chiin के जीवाश्मविदों ने पक्षीनुमा प्राचीन डायनासोर का एक ऐसा जीवाश्म ढूंढ निकाला है जिसे दुनिया का प्रथम पक्षी होने का दावा किया जा रहा है । अगर चीनी वैज्ञानिकों का यह दावा सही साबित होता है तो यह अब तक विश्व का सबसे पुराना पक्षी माने जाने वाला जर्मनी के आर्क्योेपैट्रक्स को कहीं पीछे देगा ।
ब्रिटिश विज्ञान पत्रिका (नेचर) के ताजा अंक में प्रकाशित आलेख में चीन के जीवाश्मविदों ने कहा है कि मुर्गी के आकार का यह डायनासोर १५.५ करोड़ वर्ष पुराना है । वैज्ञानिकों ने इसे शियाआेंटेगिआ झेंगी का नाम दिया है । इस जीवाश्म को यहां के लियोओनिग प्रांत में खोजा गया । इस प्रांत में पहले भी प्राचीनकाल के जीवाश्म मिलते रहे हैं । शियाओटेंगिआ का यह जीवाश्म आर्क्योपैट्रक्स पक्षी के जीवाश्म से भी पचास लाख वर्ष पुराना है । वैज्ञानिकों को यह जीवाश्म पत्थर की एक शिला में दबा हुआ मिला । पत्थर पर ऐसे निशान भी साफ देखे जा सकते है, जिसमें इस पक्षी के पंख भी होने के संकेत है ।
डायनोसोर रूपी पक्षी के मिलने पर वैज्ञानिकों की मौजूदा समय की पक्षियों की लेकर वैज्ञानिकों का वह सिद्धांत धूमिल होता जा रहा है, जिसमें कहा गया है कि आधुनिक पक्षी का विकास डायनासोर से ही हुआ होगा । हालांकि यह खोज इस थ्योरी को पूरी तरह से खारिज नहीं करती है, लेकिन इस क्षेत्र में नए शोधों के प्रवेश द्वार खोल देती । इस डायनासोर की रूपरेखा सीधे-सीधे आज के पक्षियों से नहीं मिलती है, लेकिन आर्क्योपैट्रक्स से काफी मिलती जुलती है । ब्रिटिश प्राणीविज्ञान चार्ल्स डारविन ने १८५९ में अपनी पुस्तक (जीवगणों की उत्पत्ति) में डायनासोरों के नष्ट हो जाने की टूटी कड़ी को जोड़ते हुए बताया था कि पक्षियों का विकास जरूर डायनासोरों से हुआ होगा ।
आदिमानव ने पूरे यूरोप में धरती के नीचे सुरंगों का विशाल नेटवर्क बना रखा था । आज के रेल व सड़क मार्ग की तरह एक-दूसरे को काटते हुए यह सुपर हाइवे स्कॉटलैण्ड से तुर्की में भूमध्यसागर तक फैला था ।
पुरातत्वविदों ने १२ हजार साल पुरानी कुछ सुरंगे खोद निकाली हैं । जर्मन पुरातत्वविद हेनरिख कुश ने दावा किया है कि ऐसी सुरंगों से पाषाण युग की सैकड़ों मानव बस्तियां एक दूसरे से जुड़ी थी और ये पूरे यूरोप में फैली थीं ।
अपनी किताब सीक्रेट्स ऑफ द अंडरग्राउंड डोर टू एन एनशिएंट वर्ल्ड में श्री कुश ने दावा किया है कि १२००० साल बाद भी इतनी ज्यादा सुरंगों का मिलना यह साबित करता है कि पाषाण काल में असल में यह सुपर हाइवे की तरह का विशालकाय नेटवर्क रहा होगा ।
जर्मनी के बवेरिया प्रांत में भूमिगत सुरंगों का ७०० मीटर का नेटवर्क मिला है । ३५० मीटर का नेटवर्क ऑस्ट्रिया के स्टाइरिया में मिला है । इनमें से कुछ की चौड़ाई महज ७० सेमी है जिसमें से एक बार में केवल एक व्यक्ति रेंगता हुआ ही निकल सकता है । कुछ सुरंगों में बैठने के लिए पत्थर की बेंचें और आराम के लिए अलग कमरे जैसी जगहें भी मिली है । कहीं कही सामान रखने जैसे कक्ष भी मिले हैं । ज्यादातार सुरंगे जुड़ी हुई हैं ।
कुछ सुरंगों में संकेतक भी मिले है जिससे लगता है कि सुरंगे कहां से कहां तक जाती थी यह भी लिखा जाता होगा । कुछ सुरंगों के प्रवेशद्वार पर पूजा स्थल जैसी जगहें भी मिली हैं । सुरंगो के भीतर ऐसी कोई जगह नहीं मिली । कुछ पुराविदों का मानना है कि ये सुरंगे आदि मानव ने जंगली जानवरों से बचने के लिए बनाई होगी जबकि कुछ का मानना है कि ये आधुनिक सड़क मार्ग की तरह का उस समय का मार्ग रहा होगा ।
सैकड़ों साल से मानव जिज्ञासा का केन्द्र बने मंगल ग्रह के राज एक-एक कर सामने आ रहे हैं । पहले बताया गया था कि वहां बर्फ के भण्डार पाए गए हैं । अब कुछ खास हालात मेंउसकी सतह पर पानी बहने के संकेत मिले हैं । मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाले नासा के यान से ली गई तस्वीरों में वहां तरह-तरह की लंबी गाढ़ी रेखाएं नजर आई हैं, जो पानी हो सकता है । ये धाराएं कुछ मीटर चौड़ी हैं और पत्थर के बीच से गुजर रही है ।
अमेरिका अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिकों के अनुसार मंगल ग्रह के दक्षिणी हिस्से में स्थित न्यूटन क्रेटर के तीखे ढलान पर उंगलियों जैसे निशान उभरा करते हैं जो तापमान में गिरावट के बाद गायब हो जाते हैं । वैज्ञानिक राजेन्द्र ओझा और परियोजना यूनिवर्सिटी के उनके सहयोगियोंका दावा है कि इससे मंगल ग्रह पर जीवन की पुष्टि हो सकती है । ये धाराएं सिर्फ दो महीनों में २०० मीटर तक लंबी हो गई है ।
श्री ओझा के सहयोगी अल्फ्रेड मैकइवेन कहते हैं कि ये धाराएं ठंड में दिखाई नहीं देती । क्योंकि पानी सतह के नीचे चला जाता है । नमक पानी के जमने के तापमान को नियंत्रित करता है। ये पानी नमकीन हो सकता है लेकिन यह अध्ययन इसे साबित नहीं करता उन्होनें कहा कि ऐसा भी हो सकता है कि इसमें नमक हो, लेकिन हल्की गहराईयों में मौजूद हो । मंगल ग्रह पर पानी होने से संभव है कि गर्मियों के दौरान उसमें सूक्ष्म जीवाणु भी पनपते होगे । इससे पहले भी वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह पर विशाल समुद्र होने के सबूत मिले थे । कुछ का मानना है कि पहले वहां जीवन के लिए पृथ्वी से ज्यादा अनुकूल परिस्थितियां थी ।
धूप की कमी के चलते लाखों लोगों के टाइप २ डायबिटीज की चपेट में आने का खतरा है, क्योंकि उनमें पर्याप्त् मात्रा में विटामिन डी नहीं है । ५ हजार से ज्यादा लोगों के ब्लड टेस्ट पर आधारित एक ऑस्ट्रेलियायी अध्ययन में यह दावा किया गया है । अध्ययन के दौरान पाया गया कि ऐसे लोग जिनमें पर्याप्त् मात्रा में विटामिड डी मौजूद है, उनके टाइप २ डायबिटीज की चपेट में आने की आशंका कम होती है । मेलबर्न, पैथॉलाजी के शोधकर्ताआें का कहना है कि ये खोंजें हाल के सालों में पैदा हो रहे हालात (टाईप २ डायबिटीज के बढ़ते मरीजों) से लड़ने में अहम भूमिका निभा सकती है ।
शोधकर्ताआें ने ५२०० लोगों के खून की जांच की । उन्होनें पाया कि खून में विटामिन डी के अतिरिक्त २५ नैनोमोल्स होने से डायबिटीज के चपेट में आने का खतरा २४ फीसदी तक घट जाता है । अध्ययन के को - ऑथर डॉ. केन सिकरिस का कहना है, इसकी अहमियत को नजरअंदाज बेहद मुश्किल है । शोधकर्ताआें के मुताबिक, ऐसे लोग जिनके शरीर में विटामिन डी के नैनोमोल्स की संख्या प्रति लीटर ५० से कम होती है, उनमें कमी होती है । अगर विटामिन डी ओर डायबिटीज के बीच लिंक स्थापित हो जाता है, तो ऐसे लोग जिन्हेंडायबिटीज का खतरा है, वे कुछ डायटरी सप्लिमेंट्स लेकर इसे कम कर सकते है । धूप की कमी यानी कैंसर भी एक अनुमान के मुताबिक धूप और विटामिन डी की कमी के चलते हर साल ६ लाख लोग कैंसर का शिकार हो जाते है । डायबिटीज यूके की डाँ. विक्टोरिया किंग का कहना है, इस अध्ययन के नतीजों के आधार पर डायबिटीज का खतरा कम करने के लिए डायटरी सप्लिमेंट्स की सलाह देना मुमकिन नहीं हैं । अभी तक हम यह जानते है कि पौष्टिक आहार लेकर अच्छी सेहत बनाए रखने और नियमित रूप से कसरत करते रहना डायबिटीज का खतरा कम करने का सबसे बेहतर तरीका है।***
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