सन् १९९० के बाद ८ साल बढ़ी भारतीयों की उम्र
भारतीयों की औसत आयु में आठ साल का इजाफा हुआ है । यह इजाफा साल २००९ में देखा गया जो कि दो दशक पहले की तुलना में अधिक है । यह आंकडा वैश्विक औसत जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) से भी तीन वर्ष अधिक है ।
ये आकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी हेल्थ स्टेटिटिक्स २०११ में सामने आए है । आंकड़े बताते है कि साल २००९ के दौरान एक भारतीय महिला अपने पुरूष साथी से तुलना में तीन साल अधिक जीवित रही । यानी भारतीय पुरूष की जीवन प्रत्याशा उम्र ६३ साल की तुलना में ये महिलाएं ६६ वर्ष की उम्र तक रहीं । आंकड़ो के मुताबिक, लेकिन इस शताब्दी के बाद महिलाआें की यह उम्र ६२ और पुरूष की ६० वर्ष रह जाएगी । ये आंकड़े औसतन ६५ वर्ष की उम्र रहे जीवित रहे भारतीयों पर जारी हुए है ।
रिपोर्ट के मुताबिक साल २००९ में वैश्विक औसतन जीवन प्रत्याशा उम्र ६८ साल रही । तुलनात्मक रूप से देखें, तो १९९० में भारतीयों की औसतन आयु
५७, जबकि साल २००० में यह ६१ वर्ष देखी गई । डब्ल्यूएचओ के अनुसार, १९९० के बाद से महिला-पुरूषों की वैश्विक आबादी की उम्र में ४ साल की बढ़त हुई है ।
आंकड़े बताते है कि चीन और भारत की महिला-पुरूष आबादी के तुलनात्मक अध्ययन से पता चला है कि औसत आयु से चीनियों की जीवन प्रत्याशा नौ साल ज्यादा है । १९९० में चीनियों की औसत आयु जहां ६८ वर्ष थी, २००९ में यह ७४ वर्ष तक जा पहुंची । हालांकि भारतीयों से पाकिस्तानियों की औसतन आयु दो वर्ष कम है । पाकिस्तान में जीवन प्रत्याशा की औसत आयु ६३ साल है, जबकि नेपाल में यह ६७, थाईलैण्ड में ७० और बांग्लादेश में ६५ है । जीवन प्रत्याशा के ये आकड़े भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक है । रिपोर्ट बताती है कि वर्ष २०२१ तक एक भारतीय महिला ७२.३ वर्ष तक जीवित रहने की इच्छा कर सकती है जो कि २००१ में ६६.१ और वर्तमान में ६८.१ साल थी ।
इस परियोजना का प्रस्ताव एनवॉयरमेंटल प्लानिंग एंड कॉरडिनेशन ऑरगेनाईजेशन की ओर से बनाया गया है जिसका राज्य सरकार द्वारा गठित अंतर विभागीय समिति की ओर से अनुमोदन के बाद अब इसे केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेजा जाएगा । भारत में बॉयोस्फियर रिजर्व यूनेस्को के मेन एंड बॉयोस्फियर को ध्यान में रखकर बनाए जाते है ये एक अंतर्राष्ट्रीय अवधारणा है इसमें जंगलों को उनमें रहने वाले ग्रामीणों और आदिवासियों के साथ संरक्षित किया जाता है ऐसे बॉयोस्फियर रिजर्व का क्षेत्रफल विशाल होता है और कोर क्षेत्र को नियम के मुताबिक संरक्षित रखा जाता है । जबकि बफर और ट्रांजीशन क्षेत्र में अभ्यारण्य रखे जाते है । बफर और ट्रांजीशन क्षेत्र में आदिवासियों और ग्रामीणों को जस का तस रहने दिया जाता है ।
अभी तक भारत में १६ बॉयोस्फियर रिजर्व बनाए गए है जबकि दुनिया में १०९ देशों में ५६४ बॉयोस्फियर रिजर्व बने है । मध्यप्रदेश में ये दो है । इनमें से एक पचमढ़ी बॉयोस्फियर रिजर्व है जबकि दूसरा मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर आने वाला अचानक मार-अमरकंटक बॉयोस्फियर रिजर्व है । पन्ना बॉयोस्फियर रिजर्व मध्यप्रदेश का तीसरा बॉयोस्फियर रिजर्व होगा, जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग ३००० वर्ग किलोमीटर रखा गया है । इसका विस्तार पन्ना तथा छतरपुर जिलों तक होगा जिसमें पन्ना राष्ट्रीय उद्यान तथा गंगऊ और केन द्यड़ियाल अभ्यारण्यों को शामिल किय जाएगा । इसमें कुछ हिस्सा खजुराहों युनेस्को की तरफ से पहले ही विश्व धरोहर घोषित किया जा चुका है ।
बॉयोस्फियर रिजर्व के लाभ समाज विज्ञानी मानते है कि जंगल से आदिवासियों को खदेड़े जाने पर वह शिकारियों के साथ मिलकर जन जीवों का शिकार करने लगते है या गलत रास्ते पर चले जाते है । बॉयोस्फियर रिजर्व की अवधारणा से आदिवासियों की इन चिन्ताआें को दूर किया जा सकेगा ।
आत्म निर्भरता के साथ-साथ पर्यावरण सुधार और गरीबी के बाजवूद तरक्की के साथ कदमताल करने का करिश्मा कैसे किया जा सकता है, यह कोई बिहार के इलेक्ट्रिल इंजीनियर जानेश पांडेय से सीखे । भूसी से साफ-सुथरी बिजली बनाकर अपने राज्य के पश्चिमी चंपारण जिले के बेहद गरीब ३८० गांवों को जगमगाने का काम ने उन्हें पूरी दुनिया की निगाहों में ला दिया है ।
अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में ब्रिटेन के जानेमाने एशडेन अवार्ड की चयन समिति ने ज्ञानेश के काम को दुनिया के पांच सबसे इनोवेटिव ग्रीन प्रॉजेक्ट्स में शामिल किया है । एशडेन के मुताबिक युवा ज्ञानेश की कंपनी के ६५ मिनी पावर प्लांटों से ऐसे करीब दो लाख लोगों को बिजली मिल रही है जिनके पास इससे पहले बिजली पाने का कोई जरिया न था । इस बिजली की कीमत भी बहुत वाजिब है । सौ रूपये महीने के खर्च पर प्रत्येक घर को ५० वॉट बिजली मिल रही है, जिससे सीएफएल के दो बल्ब जलाए जा सकते है और मोबाइल फोन चार्ज किया जा सकता है । एशडेन की नजर में इस प्रोजेक्ट का सबसे बड़ा फायदा पर्यावरण को होगा क्योंकि इससे कार्बनडाइऑक्साइड के उत्सर्जन में सालाना ८ हजार टन की कटौती हो रही है ।
भारत जैसे गरीब मुल्क के लिए ऐसे आविष्कार कई और मायनों में क्रांतिकारी कहे जा सकते है । देश में आज भी ऐसे हजारों गांव है जहां बिजली पहुंचाने का कोई इंतजाम तमाम दावों के बावजूद शायद अगले दस साल मेंे भी मुमकिन नहीं हो पाएगा । इसके अलावा शहरों में बिजली की खपत में बेहिसाब बढ़ोतरी के चलते वे गांव-कस्बे भी अभी अंधेरे में डूबे रहते है जहां कहने को बिजली पहुंची हुई है । आजादी के ६० साल बाद भी लालटेन की रोशनी में पढ़ते बच्चें की यह मजबूरी खत्म की जा सकती है, बशर्ते वहां धान की भूसी जैसी बेकार समझी जाने वाली चीजों से बिजली बनाने के इंतजाम हो जाएं । ज्ञानेश के हस्क पावर प्लांट इस मामले में बड़ी उम्मीद जगाते है ।
अपने देश में गांवों को आत्मनिर्भर बनाने वाले कुछ ऐसे प्रयोग पहले भी हुए है - जैसे गोबर गैस प्लांटो से घरों को बिजली और खाना पकाने की गैस एक साथ दे सकने वाला अद्धुत इंतजाम । अनुमान है कि करीब २५ लाख घरों को इससे बिजली मिल रही है । लेकिन देश में बिजली की बढ़ती जरूरतों के बावजूद अब इसकी कोई विशेष चर्चा न होना हैरानी पैदा करता है । भारत की जमीन से उठे आविष्कारों का कोेई मतलब तभी है जब गरीब जनता को उनका भरपूर फायदा दिलाया जाए ।
वन विभाग के सूत्रों के अनुसार बांधवगढ़, पन्ना, कान्हा पेंच नेशनल पार्क एवं राजधानी भोपाल के वन विहार में बिते कुछ माहों में अचानक ही अनेक बाघों की मौत हो चुकी है । राज्य शासन ने इसे अत्यन्त गंभीरता से लिया है और बाघों के संरक्षण के लिये एक कार्य योजना को क्रियान्वित किया जा रहा है । इसी क्रम में सतपुड़ा अंचल के मंडला, बालाघाट जिले की सीमा में स्थित कान्हा नेशनल पार्क एवं सिवनी जिले की सरहद में स्थित पेंच नेशनल पार्क को जोड़ने के लिये कारीडोर बनाया जाना प्रस्तावित है ।
सूत्रों के अनुसार इस कारीडोर के बनने से वन्य प्राणियों के साथ बाघों को सुरक्षित विचरण सुनिश्चित होगा, आगामी दो साल में यह कारीडोर बन कर तैयार हो जायेगा । कारीडोर के निर्माण में सिवनी के साथ मंडला जिले के १३८ ग्राम बीच में आ रहे है, जिनमें वन गांव भी शामिल है । इन ग्रामों को वहां से हटाया जाना जरूरी होगा । अन्यथा वन्य जीवों की आवाजाही प्रभावित होगी इस स्थिति में सभी १३८ गांवों के विस्थापन की योजना बनायी जा रही है ।
बताया गया है कि प्रस्तावित कारीडोर पेंच नेशनल पार्क से लगे पेंच अभ्यारण्य दक्षिण वनमण्डल के रूखड़ अरी बरघाट एवं उगली वन परिक्षेत्र के सुदूर वनांचलों से होते हुए मंडला जिले के नैनपुर, चिरई डोगरी, वन परिेक्षेत्रों से होता हुआ कान्हा नेशनल पार्क से जुड़ेगा ।
इस कारीडोर के बन जाने से पेंच पार्क के बाघ स्वछंद विचरण करते हुये कान्हा तक पहुंच सकेगे, साथ ही वहां के अन्य वन्य प्राणी भी इसी कारीडोर से होते हुये पेंच की परिधि में प्रवेश कर सकेगेंऔर मध्य में पड़ने वाले ग्रामों के विस्थापन होने से वन्य प्राणियों समुचित सुरक्षा हो सकेगी, क्योंकि सभी ग्राम काफी आबादी वाले है ।
ये आकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी हेल्थ स्टेटिटिक्स २०११ में सामने आए है । आंकड़े बताते है कि साल २००९ के दौरान एक भारतीय महिला अपने पुरूष साथी से तुलना में तीन साल अधिक जीवित रही । यानी भारतीय पुरूष की जीवन प्रत्याशा उम्र ६३ साल की तुलना में ये महिलाएं ६६ वर्ष की उम्र तक रहीं । आंकड़ो के मुताबिक, लेकिन इस शताब्दी के बाद महिलाआें की यह उम्र ६२ और पुरूष की ६० वर्ष रह जाएगी । ये आंकड़े औसतन ६५ वर्ष की उम्र रहे जीवित रहे भारतीयों पर जारी हुए है ।
रिपोर्ट के मुताबिक साल २००९ में वैश्विक औसतन जीवन प्रत्याशा उम्र ६८ साल रही । तुलनात्मक रूप से देखें, तो १९९० में भारतीयों की औसतन आयु
५७, जबकि साल २००० में यह ६१ वर्ष देखी गई । डब्ल्यूएचओ के अनुसार, १९९० के बाद से महिला-पुरूषों की वैश्विक आबादी की उम्र में ४ साल की बढ़त हुई है ।
आंकड़े बताते है कि चीन और भारत की महिला-पुरूष आबादी के तुलनात्मक अध्ययन से पता चला है कि औसत आयु से चीनियों की जीवन प्रत्याशा नौ साल ज्यादा है । १९९० में चीनियों की औसत आयु जहां ६८ वर्ष थी, २००९ में यह ७४ वर्ष तक जा पहुंची । हालांकि भारतीयों से पाकिस्तानियों की औसतन आयु दो वर्ष कम है । पाकिस्तान में जीवन प्रत्याशा की औसत आयु ६३ साल है, जबकि नेपाल में यह ६७, थाईलैण्ड में ७० और बांग्लादेश में ६५ है । जीवन प्रत्याशा के ये आकड़े भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक है । रिपोर्ट बताती है कि वर्ष २०२१ तक एक भारतीय महिला ७२.३ वर्ष तक जीवित रहने की इच्छा कर सकती है जो कि २००१ में ६६.१ और वर्तमान में ६८.१ साल थी ।
पन्ना में बनेगा बॉयोस्फियर रिजर्व
मध्यप्रदेश के पन्ना वन क्षेत्र को राज्य का तीसरा बायोस्फियर रिजर्व बनाए जाने की तैयारीं की जा रही है । पन्ना की नैसर्गिक जैव विविधता को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है । इस परियोजना का प्रस्ताव एनवॉयरमेंटल प्लानिंग एंड कॉरडिनेशन ऑरगेनाईजेशन की ओर से बनाया गया है जिसका राज्य सरकार द्वारा गठित अंतर विभागीय समिति की ओर से अनुमोदन के बाद अब इसे केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेजा जाएगा । भारत में बॉयोस्फियर रिजर्व यूनेस्को के मेन एंड बॉयोस्फियर को ध्यान में रखकर बनाए जाते है ये एक अंतर्राष्ट्रीय अवधारणा है इसमें जंगलों को उनमें रहने वाले ग्रामीणों और आदिवासियों के साथ संरक्षित किया जाता है ऐसे बॉयोस्फियर रिजर्व का क्षेत्रफल विशाल होता है और कोर क्षेत्र को नियम के मुताबिक संरक्षित रखा जाता है । जबकि बफर और ट्रांजीशन क्षेत्र में अभ्यारण्य रखे जाते है । बफर और ट्रांजीशन क्षेत्र में आदिवासियों और ग्रामीणों को जस का तस रहने दिया जाता है ।
अभी तक भारत में १६ बॉयोस्फियर रिजर्व बनाए गए है जबकि दुनिया में १०९ देशों में ५६४ बॉयोस्फियर रिजर्व बने है । मध्यप्रदेश में ये दो है । इनमें से एक पचमढ़ी बॉयोस्फियर रिजर्व है जबकि दूसरा मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर आने वाला अचानक मार-अमरकंटक बॉयोस्फियर रिजर्व है । पन्ना बॉयोस्फियर रिजर्व मध्यप्रदेश का तीसरा बॉयोस्फियर रिजर्व होगा, जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग ३००० वर्ग किलोमीटर रखा गया है । इसका विस्तार पन्ना तथा छतरपुर जिलों तक होगा जिसमें पन्ना राष्ट्रीय उद्यान तथा गंगऊ और केन द्यड़ियाल अभ्यारण्यों को शामिल किय जाएगा । इसमें कुछ हिस्सा खजुराहों युनेस्को की तरफ से पहले ही विश्व धरोहर घोषित किया जा चुका है ।
बॉयोस्फियर रिजर्व के लाभ समाज विज्ञानी मानते है कि जंगल से आदिवासियों को खदेड़े जाने पर वह शिकारियों के साथ मिलकर जन जीवों का शिकार करने लगते है या गलत रास्ते पर चले जाते है । बॉयोस्फियर रिजर्व की अवधारणा से आदिवासियों की इन चिन्ताआें को दूर किया जा सकेगा ।
युवा ने बनाई भूसी से बिजली
आत्म निर्भरता के साथ-साथ पर्यावरण सुधार और गरीबी के बाजवूद तरक्की के साथ कदमताल करने का करिश्मा कैसे किया जा सकता है, यह कोई बिहार के इलेक्ट्रिल इंजीनियर जानेश पांडेय से सीखे । भूसी से साफ-सुथरी बिजली बनाकर अपने राज्य के पश्चिमी चंपारण जिले के बेहद गरीब ३८० गांवों को जगमगाने का काम ने उन्हें पूरी दुनिया की निगाहों में ला दिया है ।
अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में ब्रिटेन के जानेमाने एशडेन अवार्ड की चयन समिति ने ज्ञानेश के काम को दुनिया के पांच सबसे इनोवेटिव ग्रीन प्रॉजेक्ट्स में शामिल किया है । एशडेन के मुताबिक युवा ज्ञानेश की कंपनी के ६५ मिनी पावर प्लांटों से ऐसे करीब दो लाख लोगों को बिजली मिल रही है जिनके पास इससे पहले बिजली पाने का कोई जरिया न था । इस बिजली की कीमत भी बहुत वाजिब है । सौ रूपये महीने के खर्च पर प्रत्येक घर को ५० वॉट बिजली मिल रही है, जिससे सीएफएल के दो बल्ब जलाए जा सकते है और मोबाइल फोन चार्ज किया जा सकता है । एशडेन की नजर में इस प्रोजेक्ट का सबसे बड़ा फायदा पर्यावरण को होगा क्योंकि इससे कार्बनडाइऑक्साइड के उत्सर्जन में सालाना ८ हजार टन की कटौती हो रही है ।
भारत जैसे गरीब मुल्क के लिए ऐसे आविष्कार कई और मायनों में क्रांतिकारी कहे जा सकते है । देश में आज भी ऐसे हजारों गांव है जहां बिजली पहुंचाने का कोई इंतजाम तमाम दावों के बावजूद शायद अगले दस साल मेंे भी मुमकिन नहीं हो पाएगा । इसके अलावा शहरों में बिजली की खपत में बेहिसाब बढ़ोतरी के चलते वे गांव-कस्बे भी अभी अंधेरे में डूबे रहते है जहां कहने को बिजली पहुंची हुई है । आजादी के ६० साल बाद भी लालटेन की रोशनी में पढ़ते बच्चें की यह मजबूरी खत्म की जा सकती है, बशर्ते वहां धान की भूसी जैसी बेकार समझी जाने वाली चीजों से बिजली बनाने के इंतजाम हो जाएं । ज्ञानेश के हस्क पावर प्लांट इस मामले में बड़ी उम्मीद जगाते है ।
अपने देश में गांवों को आत्मनिर्भर बनाने वाले कुछ ऐसे प्रयोग पहले भी हुए है - जैसे गोबर गैस प्लांटो से घरों को बिजली और खाना पकाने की गैस एक साथ दे सकने वाला अद्धुत इंतजाम । अनुमान है कि करीब २५ लाख घरों को इससे बिजली मिल रही है । लेकिन देश में बिजली की बढ़ती जरूरतों के बावजूद अब इसकी कोई विशेष चर्चा न होना हैरानी पैदा करता है । भारत की जमीन से उठे आविष्कारों का कोेई मतलब तभी है जब गरीब जनता को उनका भरपूर फायदा दिलाया जाए ।
कान्हा और पेंच को जोड़ने की कोरीडोर योजना
मध्यप्रदेश के विभिन्न नेशनल पार्क टाइगर रिजर्व में वन्य प्राणियों की मौतीं की घटनाआें में अचानक ही वृद्धि को राज्य शासन ने गंभीरता से लिया है । इन दुर्लभ होते जो रहे वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिये अनेक उपाय किये जा रहे हैं जिनमें कान्हा और पेंच नेशनल पार्क को जोड़ने वाली कारीडोर योजना भी शामिल है । वन विभाग के सूत्रों के अनुसार बांधवगढ़, पन्ना, कान्हा पेंच नेशनल पार्क एवं राजधानी भोपाल के वन विहार में बिते कुछ माहों में अचानक ही अनेक बाघों की मौत हो चुकी है । राज्य शासन ने इसे अत्यन्त गंभीरता से लिया है और बाघों के संरक्षण के लिये एक कार्य योजना को क्रियान्वित किया जा रहा है । इसी क्रम में सतपुड़ा अंचल के मंडला, बालाघाट जिले की सीमा में स्थित कान्हा नेशनल पार्क एवं सिवनी जिले की सरहद में स्थित पेंच नेशनल पार्क को जोड़ने के लिये कारीडोर बनाया जाना प्रस्तावित है ।
सूत्रों के अनुसार इस कारीडोर के बनने से वन्य प्राणियों के साथ बाघों को सुरक्षित विचरण सुनिश्चित होगा, आगामी दो साल में यह कारीडोर बन कर तैयार हो जायेगा । कारीडोर के निर्माण में सिवनी के साथ मंडला जिले के १३८ ग्राम बीच में आ रहे है, जिनमें वन गांव भी शामिल है । इन ग्रामों को वहां से हटाया जाना जरूरी होगा । अन्यथा वन्य जीवों की आवाजाही प्रभावित होगी इस स्थिति में सभी १३८ गांवों के विस्थापन की योजना बनायी जा रही है ।
बताया गया है कि प्रस्तावित कारीडोर पेंच नेशनल पार्क से लगे पेंच अभ्यारण्य दक्षिण वनमण्डल के रूखड़ अरी बरघाट एवं उगली वन परिक्षेत्र के सुदूर वनांचलों से होते हुए मंडला जिले के नैनपुर, चिरई डोगरी, वन परिेक्षेत्रों से होता हुआ कान्हा नेशनल पार्क से जुड़ेगा ।
इस कारीडोर के बन जाने से पेंच पार्क के बाघ स्वछंद विचरण करते हुये कान्हा तक पहुंच सकेगे, साथ ही वहां के अन्य वन्य प्राणी भी इसी कारीडोर से होते हुये पेंच की परिधि में प्रवेश कर सकेगेंऔर मध्य में पड़ने वाले ग्रामों के विस्थापन होने से वन्य प्राणियों समुचित सुरक्षा हो सकेगी, क्योंकि सभी ग्राम काफी आबादी वाले है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें