पेड़-पौधे
पौधे अवशोषित करें, हर जहरीली गैस ।
मानव करता फिर रहा, उनके दम पर ऐश ।
चुपके-चुपके काटता, जगल सारी रात ।
दिन भर जो करता मिला, हरियाली की बात ।।
अरे कुल्हाड़ी ! पेड़ पर, क्यों कर रही प्रहार ?
ये भी मानव की तरह, जीने के ह्ै हकदार ।।
स्वार्थ-सिद्धि के हेतु ही, कुछ ने काटे पेड़ ।
नासमझी में कर गये, कुदरत से मुठभेड़ ।।
हर पल करती जा रही, प्रकृति तुम्हें आगाह ।
पेड़ों-पौधों की तुम्हेंे, करनी है सबको परवाह ।।
वृक्षारोपण पुण्य है, वृक्ष काटना पाप ।
अब भी समझे नहीं, तो कब समझेंगे आप ?
जीवन की परिकल्पना, बिना वृक्ष बेकार ।
अत्यावश्यक इसलिए, हरा-भरा संसार ।।
वृक्षारोपण का चले, लगातार अभियान ।
इन अभियानों पर अमल, करें आप श्रीमान ।।
कुंवर कुसुमेश
पौधे अवशोषित करें, हर जहरीली गैस ।
मानव करता फिर रहा, उनके दम पर ऐश ।
चुपके-चुपके काटता, जगल सारी रात ।
दिन भर जो करता मिला, हरियाली की बात ।।
अरे कुल्हाड़ी ! पेड़ पर, क्यों कर रही प्रहार ?
ये भी मानव की तरह, जीने के ह्ै हकदार ।।
स्वार्थ-सिद्धि के हेतु ही, कुछ ने काटे पेड़ ।
नासमझी में कर गये, कुदरत से मुठभेड़ ।।
हर पल करती जा रही, प्रकृति तुम्हें आगाह ।
पेड़ों-पौधों की तुम्हेंे, करनी है सबको परवाह ।।
वृक्षारोपण पुण्य है, वृक्ष काटना पाप ।
अब भी समझे नहीं, तो कब समझेंगे आप ?
जीवन की परिकल्पना, बिना वृक्ष बेकार ।
अत्यावश्यक इसलिए, हरा-भरा संसार ।।
वृक्षारोपण का चले, लगातार अभियान ।
इन अभियानों पर अमल, करें आप श्रीमान ।।
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