सोमवार, 11 जून 2012

 पर्यावरण समाचार
                                        मोक्षदायिनी गंगा को मोक्ष की प्रतीक्षा है

    भारत की जीवन रेखा कही जाने वाली गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के सारे प्रयास विफल हो रहे है ।
    कभी गंगाजल के स्पर्शमात्र से दैवी अनुभूति होती थी, लेकिन अब इस पवित्र एक मोक्षदायिनी नदी का जल इतना मैला हो चुका है कि उसका अमरत्व का गुण ही खत्म हो गया है । जहां कभी हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाते थे, वहीं वे आज दूर से ही इसे प्रणाम करते हैं । गंगा सफाई के नाम पर करोड़ों रूपए अब तक बहाए गए हैं लेकिन सुधार होने के बजाए प्रदूषण और बढ़ा है । सरकार तथा तमाम संस्थाएं वर्षो से गंगा में व्याप्त् प्रदूषण का राग अलाप रही है, लेकिन प्रदूषण रोकने के सारे प्रयास विफल हो रहे है । अब तो मानो मोक्षदायिनी गंगा को भी त्राहिमाम् कहना पड़ रहा है । गंगा के तट पर बसे कानपुर, प्रयाग एवं वाराणसी समेत विभिन्न शहरों का अस्तित्व खतरे में है। प्रदूषण के चलते गंगा का पानी काला पड़ गया है । गंगा को प्रदूषण मुक्त करने  के लिए अब तक एक हजार करोड़ रूपए से ज्यादा खर्च हो चुके हैं लेकिन शहरों के गन्दे नाले, कारखानों का कचरा एवं चमड़ा उद्योग का अवशेष गंगा में बेरोकटोक गिराया जा रहा है । तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने १४ जून १९८६ को वाराणासी के राजेन्द्र प्रसाद घाट से गंगा निर्मलीकरण का अभियान शुरू किया था । लेकिन, प्रदूषण घटने के बजाय बढ़ता गया एवं गंगा कई जगहों पर तो नाले के रूप में परिवर्तित हो गई ।
    गंगा ही नहीं उसकी सारी सहायक नदियों का यही हॉल है । यमुना, गोमती, घाघरा, केन तथा बेतवा समेत सभी नदियां, प्रदूषण के मार झेल रही हैं । कुछ का अस्तित्व खत्म हो गया    है, कुछ का खत्म होने के कगार पर है।  इसके उदाहरण है वाराणसी की वरूणा, अस्सी एवं गोमती नदी । गंगा में प्रदूषणके चलते सारे जलचर खत्म हो चुके हैं । मछलियां, मगरमच्छ एवं कछुआें की जहां भरमार रहती थी वहीं प्रदूषण दूर करने में ये अहम भूमिका अदा करते थे । वे अब यदाकदा दिखाई पड़ते हैं । गंगा जीवन तथा जीविका का आधार भी है । घाट के पण्डे, पुरोहितों, नाविक, पुजारी, नाऊ, माली एव न जाने कितने लोगों की जीविका, गंगा पर निर्भर है । प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने दो साल पूर्व गंगा को राष्ट्रीय नदी तो घोषित कर दिया लेकिन अभी तक इस पर कोई काम नहीं हुआ । वाराणसी में गंगा की अविरलता एवं निर्मलता के लिए संत महात्मा विगत दो महीने से अनशनरत हैं, लेकिन न सरकार इस ओर ध्यान दे रहीं है और न जनता की सहभागिता हो रही है ।
 
              कन्या छाया - समाज एवं प्रकृतिको बचाने की योजना
    कन्या-छात्रा समाज में लड़कियों व वृक्ष वनों प्रकृतिदोनों को बचाने व बढ़ाने को प्रोत्साहित करने के लिए नगर परिषद्, परवाणु जिला सोलन (हि.प्र.) द्वारा शुरू की गई योजना है । इसके अन्तर्गत नगर में जन्म लेने वाली प्रत्येक लड़की जो जनवरी २०११ के बाद पैदा हुई है, उससे एक वृक्ष लगवाया जायेगा तथा कन्या को राशि ३१००/- रूपये की एफ.डी.आर. १८ वर्ष के लिए एक प्रमाण पत्र जिसमें पेड की किस्म, स्थान, दिनांक व लड़की के बारे में सारी जानकारी लिखी होगी, साथ पेड़ लगाते हुए फोटोग्राफ प्रदान किया जायेगा । लगाये वृक्ष को परिषद के रिकार्ड में दर्ज होगा और उसकी देखभाल भी परिषद करेगी । इसके लिए बजट का प्रावधान किया गया है । इसके साथ जो लड़कियॉ नगर में शादी के बाद बहुआें के रूप में आयेगी उनसे भी उनके नाम के पेड़ लगवाया जायेगा उसका भी रिकार्ड रखा जायेगा, उनको केवल विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र के साथ वृक्षारोपण का प्रमाण पत्र दिया जायेगा ।
    इस निधि में वह या कोई अन्य व्यक्ति चाहे तो राशि दे सकता है । स्थानीय निकायें व पंचायत अपनी निधि से थोड़ी सी राशि खर्च कर बहुत बड़ा काम समाज व प्रकृति को बचाने का कर सकती है और बिना किसी अतिरिक्त राशि दिये पंचायती संस्थाआें  व स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी तय कर दे और इस कार्य का आडिट व निरन्तर मानीटरिंग शुरू हो जाये तो समाज में कन्याआें का मान भी बढ़ेगा व लाखों वृक्ष जो सरकारी लाखों रूपये खर्च कर भी नहीं बचा पा रहे है, वह बचेगे तथा हर जगह कन्याआें के नाम पेड़ों के उपर नजर आयेंगे ।

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