विनाशकारी अंत की ओर बढ़ रही है धरती
तेजी से बढ़ रही जनसंख्या अब धरती के अस्तित्व के लिए खतरा बन गई है । अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने धरती के अंत की ओर बढ़ने की चेतावनी देते हुए कहा है कि वह समय दूर नहीं जब हमें जीवन देने वाले प्राकृतिक संसाधन ही नष्ट हो जाएँगे । उन्होनें जल, जंगल और जमीन के अंधाधुंध दोहन को इसका कारण बताया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि मौजूदा हालात पर अभी काबू नहीं किया गया तो परिस्थितियाँ बेहद भयावह हो सकती है ।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि धरती अब उस दिशा में बढ़ रही है, जब कई प्रजातियाँ समाप्त् हो जाएँगी और आमूलचूल बदलाव होंगे । ऐसा एक बार १२ हजार साल पहले ग्लेशियर के पिघलने के दौरान हुआ था । यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के एंथनी बारनोस्की ने कहा कि पूरी संभावना है कि इस सदी के अंत तक यह धरती ऐसी नहीं रहे जैसी अभी है । श्री बारनोस्की समेत अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अमेरिका और यूरोप के कुल १७ वैज्ञानिकों का यह अध्ययन तेजी से बदल रहे वातावरण और पारिस्थितिकी पर आधारित है । वैज्ञानिकों ने पाया है कि यदि परिस्थितियाँ में सुधार नहीं होता है तो आने वाले समय में जीवन के लिए अनिवार्य वनस्पति और परिस्थितियाँ ही शेष नहीं रहेंगी ।
श्री बारनोस्की के अनुसार इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि हम प्रकृति से ले तो भरपूर रहे हैं, लेकिन उसे लौटा कुछ भी नहीं रहे है । इससे धरती पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है । औद्योगिक क्रंाति के बाद से वायुमण्डल में ३५ प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ी है । इसकी वजह से तापमान में भारी बढ़ोतरी हुई है । जहाँ हिमयुग में मानव धरती के ३० प्रतिशत भाग तक सीमित था वहीं आज उसने अपनी हद बढ़ाकर ४३ प्रतिशत कर ली है । अध्ययन में यह भी कहा गया है कि प्राकृतिक संपदा का जरूरत से ज्यादा दोहन भविष्य में पृथ्वी ही नहीं मानव जाति के विनाशकारी अंत का कारण साबित होगा । इसलिये समय रहते चेत जाने का समय आ गया है ।
तेजी से बढ़ रही जनसंख्या अब धरती के अस्तित्व के लिए खतरा बन गई है । अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने धरती के अंत की ओर बढ़ने की चेतावनी देते हुए कहा है कि वह समय दूर नहीं जब हमें जीवन देने वाले प्राकृतिक संसाधन ही नष्ट हो जाएँगे । उन्होनें जल, जंगल और जमीन के अंधाधुंध दोहन को इसका कारण बताया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि मौजूदा हालात पर अभी काबू नहीं किया गया तो परिस्थितियाँ बेहद भयावह हो सकती है ।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि धरती अब उस दिशा में बढ़ रही है, जब कई प्रजातियाँ समाप्त् हो जाएँगी और आमूलचूल बदलाव होंगे । ऐसा एक बार १२ हजार साल पहले ग्लेशियर के पिघलने के दौरान हुआ था । यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के एंथनी बारनोस्की ने कहा कि पूरी संभावना है कि इस सदी के अंत तक यह धरती ऐसी नहीं रहे जैसी अभी है । श्री बारनोस्की समेत अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अमेरिका और यूरोप के कुल १७ वैज्ञानिकों का यह अध्ययन तेजी से बदल रहे वातावरण और पारिस्थितिकी पर आधारित है । वैज्ञानिकों ने पाया है कि यदि परिस्थितियाँ में सुधार नहीं होता है तो आने वाले समय में जीवन के लिए अनिवार्य वनस्पति और परिस्थितियाँ ही शेष नहीं रहेंगी ।
श्री बारनोस्की के अनुसार इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि हम प्रकृति से ले तो भरपूर रहे हैं, लेकिन उसे लौटा कुछ भी नहीं रहे है । इससे धरती पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है । औद्योगिक क्रंाति के बाद से वायुमण्डल में ३५ प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ी है । इसकी वजह से तापमान में भारी बढ़ोतरी हुई है । जहाँ हिमयुग में मानव धरती के ३० प्रतिशत भाग तक सीमित था वहीं आज उसने अपनी हद बढ़ाकर ४३ प्रतिशत कर ली है । अध्ययन में यह भी कहा गया है कि प्राकृतिक संपदा का जरूरत से ज्यादा दोहन भविष्य में पृथ्वी ही नहीं मानव जाति के विनाशकारी अंत का कारण साबित होगा । इसलिये समय रहते चेत जाने का समय आ गया है ।
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