सोमवार, 11 जून 2012

कविता  
        गौरय्या
डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन

मेरे मटमैले अँगना में
    फुदक रही गौरय्या
कच्ची मिट्टी की दीवारें
    घास-पात का छाजन
मैंने अपना नीड़ बनाया
    तिनके-तिनके चुन-चुन
यहाँ कहाँ से तू आ बैठी
    हरियाली की रानी
जी करता है तुझे चूम लूँ
    ले लूँ  मधुर बलय्या
मेरे मटमैले अँगना में
    फुदक रही गौरय्या
नीलम की-सी नीली आँखे
    सोने-से सुन्दर पर
अंग-अंग में बिजली-सी भर
    फुदक रही तू फर-फर
फूली नहीं समाती तू तो
    मुझे देख हैरानी
आजा तुझको बहन बना लूँ
    और बनूँ मैं भैय्या
मेरे मटमैले अँगना में
    फुदक रही गौरय्या ।
मटके  की गरदन पर बैठी
    कभी अरगनी पर चल
चहक रही तू चिउँ-चिउँ-चिउँ-चिउँ
    फुला-फुला पर चंचल
कहीं एक क्षण जो थिर होकर
    तू जा बैठ सलोनी
कैसे तुझे पाल पाई होगी
    री, तेरी मैय्या
मेरे मटमैले अँगना में
    फुदक रही गौरय्या ।
सूक्ष्म वायवी लहरोंपर
    सन्तरण कर रही सर-सर
हिलाहिला सिर तुझे बुलाते
    पत्ते कर-कर मर-मर
तू प्रति अंग उमंग-भरी-सी
    पीती फिरती पानी
निर्दय हलकोरों से डगमग
    बहती मेरी नैय्या
मेरे मटमैले अँगना में
    फुदक रही गौरय्या ।

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