शिक्षा जगत
वेनेजुएला : शिक्षा में संगीत की भागीदारी
सुनील
दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला ने क्यूबा से शिक्षा का पाठ पढ़कर उसे अपनी परिस्थितियों के हिसाब से ढाला । अन्य विशेषताआें के साथ संगीत को विशिष्ट या एक वर्ग के विद्यर्थियों के लिए आरक्षित करने के बजाए यह मानना कि भाषा की तरह संगीत भी सीख सकते हैं और यह सभी को उपलब्ध होना चहिए, वास्तव में एक क्रांतिकारी अवधारणा है । एक गाता- बजाता समाज वास्तव में कितना खुशहाल होता है यह हमें हमारा आदिवासी समाज शताब्दियों से बताता आ रहा है । लेकिन हम तो एक रूखे सामाजिक वातावरण के आदी होते जा रहे है ।
दक्षिण अमरीका के देश वेनेजुएला पर सबकी नजर है । इसके राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज ने दक्षिण अमरीका के महाद्वीप मेंअमरीकी प्रभुत्व को खुली चुनौती दी है । उन्होंने नवउदारवादी आर्थिक नीतियों का खुलकर विरोध किया है । अपने देश के अंदर भी वे एक नए प्रकार के समाजवाद का प्रयोग कर रहे है, जिसे वे इक्कीसवीं सदी का समाजवाद कहते हैं ।
वेनेजुएला का समाजवाद का यह प्रयोग इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि शावेज किसी हिंसक क्रांति या विद्रोह से सत्ता में नहीं आए, बल्कि लोकतांत्रिक तरीके सेचुनाव लड़कर राष्ट्रपति बने है । शावेज १९९८ में पहली बार चुनकर आए थे । परिवर्तन का यह लोकतांत्रिक रास्ता वेनेजुएला के समाजवाद की ताकत भी है और उसकी सीमा भी है ।
वेनेजुएला मेंपेट्रोल का काफी भंडार है । पेट्रोल व्यवसाय को पुरी तरह अपने नियंत्रण में लेकर शावेज ने उसकी आय का भरपूर उपयोग देश की साधारण जनता को शिक्षा, इलाज, भोजन, आवास और रोजगार उपलब्ध कराने में किया है । कुछ अन्य उद्योगों (बिजली, संचार, बैंक, तेल आधारित उद्योग) का राष्ट्रीयकरण भी शावेज ने किया है । किन्तु निजी संपत्ति का खतम नहीं किया है । इसलिए वेनेजुएला के अमीर लोग अभी भी ताकतवर बने हुए है और शावेज के सुधारों का जमकर विरोध करते हैं । उन्हेंे संयुक्त राज्य अमेरिका का भी परोक्ष समर्थन मिलता है ।
शावेज के पहले वेनेजुएला में काफी निरक्षरता और अशिक्षा थी । केवल ५० फीसदी बच्च्े ही कक्षा ६ में पहुंच पाते थे, ३० फीसदी कक्षा ९ में और १५ फीसदी से भी कम कक्षा ११ में पहुंच पाते थे । नए संविधान की धारा १०२ में कहा गया है, शिक्षा एक बुनियादी मानव अधिकार और सामाजिक दायित्व है जो मुफ्त, अनिवार्य और लोकतांत्रिक हो । धारा १०३ कहती है कि हर व्यक्ति को समान दशाआें में समान अवसरों के साथ समग्र व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पाने का अधिकार है, चाहे उसकी क्षमताएं, आकांक्षाएं और उसका व्यवसाय चाहे जो हो ।
इन संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के लिए अनेक कदम उठाए गए । शिक्षा से वंचित रह गए लोगों के लिए चार मिशन शुरू किए गए जो उन्हें साक्षरता, प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और अंत में विश्वविद्यालयीन शिक्षा देने में लग गए । गरीब विद्यार्थियों के लिए ४ लाख छात्रवृत्तियां भी दी गई जो १०० डॉलर प्रतिमाह (करीब ५००० रू.) की न्यूनतम मजदूरी के ७० फीसदी के बराबर है ।
गरीब अफ्रीकी और वेनेजुएला के मूल निवासी (आदिवासी) समुदायों को भी शिक्षा में शामिल करने की विशेष कोशिश की गई । सरकारी स्कूलों में फीस पूरी तरह खतम कर दी गई, स्कूलोंमें तीन वक्त भोजन (सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन, और अपरान्ह का नाश्ता) की व्यवस्था की गई, स्कूल आने-जाने के लिए परिवहन की व्यवस्था की गई और पर्याप्त् छात्रवृत्तियां प्रदान की गई । जब १९९८ में शावेज पहली बार राष्ट्रपति बने, तब सरकार कुल राष्ट्रीय का ३.३८ प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करती थी । २००७ में यह बढ़कर ५.४३ प्रतिशत हो गया । यदि इसमें नीचे के सरकारों द्वारा शिक्षा मिशनों पर किया जाने वाला खर्च जोड़ दिया जाए तो यह ७ प्रतिशत से ज्यादा हो जाता है ।
इसका नतीजा भी दिखाई देने लगा है । पिछली सरकार में प्राथमिकता शाला में केवल ४३ प्रतिशत बच्च्े जाते थे । अब हाईस्कूल तक जाने वाले बच्चेंका प्रतिशत ९३ हो गया है । उच्च् शिक्षा में नामांकन में तो साढ़े तीन गुना बढ़ोत्तरी हुई है । १९९८ में वेनेजुएला के विश्वविघालयों में ६.६८ लाख विद्यार्थी पढ़ते थे । यह संख्या २०११ में २३ लाख पर पहुंच गई है ।
उच्च् शिक्षा भी वेनेजुएला में पूरी तरह मुफ्त कर दी गई है । नए विश्वविद्यालयों में भोजन व शैक्षणिक सामग्री नि:शुल्क होती है और विद्यार्थियों के स्वास्थ्य के देखरेख की व्यवस्था भी होती है । उच्च् शिक्षा के पुराने अभिजात्य चरित्र के जवाब मेंएक वेनेजुएला का बोलीवारवादी विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है, जो पूरी तरह मुफ्त तथा खुला है । कोई भी इसमें दाखिला ले सकता है । इसके विद्यार्थियों को अपने विषय में स्थानीय लोगों के साथ काम करना होता है । शाम को उनकी कक्षा लगती है, जिसमें वे किताबी सिद्धांतों और अपने व्यवहारिक अनुभवों को जोड़ने का काम करते है ।
पाठ्यक्रमोंऔर पाठ्यचर्चा को भी नयी व्यवस्था के अनुरूप बदलने की कोशिश की जा रही है । दक्षिण अमरीका के क्रांतिकारी चे ग्वारा तथा शिक्षाशास्त्री पालो फ्रेरे के विचारों के अनुरूप इनको ढाला जा रहा है । बोलीवारवादी समाजवाद के इस प्रयोग मेंशिक्षा का मकसद ऐसे नागरिक तैयार करना है जो इस प्रयोग में और इसके निर्माण में सक्रिय हिस्सा ले सके । यदि पूंजीवाद मेंशिक्षा का निजीकरण हो रहा है तो बोलीवारवादी समाजवाद में शिक्षा मानवीय, लोकतांत्रिक, सहभागी, बहु-नस्ली, बहु-भाषी, बहु-सांस्कृतिक समाज को मजबूत करने के लिए समर्पित हो, ऐसी कोशिश की जा रही है । वर्ष २००८ में एक नयी राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा रूपरेखा बनाई गई है । उच्च् शिक्षा में भी अभी तक चले आ रहे यूरोप-केन्द्रित पाठ्यक्रमों को बदला जा रहा है और उसे दक्षिण अमरीका के राजनैतिक विचारों, कानूनी इतिहास, आदिवासी कानूनों और वेनेजुएलाके नए संविधान पर केन्द्रित किया जा रहा है ।
यहां शिक्षा और रोजगार का रिश्ता जोड़ने तथा बेरोजगारी कम करने के लिए ज्ञान एवं काम मिशन शुरू किया गया है । इसमेंहजारों युवाआें को एवं विकलांग बच्चें को विशेष शिक्षा आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है । कम से कम तीन महीने चलने वाले इस प्रशिक्षण में उन्हें करीब १०० डॉलर (५००० रू.) महीने की छात्रवृत्ति दी जाती है । इसमें विशेष उल्लेखनीय विकलांग बच्चें की विशेष शिक्षा के लिए शिक्षक, चिकित्सक व सामाजिक कार्यकर्ता तैयार करने का प्रशिक्षण है, जो छ: महीने का होता है ।
दूसरी अनूठी पहल संगीत शिक्षा के बारे मेंहै । वेनेजुएला में ३०० संगीत शालाएं चल रही हैं, जिन्हें नुक्लेओ कहा जाता है । इनमें से एक तो अमेजन के जंगलों में है, जहां केवलनाव से पहुंचा जा सकता है । स्कूल के बाद शाम को चलने वाली संगीत शालाआें में बड़ी संख्या में बच्च्े गरीब बस्तियों से आते हैं, किन्तु मध्यम वर्ग और उच्च् वर्ग के बच्च्े भी उनमें आकर्षित होते हैं । वहां वाद्ययंत्र और भोजन मुफ्त दिए जाते हैं और दूर-दराज इलाकों में घर से आने-जाने के परिवहन की व्यवस्था भी की जाती है । ये शालाएं शावेज के पहले से चली आ रही हैं, किन्तु शावेज ने उन्हें काफी बढ़ावा दिया है । इन दिनों वेनेजुएला में शास्त्रीय संगीत की धूम मची हुई है । वहां का सबसे लोकप्रिय संगीत कलाकार गुस्तावो डुडामल इसी संगीत शिक्षा कार्यक्रम की उपज है, जिसे एल-सिस्तेमा कहा जाता है ।
एल-सिस्तेमा की संगीता शिक्षा का अभिजात्य विरोधी चरित्र भी है । इसके संस्थापक जोस एंटोनिओ एब्रेऊ का मानना है कि संगीत एक मानव अधिकार है और सबके लिए है । एन-सिस्तेमा मेंसंगीत की प्रतिभाआें को खोजने और विकसित करने पर जोर नहीं होता, बल्कि यह माना जाता है कि हर व्यक्ति में संगीत की क्षमता होती है । भाषा की ही तरह, यदि कम उम्र में संगीत अच्छी तरह सिखाया जाए, तो संगीत की बुनियादी काबिलियत सब हासिल कर सकते है । एल-सिस्तेमा को भी एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के बजाय सामाजिक कार्यक्रम का दर्जा दिया गया है ।
कुल मिलाकर, वेनेजुएला मेंएक शैक्षणिक क्रांति आकार ले रही है, जो वहां पर बड़े सामाजिक राजनैतिक बदलाव का हिस्सा है । भारत की स्थिति बिल्कुल उलटी है । कहने को तो भारत में भी साक्षरता का मिशन और सर्वशिक्षा अभियान है, शिक्षा अधिकार कानून बना है और स्कूलों में नामांकन में भारी प्रगति के वादे किये गए हैं । किन्तु नवउदारवादी व्यवस्था में वेनेजुएला से ठीक विपरीत भारतीय शिक्षा महंगी होकर सामाजिक भेदभाव बढ़ा रही है ।
वेनेजुएला : शिक्षा में संगीत की भागीदारी
सुनील
दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला ने क्यूबा से शिक्षा का पाठ पढ़कर उसे अपनी परिस्थितियों के हिसाब से ढाला । अन्य विशेषताआें के साथ संगीत को विशिष्ट या एक वर्ग के विद्यर्थियों के लिए आरक्षित करने के बजाए यह मानना कि भाषा की तरह संगीत भी सीख सकते हैं और यह सभी को उपलब्ध होना चहिए, वास्तव में एक क्रांतिकारी अवधारणा है । एक गाता- बजाता समाज वास्तव में कितना खुशहाल होता है यह हमें हमारा आदिवासी समाज शताब्दियों से बताता आ रहा है । लेकिन हम तो एक रूखे सामाजिक वातावरण के आदी होते जा रहे है ।
दक्षिण अमरीका के देश वेनेजुएला पर सबकी नजर है । इसके राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज ने दक्षिण अमरीका के महाद्वीप मेंअमरीकी प्रभुत्व को खुली चुनौती दी है । उन्होंने नवउदारवादी आर्थिक नीतियों का खुलकर विरोध किया है । अपने देश के अंदर भी वे एक नए प्रकार के समाजवाद का प्रयोग कर रहे है, जिसे वे इक्कीसवीं सदी का समाजवाद कहते हैं ।
वेनेजुएला का समाजवाद का यह प्रयोग इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि शावेज किसी हिंसक क्रांति या विद्रोह से सत्ता में नहीं आए, बल्कि लोकतांत्रिक तरीके सेचुनाव लड़कर राष्ट्रपति बने है । शावेज १९९८ में पहली बार चुनकर आए थे । परिवर्तन का यह लोकतांत्रिक रास्ता वेनेजुएला के समाजवाद की ताकत भी है और उसकी सीमा भी है ।
वेनेजुएला मेंपेट्रोल का काफी भंडार है । पेट्रोल व्यवसाय को पुरी तरह अपने नियंत्रण में लेकर शावेज ने उसकी आय का भरपूर उपयोग देश की साधारण जनता को शिक्षा, इलाज, भोजन, आवास और रोजगार उपलब्ध कराने में किया है । कुछ अन्य उद्योगों (बिजली, संचार, बैंक, तेल आधारित उद्योग) का राष्ट्रीयकरण भी शावेज ने किया है । किन्तु निजी संपत्ति का खतम नहीं किया है । इसलिए वेनेजुएला के अमीर लोग अभी भी ताकतवर बने हुए है और शावेज के सुधारों का जमकर विरोध करते हैं । उन्हेंे संयुक्त राज्य अमेरिका का भी परोक्ष समर्थन मिलता है ।
शावेज के पहले वेनेजुएला में काफी निरक्षरता और अशिक्षा थी । केवल ५० फीसदी बच्च्े ही कक्षा ६ में पहुंच पाते थे, ३० फीसदी कक्षा ९ में और १५ फीसदी से भी कम कक्षा ११ में पहुंच पाते थे । नए संविधान की धारा १०२ में कहा गया है, शिक्षा एक बुनियादी मानव अधिकार और सामाजिक दायित्व है जो मुफ्त, अनिवार्य और लोकतांत्रिक हो । धारा १०३ कहती है कि हर व्यक्ति को समान दशाआें में समान अवसरों के साथ समग्र व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पाने का अधिकार है, चाहे उसकी क्षमताएं, आकांक्षाएं और उसका व्यवसाय चाहे जो हो ।
इन संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के लिए अनेक कदम उठाए गए । शिक्षा से वंचित रह गए लोगों के लिए चार मिशन शुरू किए गए जो उन्हें साक्षरता, प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और अंत में विश्वविद्यालयीन शिक्षा देने में लग गए । गरीब विद्यार्थियों के लिए ४ लाख छात्रवृत्तियां भी दी गई जो १०० डॉलर प्रतिमाह (करीब ५००० रू.) की न्यूनतम मजदूरी के ७० फीसदी के बराबर है ।
गरीब अफ्रीकी और वेनेजुएला के मूल निवासी (आदिवासी) समुदायों को भी शिक्षा में शामिल करने की विशेष कोशिश की गई । सरकारी स्कूलों में फीस पूरी तरह खतम कर दी गई, स्कूलोंमें तीन वक्त भोजन (सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन, और अपरान्ह का नाश्ता) की व्यवस्था की गई, स्कूल आने-जाने के लिए परिवहन की व्यवस्था की गई और पर्याप्त् छात्रवृत्तियां प्रदान की गई । जब १९९८ में शावेज पहली बार राष्ट्रपति बने, तब सरकार कुल राष्ट्रीय का ३.३८ प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करती थी । २००७ में यह बढ़कर ५.४३ प्रतिशत हो गया । यदि इसमें नीचे के सरकारों द्वारा शिक्षा मिशनों पर किया जाने वाला खर्च जोड़ दिया जाए तो यह ७ प्रतिशत से ज्यादा हो जाता है ।
इसका नतीजा भी दिखाई देने लगा है । पिछली सरकार में प्राथमिकता शाला में केवल ४३ प्रतिशत बच्च्े जाते थे । अब हाईस्कूल तक जाने वाले बच्चेंका प्रतिशत ९३ हो गया है । उच्च् शिक्षा में नामांकन में तो साढ़े तीन गुना बढ़ोत्तरी हुई है । १९९८ में वेनेजुएला के विश्वविघालयों में ६.६८ लाख विद्यार्थी पढ़ते थे । यह संख्या २०११ में २३ लाख पर पहुंच गई है ।
उच्च् शिक्षा भी वेनेजुएला में पूरी तरह मुफ्त कर दी गई है । नए विश्वविद्यालयों में भोजन व शैक्षणिक सामग्री नि:शुल्क होती है और विद्यार्थियों के स्वास्थ्य के देखरेख की व्यवस्था भी होती है । उच्च् शिक्षा के पुराने अभिजात्य चरित्र के जवाब मेंएक वेनेजुएला का बोलीवारवादी विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है, जो पूरी तरह मुफ्त तथा खुला है । कोई भी इसमें दाखिला ले सकता है । इसके विद्यार्थियों को अपने विषय में स्थानीय लोगों के साथ काम करना होता है । शाम को उनकी कक्षा लगती है, जिसमें वे किताबी सिद्धांतों और अपने व्यवहारिक अनुभवों को जोड़ने का काम करते है ।
पाठ्यक्रमोंऔर पाठ्यचर्चा को भी नयी व्यवस्था के अनुरूप बदलने की कोशिश की जा रही है । दक्षिण अमरीका के क्रांतिकारी चे ग्वारा तथा शिक्षाशास्त्री पालो फ्रेरे के विचारों के अनुरूप इनको ढाला जा रहा है । बोलीवारवादी समाजवाद के इस प्रयोग मेंशिक्षा का मकसद ऐसे नागरिक तैयार करना है जो इस प्रयोग में और इसके निर्माण में सक्रिय हिस्सा ले सके । यदि पूंजीवाद मेंशिक्षा का निजीकरण हो रहा है तो बोलीवारवादी समाजवाद में शिक्षा मानवीय, लोकतांत्रिक, सहभागी, बहु-नस्ली, बहु-भाषी, बहु-सांस्कृतिक समाज को मजबूत करने के लिए समर्पित हो, ऐसी कोशिश की जा रही है । वर्ष २००८ में एक नयी राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा रूपरेखा बनाई गई है । उच्च् शिक्षा में भी अभी तक चले आ रहे यूरोप-केन्द्रित पाठ्यक्रमों को बदला जा रहा है और उसे दक्षिण अमरीका के राजनैतिक विचारों, कानूनी इतिहास, आदिवासी कानूनों और वेनेजुएलाके नए संविधान पर केन्द्रित किया जा रहा है ।
यहां शिक्षा और रोजगार का रिश्ता जोड़ने तथा बेरोजगारी कम करने के लिए ज्ञान एवं काम मिशन शुरू किया गया है । इसमेंहजारों युवाआें को एवं विकलांग बच्चें को विशेष शिक्षा आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है । कम से कम तीन महीने चलने वाले इस प्रशिक्षण में उन्हें करीब १०० डॉलर (५००० रू.) महीने की छात्रवृत्ति दी जाती है । इसमें विशेष उल्लेखनीय विकलांग बच्चें की विशेष शिक्षा के लिए शिक्षक, चिकित्सक व सामाजिक कार्यकर्ता तैयार करने का प्रशिक्षण है, जो छ: महीने का होता है ।
दूसरी अनूठी पहल संगीत शिक्षा के बारे मेंहै । वेनेजुएला में ३०० संगीत शालाएं चल रही हैं, जिन्हें नुक्लेओ कहा जाता है । इनमें से एक तो अमेजन के जंगलों में है, जहां केवलनाव से पहुंचा जा सकता है । स्कूल के बाद शाम को चलने वाली संगीत शालाआें में बड़ी संख्या में बच्च्े गरीब बस्तियों से आते हैं, किन्तु मध्यम वर्ग और उच्च् वर्ग के बच्च्े भी उनमें आकर्षित होते हैं । वहां वाद्ययंत्र और भोजन मुफ्त दिए जाते हैं और दूर-दराज इलाकों में घर से आने-जाने के परिवहन की व्यवस्था भी की जाती है । ये शालाएं शावेज के पहले से चली आ रही हैं, किन्तु शावेज ने उन्हें काफी बढ़ावा दिया है । इन दिनों वेनेजुएला में शास्त्रीय संगीत की धूम मची हुई है । वहां का सबसे लोकप्रिय संगीत कलाकार गुस्तावो डुडामल इसी संगीत शिक्षा कार्यक्रम की उपज है, जिसे एल-सिस्तेमा कहा जाता है ।
एल-सिस्तेमा की संगीता शिक्षा का अभिजात्य विरोधी चरित्र भी है । इसके संस्थापक जोस एंटोनिओ एब्रेऊ का मानना है कि संगीत एक मानव अधिकार है और सबके लिए है । एन-सिस्तेमा मेंसंगीत की प्रतिभाआें को खोजने और विकसित करने पर जोर नहीं होता, बल्कि यह माना जाता है कि हर व्यक्ति में संगीत की क्षमता होती है । भाषा की ही तरह, यदि कम उम्र में संगीत अच्छी तरह सिखाया जाए, तो संगीत की बुनियादी काबिलियत सब हासिल कर सकते है । एल-सिस्तेमा को भी एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के बजाय सामाजिक कार्यक्रम का दर्जा दिया गया है ।
कुल मिलाकर, वेनेजुएला मेंएक शैक्षणिक क्रांति आकार ले रही है, जो वहां पर बड़े सामाजिक राजनैतिक बदलाव का हिस्सा है । भारत की स्थिति बिल्कुल उलटी है । कहने को तो भारत में भी साक्षरता का मिशन और सर्वशिक्षा अभियान है, शिक्षा अधिकार कानून बना है और स्कूलों में नामांकन में भारी प्रगति के वादे किये गए हैं । किन्तु नवउदारवादी व्यवस्था में वेनेजुएला से ठीक विपरीत भारतीय शिक्षा महंगी होकर सामाजिक भेदभाव बढ़ा रही है ।
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