ताज की रक्षा करेगी तुलसी
भारत के हर घर-आँगन की शोभा बढ़ाने वाली और चमत्कारी औषधि मानी जाने वाली तुलसी अब प्रेम की यादगार इमारत ताजमहल की रक्षा भी करेगी । अपने औषधीय गुणों के लिए विख्यात तुलसी अब ताजमहल को पर्यावरण प्रदूषण से पड़ने वाले दुष्प्रभावों से बचाएगी । पुराणों में `हरिप्रिया' के रूप में जानी जाने वाली तुलसी का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है । असाध्य रोगों को दूर करने में तुलसी का औषधीय महत्व बरसों पहले सिद्ध हो चुका है । भारतीय कृषि का पाँच हजार वर्ष पुराना इतिहास भी देखें तो तुलसी का स्थान `औषधीय पौधों की रानी' के रूप में सामने आता है । यही कारण है कि अब इसके अवशोषण गुण को देखते हुए पर्यावरण प्रदूषण हटाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाएगा । उत्तरप्रदेश के वन विभाग और लखनऊ स्थित ऑर्गेनिक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की संयुक्त बैठक में यह निर्णय लिया गया । इसके तहत तुलसी के लगभग दस लाख पौधों को ताजमहल के आसपास लगाया जाएगा । कंपनी के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (विश्व) कृष्ण गुप्त ने कहा कि अभी तक ताज के समीप लगभग बीस हजार पौधे लगाये जा चुके है । ये पौधारोपण ताज के आसपास के पार्क से लेकर पूरे आगरा तक करने का अभियान है । इस कार्य के लिए `तुलसी' को ही क्यों चुना गया तो इस संदर्भ में श्री गुप्त ने कहा कि यही एक मात्र ऐसा पौधा है, जो पर्यावरण को पूरी तरह से शुद्ध रखता है । उच्च् मात्रा में ऑक्सीजन छोड़ने के गुणधर्म के कारण सफाई की प्रक्रिया तीव्र होती है, जिसके कारण यह उद्योगों और रिफाइनरी से निकलने वाले उत्सर्ग से ताज पर पड़ने वाले प्रतिकुल प्रभावों को कम करने में भी सहायक होगी । श्री गुप्त ने कहा कि तुलसी के अलावा नीम और पीपल भी इस स्मारक की सुरक्षा में अपनी उपयुक्त भूमिका निभा सकते है । इनके रोपण पर विचार किया जा रहा है । पुरातत्वविद् देवकीनंदन दिमरी ने कहा कि तुलसी अपने गुण के कारण वायु प्रदुषण को कम करने में मदद करेगी और ताज के आसपास का माहौल स्वच्छ बना रहेगा । आगरा के क्षेत्रीय वन संरक्षक आरपी भारती ने कहा कि पौधारोपण की प्रक्रिया बड़े स्तर पर की जाएगीर । हमने इस अभियान के तहत अगले २ माह में २० लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है। इसमें ग्राम पंचायतों व विद्यालयों को भी शामिल किया गया है । दिल्ली में बंद होंगे मैटेलिक पाउच दिल्ली सरकार प्लास्टिक के बाद अब देश की राजधानी को मैटेलिक पाउच से भी मुक्त करना चाहती है । मैटेलिक पाउच का इस्तेमाल गुटका, शैंपु, चिप्स आदि की पैकिंग में किया जाता है । इन पर रोक लगाने के लिए दिल्ली सरकार के पर्यावरण विभाग ने केंद्रीय पर्यावरण तथा वन मंत्रालय से अपील करके अपनी शुभइच्छा का इजहार तो किया है, लेकिन साथ ही यह बात भी सही है कि सवाल सिर्फ दिल्ली का नहीं है, पूरे देश का है। ऐसा कोई भी प्लास्टिक या पाउच जो रिसाइकिल न किया जा सके, वह पूरे देश के लिए खतरा है । रोज ही न जाने कितनी छोटी-बड़ी खबरें आती हैं कि दुधारू गाय-भैंस तथा अन्य जानवरों की प्लास्टिक खाने से मौत हो गई । शहरों के लिए अगर ये प्लास्टिक या पाउच खतरनाक कचरा हैं तो गाँव-देहात के लिए यह मौत का सामन। तेजी से बाजार के फैसले के साथ-साथ उन खतरनाक पाउचों का चलन इतना बढ़ गया है कि रोजमर्रा की चीजें इसमें मिलने लगी हैं । इस पर रोक सिर्फ दिल्ली के स्तर पर नहीं लग सकती। इस पर केंद्र के स्तर पर पहल करने की जरूरत है । मैटेलिक उत्पादन बेचने वाली कंपनियोंे पर नियंत्रण राष्ट्रीय स्तर पर ही लग सकता है, किसी क्षेत्र विशेष मेंइन पर रोक लगाना संभव नहीं है। वैसे भी चूँकि यह मामला पूरे देश के पर्यावरण से जुड़ा हुआ है, इसलिए इस बारे में राष्ट्रीय नीति बनाना वक्त की जरूरत है । ग्लोबल वार्मिंग रोकने तथा पर्यावरण रक्षा के लिए भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई वायदे कर रखे हैं । जिन्हें खतरनाक प्लास्टिक और मैटेलिक पाउच पर रोक लगाकर ही पूरा किया जा सकता है । इससे जुड़ा हुआ एक अहम मुद्दा है विकल्प का । इनका सुरक्षित-सस्ता विकल्प खोजना जरूरी है । सरकारों को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए । कई बार सिर्फ इतना लोकलुभावन फैसले कर तो लिए जाते हैं, पर उनसे होने वाले संकट से निपटारे के बारे में नहीं सोचा जाता । ऐसे मेंे आमजन सुविधा के लिए चोर दरवाजे निकाल देते हैं । प्लास्टिक और मैटेलिक पाउच पर कारगर रोक के लिए जरूरी है उनका कारगर विकल्प तैयार करना ।पर्यावरण बचाने को लिखी वृक्ष चालीसा अभी तक तो देवी देवताआें की चालीसा तो सभी ने पढ़ी होगी लेकिन अब वृक्ष चालीसा भी लोगों को पढ़ने को मिलेगी । इससे पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए वृक्षों के महत्व का घर-घर में संदेश जाएगा । यह अनूठी पहल नर्मदापुर (होशंगाबाद) के निजी स्कूल के शिक्षक मनोज दूबे ने की है । उन्होंने प्रारंभिक रूप से स्व रचित वृक्ष चालीसा छपवाई है । दो दोहों और ४० चौपाइयों में सिमटी इस चालिका का विमोचन अभी होना है । ये चालीसा निशुल्क बांटी जाएगी इसकी छपाई का खर्चा खुद शिक्षक ने ही उठाया है । प्रदूषित वातावरण, ग्लोबल वार्मिंग, सूखा, जलवायु असंतुलन से पर्यावरण संकट में है । इन्ही से निपटने के लिए शिक्षक दुबे ने चालीसा लिखी । चालीसा में संदेश दिया है कि वृक्ष देवताआें के समान पूजनीय है । उन्होंने कहा वे आगे भी इस चालीसा को नि:शुल्क बांटकर पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाएंगे । वृक्ष चालीसा पुस्तक में ४० चौपाईयों में कहा गया है कि वृक्ष से अन्न-फल, जड़ी-बूटी, औषधी मिलती है वृक्ष से समस्त पदार्थ मिलते हैं वृक्ष पर ही सभी जीव निर्भर रहते हैं । पंछी-कीट वन्य जीव का वृक्ष ही आसरा होते है । पथिक थकने पर विश्राम इन्ही वृक्ष की छाया में कर मन ही अुनपम शांति पाते हैं । वृक्ष शीत, वर्षा, ग्रीष्म ऋतु सहते हुए भी प्रसन्नचित दिखाई देते हैं । दुर्जन के द्वारा पत्थर मारने पर भी वह फल ही प्रदान करते हैं । वृक्षों में सभी देव वास है । वृक्ष कंद मूल फल से कृपा निधान भी रीझ जाते हैं । वृक्ष नव गृह की गति के निर्धारक व गृह दुष्प्रभाव को शांत करते हैं ।राष्ट्रपति भवन बन रहा है पर्यावरण हितैषी राष्ट्रपति भवन अब पर्यावरण हितैषी बनने जा रहा है । राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील की पहल राष्ट्रपति भवन में ऊर्जा संरक्षण की दिशा में पहला कदम उठाते हुए वहाँ लगे परंपरागत बल्बों के स्थान पर सौर ऊर्जा प्रकाश बल्ब लगाए जा रहे हैं। इसके साथ ही ऊर्जा बचत के लिए चरणबद्ध ढंग से अनेक कदम उठाए जाने की महत्वकांक्षी योजना शुरू की गई है । पिछले वर्ष राष्ट्रपति भवन से निकलने वाले कचरे को पुनर्शोधित करने का कार्य शुरू किया था । इसके तहत बायोगैस संयंत्र का निर्माण कराया जा रहा है जिससे कि अस्तबलों से निकलने वाले गोबर से बायोगैस बनाई जा सके । इस गैस का प्रयोग अस्तबलों में ही इंर्धन के रूप में किया जाएगा । राष्ट्रपति भवन उद्यान से निकली पत्तियों आदि को गढ्ढे में डालकर खाद बनाई जाती है, जिसका प्रयोग पौधों में ही होता है । राष्ट्रपति भवन के प्रवक्ता के अनुसार नवीकरण ऊर्जा मंत्रालय ने राष्ट्रपति भवन में नए बल्ब लगाने के लिए ३ करोड़ ४० लाख रूपए स्वीकृत किए हैं। इसके साथ ही राष्ट्रपति भवन में सौर ऊर्जा से पानी गर्म करने की प्रणाली भी लगाई जाएगी । उन्होंने कहा-इस दिशा में सबसे पहले ऊर्जा संरक्षण ब्यूरो द्वारा राष्ट्रपति कार्यालय, राष्ट्रपति निवास सहित पूरे राष्ट्रपति भवन की ऊर्जा खपत का आकलन कराया जाएगा । इसके बाद ऊर्जा संरक्षण की सिफारिश करने के बाद इन्हें लागू करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी ।अब मोबाईल चलेगा सौर ऊर्जा से सैमसंग ने दुनिया का पहला सौर ऊर्जा से चलने वाला मोबाईल फोन पेश किया है । मोबाइल उद्योग को उम्मीद है कि नई तकनीक से वैश्विक मंदी के दौर में मांग में इजाफा होगा । दक्षिण कोरिया की कंपनी द्वारा पेश सौर ऊर्जा मोबाईल की पिछली तरफ मिनी सोलर पैनल लगा है । डायरेक्ट २ मोबाईल के मुख्य अनुसंधानकर्ता निक लेन का कहना था कि यह उपकरण उन विकासशील अर्थव्यवस्थाआें के लिए बेहद फायदेमंद साबित होगा , जहां श्रमिकों को कई- कई घंटे काम करना पड़ता है और उनको बिजली की सुविधा भी नहीं मिलती है। इस मोबाईल से इन श्रमिकों को भी आसानी हो जाएगी तथा वे हमेशा अपनों के सम्पर्क में रह सकेंगें । कंपनी शीघ्र ही इसको दुनिया के सभी देशों में लांच करने की योजना बना रही है । भारत जैसे देश में जहां विद्युत की काफी समस्या है यह यकीनन क्रांतिकारी साबित हो सकता है ।***
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