मंगलवार, 26 जुलाई 2011

विशेष लेख,

चाय कितनी स्वास्थ्य वर्धक ?
प्रो. ईश्वरचन्द्र शुक्ल/संजय कुमार/ ओमप्रकाश यादव
आधुनिक समय मे चाय एक सुलभ व सस्ता पेय है । इसके बारे मे अनेक धारणाये है । आयुर्वेद तथ युनानी पद्धति मे जो चाय हम पीते है उसे हानिकारक बताया गया है । लेकिन स्फूर्ति तथा थकावट मिटाने मेें अधिकांशत: लोग चाय का ही प्रयोग करते है । ब्रिटिश सरकार ने चाय का प्रचार भारत के प्रत्येक शहर मेें नि:शुल्क किया था । उस समय चाय के साथ डबल रोटी भी मुपत दी जाती थी । धीरे-धीरे अब प्रत्येक भारतवासी औसतन तीन से चार कप चाय पीने लगा है । सच कहा जाय तो चाय गरीब-अमीर सभी का प्रिय पेय है ।
कहा जाता है कि चाय की खोज २७०० ईसा. पूर्व एक आकस्मिक घटना मेें शेननुग ने की थी । दिन भर की थकावट के बाद एक दिन वह अपने बगीचे मेें एक गर्म पानी के प्याले के साथ आराम कर रहे थे उसी समय उनके पास लगे वृक्ष की कुछ पत्तियॉँ उनके प्याले मेें गिर गयीं उन्होंने बिना ध्यान दिये उस प्याले को धीरे-धीरे पी लिया और स्वाद का लुत्फ उठाया, उसके बाद उन्हे इस पेय से दर्द मे राहत महससू हुई । इस तरह एक प्याले चाय का अवतरण हुआ ।
भारत की पौराणिक कथाएं बताती है कि बुद्ध की सात साल की साधना के दौरान पॉँचवे वर्ष मे उन्हें सुस्ती महसूस हुई तभी उन्होंने पास मे लगी हुई झाडी़ की कुछ पत्तियों को चबाकर अपने आपको तरो-ताजा किया, यही झाडी़ एक चाय का एक पेड था ।
चाय के पौधे को वैज्ञानिक भाषा में कैमिला साइनेन्सिस कहा जाता है । चाय के उत्पादन की एक प्रक्रिया होती है जिसमेें हरी व ताजी कालियो को सूखी और काली चाय में परिवर्तित करते हैं । चुनने से लेकर डिब्बो मे बंद करने तक यह कई प्रक्रियाओं से होकर गुजरती है । चुनने के चरण में ऊपरी पत्तियों को ६-७ दिनांे के अन्तर पर तोडा जाता है इनसे गुणवत्त्तापूर्ण चाय उत्पन्न की जाती है । ताजी और हरी पत्तियों को अब नमी रहित बनाने हेतु चौदह घण्टों तक गर्म हवा प्रवाहित की जाती है । सामान्य रूप से चाय निम्न ्रप्रकार की होती है - सफेद चाय (अनॉक्सीकृत), हरी चाय (अनॉक्सीकृत), ओलॉग चाय (आंशिक ऑक्सीकृत) तथा काली चाय (पूर्ण ऑक्सीकृत) । जडी़ बूटी वाली चाय सामान्यत: काढा पत्तियोें फूलोें व फलो, शाकों अथवा पौधों के अलग-अलग भागों का मिश्रण होती है जिसमे कैमिला साइनेन्सिस नही होता है ।
सफेद चाय हरी चाय की तरह ही होती है परन्तु इसका स्वाद हल्का व मीठा होता है । इसे पानी के क्वथनांक से नीचे के ताप पर भिगोना चाहिए । सफेद चाय मेें कैकीन की मात्रा काली चाय मेें ४० मिग्रा के बजाय १५ मिग्रा. व हरी चाय मेें २० मिग्रा. तक होती है। अध्ययन बताते है कि सफेद चाय में कैंसर रोधी प्रति आक्सीकारक हरी चाय की तुलना मेें अधिक होते है । चीन व जापान सफेद चाय उत्पन्न करने वाले दो प्रमुख देश हैं । लेकिन भारत के केवल दार्जिलिंग क्षेत्र मे ही कुछ मात्रा मे उत्पन्न की जाती है ।
हरी चाय वास्तविकता में कैमिला साइनेन्सिस की वह पत्तियॉं होती हैं जिन्हें एक निश्चित प्रक्रिया से गुजारते हैं । इसका स्वाद सफेद चाय की तरह होता है इसमे कैफीन की मात्रा कम होती है तथा प्रतिऑक्सीकरक गुण अधिक होते है । हरी पत्तियों को सुखाने से पहले उनमें कितना ऑक्सीकरण है, की मात्रा देखी जाती है । चाय पत्तियों की शिराओं मे इन्जाइम होता है जो कि पत्तियों के टूटने-फूटने या कटने से बाहर निकलकर आक्सीकृत हो जाते हैैं।
चारों प्रकार की चायो में ओलॉग चाय की प्रक्रियाविधि सबसे जटिल होती है । यह हरी व काली चाय के बीच वाली चाय है क्योेंकि यह प्रक्रिया के दौरान आंशिक रूप से ही आक्सीकृत होती है । पत्तियोें को चुनने के बाद उन्हेें साधारणत: मोड लिया जाता है, और आवश्यक तैलीय पदार्थो के धीरे-धीरे आक्सीकृत होने के लिए हवा मेें खुला छोड देते है । इस प्रक्रिया मेें समय के साथ पत्तियॉँ काली होती जाती है और अलगावकारी सुगन्ध उत्पन्न होती है परिणामत: यह चाय काली व हरी चाय के बीच वाली स्थित मेें आ जाती है ।
काली चाय चारों प्रकार की चायों में सबसे अधिक होती है तथा संसार मे सबसे अधिक लोकप्रिय है । इसका उपयोग मुख्यत: बर्फ वाली चाय व अंग्रेजी चाय बनाने मे किया जाता है। चूंकि काली चाय बनाने की प्रक्रिया मे तीन मुख्य चरण होते हैं, काटना, फाडना और ऐंठना । अत: इसे चाय भी कहते हैं । पत्तियों की नमी को दूर करने के लिए गर्म हवा को उनके ऊपर नरम व मुलायम होने तक बहाते हैैं । इन मुर्झाई हुई पत्तियों से सुगन्धित रस को बाहर निकालने के लिए इन्हें मशीन के पाटों के बीच में डालकर फाड दिया जाता है। फिर इन्हें किण्वन कक्ष मे ले जाया जाता है जहॉं पर नियंत्रित ताप व नमी की उपस्थिति में इनके रंग को तॉँबे के रंग मेें परिवर्तित करते हैं । अन्तत: इन्हें भटठी मेें सुखाया जाता है । जहॉ उष्मा के प्रभाव से यह ऐंठ जाती है और काली-भूरी रंग की जाती है । चाय के अन्य प्रकारों की तरह इसमें भी कैफीन होता है जो एक उत्तेजक है । यह हमारी इन्द्रियां को तुरन्त ही शक्त्ति प्रदान करता है । इसमें अन्य आवश्यक अपवय जैसे पालीफिनॉल व विटामिन आदि भी होता है । काली चाय को पूर्णत: दुग्ध रहित चाय भी कहते है ।
सुगन्धित चाय या फूल चाय, हरी या सफेद चाय होती है । जो कि कुछ फूलोें का सम्मिश्रण होती है । यह कोमल रोचक स्वाद तथा आश्चर्यजनक सुगंधदायी होती है । जैसा कि काली चाय में होता है । फूलों के जैसे ही मूल हरी चाय मेें पसंदीदा स्वाद से भ्रमित करने हेतु खराब किस्मों को डालते हैं । यह कई औद्योगिक रूप से बनायी जाने वाली फूल चाय के साथ होता है । स्वादिष्ट जैशमीन वाली फूल चाय मुख्यत: एशिया व पश्चिमी देशोें में बहुत प्रसिद्ध है जहॉं बहुत लोग इसी किस्म की चाय को पीते है ।
चाय निम्न गुणों के कारण सभी के लिए स्वास्थ्यवर्धक है । इसमेें काफी या कोला की अपेक्षा १/३ भाग कैफीन होती है जो कि थकावट कम करती है । दिमाग की चैतन्यता को बनाये रखती है, द्रव पदार्थो के स्तर को स्थायित्व प्रदान करती है तथा वसा व कैलोरी की मात्रा शून्य होती है । इसके एक कप मेें उपस्थित प्रतिऑक्सीकारक की मात्रा एक बार की सब्जियों की मात्रा के बराबर होती है । चाय प्राकृतिक पलोराइडोें का अतुल्य स्त्रोत है जो कि मुॅह के जीवाणुओं को बढा़ने से तथा दन्तीय परत के लिए जिम्मेदार इन्जाइमों को रोकता है । इसमें मैग्नीज और पोटेशियम की भी प्रचुर मात्रा होती है जो कि क्रमश: हडि्डयोें को स्वास्थ्य और ह्दयगति के नियंत्रित करते हैैं । इसके अतिरिक्क्त विटामिन इ१, इ२, इ६ फोलिक अम्ल और कैल्सियम आदि भी पाये जाते है ।
चाय का उपभोग ह्दय रोगियोें के लिए लाभदायक हो सकता है । इसमेें उपस्थित पलेवनोइड्स ह्दयरोगों से बचाता है । शुद्ध चाय रक्त चाप के जमाव को कम करने, रक्तचाप को घटाने, केलेस्ट्राल को कम करने तथा शरीर के परिवहन तंत्र, धमनी व शिराआें को स्वास्थ्य बनाये रखती है । शोध द्वारा पाया गया कि वे लोग जो एक या एक से अधिक काली चाय के प्याले का सेवन करते हैं उनमे ह्दयघात का खतरा चाय का सेवन न करने वाली की तुलना में ४० प्रतिशत तक कम होता है।
ऐसा माना जाता है कि चाय कैंसर से बचाव में सहायक है । इसमें उपस्थित प्रतिआक्सीकरण, मुँह, पेट, पेंक्रियास, फेफड़े, ग्रास नली, छाती, वृहदन्त और पौरूष ग्रन्थि के कैंसर से बचाव करने में सहायता करते हैं । हरी चाय ग्रास नालिका के कैंसर को रोकने में सहायक होती है । हरी और काली चाय पैरूषग्रन्थि के कैंसर को बढ़ने से रोकती है । हरी तथा सफेद चाय वृहदन्त कैंसर से लड़ती है तथा पेट के कैंसर के खतरों को कम करती है । गर्म चाय त्वचा कैंसर के खतरे को कम करती है । इतना ही नहीं चाय धूम्रपान से होने वाले कैंसर से भी बचाव करती है । चाय को रोग प्रतिरोधक क्षमता
बढ़ाने वाला माना जाता है हरी चाय के कुछ अवयव ल्यूकीमिया कोशिकाआें को मारने में सहायता करते हैं । इसको कई अन्य बीमारियों जैसे - अल्जाइमर, उच्च्दबाव व एड्स के खतरों को कम करने वाला भी माना जाता है ।
चाय पीने से स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव भी पड़ते है । टी बैग (चाय का थैला) में कैंसर उत्पन्न करने वाले पदार्थ भी पाये जाते हैं । कुछ चाय के थैलों को भीगे हुए कागज पर सहारा देकर इपीक्लोरोहइड्रीन की परत चढ़ाते है, जो कि कैंसर उत्पन्न करने वाले पदार्थ के रूप में माना जाता है । यह केवल चाय तक ही सीमित नहीं है, कॉफी के थैलों में भी यह प्रभाव होता है । अत: खुली चाय पत्तियों का प्रयोग किया जाय या ऐसे चाय के थैलों का प्रयोग किया जाये जिनपर कोई परत न चढ़ायी जाये । फ्
सभी चाय पत्तियों में फ्लोराइड पाया जाता है । एक ही पेड में प्रौढ. पत्तियों में नई पत्तियों की तुलना में फ्लोराइडों की मात्रा कम होती हैं । क्योंकि इसे केवल कलियों और नई पत्तियों से बनाया जाता है । फ्लोराइड की यह मात्रा सीधे तौर पर मृदा में फ्लोराइडों की मात्रा पर निर्भर करती है । चाय के पौधे इस तत्व का अवशोषण अन्य पौधों की अपेक्षा अधिक करते हैं ।
कैफीन से जुड़े प्रभाव भी कम
नहीं है । यह एक आदतीय दवा है और चाय की अधिक मात्रा लेने से इसका कुप्रभाव पड सकता है । जैसे कि निद्रा व्याधि में वृद्धि होने की संभावना बढ. जाती है । प्रति कैफिनीकरण करने से काली व हरी सूखी चायों में पूरे कैफीन को क्रमश: १५ से ३ गुना तक कम करता है ।
काली चाय मुख्यत: कैफीन का स्त्रोत है । यद्यपि अधिकांश चायों में कैफीन की औसतन मात्रा काफी के एक प्याले से कम होती है । कुछ लोग कैफीन के प्रभाव के लिए विशिष्ट ग्रहणशील होते है और थोड़ी सी मात्रा में भी व्यग्रता, कम्प, तथा रक्तचाप में बढोत्तरी महसूस करते है । कैफीन के स्तर को कम करने का एक ही तरीका है कि सफेद चाय पी जाये, जो कि कम कैफीन वाली होती है या प्राकृतिक रूप से प्रतिकैफीनीकृत काली या हरी चाय खरीदी जाये ।
चाय में आक्सलेट होते हैं जो कैल्सियम में जुडकर ऑक्सलेट युक्त गुर्दे की पथरी बनाते है । चाय में आक्सलेटों का होना बहुत लोगों के लिए समस्या है । कुछ ग्रहणशील लोगों में बहुत अधिक ऑक्सलेट, गुर्दे की पथरी के खतरे को बढ़ा देती है । जिन लोगों के पृष्ठभूमि में गुर्दे की पथरी हो उन्हें बहुत नियंत्रित मात्रा में चाय लेनी चाहिए और ऑक्सलेटों वाले भोज्य स्त्रोतों को कम करना चाहिए । यह शरीर में मुक्त कैल्सियम व अन्य खनिजों को सोख लेते हैं ।
चाय से मिलने वाले टेनिन ने जो कि एक प्रकार के पाली फिनाल है अधिक मात्रा में होने पर अच्छा व पौष्टिक स्वाद देते है । लेकिन यह कुछ निश्चित खनिजों जैसे लोहा के अवशोषण को कम करता है । अत: कुछ लोगों में एनिमिया हो जाती है । इससे बचने के लिए चाय को भोजन के साथ नहीं लेना चाहिए । दूसरी तरीका चाय में नीबू की कुछ बूँदे पीने से पहले डालनी चाहिए । नीबू में विटामिन सी की उपस्थित टेनिन के खनिज अवशोषण के हानिकारक प्रभाव को रोकने में सहायता करती है ।
अधिक चाय पीना ग्रास नली कैंसर के गंभीर खतरे से जुड़ा हुआ है। एक कारक अध्ययन में पाया गया कि गुनगुनी चाय या हल्की गरम चाय की अपेक्षा गर्म चाय या बहुत गर्म चाय से ग्रास नली कैंसर के होने का खतरा बढ. जाता है । चाय को उडेलने के बाद कम से कम ४ मिनट बाद पीने के विपरीत दो से तीन मिनट में पीने पर या दो मिनट से कम समय में पीने पर यह खतरा और भी बढ. जाता है । दोषपूर्ण भण्डारण एवं पैकिंग भी चाय को हानिकारक बनाते है । दोषयुक्त भण्डारण तकनिकी के द्वारा चाय पत्तियों में कवकीय वृद्धि उत्पन्न हो जाती है । जिसे साधारण पत्तियों से अलग नहीं किया जा सकता, चाय बनाते समय यह कवक पानी में घुल जाते है । यदि इनका उपभोग किया जाता है तो इससे कई प्रकार की बीमारियाँ व एलर्जी होती है ।
चाय सभी उम्र वर्गो के लोगों द्वारा पसन्द किया जाने वाला पेय है और इससे संबंधित उत्पाद हमें कहीं भी प्राप्त् हो सकते है । उदाहरणार्थ स्वादिष्ट हरी चाय केक, हरी चाय आइस्कीम, बर्फ से शितित नीबू चाय इत्यादि आसानी से सभी दुकानों या सुपर बाजारों में उपलब्ध रहती है । चाय से बने भोज्य पदार्थो के स्वादिष्ट होने के साथ-साथ इन्हें
भोजन उपरान्त लेने से यह हमारे पाचन में सहायक होते है । हरी चाय पत्तियां मांस की तैलीय प्रकृति को साफ करने में सहायक होती है तथा समुद्री भोजन से आने वाली मछली की महक से भी छुटकारा दिलाती है और यह अपने साथ एक अनोखी सुगन्ध लाने वाली होती है । चाय से अधिकाधिक स्वास्थ्यवर्धक फायदे लेने के लिए अपने नजदीकी या आनलाइन दुकान से अच्छे गुणों वाली खुली चाय पत्तियों को ही लें । इसे बनाये एवं आनंद उठायें और हाँ जब आप घर से बाहर जा रहे हों तो भी बोतल बंद चाय का आनंद लेने के विचार को न छोड़े ।
इतना सब कुछ जानने के बाद आप स्वयं तय करें,चाय का सेवन करें लेकिन इतना नहीं कि हानिकारक हो जाए । आज के युग में चाय से बचना अत्यन्त कठिन है । कभी-कभी तो मेजबान बड़े संकट में पड़ जाता है । जब आप कहते हैं कि मैं चाय नहीं पीता । हम आसानी से कह सकते है कि चाय सर्वत्र मिलने वाली सब्जियों में कद्दू के समान ही है जिसे गरीब अमीर सभी प्रयोग कर सकते है ।

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