कविता
आओ ! वृक्ष लगाएँ
जगती को हम दें नवजीवन,
जाग्रत हो धरती का कण-कण,
सौम्य सुवासित प्राण वायु का-
प्राणि मात्र में हो स्पन्दन,
जीवन के मंगल हित आओ-
ऋषि-मुनियों का पथ अपनाएं ।
आओ ! हम सब वृक्ष लगाएं ।।
नष्टप्राय हो वायु-प्रदूषण,
सुरभित हो जग का वातायन,
सुख-समृद्धि सरसता आए -
वृक्षों का हो सत-संपोषण,
जन-जन के हित वृक्ष लगाकर
भू पर अमृत-धार बहाएं ।
आओ ! हम सब वृक्ष लगाए ।
युग की यह सतत अभिलाषा,
देवगणों की यह शुचि आशा,
हरा-भरा हो भू का प्रांगण -
जन-जीवन की यह प्रत्याशा,
वेद-शास्त्र के निर्देशित शुचि-
पथ पर निर्भय कदम बढ़ाएं ।
आओ ! हम सब वृक्ष लगाएं ।।
आओ ! वृक्ष लगाएँ
राधेश्याम आर्य विद्यावाचस्पति
जगती को हम दें नवजीवन,
जाग्रत हो धरती का कण-कण,
सौम्य सुवासित प्राण वायु का-
प्राणि मात्र में हो स्पन्दन,
जीवन के मंगल हित आओ-
ऋषि-मुनियों का पथ अपनाएं ।
आओ ! हम सब वृक्ष लगाएं ।।
नष्टप्राय हो वायु-प्रदूषण,
सुरभित हो जग का वातायन,
सुख-समृद्धि सरसता आए -
वृक्षों का हो सत-संपोषण,
जन-जन के हित वृक्ष लगाकर
भू पर अमृत-धार बहाएं ।
आओ ! हम सब वृक्ष लगाए ।
युग की यह सतत अभिलाषा,
देवगणों की यह शुचि आशा,
हरा-भरा हो भू का प्रांगण -
जन-जीवन की यह प्रत्याशा,
वेद-शास्त्र के निर्देशित शुचि-
पथ पर निर्भय कदम बढ़ाएं ।
आओ ! हम सब वृक्ष लगाएं ।।
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