विज्ञान हमारे आसपास
प्रकृति और चुंबकीय कंपास
एस. अनंतनारायणन
नीले रंग का प्रकाश और एक विशेष प्रकार के प्रोटीन की मदद से पक्षी पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति का इस्तेमाल रास्ता खोजने में करते हैं । यह तो कई दशकों से ज्ञात है कि पक्षियों सहित बहुत से जीवों के व्यवहार पर पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति का प्रभाव पड़ता है, पर इस संवेदनशीलता की भौतिक क्रियाविधि क्या हो सकती है, यह अब तक रहस्य ही रहा है । एक संभावना यह दिखती है कि पक्षियों के सिर में कोई चुंबकीय पदार्थ है जो उन्हें चुंबकीय बल को महसूस करने में मदद करता है । एक अन्य संभावना है कि शरीर में कुछ रासायनिक पदार्थ होते हैं जो चुंबकत्व के प्रति संवेदी होते हैं । वैसे साक्ष्य तो दोनों ही मान्यताआें के समर्थन में मिले हैं ।
सूंघकर चलते हैं कबतूर
घर वापस जाते कबूतरों को दिशा की बहुत ही असाधारण समझ होती है । कबूतरों की रास्ते की याददाश्त किन्हें दृश्य चिन्हों पर आश्रित नहीं होती । जैसे यदि इन्हें अपना आशियाना खोजना हो और आसपास के चिन्ह भी मिट जाएं, तो भी ये अपने घोंसले वाला घर ढूंढ ही लेंगे । कबूतर यह काम तब भी कर सकते हैं जब दिन के अलग-अलग समय पर सूरज अलग-अलग दिशाआें में चमक रहा हो या बादल छाए हों और सूरज को देख पाना भी संभव न हो ।
ऑकलैंड, न्यूजीलैंड के डॉ. कोर्डुल मोरा और उनकी टीम ने पाया कि कबूतरों की चोंच लौह युक्त सामग्री से मिलकर बनी होती है जो उसे चुंबकीय क्षेत्र का ज्ञान कराती है । बहुत से पक्षियों को एक खोखले बेलन में रखा गया जिसके दोनों सिरों पर भोजन भरी तश्तरी रखी गई । बेलन में चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए एक कुंडली लगाई गई थी । जब पक्षी चुंबकीय क्षेत्र के अनुसार सही दिशा में चलते तो तश्तरी में रखे भोजन के रूप में उन्हें पुरस्कृत भी किया जाता था । पक्षी बहुत ही जल्द सही दिशा में पहुंचना सीख लेते हैं । इसका मतलब साफ है कि पक्षी चुंबकीय क्षेत्र को आसानी से पकड़ लेते है । जैसे यह कोई एक विशेष रंग या आवाज हो ।
लेकिन जब पक्षी की चोंच में एक चुंबक लगा दिया गया या फिर चोंच को चेतना शून्य कर दिया गया तब उन्होंने चुंबकीय क्षेत्र की दिशा बदलने पर कोई प्रतिक्रियानहीं दी । इससे यह साफ पता चलता है कि चोंच ही चुंबकीय क्षेत्र के प्रति संवेदनशील उपकरण है ।
प्रकाश के प्रति संवेदनशील
यहां इस बात के प्रमाण भी है कि बहुत से पक्षियों में चुंबकीय क्षेत्र का सेंसर उनकी आंखों में होता है जो निश्चित रंग के प्रकाश की उपस्थिति पर निर्भर करता है । यह एक अलग ही कार्य प्रणाली की ओर इशारा करता है । इसमें प्रत्येक विशिष्ट ऊर्जा के प्रकाश की वजह से एक रासायनिक अभिक्रिया होती हे, जो चुंबकीय क्षेत्र की दिशा पर निर्भर करती है । यदि यह बात पक्षियों पर लागू होती है तो फिर पक्षी चुंबकीय क्षेत्र अनुसार अपने उड़ान की दिशा को समायोजित कर सकते हैं । नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है ।
सबसे साधारण रासायनिक व्यवस्था जो चुंबकीय क्षेत्र के प्रति संवेदनशील हो, विघुत आवेशित अणुआेंके समूहोंकी जोड़ियां होगी । अणु मूलत: परमाणुआें के समूहों से मिलकर बने होते हैं जो स्थायित्व प्राप्त् करने के लिए आपस में आवेशित कणों का आदान-प्रदान करते है । यह एक प्रकार का सहयोगी सह-अस्तित्व है । परन्तु कभी-कभी ये पार्टनर एक-दूसरे से अलग भी हो जाते हैं मगर इस स्थिति में उन पर आवेश रहता है । परमाणुआें के ऐसे समूह, जो आवेशित रहते हुए स्वतंत्र घूमते रहते हैं, मूलक कहलाते हैं और इनके जोड़े मूलक युग्म ।
ये मूलक युग्म शक्तिशाली चुंबकीय गुण वाले होते हैं और रासायनिक क्रियाआें में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । चूंकि इनमें चुंबकत्व होता है इसलिए इनके उन्मुखीकरण पर इस बात का असर पड़ता है कि बाहरी चुंबकीय क्षेत्र प्रबल है या दुर्बल । लिहाजा ये मूलक एक तरह के चुंबकीय क्षेत्र में एक तरह से क्रिया करेंगे और दूसरे तरह के चुंबकीय क्षेत्र मेंदूसरी तरह से । यदि ये अलग-अलग अभिक्रियाएं आंखों की संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकती हैं, तो चुंबकीय क्षेत्र में अंतर दृष्टि में अंतर के रूप में पहचाना जाएगा ।
क्रिप्टोक्रोम
क्रिप्टोक्रोम एक प्रकार का प्रोटीन है जो बहुत से जानवरोंऔर पौधों में पाया जाता है । यह किसी विशेष रंग के प्रकाश के संपर्क में आने से रासायनिक रूप से सक्रिय हो जाता है । ये प्रोटीन पौधों में बहुत सी क्रियाआें को संचालित करते हैं । जैसे पौधों में प्रकाश के स्त्रोत की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति । क्रिप्टोक्रोम पौधोंमें दिन या रात की अवधि को पहचानने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है । और इस बातके साक्ष्य भी उपलब्ध हैं कि क्रिप्टोक्रोम पक्षियों की आंखों के रेटिना में पाया जाता है और उनकी चुम्बकीय संवेदना में मदद करता हैं।
मैसाचुसेट्स मेडिकल स्कूल युनिवर्सिटी, अमरीका की टीम ने फ्रूट फ्लाई की आंखों में क्रिप्टोक्रोम पाया है । इससे पता चलता है कि यह प्रोटीन चुंबकीय-संवेदनशीलता के लिए आवश्यक है जो अवरक्त प्रकाश या चटख नीले प्रकाश की उपस्थिति में नजर आती है ।
वैज्ञानिकों ने एक ऐसा उपकरण तैयार किया जिसमें फ्रूट फ्लाई को एक चुंबकीय क्षेत्र और साथ ही विशेष रंग के प्रकाश के सामने छोड़ा जाता है । उड़ते हुए मक्खियां अपने रास्ते में पड़ने वाले दोराहों पर दो में से कोई एक रास्ता चुनती हैं । जब वे चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति में सही रास्ता चुनती हैं तो उन्हें शकर को घोल इनाम में मिलता है । ऐसा देखा गया कि मक्खियों को चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति में रास्ता चुनने में आसानी तब होती है तब नीले रंग का प्रकाश मौजूद हो । जब फिल्टर का प्रयोग करके नीले प्रकाश को अलग कर दिया जाता है तो मक्खियां सही प्रतिक्रिया नहींदे पाती । यह दर्शाता है कि प्रकाश का यह विशेष रंग चुम्बकीय प्रतिक्रिया तंत्र के काम करने के लिए आवश्यक होता है ।
ऐसा ही प्रयोग ऐसी फ्रूट फ्लाई के साथ किया गया जिन्हेंइस तरह विकसित किया गया था जिनमें क्रिप्टोक्रोम नहीं था । ऐसा देखा गया है ये परिवर्तित मक्खियां दुर्बल-प्रबल किसी भी चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं दर्शाती, चाहे किसी भी रंग का प्रकाश मौजूद हो । स्पष्ट है कि क्रिप्टोक्रोम ही नीले प्रकाश की उपस्थिति में चुंबकीय क्षेत्र को भांपने का काम करता है ।
एक और प्रोटीन की पहचान की गई है जिसे टाइमलेस प्रोटीन कहा गया है । यह कई जीवों में दिन-रात की लय का संचालन करता है । टाइमलेस प्रकाश-ग्राही क्रिप्टोक्रोम और पीरियड नामक एक प्रोटीन के साथ काम करता है जो जैविक लय सुनिश्चित करता है । इसका उदाहरण हम सूर्य से संचालित होने वाले पौधों की पत्तियों के सुबह खुलने और शाम को बंद होने के रूप में देख सकते है ।
क्रिप्टोक्रोम दिन-रात के चक्र को व्यवस्थित करने के लिए टाइमलेस प्रोटीन के साथ सूचना का आदान-प्रदान करता है । इस बात को जांचने के लिए कि क्या क्रिप्टोक्रोम की चुंबकीय संवेदनशीलता के लिए एक कामकाजी दिन-रात नियामक तंत्र की आवश्यकता होती है, सबसे पहले फूट फ्लाई को लगातार प्रकाश के संपर्क में रखकर उसके दिन-रात नियामक तंत्र की लय को तोड़ा गया । इस तरह की कार्यवाही क्रिप्टोक्रोम के साथ-साथ टाइमलेस और पीरियड को भी नुकसान पहंुचाती है । इस प्रक्रिया के पांचवे दिन, दिन-रात व्यवहार की नियमितता टूट गई । जब उक्त प्रयोग इन लयहीन फ्रूट फ्लाई के साथ किया गया तो पता चला कि उन्हें चुंबकीय क्षेत्र के प्रति जवाब देेेने के लिए प्रशिक्षित करना उतना ही आसाना था जितना तब, जब उनका दिन-रात चक्र बरकरार था ।
लगता है कि क्रिप्टोक्रोम ही चुंबकीय संवेदनशीलता दर्शाता है और नीले प्रकाश मेंसक्रिय होता है ।
प्रकृति और चुंबकीय कंपास
एस. अनंतनारायणन
नीले रंग का प्रकाश और एक विशेष प्रकार के प्रोटीन की मदद से पक्षी पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति का इस्तेमाल रास्ता खोजने में करते हैं । यह तो कई दशकों से ज्ञात है कि पक्षियों सहित बहुत से जीवों के व्यवहार पर पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति का प्रभाव पड़ता है, पर इस संवेदनशीलता की भौतिक क्रियाविधि क्या हो सकती है, यह अब तक रहस्य ही रहा है । एक संभावना यह दिखती है कि पक्षियों के सिर में कोई चुंबकीय पदार्थ है जो उन्हें चुंबकीय बल को महसूस करने में मदद करता है । एक अन्य संभावना है कि शरीर में कुछ रासायनिक पदार्थ होते हैं जो चुंबकत्व के प्रति संवेदी होते हैं । वैसे साक्ष्य तो दोनों ही मान्यताआें के समर्थन में मिले हैं ।
सूंघकर चलते हैं कबतूर
घर वापस जाते कबूतरों को दिशा की बहुत ही असाधारण समझ होती है । कबूतरों की रास्ते की याददाश्त किन्हें दृश्य चिन्हों पर आश्रित नहीं होती । जैसे यदि इन्हें अपना आशियाना खोजना हो और आसपास के चिन्ह भी मिट जाएं, तो भी ये अपने घोंसले वाला घर ढूंढ ही लेंगे । कबूतर यह काम तब भी कर सकते हैं जब दिन के अलग-अलग समय पर सूरज अलग-अलग दिशाआें में चमक रहा हो या बादल छाए हों और सूरज को देख पाना भी संभव न हो ।
ऑकलैंड, न्यूजीलैंड के डॉ. कोर्डुल मोरा और उनकी टीम ने पाया कि कबूतरों की चोंच लौह युक्त सामग्री से मिलकर बनी होती है जो उसे चुंबकीय क्षेत्र का ज्ञान कराती है । बहुत से पक्षियों को एक खोखले बेलन में रखा गया जिसके दोनों सिरों पर भोजन भरी तश्तरी रखी गई । बेलन में चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए एक कुंडली लगाई गई थी । जब पक्षी चुंबकीय क्षेत्र के अनुसार सही दिशा में चलते तो तश्तरी में रखे भोजन के रूप में उन्हें पुरस्कृत भी किया जाता था । पक्षी बहुत ही जल्द सही दिशा में पहुंचना सीख लेते हैं । इसका मतलब साफ है कि पक्षी चुंबकीय क्षेत्र को आसानी से पकड़ लेते है । जैसे यह कोई एक विशेष रंग या आवाज हो ।
लेकिन जब पक्षी की चोंच में एक चुंबक लगा दिया गया या फिर चोंच को चेतना शून्य कर दिया गया तब उन्होंने चुंबकीय क्षेत्र की दिशा बदलने पर कोई प्रतिक्रियानहीं दी । इससे यह साफ पता चलता है कि चोंच ही चुंबकीय क्षेत्र के प्रति संवेदनशील उपकरण है ।
प्रकाश के प्रति संवेदनशील
यहां इस बात के प्रमाण भी है कि बहुत से पक्षियों में चुंबकीय क्षेत्र का सेंसर उनकी आंखों में होता है जो निश्चित रंग के प्रकाश की उपस्थिति पर निर्भर करता है । यह एक अलग ही कार्य प्रणाली की ओर इशारा करता है । इसमें प्रत्येक विशिष्ट ऊर्जा के प्रकाश की वजह से एक रासायनिक अभिक्रिया होती हे, जो चुंबकीय क्षेत्र की दिशा पर निर्भर करती है । यदि यह बात पक्षियों पर लागू होती है तो फिर पक्षी चुंबकीय क्षेत्र अनुसार अपने उड़ान की दिशा को समायोजित कर सकते हैं । नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है ।
सबसे साधारण रासायनिक व्यवस्था जो चुंबकीय क्षेत्र के प्रति संवेदनशील हो, विघुत आवेशित अणुआेंके समूहोंकी जोड़ियां होगी । अणु मूलत: परमाणुआें के समूहों से मिलकर बने होते हैं जो स्थायित्व प्राप्त् करने के लिए आपस में आवेशित कणों का आदान-प्रदान करते है । यह एक प्रकार का सहयोगी सह-अस्तित्व है । परन्तु कभी-कभी ये पार्टनर एक-दूसरे से अलग भी हो जाते हैं मगर इस स्थिति में उन पर आवेश रहता है । परमाणुआें के ऐसे समूह, जो आवेशित रहते हुए स्वतंत्र घूमते रहते हैं, मूलक कहलाते हैं और इनके जोड़े मूलक युग्म ।
ये मूलक युग्म शक्तिशाली चुंबकीय गुण वाले होते हैं और रासायनिक क्रियाआें में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । चूंकि इनमें चुंबकत्व होता है इसलिए इनके उन्मुखीकरण पर इस बात का असर पड़ता है कि बाहरी चुंबकीय क्षेत्र प्रबल है या दुर्बल । लिहाजा ये मूलक एक तरह के चुंबकीय क्षेत्र में एक तरह से क्रिया करेंगे और दूसरे तरह के चुंबकीय क्षेत्र मेंदूसरी तरह से । यदि ये अलग-अलग अभिक्रियाएं आंखों की संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकती हैं, तो चुंबकीय क्षेत्र में अंतर दृष्टि में अंतर के रूप में पहचाना जाएगा ।
क्रिप्टोक्रोम
क्रिप्टोक्रोम एक प्रकार का प्रोटीन है जो बहुत से जानवरोंऔर पौधों में पाया जाता है । यह किसी विशेष रंग के प्रकाश के संपर्क में आने से रासायनिक रूप से सक्रिय हो जाता है । ये प्रोटीन पौधों में बहुत सी क्रियाआें को संचालित करते हैं । जैसे पौधों में प्रकाश के स्त्रोत की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति । क्रिप्टोक्रोम पौधोंमें दिन या रात की अवधि को पहचानने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है । और इस बातके साक्ष्य भी उपलब्ध हैं कि क्रिप्टोक्रोम पक्षियों की आंखों के रेटिना में पाया जाता है और उनकी चुम्बकीय संवेदना में मदद करता हैं।
मैसाचुसेट्स मेडिकल स्कूल युनिवर्सिटी, अमरीका की टीम ने फ्रूट फ्लाई की आंखों में क्रिप्टोक्रोम पाया है । इससे पता चलता है कि यह प्रोटीन चुंबकीय-संवेदनशीलता के लिए आवश्यक है जो अवरक्त प्रकाश या चटख नीले प्रकाश की उपस्थिति में नजर आती है ।
वैज्ञानिकों ने एक ऐसा उपकरण तैयार किया जिसमें फ्रूट फ्लाई को एक चुंबकीय क्षेत्र और साथ ही विशेष रंग के प्रकाश के सामने छोड़ा जाता है । उड़ते हुए मक्खियां अपने रास्ते में पड़ने वाले दोराहों पर दो में से कोई एक रास्ता चुनती हैं । जब वे चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति में सही रास्ता चुनती हैं तो उन्हें शकर को घोल इनाम में मिलता है । ऐसा देखा गया कि मक्खियों को चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति में रास्ता चुनने में आसानी तब होती है तब नीले रंग का प्रकाश मौजूद हो । जब फिल्टर का प्रयोग करके नीले प्रकाश को अलग कर दिया जाता है तो मक्खियां सही प्रतिक्रिया नहींदे पाती । यह दर्शाता है कि प्रकाश का यह विशेष रंग चुम्बकीय प्रतिक्रिया तंत्र के काम करने के लिए आवश्यक होता है ।
ऐसा ही प्रयोग ऐसी फ्रूट फ्लाई के साथ किया गया जिन्हेंइस तरह विकसित किया गया था जिनमें क्रिप्टोक्रोम नहीं था । ऐसा देखा गया है ये परिवर्तित मक्खियां दुर्बल-प्रबल किसी भी चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं दर्शाती, चाहे किसी भी रंग का प्रकाश मौजूद हो । स्पष्ट है कि क्रिप्टोक्रोम ही नीले प्रकाश की उपस्थिति में चुंबकीय क्षेत्र को भांपने का काम करता है ।
एक और प्रोटीन की पहचान की गई है जिसे टाइमलेस प्रोटीन कहा गया है । यह कई जीवों में दिन-रात की लय का संचालन करता है । टाइमलेस प्रकाश-ग्राही क्रिप्टोक्रोम और पीरियड नामक एक प्रोटीन के साथ काम करता है जो जैविक लय सुनिश्चित करता है । इसका उदाहरण हम सूर्य से संचालित होने वाले पौधों की पत्तियों के सुबह खुलने और शाम को बंद होने के रूप में देख सकते है ।
क्रिप्टोक्रोम दिन-रात के चक्र को व्यवस्थित करने के लिए टाइमलेस प्रोटीन के साथ सूचना का आदान-प्रदान करता है । इस बात को जांचने के लिए कि क्या क्रिप्टोक्रोम की चुंबकीय संवेदनशीलता के लिए एक कामकाजी दिन-रात नियामक तंत्र की आवश्यकता होती है, सबसे पहले फूट फ्लाई को लगातार प्रकाश के संपर्क में रखकर उसके दिन-रात नियामक तंत्र की लय को तोड़ा गया । इस तरह की कार्यवाही क्रिप्टोक्रोम के साथ-साथ टाइमलेस और पीरियड को भी नुकसान पहंुचाती है । इस प्रक्रिया के पांचवे दिन, दिन-रात व्यवहार की नियमितता टूट गई । जब उक्त प्रयोग इन लयहीन फ्रूट फ्लाई के साथ किया गया तो पता चला कि उन्हें चुंबकीय क्षेत्र के प्रति जवाब देेेने के लिए प्रशिक्षित करना उतना ही आसाना था जितना तब, जब उनका दिन-रात चक्र बरकरार था ।
लगता है कि क्रिप्टोक्रोम ही चुंबकीय संवेदनशीलता दर्शाता है और नीले प्रकाश मेंसक्रिय होता है ।
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