असंतुलित होता चीन का पर्यावरण
मार्टिन खोर
चीन भले ही दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया हो लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि वह आर्थिक वृद्धि, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समानता के क्षेत्र में संतुलन बैठाए । गौरतलब है कि अत्यधिक निर्माण कार्य से प्राकृतिक निर्माण कार्य से प्राकृतिक असंतुलन बढ़ने की आशंका है जो पहले से ही जलवायु परिवर्तन से प्रभावित विश्व को संकट में डाले हुए हैं । अत्यधिक उपभोग की प्रवृत्ति से तो विश्व विनाश की ही ओर बढ़ेगा ।
चीन की वृद्धि को आधुनिक विश्व का आर्थिक चमत्कार माना जा रहा है । पिछले तीन दशकों से चीन का सकल घरेलु उत्पाद करीब १० प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रहा है । इसे विश्व इतिहास की एक दंतकथा की तरह देखा जा रहा है । वैश्विक आर्थिक संकट के दौर में इसकी वृद्धि दर में थोड़ी कमी जरूर आई लेकिन जल्द ही वह सुधार पर भी आ गई । परन्तु इस वर्ष वृद्धि के पहली तिमाही में ११.९ प्रतिशत से घटकर दूसरी तिमाही में १०.३ प्रतिशत व बाकी के वर्ष में ९ से १० प्रतिशत के मध्य रहने की वजह से चिंता की लकीरें पड़ रही है । इसके बावजूद यह बाकी के विश्व के लिए ईर्ष्या का विषय है ।
दहाई वाली इस वृद्धि दर के पीछे चीन का भविष्य के परिवर्तन के पीछे का असमंजस भी साफ दिखाई पड़ रहा है, क्योंकि आगामी वृद्धि के लिए भौतिक एवं पर्यावरणीय सीमाआें को भी तोड़ना आवश्यक होगा । ये असमंजस और विरोधाभास पिछले कुछ हफ्तों में साफ तौर पर दिखाई भी दे रहे हैं । इस दौरान चीन पिछले एक दशक की सबसे भयानक बाढ़ का भी शिकार हुआ है ।अत्यधिक वर्षा और नदियों के उफान के कारण उत्तरपूर्वी प्रांत गोंसू के झोक्यू जिले का बड़ा भाग व्यापक भूस्खलन और समतलीकरण से प्रभावित हुआ जिसके परिणामस्वरूप एक हजार से अधिक व्यक्ति मारे गए और सैकड़ों व्यक्ति अभी लापता है ।
जलवायु परिवर्तन संबंधी वायदों के अंतर्गत चीन को अपनी सकल घरेलु उत्पाद ऊर्जा घनत्व में इस वर्ष के अंत तक वर्ष २००५ के अंत से २०प्रतिशत की कमी करना है । जबकि इस वर्ष की पहली तिमाही मेंऊर्जा कार्यक्षमता में कमी आई है । अतएव सरकार वर्ष के अंत तक इस लक्ष्य की प्रािप्त् के लिए अभियान चला रही है । बैंकों से कहा गया है कि वे ज्यादा ऊर्जा खपत वाली फर्मोंा
को ऋण देने में कटौती करें, इनके करोंमें छुट भी कम की गई है तथा स्टील, सीमेंट और अन्य ऊर्जा की अधिक खपत करने वाले २००० पुराने कारखानों को सितंबर के अंत तक बंद करने का आदेश दे दिया गया था । पिछले वर्ष अगस्त में चाइना डेली ने अपने पहले पृष्ठ पर यह रहस्योद्घाटन किया था कि चीन के वर्तमान में विद्यमान आधे से अधिक रहवासी घरों को नष्ट कर अगले २० वर्षोंा में पुन: बनाया जाएगा । इस प्रक्रियामें १९९९ के पूर्व सभी घरों को तोड़ दिया जाएगा ।
चीनी गृह मंत्रालय के शोध निदेशक के अनुसार सन् १९४९ से पूर्व बने भवनों का निर्धारित ५० वर्षोंा का जीवन समाप्त् हो चुका है । १९४९ से १९७९ के मुश्किल समय में बने घर लम्बी अवधि के लिए नहीं बनाए गए थे तथा सन् १९७९ से १९९५ के मध्य बने घर आधुनिक जीवनशैली के अनुकूल नहीं हैं । इस रिपोर्ट से वर्तमान में विद्यमान मकानों की गुणवत्ता और पुननिर्माण की वजह से पड़ने वाले पर्यावरणीय प्रभावों पर विमर्श प्रारंभ हो गया है ।
चीन प्रतिवर्ष दुनिया के स्टील एवं सीमेंट उत्पादन का ४० प्रतिशत का उपभोग करता है जो कि निर्माण के प्रमुख अवयव
है । इसके अलावा तटों से कितनी रेती उठाई जाएगी और कितने पहाड़ इस प्रक्रिया में विलुप्त् हो जाएंगे यह भी विचारणीय है ।
पिछले दिनों बीजिंग में साउथ सेंटर सम्मेलन के दौरान भी भविष्य की वृद्धि के पैमानों पर भी चर्चा हुई थी । चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के प्रो.योंग डिंग का कहना है कि वर्ष २००२-२००७ के मध्य चीन की उच्च् वृद्धि दर के कारण स्थायी सम्पतियों (खासकर भवन निर्माण विकास) और निर्यात में निवेश में बढ़ोत्तरी हुई है ।
वैश्विक वित्तीय संकट ने २००८ की दूसरी छ:माही में चीन को भी अपने चपेट में लिया था । इसके परिणामस्वरूप २००९ की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर में निर्यात में कमी की वजह से इसमें गिरावट आई थी । इसका सामना स्थायी संपत्ति के निवेश में ३१ प्रतिशत की वृद्धि करके किया गया जो कि सकल घरेलु उत्पाद में ८ प्रतिशत का योगदान करती है । इस बदलाव हेतु करीब ६२३ अरब अमेरिकी डॉलर का प्रोत्साहन पैकेज दिया गया था । इसमें से अधिकांश निवेश बजाए उत्पादन के अधोसंरचना पर किया गया था । इस तहर चीन ने गिरावट के बाद अंग्रेजी के वी (त) की तरह की आर्थिक प्रगति की । अपनी सृदृढ़ वित्तीय स्थिति के कारण वह बजट-सकल घरेलु उत्पाद अंतर को भी ३ प्रतिशत पर रखने में सफलता प्राप्त् कर पाया इसमें उसकी स्वस्थ बैंकिंग प्रणाली ने भी सहयोग दिया था ।
प्रो.यू.इसके दुष्प्रभाव बताते हुए कहते हैंकि इस अतिरिक्त तरलता के कारण भविष्य में बैंकों पर अतिरिक्त दबाव भी पड़ सकता है और मुद्रास्फीति में भी उछाल आ सकता है । इसके परिणामस्वरूप सरकार को अपनी फैलाव वाली नीतियों में भी परिवर्तन करना पड़ रहा है । इसी वजह से चीन की वृद्धि दर पर प्रतिकुल प्रभाव दिखाई देने लगा है । लेकिन प्रो. यू. आशावादी हैं और मानते हैं कि चीन अच्छी वृद्धि दर बनाए रखेगा । क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति विश्व में सबसे सुदृढ़ है ।
लेकिन साऊथ सेंटर के मुख्य अर्थशास्त्री यिलमाज अकीयूज का कहना है कि चीन वर्तमान वृद्धि मुख्यतया निर्यात पर निर्भर है । अतएव अमेरिका और यूरोपीय संघ की कमजोर वृद्धि से इस पर विपरित प्रभाव पड़ सकता है उन्होंने सुझाव दिया है कि वृद्धि की नई रणनीति के अंतर्गत वेतन में वृद्धि कर परिवारों की आय बढ़ाकर और सरकारी हस्तांतरण एवं सामाजिक कार्योंा पर अधिक खर्च कर उपभोग को बढ़ाया
जाए । इस हेतु उद्योगों को भी नए सिरे से तैयार करना होगा । निर्यात किए जाने वाले अनेक उत्पाद सिर्फ विदेशों को ध्यान में रखकर ही बनाए जाते हैं । अत: निर्यात क्षेत्र में अतिरिक्त क्षमता पैदा हो गई है जिसका घरेलु क्षेत्र में उपयोग नहीं किया जा सकता ।
इस बीच गरीबी उन्मूलन और विकास विभाग ने न्यायसंगत और संतुलित विकास के सामने प्रस्तुत चुनौतियों की ओर भी इशारा किया है । हालांकि चीन ने गरीबी समाप्त् करने के क्षेत्र में काफी तरक्की की है लेकिन कुछ असंतुलन अभी भी बाकी है । पहाड़ी क्षेत्रों में ऐसे क्षेत्र जहां अल्पसंख्यक रहते हैं और जहां महामारियां होती हैं वहां अभी भी काफी बड़ी सामाजिक दरार बनी हुई है । यही वे क्षेत्र हैं जहां पर सामाजिक विकास का प्राथमिक कार्य होना है । विभाग ने इस विषय पर इंगित करते हुए कई चुनौतियों की बात की है । इसमें प्रमुख हैं पर्यावरणीय समस्याएं और प्राकृतिक विध्वंस तथा नई महामारियां और बाजार की असफलता का जोखिम जिससे कि गरीब अधिक प्रभावित होते हैं ।
इसी के साथ पलायन की प्रवृत्ति पर भी प्रकाश डाला गया है । साथ ही बढ़ते शहरीकरण की दिक्कतें जिसमें प्रवासियांे बीमा या किसी भी किस्म की सामाजिक सुरक्षा न मिल पाना शामिल है । ग्रामीण और शहरी लोगों के मध्य आमदनी का अंतर भी बढ़ता जा रहा है ।
निष्कर्ष यह है कि चीन अभी बहुत नाजुक दौर में है और आवश्यकता इस बात की है कि पर्यावरण और प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए एक बेहतर जीवन की ओर अग्रसर हुआ जाए । अत्यधिक जनसंख्या वाले किसी भी देश में इस तरह का संतुलन बनाना बहुत कठिन होता है । सारा विश्व देख रहा है कि चीन में भविष्य में क्या होगा क्योंकि वह उन्हें भी उसी तरह प्रभावित करेगा । ***
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