पर्यावरण परिक्रमा
क्या लुप्त् हो जाएगा मोहन जोदड़ो ?
पुरातत्व विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि अगर कांस्य युग की ऐतिहासिक धरोहर और दक्षिण एशिया के सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल मोहनजोदड़ों को बचाने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो यह धरोहर हमेशा के लिए लुप्त् हो जाएगी । हालांकि पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि वे मोहनजोदड़ों के अवशेषों की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे है ।
दक्षिण पाकिस्तान में स्थित मोहनजोदड़ों दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक था । २६०० ईसा पूर्व बना यह शहर अपनी जटिल योजनाबद्ध व्यवस्था, अविश्वसनीय वास्तुशास्त्र और जटिल जल व सफाई व्यवस्था के कारण दुनिया की सबसे विकसित शहरी व्यवस्था वाला शहर हुआ करता था । समझा जाता है कि महान सिंधु घाटी सभ्यता के इस शहर में३५ हजार लोग रहा करते थे । पुरातत्वविद् डॉ. अस्मा इब्राहीम के अनुसार, जब भी मैंयहां आती है, हर बार इसके लिए बुरा अनुभव करती हूँ । मैं यहां दो तीन साल से नहीं आई । और अब यह नुकसान देखकर मुझे बहुत दुख हो रहा है । मोहनजोदड़ों के निचले इलाके में, जहां कि मध्यवर्ग और कामगार तबके के लोग रहा करते थे, दीवारें नीचे से ऊपर की ओर दरक रही हैं । यह नई क्षति है । भूमिगत जल में मौजूद लवण ईटों को खा रहा है, जो खुदाई से पहले हजारों साल तक सुरक्षित रही थी । जैसे-जैसे ऊपरी हिस्से की और बढ़ते हैं, जहां कि सिंधु घाटी सभ्यता की संपन्न आबादी बसा करती थी और जहां बड़े स्नानघर होने के संकेत मिलते हैं, वहां हालात काफी खराब हो गए हैं।
सुश्री इब्राहीम ने कहा, संरक्षण के लिहाज से यह एक जटिल स्थान है। यहां लवणता, आर्द्रता और बारिश की समस्याएं हैं । मगर इनके संरक्षण के अधिकतर प्रयास इतने बेकार और बचकाने हैंकि उनसे नुकसान और बढ़ ही रहा है । अगर यही हाल रहा तो यह स्थल अगले २० साल में लुप्त् हो जाएगा।
कृत्रिम माँस विकसित करने की तैयारी
अमेरिकी वैज्ञानिक प्रयोगशाला में कृत्रिम माँस विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसके भविष्य में उपयोग में आने पर माँस आपूर्ति के लिए मूक प्राणियों के कत्लपर रोक लग सकेगी ।
ब्रिटिश दैनिक गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार सैन फ्रांसिस्को के मैनेलो पार्क के पास स्थित प्रयोगशाला में प्रो.पैट्रिक ब्राउन इस कृत्रिक माँस को विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होनें कहा - मैं उन लोगों के लिए भोजन विकसित करने का प्रयास कर रहा हॅू, जो रोजमर्रा के भोजन में माँस का सेवन करते हैं । मेरे इस प्रयास से संभव है कि पृथ्वी पर इंसानों की और जानवरों की आबादी ५०-५० फीसदी के अनुपात में सिमट जाएगी ।
कृत्रिम तरीके से माँस बनाने का दशकों से प्रयास किया जा रहा है और बाजारों में कई तरह के विकल्प मौजूद है जो सोया से बने होते हैं । इन कृत्रिम खाद्य पदार्थो के स्वाद में कुछ खास दम नहीं होता है । प्रो. ब्राउन द्वारा विकसित किया गया माँस या तो कृत्रिम ऊतकों से विकसित किया जाएगा अथवा वनस्पति के जरिए । वैज्ञानिकों के आगे सबसे बड़ी चुनौती इस नकली माँस के स्वाद को लेकर होगी । माँस का असली स्वाद बहुत लजीज होता है जो दुनियाभर की एक बड़ी जनसंख्या को अपनी ओर आकर्षित करता है ।
कच्च माँस बेस्वाद होता है, लेकिन जब इसे भूना जाता है तो इसमेंहोने वाली बहुत सी रासायनिक प्रतिक्रियाएँमाँस को स्वादिष्ट बना देती हैं । वैज्ञानिकों के आगे नकली माँस के टुकड़ें में भी इस तरह का स्वाद विकसित करने की चुनौती होगी । प्रो. ब्राउन का यह क्रांतिकारी प्रयोग दरअसल पर्यावरण के लिए बहुत फायदेमंद होगा । साथ ही जानवरोंको मारे जाने से कुछ खास किस्म के पशुआें के लुप्त् हो जाने का खतरा भी मंडरा रहा है, इसे भी रोका जा सकेगा ।
पूरी दुनिया मेंहर सेंकड १६०० पशुआें को माँस की आपूर्ति के लिए मार दिया जाता है । माँस उत्पादन की वजह से विश्व में कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में पांच प्रश, मीथेन में ४० प्रश, और दूसरी नाइट्रोजन गैसों में ४० प्रश बढ़ोतरी होती है । अगर माँस उत्पादन इसी रफ्तार से जारी रहा तो वर्ष २०४० तक यह इन हानिकारक गैसों के उत्पादन में वाहनों को कहीं पीछे छोड़ देगा ।
ब्रह्मांड का रहस्य खोजने के करीब है वैज्ञानिक
ब्रह्मांड की उत्पत्ति खोजने में जुटे वैज्ञानिक गॉड पार्टिकल (हिम्स बोसोन) की खोज के करीब पहुँच चुके हैं। बिग बैंग थ्योरी के मुताबिक, इसी तत्व की मदद से पहले तारे फिर ग्रह और आखिरकार जीवन की उत्पत्ति हुई । पिछले कई सालोंकी प्रयासों के बाद वैज्ञानिकों के पास ढेर सारे आँकड़े उपलब्ध हो चुके हैं । ऐसे में वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि जल्द ही गॉड पार्टिकल सामने आ सकता है।
इस तत्व की खोज के लिए योरपियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्ने) लार्ज हेड्रोन कोलाइडर (एचएचसी) का इस्तेमाल कर रही है । यह कणों को तेजी से घुमाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी मशीन है । शोधकर्ताआें का मानना है कि जुलाई के मध्य में मेलबोर्न में होन वाली कॉन्फ्रेंस में वैज्ञानिक शोध-पत्र का खुलासा कर सकते हैं । सर्न के प्रवक्ता जेम्स गिलीस ने कहा कि इस शोध को गुप्त् रखा जा रहा है । केवल कुछ प्रमुख लोग ही इन आँकड़ों का अध्ययन कर रहे हैं । हमें जैसे ही कोई ठोस जानकारी प्राप्त् होगी, उसे दुनिया के सामने रखा जाएगा । वैज्ञानिकों ने कहा कि हिग्स बोसोन के मजबूत संकेत उसी ऊर्जा स्तर पर देखे जा रहे हैं, जो पिछले साल अस्थायी तौर पर देखे गए थे । हालांकि इन अणुआें की जिंदगी इतनी अल्प है कि इन्हें इनके द्वारा छोड़े गए अवशेषों के आधार पर ही पकड़ा जा सकता है ।
भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस के शोध को भौतिक जगत ने स्वीकार करते हुए उनके नाम पर एक उप-परमाण्विक कण का नाम बोसोन रखा है । सन १९२४ में बोस ने एक सांख्यिकीय गणना का जिक्र करते हुए एक पत्र आइस्टीन के पास भेजा था, जिसके आधार पर बोस आइस्टीन के गैस को द्रवीकृत करने के सिद्धांत का जन्म हुआ । इस सिद्धांत के आधार पर ही प्राथमिक कणोंको दो भागों में बाँटा जा सका और इनमें से एक का नाम बोसोन रखा गया, जबकि दूसरे का नाम इटली के भौतिक वैज्ञानिक इनरिको फैरमी के नाम पर रखा गया । दशकों बाद १९६४ में ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने बिग बैंग के बाद एक सेंकड के अरबवें हिस्से में ब्रह्मांड के द्रव्यों को मिलने वाले भार का सिद्धांत दिया, जो बोस के बोसोन सिद्धांत पर ही आधारित था । इसे बाद में हिग्स-बोसोन के नाम से जाना गया ।
एक कीड़े की कीमत ७ लाख रूपये
साधारण सा दिखने वाला एक कीड़ा इन दिनों ७ से ८ लाख रूपए तक बिक रहा है । बद्रीनाथ से जोशीमठ के रास्ते मेंमिलने वाले इस कीड़े के बेशकीमती होने के पीछे इसकी यौन शक्ति बढ़ाने की अद्भूत क्षमता है । तस्करों की निगाह में उत्तराखंड के वन्य जीवों के अंगोंके साथ ही यह कीड़े की इंटरनेशनल मार्केट मेंजबरदस्त मांग है । चमोली जिले के जोशीमठ, दशोली और घाट क्षेत्रों के बुग्याली हिस्सोंमें कीड़ा जड़ी यानी कीड़े के मरने से बनने वाली जड़ी के ऊंचे दाम मिलने से यहां इनका जमकर दोहन हो रहा है । अब तस्करोंकी निगाह इसके जिंदा कीड़े पर लग गई है । तस्कर एक कीड़े के सात लाख रूपये तक देने को तैयार है ।
वन विभाग के सूत्रोंके मुताबिक दशोली प्रखंड के बुग्याली क्षेत्रों में कीड़ा जड़ी तलाशने वाले ग्रामीण के आगे एक तस्कर ने जिंदा कीड़ों को ढूंढ निकालने पर ऊंचे दामोंकी पेशकश की है । बताते हैं कि आइस बॉक्स में रखकर जिंदा कीड़ों को चीन सहित अन्य देशों में ले जाया जा रहा है ।
उल्लेखनीय है कि चमोली जनपद में जोशीमठ, कानीति और माणा घाटी, तपोवन, करछों, उर्गम पाणा, ईराणी, झींझी, घुनी, रामणी, कनौल आदि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में यह कीड़ा मिलता है । स्थानीय ग्रामीण मई और जून में इन स्थानों में बाकायदा कैंप लगाकर कीड़ा जड़ी खोजते हैं । कीड़ा-जड़ी का वानस्पतिक नाम यारसागंबू है ।
क्या लुप्त् हो जाएगा मोहन जोदड़ो ?
पुरातत्व विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि अगर कांस्य युग की ऐतिहासिक धरोहर और दक्षिण एशिया के सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल मोहनजोदड़ों को बचाने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो यह धरोहर हमेशा के लिए लुप्त् हो जाएगी । हालांकि पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि वे मोहनजोदड़ों के अवशेषों की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे है ।
दक्षिण पाकिस्तान में स्थित मोहनजोदड़ों दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक था । २६०० ईसा पूर्व बना यह शहर अपनी जटिल योजनाबद्ध व्यवस्था, अविश्वसनीय वास्तुशास्त्र और जटिल जल व सफाई व्यवस्था के कारण दुनिया की सबसे विकसित शहरी व्यवस्था वाला शहर हुआ करता था । समझा जाता है कि महान सिंधु घाटी सभ्यता के इस शहर में३५ हजार लोग रहा करते थे । पुरातत्वविद् डॉ. अस्मा इब्राहीम के अनुसार, जब भी मैंयहां आती है, हर बार इसके लिए बुरा अनुभव करती हूँ । मैं यहां दो तीन साल से नहीं आई । और अब यह नुकसान देखकर मुझे बहुत दुख हो रहा है । मोहनजोदड़ों के निचले इलाके में, जहां कि मध्यवर्ग और कामगार तबके के लोग रहा करते थे, दीवारें नीचे से ऊपर की ओर दरक रही हैं । यह नई क्षति है । भूमिगत जल में मौजूद लवण ईटों को खा रहा है, जो खुदाई से पहले हजारों साल तक सुरक्षित रही थी । जैसे-जैसे ऊपरी हिस्से की और बढ़ते हैं, जहां कि सिंधु घाटी सभ्यता की संपन्न आबादी बसा करती थी और जहां बड़े स्नानघर होने के संकेत मिलते हैं, वहां हालात काफी खराब हो गए हैं।
सुश्री इब्राहीम ने कहा, संरक्षण के लिहाज से यह एक जटिल स्थान है। यहां लवणता, आर्द्रता और बारिश की समस्याएं हैं । मगर इनके संरक्षण के अधिकतर प्रयास इतने बेकार और बचकाने हैंकि उनसे नुकसान और बढ़ ही रहा है । अगर यही हाल रहा तो यह स्थल अगले २० साल में लुप्त् हो जाएगा।
कृत्रिम माँस विकसित करने की तैयारी
अमेरिकी वैज्ञानिक प्रयोगशाला में कृत्रिम माँस विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसके भविष्य में उपयोग में आने पर माँस आपूर्ति के लिए मूक प्राणियों के कत्लपर रोक लग सकेगी ।
ब्रिटिश दैनिक गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार सैन फ्रांसिस्को के मैनेलो पार्क के पास स्थित प्रयोगशाला में प्रो.पैट्रिक ब्राउन इस कृत्रिक माँस को विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होनें कहा - मैं उन लोगों के लिए भोजन विकसित करने का प्रयास कर रहा हॅू, जो रोजमर्रा के भोजन में माँस का सेवन करते हैं । मेरे इस प्रयास से संभव है कि पृथ्वी पर इंसानों की और जानवरों की आबादी ५०-५० फीसदी के अनुपात में सिमट जाएगी ।
कृत्रिम तरीके से माँस बनाने का दशकों से प्रयास किया जा रहा है और बाजारों में कई तरह के विकल्प मौजूद है जो सोया से बने होते हैं । इन कृत्रिम खाद्य पदार्थो के स्वाद में कुछ खास दम नहीं होता है । प्रो. ब्राउन द्वारा विकसित किया गया माँस या तो कृत्रिम ऊतकों से विकसित किया जाएगा अथवा वनस्पति के जरिए । वैज्ञानिकों के आगे सबसे बड़ी चुनौती इस नकली माँस के स्वाद को लेकर होगी । माँस का असली स्वाद बहुत लजीज होता है जो दुनियाभर की एक बड़ी जनसंख्या को अपनी ओर आकर्षित करता है ।
कच्च माँस बेस्वाद होता है, लेकिन जब इसे भूना जाता है तो इसमेंहोने वाली बहुत सी रासायनिक प्रतिक्रियाएँमाँस को स्वादिष्ट बना देती हैं । वैज्ञानिकों के आगे नकली माँस के टुकड़ें में भी इस तरह का स्वाद विकसित करने की चुनौती होगी । प्रो. ब्राउन का यह क्रांतिकारी प्रयोग दरअसल पर्यावरण के लिए बहुत फायदेमंद होगा । साथ ही जानवरोंको मारे जाने से कुछ खास किस्म के पशुआें के लुप्त् हो जाने का खतरा भी मंडरा रहा है, इसे भी रोका जा सकेगा ।
पूरी दुनिया मेंहर सेंकड १६०० पशुआें को माँस की आपूर्ति के लिए मार दिया जाता है । माँस उत्पादन की वजह से विश्व में कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में पांच प्रश, मीथेन में ४० प्रश, और दूसरी नाइट्रोजन गैसों में ४० प्रश बढ़ोतरी होती है । अगर माँस उत्पादन इसी रफ्तार से जारी रहा तो वर्ष २०४० तक यह इन हानिकारक गैसों के उत्पादन में वाहनों को कहीं पीछे छोड़ देगा ।
ब्रह्मांड का रहस्य खोजने के करीब है वैज्ञानिक
ब्रह्मांड की उत्पत्ति खोजने में जुटे वैज्ञानिक गॉड पार्टिकल (हिम्स बोसोन) की खोज के करीब पहुँच चुके हैं। बिग बैंग थ्योरी के मुताबिक, इसी तत्व की मदद से पहले तारे फिर ग्रह और आखिरकार जीवन की उत्पत्ति हुई । पिछले कई सालोंकी प्रयासों के बाद वैज्ञानिकों के पास ढेर सारे आँकड़े उपलब्ध हो चुके हैं । ऐसे में वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि जल्द ही गॉड पार्टिकल सामने आ सकता है।
इस तत्व की खोज के लिए योरपियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्ने) लार्ज हेड्रोन कोलाइडर (एचएचसी) का इस्तेमाल कर रही है । यह कणों को तेजी से घुमाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी मशीन है । शोधकर्ताआें का मानना है कि जुलाई के मध्य में मेलबोर्न में होन वाली कॉन्फ्रेंस में वैज्ञानिक शोध-पत्र का खुलासा कर सकते हैं । सर्न के प्रवक्ता जेम्स गिलीस ने कहा कि इस शोध को गुप्त् रखा जा रहा है । केवल कुछ प्रमुख लोग ही इन आँकड़ों का अध्ययन कर रहे हैं । हमें जैसे ही कोई ठोस जानकारी प्राप्त् होगी, उसे दुनिया के सामने रखा जाएगा । वैज्ञानिकों ने कहा कि हिग्स बोसोन के मजबूत संकेत उसी ऊर्जा स्तर पर देखे जा रहे हैं, जो पिछले साल अस्थायी तौर पर देखे गए थे । हालांकि इन अणुआें की जिंदगी इतनी अल्प है कि इन्हें इनके द्वारा छोड़े गए अवशेषों के आधार पर ही पकड़ा जा सकता है ।
भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस के शोध को भौतिक जगत ने स्वीकार करते हुए उनके नाम पर एक उप-परमाण्विक कण का नाम बोसोन रखा है । सन १९२४ में बोस ने एक सांख्यिकीय गणना का जिक्र करते हुए एक पत्र आइस्टीन के पास भेजा था, जिसके आधार पर बोस आइस्टीन के गैस को द्रवीकृत करने के सिद्धांत का जन्म हुआ । इस सिद्धांत के आधार पर ही प्राथमिक कणोंको दो भागों में बाँटा जा सका और इनमें से एक का नाम बोसोन रखा गया, जबकि दूसरे का नाम इटली के भौतिक वैज्ञानिक इनरिको फैरमी के नाम पर रखा गया । दशकों बाद १९६४ में ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने बिग बैंग के बाद एक सेंकड के अरबवें हिस्से में ब्रह्मांड के द्रव्यों को मिलने वाले भार का सिद्धांत दिया, जो बोस के बोसोन सिद्धांत पर ही आधारित था । इसे बाद में हिग्स-बोसोन के नाम से जाना गया ।
एक कीड़े की कीमत ७ लाख रूपये
साधारण सा दिखने वाला एक कीड़ा इन दिनों ७ से ८ लाख रूपए तक बिक रहा है । बद्रीनाथ से जोशीमठ के रास्ते मेंमिलने वाले इस कीड़े के बेशकीमती होने के पीछे इसकी यौन शक्ति बढ़ाने की अद्भूत क्षमता है । तस्करों की निगाह में उत्तराखंड के वन्य जीवों के अंगोंके साथ ही यह कीड़े की इंटरनेशनल मार्केट मेंजबरदस्त मांग है । चमोली जिले के जोशीमठ, दशोली और घाट क्षेत्रों के बुग्याली हिस्सोंमें कीड़ा जड़ी यानी कीड़े के मरने से बनने वाली जड़ी के ऊंचे दाम मिलने से यहां इनका जमकर दोहन हो रहा है । अब तस्करोंकी निगाह इसके जिंदा कीड़े पर लग गई है । तस्कर एक कीड़े के सात लाख रूपये तक देने को तैयार है ।
वन विभाग के सूत्रोंके मुताबिक दशोली प्रखंड के बुग्याली क्षेत्रों में कीड़ा जड़ी तलाशने वाले ग्रामीण के आगे एक तस्कर ने जिंदा कीड़ों को ढूंढ निकालने पर ऊंचे दामोंकी पेशकश की है । बताते हैं कि आइस बॉक्स में रखकर जिंदा कीड़ों को चीन सहित अन्य देशों में ले जाया जा रहा है ।
उल्लेखनीय है कि चमोली जनपद में जोशीमठ, कानीति और माणा घाटी, तपोवन, करछों, उर्गम पाणा, ईराणी, झींझी, घुनी, रामणी, कनौल आदि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में यह कीड़ा मिलता है । स्थानीय ग्रामीण मई और जून में इन स्थानों में बाकायदा कैंप लगाकर कीड़ा जड़ी खोजते हैं । कीड़ा-जड़ी का वानस्पतिक नाम यारसागंबू है ।
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