शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

खास खबर

चमगादड़ बचाने का संकल्प
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)

दुनियाभर में चमगादड़ों की संख्या लगातार घट रही है । यही कारण है कि संयुक्तराष्ट्र ने २०११ वर्ष को चमगादड़ों को समर्पित किया है । चमगादड़ों से बहुत से लोग डरते हैं । इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि रात में उड़ने वाले इन जीवों के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी होती है ।
दिलचस्प बात यह है कि ये इकलौते उड़ने वाले स्तनपायी जीव हैं । चमगादड़ों की १२०० प्रजातियाँ हैं और वे जैव पारिस्थितिकी यानी इकोसिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । पिछले कुछ दशकों में दुनियाभर में उनकी संख्या तेजी से घटी है । इनकी बहुत सी प्रजातियाँ तो विलुप्त् होने के कगार पर हैं । इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष २०११ को चमगादड़ों को समर्पित कर पूरी दुनिया में उन्हें बचाने के लिए कदम उठाने के लिए विशेष अभियानों के जरिए लोगोंको प्रशिक्षण दिया जाएगा ।
किसी गुफा में एक अजीब तरह की चूँ-चँू, तेज दुर्गंध वाले और अंधेरे में जीने वाले चमगादड़ों को बहुत से लोग डरावनी फिल्मों या कहानियों के साथ जोड़ते हैं । लेकिन इन जीवों के बारे में यह धारणा गलत है । यह मानना है योरपीय चमगादड़ों को बचाने के लिए बनाई गई विशेष संस्था के अध्यक्ष आंद्रेआस श्ट्राईट का । वे कहते हैं कि जो भी बातें चमगादड़ों के बारे में कहीं जाती हैं, सब पूर्वाग्रहों से प्रेरित हैं । इसलिए इस मुहिम का मकसद है कि लोगों को बताया जाए कि ये सब बातें गलत हैं ।
चमगादड़ बहुत ही आकर्षक जीव है । उनके अंदर बहुत सारे गुण और क्षमताएँहैं, जिनके बारे में आम आदमी को जानकारी ही नहीं है। योरपीय चमगादड़ों को बचाने के लिए हुई संधि को २०११ में २० साल पूरे हो रहे हैं । योरप में बहुत सारे प्रयासों की वजह से चमगादड़ों की संख्या स्थिर बनी हुई है । लेकिन दुनिया के दूसरे इलाकोंमें ऐसा नहीं है । इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें गोरिल्ला और डॉल्फिन की तरह ही पूरा साल समर्पित किया है ।
आंद्रेआस श्ट्राईट बताते हैं कि चमगादड़ों की इकोसिस्टम में बहुत बड़ी भूमिका है । वे कहते हैं कि देखा जाए तो ज्यादातर पक्षी रात में ही सोते हैं । जो जानवर रात में शिकार पर जाते हैं, वे अधिकतर बड़े जीवों को खाते हैं । उदाहरण के लिए उल्लु, चूहे खाता है । लेकिन दूसरी तरफ बहुत सारे ऐसे कीड़े-मकौड़े हैं जो रात में सक्रिय होते हैं । इनमें ऐसी मक्खियाँ भी हैं जो फसल को नुकसान पहुँचाती हैं । प्राकृतिक रूप से इन कीड़े-मकोड़ों पर सिर्फ चमगादड़ों के जरिए ही नियंत्रण रखा जा सकता है । एक चमगादड़ ५ से ६ हजार मक्खियों को खा सकता है ।
आर्थिक नजरिए से भी चमगादड़ों को बचाना बहुत ही जरूरी है, खासकर किसानों को उनकी रक्षा करना चाहिए । आंद्रेआस श्ट्राईट बताते हैं कि उष्ण कटिबंधीय इलाकों में बहुत से फल खाने वाले चमगादड़ मिलते हैं । पराग कणों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है और उनके जरिए ही बीज फैलाए जाते हैं। कुछ ऐसे पौधे भी होते हैंजो अपने रंग और सुगंध में सिर्फ चमगादड़ों को आकर्षित करते हैं । यह सिर्फ वनों के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि खेतों में पैदा होने वाली फसलों के लिए भी यह बात सही है ।
कई अफ्रीकी और एशियाई देशोंमें चमगादड़ों को खाया भी जाता है । इनकी घटती संख्या के बावजूद उनका शिकार जारी है । कई जगह इन्हें यह कह कर भी मारा जाता है कि इनके कारण रैबीस जैसी बीमारियाँ फैलती हैं । अगर उनसे कोई बीमारी होती भी है तो यह बात समझनी चाहिए कि आम तौर पर मनुष्य से उनका संपर्क नहीं होता है । वैसे भी संक्रमित चमगादड़ मनुष्य पर हमला नहीं करते । २०११ में दुनियाभर में चमगादड़ों की रक्षा के लिए चिड़ियाघरों और स्कूलोंमें लोगों को जानकारी दी जाएगी । कई इलाकों में गुफाआें में जानकर भी उनके बारे में शोध किया जाएगा ।
बहुत सारे ऐसे फल हैं जिनके फलने-फूलने के लिए चमगादड़ों का होना बहुत जरूरी है । जैसे आम, जंजीर, थाईलैंड और फिलीपिंस में खाए जाने वाला दुरियान या अवोकाडो । चमगादड़ों की इतनी उपयोगिता के बावजूद वे दुनिया के कई इलाकों में विलुप्त् होने की कगार पर हैं । इसके बारे में आंद्रेआस श्ट्राईट बताते हैं कि दुनिया के क ई हिस्सोंमें चमगादड़ों की घटती संख्या की वजह उनके माहौल में इंसानी हस्तक्षेप है । वन भी नष्ट होते जा रहे हैं। साथ ही फसल को बचाने के लिए कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है । इससे चमगादड़ों को खाना नहीं मिलता है । यह जहरीले कीटनाशक उन्हें मार भी सकते हैं । ***

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