शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

१० ज्ञान विज्ञान

राजस्थान में जल पिरामिड

अभी तक सभी ने पानी बचाने के कोई नए - नए तरीके तो सुने होंगें लेकिन `जल पिरामिड' का विचार सुनने में शायद ही आया होगा । वर्तमान में जहां पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है,वहीं `जल पिरामिड' मरूभूमि में वरदान जैसा साबित होगा । यह न केवल वर्षा जल का संचय करेगा अपितु शुद्ध जल को सौर ऊर्जा से शोधित भी करेगा। एक स्वयंसेवी संगठन ने बाड़मेर जिले के रूपजी राजा बेरी गाँव में जल पिरामिड के जरिए जल संग्रह करनेकी संकल्पना को साकार किया है । जल भागीरथी फाउंडेशन (जेबीएफ) नामक इस संगठन ने दावा किया है कि यह देश का पहला और विश्व का दूसरा `जल पिरामिड' है । इस तरह का पहला `जल पिरामिड' गाम्बिया में बनाया गया है और दूसरे को सौगात भारत के राजस्थान राज्य को मिली है । गुजरात में भी इसी तर्ज पर जल पिरामिड बनाने की कवायद जारी है। जेबीएफ प्रोजेक्ट डायरेक्टर सुश्री कनुप्रिया का कहना है कि यह एक अनोखी पिरामिड संरचना है, जिसकी ऊपरी सतह चमकदार पन्नी की बनी होती है । पूरे पिरामिड का व्यास ३० मीटर और ऊँचाई ९ मीटर है । चमकदार सतह ासौर ऊर्जा अवशोषित करती है और ीचे की ओर एकत्रित खारे पानी को वापत करती है । इसके बाद संघनन की क्रिया से यह पानी पीये योग्य डिस्टिल वॉटर क रूप में परिवर्तित हो जाता है । यह डिस्टिल वॉटर पिरामिड के अंदर एक चैनल में एकत्रित होता है और यहंा से यह भूमिगत टेंक में चला जाता है, जहां से पंप द्वारा वितरण टेंक में जाता है।इस टेंक की क्षमता दस हजार लीटर है । मानसून के समय वर्षा का जल जब पिरामिड और आसपास गिरता है, तो यह सीधे वर्षा जल एकत्रित करने वाले टैंक में इकट्ठा हो जाता है । इसकी क्षमता ६ लाख लीटर है । यहाँ से इसे शोधित कर पम्प द्वारा वर्षा जल वितरण टैंक में जमा कर उन स्थानों पर भेजा जाता है जहाँ जल की आवश्यकता है । सुश्री कनुप्रिया ने बताया कि रूपजी राजा बेरी ग्रामीणों ने ग्राम पंचायत की मदद से `जलसभा' का निर्माण भी किया है, जहाँ पानी बचाने की नई - नई तरकीबों पर विचार किया जाता है ।यादें किस चीज़ से बनती हैं ? चूहों पर किए गए कुछ प्रयोगों से पता चला है कि हमारी यादें हमारे ही डी.एन.ए. पर लगी कुछ टोपियेां की मदद से सहेजी जाती हैं । किसी खास घटना को याद करने के लिए तंत्रिकाआें की एक विशेष लड़ी सही समय पर सक्रिय होती है । इन सारी तंत्रिकाआें के एक क्रम में सक्रिय होने के लिए जरूरी है कि वे आपस में रासायनिक सेतुआें (साइनेप्स) के जरिए एक खास ढंग से जुड़ी हों । सवाल यह है कि एक बार इस तरह जुड़ जाने के बाद ये जुड़ाव दशकों तक कैसे बने रहते हैं । अब नए शोध के आधार पर अलाबामा विश्वविद्यालय के कोर्टनी मिलर और डेविड स्वेट का निष्कर्ष है कि दीर्घावधि यादें डी.एन.ए. पर जगह-जगह मिथाइल समूह की टोपियां लगती हें । कई जीन्स तो पहले से मिथाइल समूहों से घिरे होते हैं ।यह ऐसी कोशिकाएं विभाजित होती हैं, तो इस बात की जानकारी (कोशिकीय स्मृति)संतान कोशिकाआें को मिलती है । मिलर व स्वेट ने पाया कि तंत्रिकाआें में मिथइल समूहों की मदद से ही यह बय करने मेंददमिलती है कि कौन- कौन से प्रोटीन बनेंगें ताकि सायनेस को सुरक्षित रखा जा सके । प्रयोग मे ंचूहों को एक पिंजरे में रखकर बिजली का झटका दिया गया । आम तौर पर ऐसा करने पर वे पिंजरे में लौटाए जाने पर सहम जाते हैं । मगर जब इन चूहों को एक ऐसी दवाई का इंजेक्शन दिया गया जो मिथाईल समूह का जुड़ना रोकती है तो उनमें बिजली के झटके की स्मृति पुंछ गई । यह भी पता चला कि अनुपचारित चूहों में बिजली के झटके के एक घंटे के बाद तक दिमाग हिप्पोकैप्स क्षेत्र में जीन का मिथायलेशन तेज़ी से चलता है कि अल्पावधि स्मृतियां निर्मित करने में मिथायलेशन की भूमिकाहै। मगर अभी यह देखना बाकी था कि क्या दीर्घावधि स्मृतियों में मिथायलेशन की कोई भूमिका है या नहीं । इसके लिए प्रयोग को दोहराया गया और दिमाग के कार्टेक्स नामक हिस्से पर ध्यान दिया गया शोधकर्ताआें ने देखा कि झटके के एक दिन बाद तक मिथाईल समूह एक जीन पर से हटाए जा रहे थे और किसी अन्य जीन पर जोड़े जा रहे थे । मिथायलेशन का पेटर्न धीरे- धीरे स्थिर हो गया और सात दिन बाद तक वैसा ही बना रहा । इसके आधार पर मिलर और स्वेट का कहना है कि मिथाइल समूह का जुड़ना स्मृति संजोने व बनाए रखने की प्रक्रिया का अंग होना चाहिए । मज़ेदार तर्क यह है कि मिथायलेशन की प्रक्रिया का उपयोग भ्रूण के विकास के दौरान कोशिका - स्मृति के हस्तांतरण के लिए होता है । लगता है दिमाग इसी प्रक्रिया का उपयोग यादें सहेजने के लिए कर रहा है । हम कितना तेज भाग सकते हैं ? महिला धावकों , रेस के घोड़ों और शिकारी कुत्तों में क्या समानता है ? समानता यह है कि शायद ये सभी अपने सर्वोत्तम प्रदर्शन पर पहुंच चुके हैं । दूसरे ओर महिला मैराथन धावक और हर दूरी के पुरूष धावक अभी भी अपने रिकार्डोंा में सुधार कर रहे है । मार्क डेनी का यही निष्कर्ष है । स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के मार्क डेनी १९२० के दशक से एथलेटिक्स प्रतिस्पर्धाआें, घोड़ों की रेस और शिकारी कुत्तों की दौड़ के रिकार्ड का अवलोकन कर रहे हैं । ये वह देखना चाहते हैं कि क्या इन आंकड़ों से यह दिखता है कि इन्सानों और जानवरों की रफ्तार की कोई सीमा है । यह सवाल कई बार पूछा जाता है कि क्या ओलंपिक रिकार्ड टूटते ही जाएंगे । विजेता शिकारी कुत्तों और घोड़ों की रफ्तार १९७० के दशक तक बढ़ती रही लेकिन फिर उनें स्थिरता - सी आ गई । डेनी की राय है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि ये जानवर अपनी प्रजाति की अधिकतम सीमा तक ही जा सकते हैं । और वैसे भी मनुष्य ने इनका चयन अनुकूलतम शारीरिक बनावट के लिहाज़ से ही किया है। कम दूरी की महिला धावकों की रफ्तार में भ्ज्ञी १९७० केदश में एक स्थिरता सी आने लगी थी । उसके बाद रिकार्ड्स में बहुत कम और यदा - कदा ही सुधार हुए हैं । जबकि महिला मैराथन धावकों और समस्त पुरूष धावकों में सुधार अभी भी जारी है । इन आंकड़ों का प्रयोग कर डेनी ने एक मॉडल विकसित किया है । इसके आधार पर लगता है कि पुरूष धावक १०० मीटर की दौड़ में ९.४८ सेकण्ड का सर्वोत्तम समय निकाल सकते हैं । यह उसैन बोल्ट के वर्तमान रिकार्ड से ०.२१ सेकण्ड बेहतर है । महिला मैराथन धावक पौला रेडक्लिफ के वर्तमान मैराथन रिकार्ड (२ घंटे १५ मिनिट २५ सेकण्ड) में २ मिनट ४४ सेकण्ड की और कटौती कर सकती है चमगादड़ों से सीखें रात की ड्राइविंग चमगादड़ अंधी होती हैं लेकिन अपने कान की मदद से सब कुछ देख पाती हैं। वैज्ञानिक प्रयासरत हैं कि मनुष्य भी ऐसा कर सकेंं । चमगादड़ उड़ते समय उच्च् आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगे छोड़ती हैं औरउनकीप्रतिध्वनि से वे रास्ते की रूकावटों को चिन्हित करती है । प्रतिध्वनि की तीव्रता और अपने दोनों कानों की क्षमताआें का उपयोग कर चमगादड़ रास्ते की रूकावआें और शिकार की स्थिति का ठीक- ठाक अंदाजा लगा लेती है । लीड्स विश्वविद्यालय में हाल ही में किए गए एक अध्ययन के दौरान चमगादड़ द्वारा प्रयुक्त आवृत्ति की तरंगें सृजित की गई और उनसे उत्पन्न प्रतिध्वनि को मानवीय परास में परिवर्तित किया गया इस ध्वनि को ईयर फोन में डाला गया । इस प्रकार से उद्दीपन की सहायता से लोग वस्तुआें की दिशा तेज़ी से पहचानने मे ंसफल हुए । इस तरह की क्षमताआें काउपयोग कई जगहों पर किया जा सकता है । जैसे नक्श देखते समय वाहन चालक अपने का उका उपये गहेहतर कर सकता है । इसके साथ ही चालक को मंद रोशनी में गाड़ी चलाने में भी इसका उपयोग किया जा सकता है । ***

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