मंगलवार, 26 जुलाई 2011

ज्ञान विज्ञान

कुत्ते ने १२०० शब्द सीखने का रिकॉर्ड बनाया

जानवर कितना सीख सकते हैं ? खासतौर से भाषा जैसी चीज को सीखने में वे कहां तक जा सकते हैं ? इस मामले में बॉर्डर कोली नस्ल के एक कुत्ते चेजर ने १२०० शब्द सीखकर एक रिकॉर्ड बनाया है । चेज़र न सिर्फ शब्द सुनकर उससे संबंधित वस्तु को पहचान सकता है बल्कि वह चीजों को उनके आकार व काम के मुताबिक वर्गीकृत भी कर सकता है । शोधकर्ता मानते हैं कि इन्सान का बच्च यह सब तीन वर्ष की उम्र में सीखता है । चेजर के साथ यह प्रयोग स्पार्टनबर्ग के वोफार्ड कॉलेज के मनोविज्ञानी एलिस्टन रीड और जॉन पाइली ने किया है । चेजर को प्रशिक्षित करने का तरीका यह था कि उसे एक चीज से परिचित कराया जाता था और उसका नाम बताया जाता था । इसके बाद उससे कहा जाता था कि दूसरे कमरे में रखी कई सारी चीजों में से वह
वस्तु उठाकर लाए । जब वह सही वस्तु ले आता था तो फिर से उसका नाम दोहराकर पुष्टि की जाती थी । चेजर की परीक्षा भी ली जाती थी । जैसे एक कमरे में २० खिलौने रखकर चेजर से कहा जाता था कि वह नाम सुनकर उनमें से सही खिलौना उठाकर लाए । चेजर ने ३ साल की अवधि में ऐसी ८३८ परीक्षाएं दी और उसे २० में १८ से कम अंक कभी नहीं मिले ।

चेजर से वस्तुआें के नामों के आधार पर वर्गीकरण भी करवाया गया । इसके लिए उसे यह सिखाया गया था कि किसी एक समूह की वस्तुआें को वह अपने पंजे से छुएगा, तो किसी अन्य समूह की वस्तुआें को अपनी नाक से छूकर बताएगा । इसमें भी वह काफी सफल रहा और तो और चेजर को एक ढेर में ऐसी वस्तुएं दिखाई गई जिनमें से एक के अलावा शेष सभी के नाम वह जानता था । अब उससे एक अपरिचित नाम वाली वस्तु को उठाने को कहा गया । चेजर ने बगैर चूके वह नई वाली वस्तु उठाई । यानी वह यह तर्क लगा सकता है कि यदि नाम नया है तो वस्तु वही होगी जिसका नाम वह नहीं जानता । इससे पहले भी जानवरों को सिखाने के कई प्रयोग हो चुके हैं । जैसे एक प्रयोग में एक कुत्तेरिको ने २०० शब्द सीखे थे । इसी प्रकार से एलेक्स नाम के तोते ने १०० शब्द भी सीखे थे और वह उनके वाक्य भी बना लेता था । चेजर ने इस मामले में उन दोनों को पीछे छोड़ दिया है । मगर एलेक्स न सिर्फ शब्द पहचानता था, वह उन्हें बोल भी सकता था। चेजर इस मामले में फिसड्डी है ।

चिम्पैन्जी अपनी गुड़िया खुद बनाते हैं

जर्मनी में मैन के बेट्स कॉलज की सोनया कालेनबर्ग और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के रिचर्ड रैन्गहैम ने पता लगाया हैकि किशोर चिम्पैजी टहनियों का ठीक उसी तरह उपयोग करते हैं जैसे मनुष्य के बच्च्े गुड़ियों के साथ खेलते है । वेइन टहनियों को झुलाते हैं, गोद में बिठाते हैं और यहां तक कि उनके लिए छोटा सा घर भी बनाते हैं ।
कई वर्षो पहले जेन गुडऑल ने सबसे पहले यह रिपोर्ट किया था कि चिम्पैन्जी औजारों का उपयोग करते हैं । तब सेमनुष्यों के अलावा जानवरों में बुद्धि के स्तर की खोज हमें नई-नई दिशाआें में ले जा रही है ।
कालेनबर्ग व रैन्गहैम ने युगाण्डा के किबले नेशनल पार्क में रहने वाले चिम्पैन्जियों के १४ साल के अवलोकनों काविश्लेषण करके उनके द्वारा टहनियों के उपयोग को चार प्रकारों में बाटा । पहला प्रकार है टहनी का उपयोग जमीन वपेड़ों के सुराखों की छानबीन करने में करना । दूसरा प्रकार है आपसी टकराव में शस्त्र प्रदर्शन के लिए करना, तीसराहै अकेले खेलते समय एक वस्तु के रूप में और चौथा है एक गुडिया के रूप में । इस चौथे प्रकार को शोधकर्ताआेंने टहनी उठाकर घूमने की संज्ञा दी है
ऐसे व्यवहार के ३०१ अ में देखा गया है कि यह किशोर वय के चिम्पैन्जियों में ज्यादा प्रचलित है । इसकेअलावा यह मादाआें में देखा गया। शोधकर्ताआें को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि यह व्यवहार कुछ वयस्कमादा चिम्पैन्जियों में तो दिखता ह्ै मगर एक बार मां बन जाने के बाद कभी नहीं दिखता । इसका मतलब है कियुवा चिम्पैन्जी यह व्यवहार वयस्कों को देखकर नहीं बल्कि अन्य किशोर वय के साथियों को देखकर सीखते है ।कम से कम २५ ऐसे अवलोकन थे जब टहनी की गुडिया को उठाकरउसके घर तक ले जाया गया । एक नर चिम्पैन्जी ने तो अपनी गुडिया के लिए अलग से एक घर बनाया था । एकमादा चिम्पैन्जी को अपनी गुडिया की पीठ थपथपाते भी देखा गया ।
शोधकर्ताआें का मत है कि यह खेल वास्तव में उन्हें अपनी वयस्क भूमिका की प्रेक्टिस करने में मदद करता है ।


एक कीड़ा और भारत का इतिहास
पांच करोड़ साल पुराना कीड़े का जीवाश्म भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास पर नई रोशनी डाल रहा है यह जीवाश्म पांच करोड़ वर्ष पूर्व किसी पौधे से निकले रेजिन (एंबर) में फंसकर जिन्दा दफन हो गया था
गौरतलब है कि धरती के महाद्वीप एक जगह टिके नहीं रहते हैं बल्कि गतिशील रहते हैं भारत नामक भूभाग करोड़ों वर्ष पूर्व किसी तरह अन्य महाद्वीप से टूटकर अलग हुआ था और फिर तैरते-तैरते यूरेशिया से टकराया इन दो घटनाआें के बीच करोड़ों वर्षो तक भारतीय भूभाग एक द्वीप की तरह शेष महाद्वीपों से अलग-थलग रहा था मगर भारतीय भूभाग पर उस काल के जीवाश्मों को देखकर नहीं लगता है कि यहां कोई विशिष्ट जैव प्रजातियां अस्तित्व में आई थी यदि यह भूंखड पूरी तरह अलग-थलग रहा होता तो यहां कुछ अनोखी प्रजातियां जरूर विकसित होती
इससे पता चलता है कि संभवत: भारतीय भूखंड छोटे-छोटे द्वीपों की श्रृंखला के जरिए एशिया से जुड़ा था इस बात का और अध्ययन करने के लिए बॉन विश्वविघालय के जेस रस्ट ने गुजरात के खंभात क्षेत्र से करीब १५० किलोग्राम एंबर इकट्ठा किया एंबर पौधों से रिसने वाला गोंद होता है यह एंबर उस काल का है जब भाग एशिया से टकराने ही वाला था इसमें ७०० से ज्यादा कीड़े मकोड़े फंसे हुए मिले है
इनमें से कई कीड़े उस समय यूरेशिया में पाए जाने वाले कीड़ों के समान ही है इससे लगता है कि उस दौर में भारतीय भूखंड और दक्षिणी एशिया को जोड़ने वाले द्वीपों की श्रृंखला रही होगा और जीवों का आवागमन बना रहा होगा

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