खाद्यान्न का संकट कहां है ?
आई.आर.आई.एन
विश्वभर में खाद्यान्न के बढ़ते मूल्य संकट का कारण बनते जा रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि मूल्योंे में संतुलन रखने हेतु सारी दुनिया नई कृषि नीति का विकास करें जिससे कि स्थानीय आवश्यकताआें की पूर्ति ठीक से हो सके।
सन् २०१० का समापन २००८ के बाद के सबसे अधिक खाद्यान्न मूल्यों के साथ हुआ । इस समय विश्व बहुत से मुख्य खाद्यान्नों की अत्यधिक कीमतों के संकट से भी जुझ रहा है । इस वजह से कुछ राष्ट्रों में दंगे हुए है और कम से कम एक सरकार का तख्ता पलट भी हो चुका है । इतना ही नहीं इसकी वजह से दुनियाभर में एक अरब से अधिक लोग भूख का शिकार है । यह बात ध्यान देने योग्य है कि क्या किसी ने खाद्यान्न के मूल्यों में इस उछाल की कल्पना की थी और यदि की थी तो इससे निपटने के लिए क्या कुछ उपाय भी किये थे ? सन् २०१० की स्थिति के मद्देनजर कुछ सवाल सामने आ रहे है जिनका जवाब खोजना अब आवश्यक हो गया है । अधिकाशं विशेषज्ञ इसे अस्थायी मूल्य वृद्धि के रूप में देख रहे है ।
परंतु यह बहस भी जारी है कि क्या खाद्य मूल्य जून २००८ में खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ.ए.ओ. ) के अंतर सरकार खाद्यान्न समूह के सचिव अब्डोल्रेजा अब्बासिअन का कहना है कीमतों में वृद्धि से हमें धक्का तो पहुंचा है ै। लेकिन हम वैश्विक संकट में नहीं है और अभी वैश्विक आपूर्ति के सामने भी कोई संकट नहीं है । उनका यह भी कहना है कि राष्ट्रों के सामने यह संकट इस बात पर निर्भर करता है कि उनके पास भरपूर आपूर्ति है और उनके पास खाद्यान्न के आयात हेतु वित्तीय क्षमता कितनी है । वहींयूरोपियन आयोग के कृषि प्रवक्ता रोजन वैटी का कहना है कि कुछ वस्तुआें की बाजार में कमी है और औसत मूल्य भी हालिया औसत मूल्यों से अधिक है। लेकिन वे अभी भी २००८ के भावों के आस-पास नहीं है । इस हेतु वे विश्वबैंक के आंकड़े भी प्रस्तुत करते है ।
वहीं २००७-०८ में आए खाद्य संकट पर शेनग्गन फेन के साथ पुस्तक लिखने वाले सह लेखक डेरेक हेडी का कहना है कि वर्तमान वैश्विक वातावरण में बहुत समानता है । उनका कहना है कि यह एक बुलबुले की तरह है । कृषि में आपूर्ति के धीमा होने की वजह मौसमी है । अमेरिका जैसे बड़े कृषि उत्पादक देश में आई एक अच्छी फसल कीमतों को पुन: नीचे ले आएगी ।
विशेषज्ञ इस बात पर एकमत है कि मौसम इसका एक महत्वपूर्ण कारक है । खाद्यान्न विशेषकर गेंहू की कीमतों में सन् २०१० की दूसरी छ:माही में मूल्यों में आया एकायक उछाल रूस और युक्रेन जो कि दुनिया के विशालतम अन्न उत्पादक राष्ट्रों में से है में पड़ा सूखा व आग के कारण है । इस खबर से २०१० की दूसरी छ:माही में कुछ देशों में गेेंहू की कीमतों में ४५ प्रतिशत और कुछ देश में तो ८० प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई ं एक अन्य गेहूं निर्माता देश कनाडा को भी अत्यंत खराब मौसम का सामना करना पड़ा और रूस द्वारा गेंहू निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से स्थितियां और भी विषम हो गई ।
हेडी विश्व वैश्विक वित्तीय संकट को इसका एक दूसरा कारण मानते हुए कहते है कि अनेक देशों खासकर अमेरिका ने अपनी अर्थव्यवस्था में खूब धन का प्रवेश कराया और ब्याज दरों में भी कमी कर दी । इसके साथ डॉलर के बहुत कमजोर होने ने भी वस्तुआें के अधिक मूल्य की स्थिति पैदा की । इसी के साथ तेल की बढ़ती कीमतों से खाद्यान्न उत्पादन प्रक्रिया और परिवहन की लागत भी बढ़ जाने से खाद्य कीमतों में उछाल आया । हेडी और वेटी ने खाद्यान्न का जैविक ईधन बनाने में इस्तेमाल को भी मूल्य बढ़ाने वाली सूची में शामिल किया है । इसी के साथ वेटी सट्टेबाजी को भी एक बड़ा कारण बताते हुए कहते है कि अगस्त २०१० में युक्रेन और रूस में खराब मौसम की भविष्यवाणी होने के दो हफ्तों के भीतर विश्व में गेहूं के दाम दुगने हो गए ।
अब्बास्सियान का कहना है कि सौभाग्यवश अधिकांश विकासशील देशों में इस वर्ष अच्छी फसल आई है और वे वैश्विक मूल्य वृद्धि से अप्रभावित रहे है । वे कहते है कि लोग कुछेक देशों पर प्रभावों को ही देख रहे है और उन ६०-७० देशों की ओर से आंख मूंदे है, जो कि अप्रभावित है और इसे संकट निरूपित कर रहे है । हालांकि वैश्विक मूल्यों कों घरेलू बाजारों में आने में थोड़ा समय लगेगा क्योंकि मूल्यवृद्धि के प्रभाव का असर तो अधिकांशत: स्थानीय परिस्थितियां ही तय करती है । वहीं विश्व बैंक का कहना है कि उसके विश्लेषण बताते है कि गेंहूं की ऊंची कीमतें कुछ विकासशील देशों तक पहंुच भी चुकी है । आटे के मूल्यों में आई अत्यधिक तेजी में ईधन के मूल्य का भी योगदान है । अफगानिस्तान में अब इतनी क्षमता नहीं बची की वे गेहूं की पिसाई स्वयं कर सके अत: वह पडौसी पाकिस्तान और कजाकिस्तान से आटा आयात करता है । इसके विपरीत केन्या जैसे अनेक देशों में मक्का की अच्छी पैदावार से कीमतों में कमी आई है । परंतु वियतनाम में चावल का उत्पादन घटने से इस खाद्यान्न की कीमतों में वृद्धि हुई है । कीमतों के बढ़ने का पहला शिकार अच्छी गुणवत्ता का भोजन ही होता है । विश्वबैंक द्वारा २००७ -०८ में अफगानिस्तान के २०,००० घरों में किए गए सर्वेक्षण से पता चला कि अधिकांश परिवारों को भोजन की विविधता से हाथ धोना पड़ा और बढ़ती कीमतों से सामंजस्य स्थापित करने हेतु उन्हें पोषण भरे आहार जैसे मांस, फल और सब्जी के स्थान पर गेहूं जैसे खाद्यान्नों को अपनाना पड़ा है ।
हेडी का मानना है कि देशों को अपने खाघान्न भंडारण की सूची जारी करना चाहिए और आयातित खाद्य वस्तुआें पर कर कम करना चाहिए । उनका कहना है कि कुछ मामलों में देश विनिमय दर नीतियों का इस्तेमाल कर महंगाई के प्रभाव को कम कर सकते है । अधिकांश विशेषज्ञ निर्यात पर प्रतिबंध के पक्ष में नहीं है । उनके हिसाब से इससे स्थितियां और बदतर होंगी । वहीं एफएओ का कहना है कि जिन देशों को खाद्यान्न के आयात की आवश्यक पड़ रही है उनके लिए शर्तेअनुकूल करना आवश्यक है । सभी विशेषज्ञ मानते हैं कि दीर्घकालीन हल के लिए सुरक्षा जाल बढ़ाया जाए और जिन देशों में क्षमता है वहां पर उत्पादन भी बढ़ाया जाए ।
यह एक महत्वपूर्ण मसला है । हेडी और फेन द्वारा अमेरिका के कृषि विभाग द्वारा एफएओ और ओईसीडी के साथ मिलकर अगले १० वर्ष के लिए पूर्वानुमान लगाया है जिसमें संतुलन बनाए रखने के लिए सामान्य आपूर्ति और मांग को लिया है तथा जनसंख्या और आर्थिक वृद्धि, तेल की कीमतों का रूख और जैविक ईधन हेतु खाद्यान्नों के इस्तेमाल को ध्यान में रखा है । इस तारतम्य में उनका कहना है अब जबकि संतुलन स्थापित करने वाले मूल्य ही अधिक है ऐसे में कम अवधि के कारक खतरनाक उतार चढ़ाव पैदा करने वाले साबित हो सकते है क्योंकि बाजार में पहले से ही खाद्यान्नों की कमी है ।
हमें विचार करना होगी कि जहां पूर्व में ही बाढ़ आई हुई हो वहां थोड़ी सी बूंदाबांदी भी स्थिति को बहुत खतरनाक बना देती है । हम पहले ही चरम पर पहंुच चुके है। ऐसे में आगे किसी भी तरह की मूल्यवृद्धि के असर अकल्पनीय है । ***
1 टिप्पणी:
nice sharing
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