श के लिए ही बुलाई गई थी । यह प्रारूप ऊर्जा विशेषज्ञ किरीट पारिख की अध्यक्षता वाले विशेषज्ञ दल ने तैयार किया है, जिसका गठन प्रधानमंत्री ने अगस्त २००६ में किया था । प्रारूप के मसविदे में गरीबों को सस्ती बिजली देने की बात के अलावा सब्सिडी का दुरूपयोग रोकने पर जोर दिया गया है ।
विकास नहीं, गाँव पर बाजार का दबदबा भारत की आत्मा गाँवों में बसती है, लेकिन इक्कीसबीं सदी के शहरी भारत में गाँवों की आदते भी बदल रही हैं । शहरी हो रही हैं । ऐसी नेल्सन का सर्वे भी कुछ ऐसा ही बातें करता है । सर्वे जनवरी से लेकर जुलाई २००८ के बीच ग्रामीण भारत में हुई खपत के आँकड़े पेश करता है । इसमें बताया गया है कि गाँवों में टूथपेस्ट की खपत १२.८ फीसदी बढ़ी है । तो शहरों में सिर्फ ८.७ फीसदी । गाँवों में शहरों की तुलना में शैम्पू, साबून और केश तेल का ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है, मगर इसका कारण बहुत अजीब है । कहा गया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि और सत्तर हजार करोड़ कर्जमाफी से ऐसा हुआ है । तो क्या इस सत्तर हजार का फायदा किसानों को कम और साबुन, शैम्पू वालों ज्यादा हो रहा है । क्या किसी ने उस किसान के घर जाकर उपभोग का सर्वे किया है जो कर्जमाफी के बाद से खुद को मुक्त महसूस कर पा रहा है । वैसे भी महाजनों के चंगुल से अभी मुक्ति नहीं मिली है । हम गाँवों को नहीं जानते । भूल जाते हैं कि आखिरी आदमी तक माल पहुँचा देने की यह पूँजीवादी परिकल्पना पिरामिड के तल तक पहुँचने की नई रणनीति है । यह जरूर हुआ कि जब ब्रांडेड माल इतने महँगे हो गए तो स्थानीय उत्पादों ने लोगो की जरूरतें पूरी कीं । अब ब्रांड वाले उत्पाद कम पैसे और कम मात्रा के पैकेट में लोगों की आदत बन रहे हैं । जब गाँव के लोग शहरों में जाकर अजब-गजब के काम करने लगे तो उनके पीछे परिवार के सदस्य भी नए-नए काम करने लगे हैं । मोबाइल रिचार्ज कूपन, रिंगटोन डाउनलोड, कूरियर और टाटा स्काई से लेकर डिश टीवी जैसे नए-नए धंधे पनप रहे हैं । टाटा, रिलायंस और एयरटेल के पीसीओ अब गाँव-गाँव मेंे नजर आते हैं । गाँवों में लड़कियाँ जीन्स पहन रही हैं और लड़के कैप । विकास गाँवों तक नहीं पहँुचा । बाजार पहुँच रहा है अपने विस्तार के लिए । पचास पैसे से लेकर दो रूपए के पैकेट के जरिए । गाँवों से निकला बाजार अब एक बार फिर गाँवों की तरफ मुड़ रहा है ।
नर्मदा परिक्रमा पथ का विकास होगा म.प्र. सरकार नर्मदा परिक्रमा पथ विकास परियोजना को पूरा करने के लिए केन्द्र की विभिन्न योजनाआें का सहारा लेगी। इसके अधिकांश काम राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) की राशि से पूरे किए जाएँगे । मध्यप्रदेश रोजगार गांरटी योजना परिषद ने इसके अलावा संपूर्ण स्वच्छता अभियान और ग्रामीण विकास विभाग के माध्यम से भी योजना के तहत चिन्हित कार्योें का क्रियान्वयन किया जाएगा । परियोजना के लिए विभागों के बीच समन्वय और लक्ष्य को बताने का काम जन अभियान परिषद करेगी । नर्मदा परिक्रमा पथ को विकसित करने का बीड़ा जन अभियान परिषद के माध्यम से मध्यप्रदेश सरकार ने उठाया है । नदी के दोनों और करीब २६०० किलोमीटर वाले पथ को विकसित करने के लिए सरकार राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के प्रावधानों का उपयोग सड़क निर्माण, मिट्टी कटाव को रोकने के लिए बंधान, छोटी-छोटी जल संरचनाआें के साथ फलदार और छायादार वृक्षों के रोपण जैसे कार्य में करेगी। सूत्रों के मताबिक मुख्यमंत्री की घोषणा को अमलीजामा पहनाने के लिए मध्यप्रदेश रोजगार गारंटी योजना परिषद ने प्रस्ताव तैयार करने की कवायद शुरू कर दी है । नदी के दोनों ओर फलोद्यान तैयार करने के लिए करीब ३० लाख पौधों का रोपण किया जाएगा । मुरम की ग्रेवल सड़क (जिसके ऊपर पक्की सड़क बनाई जा सकती है) भी बनाई जाएगी । परिषद के अधिकारीयों का कहना है कि इससे योजना के तहत जहाँ मजदूरों को ज्यादा काम मिलेगा, वहीं हरियाली के और नदी के किनारे बसे गाँवों में विकास कार्य भी हो सकेंगे । अर्थ वर्क का काम ग्रामीण विकास विभाग की योजनाआें के दायरे में कराया जाएगा । मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की घोषणा के तारतम्य में नदी के किनारे बसे १५ जिलों के गाँवों को निर्मल ग्राम बनाने के लिए संपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत कार्य स्वीकृत किए जाएँगे।
मंगल ग्रह पर फीनिक्स ने बर्फ खोजी अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के यान फीनिक्स ने मंगल ग्रह पर बर्फ का पता लगाया है । फीनिक्स को बर्फ उस जगह से थोड़ी दूर मिली जहाँ वह उतरा था । मंगल ग्रह के बादलों की संरचना का पता लगाने और मंगल की हवा में मौजुद बर्फ के टुकड़ों को काटने में फीनिक्स पर लगे रोबोट के हाथों का इस्तेमाल किया गया। मंगल ग्रह से मिले आँकड़ों के अनुसार वहाँ बर्फ सतह पर पर आने से पहले वाष्पीकृत हो जाती है । फीनिक्स वहाँकी स्थिति पर नजर रखे हुए है । कनाडा की यार्क यूनिवर्सिटी के मौसम वैज्ञानिक और इस अभियान से जुड़े जिम वाइटवे ने बताया कि अगले महीने हम मंगल पर बर्फ मामले की जाँच बहुत बारीकी से करेंगे। उन्होंने कहा, मंगल के वातावरण में बर्फ के बनने से पहले उसका वाष्प बनकर उड़ जाने की प्रक्रिया को समझना बहुत अहम् है । इसके लिये फीनिक्स यान कई उपकरण लेकर गया है । इसका मौसम केन्द्र यान के आसपास के तापमान, दबाव और हवा की निगरानी करता रहता है । केन्द्र से मिले आंकड़ों के मुताबिक वहाँ गर्मी के मौसम के कारण तापमान अधिक है । सर्दी का मौसम शुरू होते ही तापमान कम होन लगता है । अंतिरक्ष एजेंसी नासा की ओर से पिछले दिनों जारी अन्य महत्वपूर्ण आंकड़ों के अनुसार फीनिक्स के आसपास की मिट्टी की पहचान कैल्शियम कार्बोनेट के रूप में की गई है । यह पृथ्वी पर पाये जाने वाले चूना पत्थर से काफी मिलता जुलता है । फीनिक्स ने मंगल ग्रह पर मिट्टी जैसे एक पदार्थ का भी पता लगाया है । वैज्ञानिकोें का मानना है कि ये दोनों पदार्थ पानी की मौजुदगी में ही बनते हैं। फीनिक्स में एक मानव रहित यान है । नासा अपने इस मिशन के जरिए यह जानने का प्रयास कर रहा है कि क्या मंगल पर जीवन संभव है ।
भोपाल में बनेगा गिद्ध संरक्षण प्रजनन केन्द्र वन विहार राष्ट्रीय उद्यान भोपाल द्वारा बाह्य संरक्षण की दृष्टि से केरवा केन्द्र में गिद्धो की कैप्टिव ब्रीडिंग के केन्द्र को बनाये जाने का कार्य हाथ में लिया जा रहा है । इसके लिये पांच एकड़ भूमि कैरवा के पास चयनित कर ली गई है । उल्लेखनीय है कि गिद्धों को भोजन के रूप में बकरी का मंास दिया जाता है । वयस्क गिद्धों को चार दिन में एक किलोग्राम मांस तथा बच्चें को प्रतिदिन तीन बार१००-२०० ग्राम मांस दिया जाता है । गिद्धों का हमेशा से पर्यावरण में महत्वपूर्ण योगदान रहा हे । गिद्धो की विभिन्न प्रजातियां मृत जानवरों के मांस को अपना भोजन बनाती है, जिसके कारण ये मांस के सड़ने से होने वाली बीमारियों से बचाते रहे हैं । भारत में गिद्धों की नौ प्रजातियां पाई जाती रही हैं। इनमें से मध्यप्रदेश में गिद्धों की चार प्रजातियां क्रमश: बंगाल गिद्ध , इण्डियन लोंग बिल्ड, किंग वल्चर एवं सफेद गिद्ध प्रमुख रूप से पाये जाते रहे हैं । वर्ष १९९० के उपरांत गिद्धों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है । एक अध्ययन के अनुसार १९९० से २००२ तक इनमें लगभग ९० प्रतिशत कमी पाई गई है । गिद्धों की संख्या में इस गिरावट के कारण आई. यू.सी.एन. ने गिद्धों की इन प्रजातियों को गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजाति की श्रेणी में रखा है । गिद्धों की संख्या में गिरावट का मुख्य कारण पालतू जानवरों को दी जाने वाली एंटी इंफ्लामेटरी दवाई डायक्लोफेनिक है ।यह दवाई पालतू पशुआें के लीवर में पहुंच कर मांस के जरिए यह गिद्घों तक पहुंचती है । ***
विकास नहीं, गाँव पर बाजार का दबदबा भारत की आत्मा गाँवों में बसती है, लेकिन इक्कीसबीं सदी के शहरी भारत में गाँवों की आदते भी बदल रही हैं । शहरी हो रही हैं । ऐसी नेल्सन का सर्वे भी कुछ ऐसा ही बातें करता है । सर्वे जनवरी से लेकर जुलाई २००८ के बीच ग्रामीण भारत में हुई खपत के आँकड़े पेश करता है । इसमें बताया गया है कि गाँवों में टूथपेस्ट की खपत १२.८ फीसदी बढ़ी है । तो शहरों में सिर्फ ८.७ फीसदी । गाँवों में शहरों की तुलना में शैम्पू, साबून और केश तेल का ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है, मगर इसका कारण बहुत अजीब है । कहा गया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि और सत्तर हजार करोड़ कर्जमाफी से ऐसा हुआ है । तो क्या इस सत्तर हजार का फायदा किसानों को कम और साबुन, शैम्पू वालों ज्यादा हो रहा है । क्या किसी ने उस किसान के घर जाकर उपभोग का सर्वे किया है जो कर्जमाफी के बाद से खुद को मुक्त महसूस कर पा रहा है । वैसे भी महाजनों के चंगुल से अभी मुक्ति नहीं मिली है । हम गाँवों को नहीं जानते । भूल जाते हैं कि आखिरी आदमी तक माल पहुँचा देने की यह पूँजीवादी परिकल्पना पिरामिड के तल तक पहुँचने की नई रणनीति है । यह जरूर हुआ कि जब ब्रांडेड माल इतने महँगे हो गए तो स्थानीय उत्पादों ने लोगो की जरूरतें पूरी कीं । अब ब्रांड वाले उत्पाद कम पैसे और कम मात्रा के पैकेट में लोगों की आदत बन रहे हैं । जब गाँव के लोग शहरों में जाकर अजब-गजब के काम करने लगे तो उनके पीछे परिवार के सदस्य भी नए-नए काम करने लगे हैं । मोबाइल रिचार्ज कूपन, रिंगटोन डाउनलोड, कूरियर और टाटा स्काई से लेकर डिश टीवी जैसे नए-नए धंधे पनप रहे हैं । टाटा, रिलायंस और एयरटेल के पीसीओ अब गाँव-गाँव मेंे नजर आते हैं । गाँवों में लड़कियाँ जीन्स पहन रही हैं और लड़के कैप । विकास गाँवों तक नहीं पहँुचा । बाजार पहुँच रहा है अपने विस्तार के लिए । पचास पैसे से लेकर दो रूपए के पैकेट के जरिए । गाँवों से निकला बाजार अब एक बार फिर गाँवों की तरफ मुड़ रहा है ।
नर्मदा परिक्रमा पथ का विकास होगा म.प्र. सरकार नर्मदा परिक्रमा पथ विकास परियोजना को पूरा करने के लिए केन्द्र की विभिन्न योजनाआें का सहारा लेगी। इसके अधिकांश काम राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) की राशि से पूरे किए जाएँगे । मध्यप्रदेश रोजगार गांरटी योजना परिषद ने इसके अलावा संपूर्ण स्वच्छता अभियान और ग्रामीण विकास विभाग के माध्यम से भी योजना के तहत चिन्हित कार्योें का क्रियान्वयन किया जाएगा । परियोजना के लिए विभागों के बीच समन्वय और लक्ष्य को बताने का काम जन अभियान परिषद करेगी । नर्मदा परिक्रमा पथ को विकसित करने का बीड़ा जन अभियान परिषद के माध्यम से मध्यप्रदेश सरकार ने उठाया है । नदी के दोनों और करीब २६०० किलोमीटर वाले पथ को विकसित करने के लिए सरकार राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के प्रावधानों का उपयोग सड़क निर्माण, मिट्टी कटाव को रोकने के लिए बंधान, छोटी-छोटी जल संरचनाआें के साथ फलदार और छायादार वृक्षों के रोपण जैसे कार्य में करेगी। सूत्रों के मताबिक मुख्यमंत्री की घोषणा को अमलीजामा पहनाने के लिए मध्यप्रदेश रोजगार गारंटी योजना परिषद ने प्रस्ताव तैयार करने की कवायद शुरू कर दी है । नदी के दोनों ओर फलोद्यान तैयार करने के लिए करीब ३० लाख पौधों का रोपण किया जाएगा । मुरम की ग्रेवल सड़क (जिसके ऊपर पक्की सड़क बनाई जा सकती है) भी बनाई जाएगी । परिषद के अधिकारीयों का कहना है कि इससे योजना के तहत जहाँ मजदूरों को ज्यादा काम मिलेगा, वहीं हरियाली के और नदी के किनारे बसे गाँवों में विकास कार्य भी हो सकेंगे । अर्थ वर्क का काम ग्रामीण विकास विभाग की योजनाआें के दायरे में कराया जाएगा । मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की घोषणा के तारतम्य में नदी के किनारे बसे १५ जिलों के गाँवों को निर्मल ग्राम बनाने के लिए संपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत कार्य स्वीकृत किए जाएँगे।
मंगल ग्रह पर फीनिक्स ने बर्फ खोजी अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के यान फीनिक्स ने मंगल ग्रह पर बर्फ का पता लगाया है । फीनिक्स को बर्फ उस जगह से थोड़ी दूर मिली जहाँ वह उतरा था । मंगल ग्रह के बादलों की संरचना का पता लगाने और मंगल की हवा में मौजुद बर्फ के टुकड़ों को काटने में फीनिक्स पर लगे रोबोट के हाथों का इस्तेमाल किया गया। मंगल ग्रह से मिले आँकड़ों के अनुसार वहाँ बर्फ सतह पर पर आने से पहले वाष्पीकृत हो जाती है । फीनिक्स वहाँकी स्थिति पर नजर रखे हुए है । कनाडा की यार्क यूनिवर्सिटी के मौसम वैज्ञानिक और इस अभियान से जुड़े जिम वाइटवे ने बताया कि अगले महीने हम मंगल पर बर्फ मामले की जाँच बहुत बारीकी से करेंगे। उन्होंने कहा, मंगल के वातावरण में बर्फ के बनने से पहले उसका वाष्प बनकर उड़ जाने की प्रक्रिया को समझना बहुत अहम् है । इसके लिये फीनिक्स यान कई उपकरण लेकर गया है । इसका मौसम केन्द्र यान के आसपास के तापमान, दबाव और हवा की निगरानी करता रहता है । केन्द्र से मिले आंकड़ों के मुताबिक वहाँ गर्मी के मौसम के कारण तापमान अधिक है । सर्दी का मौसम शुरू होते ही तापमान कम होन लगता है । अंतिरक्ष एजेंसी नासा की ओर से पिछले दिनों जारी अन्य महत्वपूर्ण आंकड़ों के अनुसार फीनिक्स के आसपास की मिट्टी की पहचान कैल्शियम कार्बोनेट के रूप में की गई है । यह पृथ्वी पर पाये जाने वाले चूना पत्थर से काफी मिलता जुलता है । फीनिक्स ने मंगल ग्रह पर मिट्टी जैसे एक पदार्थ का भी पता लगाया है । वैज्ञानिकोें का मानना है कि ये दोनों पदार्थ पानी की मौजुदगी में ही बनते हैं। फीनिक्स में एक मानव रहित यान है । नासा अपने इस मिशन के जरिए यह जानने का प्रयास कर रहा है कि क्या मंगल पर जीवन संभव है ।
भोपाल में बनेगा गिद्ध संरक्षण प्रजनन केन्द्र वन विहार राष्ट्रीय उद्यान भोपाल द्वारा बाह्य संरक्षण की दृष्टि से केरवा केन्द्र में गिद्धो की कैप्टिव ब्रीडिंग के केन्द्र को बनाये जाने का कार्य हाथ में लिया जा रहा है । इसके लिये पांच एकड़ भूमि कैरवा के पास चयनित कर ली गई है । उल्लेखनीय है कि गिद्धों को भोजन के रूप में बकरी का मंास दिया जाता है । वयस्क गिद्धों को चार दिन में एक किलोग्राम मांस तथा बच्चें को प्रतिदिन तीन बार१००-२०० ग्राम मांस दिया जाता है । गिद्धों का हमेशा से पर्यावरण में महत्वपूर्ण योगदान रहा हे । गिद्धो की विभिन्न प्रजातियां मृत जानवरों के मांस को अपना भोजन बनाती है, जिसके कारण ये मांस के सड़ने से होने वाली बीमारियों से बचाते रहे हैं । भारत में गिद्धों की नौ प्रजातियां पाई जाती रही हैं। इनमें से मध्यप्रदेश में गिद्धों की चार प्रजातियां क्रमश: बंगाल गिद्ध , इण्डियन लोंग बिल्ड, किंग वल्चर एवं सफेद गिद्ध प्रमुख रूप से पाये जाते रहे हैं । वर्ष १९९० के उपरांत गिद्धों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है । एक अध्ययन के अनुसार १९९० से २००२ तक इनमें लगभग ९० प्रतिशत कमी पाई गई है । गिद्धों की संख्या में इस गिरावट के कारण आई. यू.सी.एन. ने गिद्धों की इन प्रजातियों को गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजाति की श्रेणी में रखा है । गिद्धों की संख्या में गिरावट का मुख्य कारण पालतू जानवरों को दी जाने वाली एंटी इंफ्लामेटरी दवाई डायक्लोफेनिक है ।यह दवाई पालतू पशुआें के लीवर में पहुंच कर मांस के जरिए यह गिद्घों तक पहुंचती है । ***
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