कविता
गौरय्या
डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन
मेरे मटमैले अँगना में
फुदक रही गौरय्या
कच्ची मिट्टी की दीवारें
घास-पात का छाजन
मैंने अपना नीड़ बनाया
तिनके-तिनके चुन-चुन
यहाँ कहाँ से तू आ बैठी
हरियाली की रानी
जी करता है तुझे चूम लूँ
ले लूँ मधुर बलय्या
मेरे मटमैले अँगना में
फुदक रही गौरय्या
नीलम की-सी नीली आँखे
सोने-से सुन्दर पर
अंग-अंग में बिजली-सी भर
फुदक रही तू फर-फर
फूली नहीं समाती तू तो
मुझे देख हैरानी
आजा तुझको बहन बना लूँ
और बनूँ मैं भैय्या
मेरे मटमैले अँगना में
फुदक रही गौरय्या ।
मटके की गरदन पर बैठी
कभी अरगनी पर चल
चहक रही तू चिउँ-चिउँ-चिउँ-चिउँ
फुला-फुला पर चंचल
कहीं एक क्षण जो थिर होकर
तू जा बैठ सलोनी
कैसे तुझे पाल पाई होगी
री, तेरी मैय्या
मेरे मटमैले अँगना में
फुदक रही गौरय्या ।
सूक्ष्म वायवी लहरोंपर
सन्तरण कर रही सर-सर
हिलाहिला सिर तुझे बुलाते
पत्ते कर-कर मर-मर
तू प्रति अंग उमंग-भरी-सी
पीती फिरती पानी
निर्दय हलकोरों से डगमग
बहती मेरी नैय्या
मेरे मटमैले अँगना में
फुदक रही गौरय्या ।
गौरय्या
डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन
मेरे मटमैले अँगना में
फुदक रही गौरय्या
कच्ची मिट्टी की दीवारें
घास-पात का छाजन
मैंने अपना नीड़ बनाया
तिनके-तिनके चुन-चुन
यहाँ कहाँ से तू आ बैठी
हरियाली की रानी
जी करता है तुझे चूम लूँ
ले लूँ मधुर बलय्या
मेरे मटमैले अँगना में
फुदक रही गौरय्या
नीलम की-सी नीली आँखे
सोने-से सुन्दर पर
अंग-अंग में बिजली-सी भर
फुदक रही तू फर-फर
फूली नहीं समाती तू तो
मुझे देख हैरानी
आजा तुझको बहन बना लूँ
और बनूँ मैं भैय्या
मेरे मटमैले अँगना में
फुदक रही गौरय्या ।
मटके की गरदन पर बैठी
कभी अरगनी पर चल
चहक रही तू चिउँ-चिउँ-चिउँ-चिउँ
फुला-फुला पर चंचल
कहीं एक क्षण जो थिर होकर
तू जा बैठ सलोनी
कैसे तुझे पाल पाई होगी
री, तेरी मैय्या
मेरे मटमैले अँगना में
फुदक रही गौरय्या ।
सूक्ष्म वायवी लहरोंपर
सन्तरण कर रही सर-सर
हिलाहिला सिर तुझे बुलाते
पत्ते कर-कर मर-मर
तू प्रति अंग उमंग-भरी-सी
पीती फिरती पानी
निर्दय हलकोरों से डगमग
बहती मेरी नैय्या
मेरे मटमैले अँगना में
फुदक रही गौरय्या ।
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