सोमवार, 25 जुलाई 2011

हमारा भूमण्डल

किसकी सुरक्षा कौन करेगा ?
लता जिश्नु

भारत अमेरिकी शब्दावली और विचारधारा को अपनाने की हड़बड़ी में यह भूल जाता है कि वह एक विकासशील देश है और उसे अभी भूख, गरीबी, बीमारी और बेरोजगारी से निपटना है । साथ ही शिक्षा व आधारभूत ढांचे पर भी बड़ी मात्रा में निवेश करना है । परन्तु भारतीय व बहुराष्ट्रीय कंपनियां भय का वातावरण बनाकर देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को हथिया लेना चाहती हैं । क्या ऐसा करना देशहित में है
घरेलू (होमलैंड) सुरक्षा एक फलता-फूलता व्यवसाय है। इसका सीधा सा अर्थ है बड़ी मात्रा में धन और वास्तविक और काल्पनिक दोनों ही तरह के खतरों से हमें बचने में निजी सुरक्षा सलाहकारों और ठेकेदारों की महती भूमिका ! हम बहुत आसानी से अमेरिकी शब्दावली व विचाराधारा अपना लेते हैं । वैसे यह तय नहीं

है कि होमलैंड शब्द का भारत में निश्चित तौर पर पदार्पण कब हुआ - अब हम सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए अमेरिकी प्रशासनिक तरीकों को भी अपना रहे हैं । दुनिया की सबसे प्रसिद्ध निजी सुरक्षा एजेंसी ब्लेकवाटर को याद कीजिए जिसने इराक में चांदमारी कर सुर्खिया प्राप्त् की थी । क्या इस तरह का कोई हल हमारे यहां अच्छा विकल्प हो सकता है ?
कुछ निजी कंपनियां जो कि मुख्यत: ऐसे अमेरिकी और यूरोपियन निर्माताआें की एजेंट थी जो कि नवीनतम सुरक्षा उपकरण बनाते हैं, के लिए सेवाआें की श्रृंखला के माध्यम से एक बड़ा बाजार तैयार करने में जुटी हुई हैं । संभवत: वह एक अतियथार्थवादी सुबह थी जो मैंनें फेडरेशन इण्डियन चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्रीज (फिक्की) की बोलचाल
वाली दुकान (टॉक शॉप) में बिताई । इसमें सभी तरह के सुरक्षा विशेषज्ञ जिसमें सेना के अवकाश प्राप्त् जनरल, निगरानी रखने वाले निजी समूह और जोखिम का आकलन करने वाली उच्च् श्रेणी की कंपनियां शामिल थीं, देश के सम्मुख आ रही सुरक्षा समस्याआें पर माथापच्ची कर रहे थे ।
शामिल होने वाले समूहों में से अधिकांश के लिए नक्सलवादियों अथवा माओवादियों द्वारा प्रस्तुत संकट सबसे अधिक विचलित करने वाला विषय था । शस्त्रों का धड़ल्ले से उपयोग करने के हिमायती एक अवकाश प्राप्त् मेजर जनरल के पास इस समस्या का हल मौजूद था । गरम खून वाले इन महाशय ने इशारा करते हुए सुझाया कि माओवादियों का नेतृत्व बहुत ही छोटा है । उनके पॉलित ब्यूरो में ३२ और केंद्रीय सैन्य कमान में १३ सदस्य हैं । उनका कहना था इन सबको खत्म कर दीजिए । आदिवासियों को आदिवासियों के खिलाफ खड़ा कर दीजिए और इस तरह हम इस

समस्या को समाप्त् कर सकते हैं ।
एक पूर्व सैन्य अधिकारी के इस सिद्धांत से दर्शकों में जिसमें गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल थे, सन्नाटा खिंच गया । उनके हिसाब से केन्द्रीय रिजर्व बल इस विद्रोह से निपटने में सक्षम नहीं है और इस हेतु उसी तरह के कदम उठाने चाहिए जिस तरह के कदम सेना ने जम्मू कश्मीर में उठाए थे । निश्चित तौर पर कोई भी इस तरह के विचारों को गंभीरता से नहीं ले सकता भले ही प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने इसे देश के लिए सबसे बड़ा आंतरिक खतरा ही घोषित क्यों न कर दिया हो ।
हालांकि इस समय भारत के मध्य में माओवादियों के खिलाफ सरकार का हथियारों से दिया जा रहा जवाब धीमा है और इस समस्या से किस तरह निपटा जाए उस मामले में भी स्पष्टता नहीं हैं । वे यह स्वीकार भी कर रहे है कि अत्यधिक प्रभावित जिले विकास से छूटे हुए हैं । इसके बावजूद यह भी दिखाई दे रहा है कि योजना आयोग द्वारा अप्रैल २००८ में गठित विशेषज्ञ समूह ने जो अनुशंसाए की थीं उस दिशा में भी बहुत कम कार्य हुआ है ।
रिपोर्ट के तैयार होने के करीब ३२ महीनों बाद आयोग ने तय किया वह ऐसे ६० जिलों में दो किश्तों में नगण्य सी नजर आने वाली ५० से ६० करोड़ रूपए की रकम देगी । परन्तु इस आवंटन पर भी रोक लग गई है क्योंकि विभिन्न संस्थाआें में इस पर मतभेद है कि इस रकम का इस्तेमाल किस तरह से हो । तो जहां एक ओर सरकार में इस मसले पर भ्रम की स्थिति मेंे है वहीं दूसरी ओर होमलैंड सुरक्षा के लिए मुक्त हस्त से धन मुहैया कराया जा रहा है ।
उम्मीद की जा रही है कि सन् २०२० तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा सुरक्षा बाजार बन जाएगा । विशेषज्ञ रक्षा मंत्रालय को उद्धत करते हुए कहते है कि भारत अगले दो वर्षो में आंतरिक सुरक्षा पर आकस्मिक तौर पर १० अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक खर्च करेगा ।

इसका अर्थ है कंपनियों की चांदी ही चांदी । (सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ड्रोन विमानों की अनुमति देेकर इस दिशा में निवेश प्रारंभ कर दिया है ।) इस संबंध में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा को प्राथमिकता से सामने रखा जा रहा है । इसी के साथ तेलशोधक कारखाने और बंदरगाह भी फेहरिस्त में हैं । उनके हिसाब से सरकार इस तरह की चुनौतियों से निपट पाने हेतु पूर्णतया सुसज्जित नहीं है । फिक्की व भागीदारी करने वाले अन्य संस्थानों का इस सेमिनार से मुख्य आशय यही था कि सुरक्षा उद्योग इस तरह की घटनाआें को श्रृंखलाबद्ध तरीके से प्रस्तुत करें । इस हेतु एसोचेम ने एक बड़े सलाहकार की सेवाएं ली है जो कि होमलैंड सुरक्षा पर निजी सार्वजनिक भागीदारी को दृष्टिगत रखते हुए एक दस्तावेज तैयार करेगा । महिंद्रा स्पेशल सर्विस ग्रुप जिसने इस सेमिनार को प्रायोजित भी किया था, ने इस उद्योग में प्रारंभिक बढ़त भी प्राप्त् कर ली है।
फिक्की के महासचिव व पश्चिम बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्रा ने गृह मंत्रालय के साथ मिलकर एक कार्यसमूह बनाने की वकालत की है जिससे कि निजी खिलाड़ियों की पहुंच मंत्रालय के अधिकारियों तक हो सके और वे सेमिनार से चर्चा में आई तकनीकों को आगे प्रयोग में लाने पर विमर्श कर सकें । इन सुझाव को गृह मंत्रालय में आंतरिक सुरक्षा सचिव यू.के. बंसल ने सहर्ष मान भी लिया है ।
इस बीच भारत के गृह मंत्री पी.चिदंबरम और अमेरिका की होमलैंड सुरक्षा सचिव जेनेट नापोलिटानों के मध्य इस विषय पर चर्चा भी हो चुकी है । हम सशंकित है कि यह प्रक्रिया हमें कहा ले जाएगी । अमेरिका की तरह की सुरक्षा व्यवस्था से क्या हम आंतकवादियों और आतिवादियों से ज्यादा सुरक्षित हो पाएगें ? या हम पहले की ही तरह जोखिम के धुंधलके में पड़े रहेंगे ?
***

कोई टिप्पणी नहीं: