मंगलवार, 24 जनवरी 2012

विज्ञान हमारे आसपास

मखाना क्या है, कैसे बनता है ?
डॉ. किशोर पंवार

मित्रगण अक्सर मुझसे नए-नए सवाल पूछते रहते हैं, इस भ्रम में कि उन्हें कौन बनेगा करोड़पति की तरह तुरंत जवाब मिल जाएगा । परंतु ऐसा कभी-कभार ही होता है । हालांकि इस बहाने मुझे कुछ नया पढ़ने-लिखने की प्रेरणा ज़रूर मिलती रहती है । इस बार का सवाल डॉ. नरेन्द्र जोशी ने पूछा - मखाना क्या चीज़ है ?
सवाल बड़ा स्वाभाविक है । मखाना हम खाते रहते हैं उपवास में - खीर के रूप में या नमकीन भुने रूप में । मखाना को फाक्सनट या प्रिकली लिली याने कांटे युक्त लिली कहते हैं क्योंकि इसमें पत्ती के डंठल एवं फलों तक पर छोटे-छोटे कांटे लगे होते हैं । यह कमल कुल का एक बहुवर्षीय पौधा हैं । यह ईस्ट-इंडीज़ का मूल निवासी है ।
वनस्पति शास्त्र में इसे यूरेल फरोक्स कहते हैं । इसमें जड़कंद होता है । बड़ी-बड़ी गोल पत्तियां पानी की सतह पर हरी प्लेटों की तरह तैरती रहती हैं । इसमें सुन्दर नीले, जामुनी या लाल कमल जैसे फूल खिलते हैं । जिन्हें नीलकमल कहते हैं । परंपरा के मुताबिक कमल का फूल धन की देवी लक्ष्मी को विशेष रूप से प्रिय है । लिहाज़ा ,कमल और मखाना दोनों का पूजा में बड़ा महत्व है ।
मखाना की खेती भारत के अलावा चीन, जापान, कोरिया और रूस में भी की जाती है । इसका फल स्पंजी होता है । फल को बेरी कहते हैं । फल और बीज दोनों खाए जाते हैं फल में ८-२० तक बीज लगते हैं । बीज मटर के दाने के बराबर आकार के होते हैं और इनका कवच कठोर होता है । लगभग ६५ प्रतिशत मखाना बिहार में उगाया जाता है ।
देवताआें का भोजन
मखाना को देवताआें का भोजन कहा गया है । उपवास में इसका विशेष रूप से उपयोग होता है । पूजा एवं हवन में भी यह काम आता है । इसे आर्गेनिक हर्बल भी कहते हैं । क्योंकि यह बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशी के उपयोग के उगाया जाता है ।
आचार्य भावमिश्र (१५००-१६००) द्वारा रचित भाव प्रकाश निघंटु में इसे पद्मबीजाभ एवं पानीय फल कहा गया है । इसके अनुसार मखाना बल, वाजीकर एवं ग्राही है । इसे प्रसव पूर्व एवं पश्चात आई कमज़ोरी दूर करने के लिए दूध में पकाकर खिलाते हैं । यह सुपाच्य है तथा आहार के रूप में इसका उपयोग किया जाता है । इसके औषधीय गुणों के चलते अमरीकन हर्बल फूड प्रोडक्ट एसोसिएशन द्वारा इसे क्लास वन फूड का दर्जा दिया गया है । यह जीर्ण अतिसार, ल्यूकोरिया, शुक्राणुआें की कमी आदि में उपयोगी है । इसमें एन्टी-ऑक्सीडेंट होने से यह श्वसन तंत्र, मूत्र-जननतंत्र में लाभप्रद है । यह ब्लड प्रेशर एवं कमर तथा घुटनों के दर्द को नियंत्रित करता है । इसके बीजों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, वसा, कैल्शियम एवं फास्फोरस के अतिरिक्त केरोटीन, लोह, निकोटिनिक अम्ल एवं विटामिन बी-१भी पाया जाता है ।
मखाना व्यंजन
यह एक सुस्वाद पाचक भोज्य पदार्थ है । इसे सादा या फिर मसाले के साथ घी में भूनकर स्वादिष्ट बनाते हैं । कुछ लोग इसे मेवों के साथ भी प्रयोग में लाते हैं । यह इतना स्वादिष्ट होता है कि इसकी मदद से बच्चों को जंक फूड से बचाया जा सकता है । इससे बनी मखाना खीर, मखाना रायता, मखाना सेवई की तो बात ही निराली होती है । मणिपुर के कुछ इलाकों में इसके जड़कन्द और पत्ती के डंठल की सब्ज़ी भी बनाते है । इससे अरारोट भी बनता है ।
क्या है मखाना
मखाना वस्तुत: फाक्सनट के बीजोंकी लाई है । वैसे ही जैसे पापकार्न मक्का की लाई है । इसमें लगभग १२ प्रतिशत प्रोटीन होता है । मखाना बनाने के लिए इसके बीजों को फल से अलग कर धूप में सुखाते हैं । संग्रहण के दौरान नम बनाए रखने के लिए इन पर पानी छींटा जाता है । इसकी लाई की गुणवत्ता बीजों में उपस्थित नमी पर निर्भर करती है । धूप में सुखाने पर उनमें २५ प्रतिशत तक नमी बची रहती है । सूखे नट्स को लकड़ी के हथोड़ो से पीटा जाता है इस तरह गरी अलग होने पर बीज अच्छी तरह से सुखते हैं । सूखे बीजों को अलग-अलग श्रेणी में बांटने के लिए उन्हें चलनियों से छाना जाता है । बीज एक समान आकार के हों तो भूनते समय आसानी होती है । बड़े बीज अच्छी क्वालिटी के माने जाते हैं।
बीज बने लाई
बीजों को बड़े-बड़े लोहे के कढ़ावों में सेंका जाता है । फिर इन्हें टेम्परिंग के लिए ४५-७२ घण्टों के लिए टोकनियोंमें रखा जाता है । इस तरह इनका कठोर छिलका ढीला हो जाता है । बीजों को लाई में बदलना एक श्रमसाध्य कार्य है । कढ़ाव में सिंक रहे बीजों को ५-७ की संख्या में हाथ से उठाकर ठोस जगह पर रखकर लकड़ी के हथोड़ो से पीटा जाता है । इस तरह गर्म बीजों का कड़क खोल तेजी से फटता है और बीज फटकर लाई (मखाना) बन जाता है । बीजों के अंदर अत्यधिक गर्म वाष्प बनने और तेज दबाव से छिलका हटने से ऐसा होता है । जितने बीजों को सेका जाता है उनमें से केवल एक तिहाई ही मखाना बनते हैं ।
मखानों की पालिश
लाई बनने पर उनकी पॉलिश और छंटाई की जाती है । इस हेतु इन्हें बांस की टोकनियों में रखकर रगड़ा जाता है । इस प्रकार इनके ऊपर लगा कत्थई-लाल रंग का छिलका हट जाता है । यही पॉलिशिंग । चावल को भी सफेद बनाने के लिए मशीनों से उन्हें पालिश करते हैं । हालांकि ऐसा करने से उसके कई पोषक तत्व हट जाते हैं । पॉलिश करने पर मिले सफेद मखानों को उनके आकार के अनुसार दो-तीन श्रेणियों में छांट लिया जाता है। फिर उन्हें पोलीथीन की पर्त लगे गनी बैग में भर दिया जाता है । ये इतने हल्के होते हैं कि एक बोरे में मात्र ८-९ किलो मखाने समाते हैं ।
दरभंगा स्थित राष्ट्रीय मखाना शोध संस्थान के अनुसार भारत में लगभग १३,००० हैक्टर नमभूमि में मखानों की खेती होती है । यहां लगभग नब्बे हजार टन बीज पैदा होता है । देश का ८० प्रतिशत मखाना बिहार की नमभूमि से आता है । इसके अलावा इसकी छिटपुट खेती अलवर, पश्चिम बंगाल, असम, उड़ीसा, जम्मू-कश्मीर, मणीपुर और मध्यप्रदेश में भी की जाती है । परन्तु देश में तेजी से खत्म हो रही नमभूमि ने इसकी खेती और भविष्य में उपलब्धता पर सवाल खड़े कर दिए हैं । यदि स्वादिष्ट स्वास्थ्यवर्धक मखाना खाते रहना है तो देश की नमभूमियों को भी बचाना होगा । नमभूमियों को प्रकृति के गुर्दे भी कहते हैं और पता चलता है कि यहां उगा मखाना हमारी किडनियों की भी रक्षा करता है । तो बचाइए इन गुर्दो को ।

1 टिप्पणी:

BS Pabla ने कहा…

एक ऎसी जानकारी जो मुझे ज्ञात नहीं थी
आभार