पिद्यल रहे हैं हिमालय के ग्लेशियर
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान (इसरो) की रिपोर्ट २०११ में खुलासा हुआ है कि हिमालय के ७५ फीसदी ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिग के कारण पिघल रहे है । एक रिपोर्ट के मुताबिक १९८९ से २००४ के दौरान हिमालय के ग्लेशियरों का कुल क्षेत्रफल ३.७५ फीसदी तक घटा है ।
ग्लेशियर शब्द लैंटिन से उत्पन्न हुआ है । हिन्दी में इसका अर्थ हिमनद होता है । ग्लेशियरों का निर्माण सैकड़ों सालों तक बर्फ से जमने से होता है । ये अपने ही वजन से आगे बढ़ते है । इनके पिघलने से नदियां बनती है । दुनिया के ९९ फीसदी ग्लेशियर धु्रवीय क्षेत्र में पाए जाते है । ये ऊंचे पहाड़ों पर भी बर्फ जमा होने के कारण बन जाते है । ग्लेशियर की बर्फ दुनिया में सबसे बड़ा स्त्रोत है ।
इसरों ने २०११ में हिमालय के ग्लेशियरों का दूसरी बार अध्ययन किया है । इससे पहले इसरो ने २०१० में १३१७ ग्लेशियरों का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला था कि १९६२ से २०१० तक हिमालय के १६ फीसदी ग्लेशियर पिघल चुके है । हालांकि संस्थान की रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी स्थिति खतरनाक स्तर पर नहीं पहुंची है ।
इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी देहरादून के विशेषज्ञों के अनुसार ग्लेशियर सिस्टम के प्रभावित होने की भविष्यवाणी करने से पहले काफी जटिल गणनाएं करनी होती है । बढ़ता हुआ वैश्विक तापमान ही ग्लेशियरों के पिघलने का एकमात्र कारण नहीं है । ग्लेशियरों के पिघलनें के पीछे हिमपात, ग्लेशियर की स्थिति आदि भी ऐसे कारक है जो उनकी स्थिति का कारण बताते हैं । इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेंट चेंज (आईपीसीसी) ने २००७ में जारी अपनी चौथी रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि यदि वैश्विक तापमान बढ़ने की आज की दर बनी रहती तो २०३५ तक हिमालय के ग्लेशियर पिघल जाएंगे । पैनल को अपने शोध के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार भी मिला था ।
धु्रवीय क्षेत्रों के बाहर सियाचिन दुनिया का सबसे बड़ा ग्लेशियर है । यह हिमालय और कारकोरम क्षेत्र (भारत-पाक सीमा) पर मौजूद है । इस ग्लेशियर की लंबाई ७० किलोमीटर है । यह १८,८७५ फीट (५,७३५ मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है । गंगोत्री वह ग्लेशियर जिससे गंगा उद्गम होता है । यमुनोत्री वह ग्लेशियर जिससे यमुना का होता है ।
सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के मैदान दुनिया के सबसे उपजाऊ क्षेत्र है । इन्हीं क्षेत्रोंं से भारत और पाकिस्तान ही नहीं विश्व के काफी बड़े हिस्से को खाघान्न मिलता है । जाहिर है पानी की कमी से बड़ा खाघान्न संकट खड़ा हो सकता है । हिमालय की नदियों पर बने पावर प्रोजेक्ट संकट में पड़ जाएंगे ।
करोड़ की आबादी पर पड़ेगा असर
गंगा और उसकी नदियों के आसपास भारत में करीब ४० करोड़ लोग रहते है । इसके अलावा पूर्वोत्तर के राज्यों से होकर ब्रह्मपुत्र गुजरती है । यहां आबादी का बड़ा हिस्सा ब्रह्मपुत्र के आसपास रहता है।
बांग्लादेश की आबादी करीब १७ करोड़ है । गंगा और ब्रह्मपुत्र (दोनों नदियां बांग्लादेश में जाकर मिल जाती है और इनका नाम यहां पद्मा हो जाता है) यह बांगलादेश की प्रमुख नदी है ।
पाकिस्तान (आबादी करीब १७ करोड़) की पूरी अर्थव्यवस्था और जनजीवन सिंधु और उसकी सहायक नदियों झेलम, चिनाब, रावी, व्यास पर टिका हुआ है । पाकिस्तान के सबसे उपजाऊ क्षेत्र पंजाब और सिंध प्रांत इन्हीं हिमालय से निकलने वाले नदियों से पोषित होते है ।
ग्लेशियर शब्द लैंटिन से उत्पन्न हुआ है । हिन्दी में इसका अर्थ हिमनद होता है । ग्लेशियरों का निर्माण सैकड़ों सालों तक बर्फ से जमने से होता है । ये अपने ही वजन से आगे बढ़ते है । इनके पिघलने से नदियां बनती है । दुनिया के ९९ फीसदी ग्लेशियर धु्रवीय क्षेत्र में पाए जाते है । ये ऊंचे पहाड़ों पर भी बर्फ जमा होने के कारण बन जाते है । ग्लेशियर की बर्फ दुनिया में सबसे बड़ा स्त्रोत है ।
इसरों ने २०११ में हिमालय के ग्लेशियरों का दूसरी बार अध्ययन किया है । इससे पहले इसरो ने २०१० में १३१७ ग्लेशियरों का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला था कि १९६२ से २०१० तक हिमालय के १६ फीसदी ग्लेशियर पिघल चुके है । हालांकि संस्थान की रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी स्थिति खतरनाक स्तर पर नहीं पहुंची है ।
इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी देहरादून के विशेषज्ञों के अनुसार ग्लेशियर सिस्टम के प्रभावित होने की भविष्यवाणी करने से पहले काफी जटिल गणनाएं करनी होती है । बढ़ता हुआ वैश्विक तापमान ही ग्लेशियरों के पिघलने का एकमात्र कारण नहीं है । ग्लेशियरों के पिघलनें के पीछे हिमपात, ग्लेशियर की स्थिति आदि भी ऐसे कारक है जो उनकी स्थिति का कारण बताते हैं । इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेंट चेंज (आईपीसीसी) ने २००७ में जारी अपनी चौथी रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि यदि वैश्विक तापमान बढ़ने की आज की दर बनी रहती तो २०३५ तक हिमालय के ग्लेशियर पिघल जाएंगे । पैनल को अपने शोध के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार भी मिला था ।
धु्रवीय क्षेत्रों के बाहर सियाचिन दुनिया का सबसे बड़ा ग्लेशियर है । यह हिमालय और कारकोरम क्षेत्र (भारत-पाक सीमा) पर मौजूद है । इस ग्लेशियर की लंबाई ७० किलोमीटर है । यह १८,८७५ फीट (५,७३५ मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है । गंगोत्री वह ग्लेशियर जिससे गंगा उद्गम होता है । यमुनोत्री वह ग्लेशियर जिससे यमुना का होता है ।
सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के मैदान दुनिया के सबसे उपजाऊ क्षेत्र है । इन्हीं क्षेत्रोंं से भारत और पाकिस्तान ही नहीं विश्व के काफी बड़े हिस्से को खाघान्न मिलता है । जाहिर है पानी की कमी से बड़ा खाघान्न संकट खड़ा हो सकता है । हिमालय की नदियों पर बने पावर प्रोजेक्ट संकट में पड़ जाएंगे ।
करोड़ की आबादी पर पड़ेगा असर
गंगा और उसकी नदियों के आसपास भारत में करीब ४० करोड़ लोग रहते है । इसके अलावा पूर्वोत्तर के राज्यों से होकर ब्रह्मपुत्र गुजरती है । यहां आबादी का बड़ा हिस्सा ब्रह्मपुत्र के आसपास रहता है।
बांग्लादेश की आबादी करीब १७ करोड़ है । गंगा और ब्रह्मपुत्र (दोनों नदियां बांग्लादेश में जाकर मिल जाती है और इनका नाम यहां पद्मा हो जाता है) यह बांगलादेश की प्रमुख नदी है ।
पाकिस्तान (आबादी करीब १७ करोड़) की पूरी अर्थव्यवस्था और जनजीवन सिंधु और उसकी सहायक नदियों झेलम, चिनाब, रावी, व्यास पर टिका हुआ है । पाकिस्तान के सबसे उपजाऊ क्षेत्र पंजाब और सिंध प्रांत इन्हीं हिमालय से निकलने वाले नदियों से पोषित होते है ।
रोबट करेंगे चीन के जंगलो की रक्षा
चीन में जंगलों की देखरेख का कामकाज अब रोबोटों की एक फौज को सौंपने की तैयारी चल रही है । कैटरपिलर (इल्ली) के आकार के इन रोबोटों का ट्रीबोट नाम दिया गया है । यही ट्रीबोट पेड़ों पर चढ़कर ऊंचाई से जंगलों की निगरानी करेंगे । प्रो. सूयांगशेंग ने बताया कि इसे बनाने की प्रेरणा उन्हें प्रकृति से मिली । उन्होंने कहा मैं कैटरफ्िलर को हमेशा पेड़ों पर चढ़ते देखता था और इससे मुझे प्रेरणा मिली ।
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