जहरीले कचरे का संकट
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
भोपाल में हजारों लोगों की जन लेने वाले गैस कांड को लोग अब तक नहंी भुला पाए हैं । यूनियन कार्बाइड नामक जिस रासायनिक उद्योग से गैस रिसी थी, उसमें अब तक घातक रासायनिक पदार्थ पड़े हुए हैं । इन्हें वहां से हटाकर इंदौर के निकट पीथमपुर मेंलाकर पटका जा रहा है । इस घातक कचरे को नष्ट करने के लिए गुजरत (अंकलेश्वर) भेजा जाना था लेकिन गुजरात सरकार ने साफ मना कर दिया । इसके बाद कचरे को पीथमपुर में लाकर जमीन में गाड़ दिया गया है । यह सब काम गोपनीयता से हुआ । इससे होने वाले प्रदूषण की जानकारी न तो पीथमपुर क्षेत्र के औद्योगिक संगठनोंऔर न ही स्थानीय लोगों को दी गयी । कहा जाता है कि छ: महीने पहले ४० टन जहरीले कचरे की एक खेप भोपाल से पीथमपुर भेजी गई । यह काम रात में किया गया था । इसलिए किसी को पता नहीं चला । बाद मे कुछ संगठनेां की आपत्ति के बाद काम रोक दिया गया । दिल्ली से आई रसायन एवं उर्वरक की स्थायी संसदीय समिति ने पिछले दिनों को पीथमपुर का दौरा किया, समिति के अध्यक्ष सुनील खान हैं । पीथमपुर के सेक्टर दो में टेकरी पर घातक कचरे (ठोस अपशिष्ट डंपिंग) को निपटाने के लिए जगह तय की गई है । समिति के सदस्यों ने अब तक जमीन में दफनाए गए रासायनिक कचरे के बारे में जानकारी ली। समिति को हैदराबाद की रेमकी के अधिकारियों ने निरीक्षण कराया । सदस्यों ने यूनियन कार्बाइड कारखाने के जहरीले रसायन को जलाने के लिए तैयार किए जा रहे भस्मक के बारे में जानकारी ली । यूनियन कार्बाईड कारखान के जहरीले कचरे को जलाने के लिए पीथमपुर में तैयार किया जा रहा भस्मक पास के एक गांव वालों की जिंदगी में जहर घोल सकता है । कचरा जलाने के दौरान उठने वाला धुंआ इनके स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बनेगा । भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के घातक रसायनों को जलाने के लिए पीथमपुर में भस्मक लगाया जा रहा है । दुखद पहलू यह है कि भस्मक ऐसी जगह बनाया जा रहा है जहां से तारापुरा गांव की दूरी २०० मीटर से भी कम है । पीथमपुरा नगर पालिका के वार्ड क्रमांक १ में आने वाले इस गांव की आबादी करीब ३ हजार है । यहां के रहवासियों को तो प्लांट तैयार हो जाने तक पता भी नहीं था कि यहां क्या हो रहा है । भस्मक में प्रदेश भर के उद्योगों के घातक कचरे को १४०० डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर जलाया जाएगा । फिर उसकी राख को वहीं पास की जमीन में दफना दिया जाएगा ।कचरा जलने के दौरान वातावरण में पारा, डायऑक्सिन तथाअन्य रसायन फैलेंगें जो हवा के माध्यम से स्वास्थ्य के लिए खतरा बनेंगें ।इस बात का खतरा गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी अपनी रिपोर्ट में जाहिर किया था। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कंपनी के परिसर में पड़े साढ़े तीन सौ टन से अधिक जहरीले रासायनिक अपशिष्ट (कचरे ) का निपटान इंदौर के निकट पीथमपुर में ही क्येां किया जा रहा है । इस सवाल का भी अभी तक विश्वसनीय जवाब नहीं दिया गया है कि ऐसे रासायनिक अपशिष्ट को जलाने या नष्ट करने की जो पद्धति अपनाई जा रही है, क्या वह पूरी तरह सुरक्षित है । भोपाल गैस त्रासदी को गुजरे पच्चीस वर्ष पूरे हो रहे हैं, लेकिन ऐसे सवालों का अनुत्तरित बने रहना बताता है कि व्यवस्था ऐसे गंभीर खतरों के प्रति भी कितनी लापरवाह है । प्रक्रिया के तौर पर इस मामले में बहुत कुछ किया गया, लेकिन परिणामों के स्तर पर स्थिति बहुत संतोषप्रद नहीं है । अदालत के आदेश पर बने एक कार्यबल की तकनीकी उपसमिति को तय करने का जिम्मा सौंपा गया था कि भोपाल स्थित कंपनी परिसर में ही इस अपशिष्ट के निपटान की व्यवस्था की जाए या पीथमपुर (इंदौर) में बन चुकी ट्रीटमेंट स्टोरेज एंड डिस्पोजल फेसिलिटी में । कुछ कचरे को जला देने और कुछ को दफन कर देने की राय बन रही थी, इस बीच गुजरात सरकार ने निपटान में हिस्सेदारी से मना कर दिया । फिर मध्यप्रदेश सरकार ने इस जोखिम को कैसे स्वीकार कर लिया वह भी चोरी-चोरी ?क्षेत्रीय जनता को विश्वास में लिए बिना? क्या राज्य सरकार की कोई जवाबदारीनहंी बनती है ? ***जल बचाईये, सूखे रंगों से होली खेलिए
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें